भूमिका
कुछ दिन पहले, पहेली चिठ्ठे पर नारद जी की छड़ी नाम की यह पहेली बूझी गयी।
‘तो हुआ ऐसा कि नारद जी एक बार अपनी ७ इन्च लम्बी सोने की छड़ी लेकर धरती पर भ्रमण को आए। अब उन्हें सारे चिट्ठों की जानकारी वाले सजाल बनाने में सप्ताह भर का समय लगना था। तो वे एक होटल में एक कक्ष लेने का विचार बना कर वहाँ पहुँच गए। अब इनके पास कोई धनराशि तो थी नहीं , पर सात दिन के किराए के रूप में होटल के मैनेजर ने नारद जी से ७ (सात) इन्च लम्बी सोने की छड़ी लेना स्वीकार कर लिया। पर मैनेजर ने हर रोज का किराया उसी दिन लेना चाहा। तो इस बार की पहेली यह है कि नारद जी को कम से कम छड़ी के कितने टुकड़े करने होंगे, ताकि वो,
होटल का किराया चुका सकें? और
उन टुकड़ों की लम्बाई क्या होगी?’
श्री र.च. मिश्र ने इसका सही जवाब दिया और वह है, १, २ और ४ इन्च के टुकड़े करने होंगे।
इस पहेली के कई रूप हैं और यह रूप इसका सबसे आसान रूप है। इसके कठिन रूप का जवाब इतनी आसानी से नहीं दिया जा सकता है। यह जवाब २ की पॉवर के अंक (१, २, ४, ८, १६, ….) की एक सिरीस है; अंकों की यह सिरीस मूलभूत है। इसका सम्बन्ध बहुत चीजों से है,
- शतरंज के जादू;
- सृष्टि के अन्त; और
- उससे भी, जिससे हम सब जुड़े हैं यानि कि कमप्यूटर विज्ञान से।
शतरंज का जादू , सृष्टि का अन्त? यह क्या बला है? चलिये एक क्रम से चर्चा करते हैं ताकि हम कहीं चक्कर न खा जायें। चर्चा का क्रम यह रहेगा:
- शतरंज का जादू क्या है;
- सृष्टि का अन्त;
- नारद जी की छड़ी वाली पहेली के अन्य रूप;
- इस पहेली के हल का शतरंज के जादू एवं सृष्टि का अन्त से रिश्ता;
- इस पहेली के हल का कमप्यूटर विज्ञान से सम्बन्धों का जिक्र।
पहेलियों की कई अच्छी पुस्तके हैं जिनका जिक्र मैने पहेलियां और मर्टिन गर्डनर नाम के लेख पर किया है। इसमे हिन्दी की एक अच्छी पुस्तक ‘गणित की पहेलियां’ है। इसके लेखक गुणाकर मुले हैं। इसे १९६१ मे राजकमल प्रकाशन ने छापा था और लगभग इसी समय मेरे बाबा ने यह पुस्तक मुझे भेंट की थी। गुणाकर मुले मेरे बचपन मे अकसर इस तरह के लेख लिखते थे। मालुम नहीं आप में से कितनो को इनकी याद है या उस समय के हैं। यह पहेलियों की मेरी पहली पुस्तक थी।
शतरंज का जादू
गुणाकर मुले की किताब ‘गणित की पहेलियां’ मे एक अध्याय ‘अंकगणित की पहेलियों’ पर है इसी मे वह ‘शतरंज के जादू’ के बारे मे बताते हैं। इसका बयान करने से पहले मैं आपको एक सांकेतिक चिन्ह के बारे मे बता दूं क्योंकि इसका प्रयोग मै करूंगा।
१=२/२=२^०
२=२=२^१
४=२x२=२^२
८=२x२x२=२^३
१६= २x२x२x२=२^४
यह सब नम्बर दो को दो से एक बार या दो से कई बार गुणा करके मिले हैं या यह कह लीजये कि ये दो की पावर (power) हैं। इन्टरनेट पर पावर को लिखने के लिये ^ चिन्ह का प्रयोग किया जाता है और मै भी इस चिठ्ठे पर इसी प्रकार से लिखूंगा। अब देखते हैं कि गुणाकर मुले किस तरह से शतरंज के जादू के बारे मे ब्यान करते हैं। यह उन्ही के शब्दों मे,
‘शतरंज के खेल के नियमों को आप न भी जानते हों तो कम से कम इतना तो सभी जानते हैं कि शतरंज चौरस पटल पर खेला जाता है । इस पटल पर ६४ छोटे-छोटे चौकोण होते हैं।
प्राचीन काल में पर्सिया में शिर्म नाम का एक बादशाह था। शतरंज की अनेकानेक चालों को देखकर यह खेल उसे बेहद पसंद आया। शतरंज के खेल का आविष्कर्ता उसी के राज्य का एक वृद्ध फकीर है, यह जानकर बादशाह को खुशी हुई। उस फकीर को इनाम देने के लिये दरबार में बुलाया गया: “तुम्हारी इस अदभुत खोज के लिये मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं । मांगो, जो चाहे मांगो,” बादशाह ने कहा।
फकीर – उसका नाम सेसा था – चतुर था। उसने बादशाह से अपना इनाम मांगा – “हुजूर, इस पटल में ६४ घर हैं। पहले घर के लिये आप मुझे गेहूं का केवल एक दाना दें, दूसरे घर के लिये दो दाने, तीसरे घर के लिये ४ दाने, चौथे घर के लिये ८ दाने और …. इस प्रकार ६४ घरों के साथ मेरा इनाम पूरा हो जाएगा।”
“बस इतना ही ?” बादशाह कुछ चिढ गया,” खैर, कल सुबह तक तुम्हें तुम्हारा इनाम मिल जाएगा। ”
सेसा मुस्कराता हुआ दरबार से लौट आया और अपने इनाम की प्रतीक्षा करने लगा।
बादशाह ने अपने दरबार के एक पंडित को हिसाब करके गणना करने का हुक्म दिया। पंडित ने हिसाब लगाया … १+ २+ ४+ ८+ १६+ ३२+ ६४+ १२८… (६४ घरों तक ) अर्थात १+ २^२ + २^३ + २^४… = (२^६४)-१ अर्थात १८,४४६,७४४,०७३,७०९,५५१,६१५ गेहूं के दाने। गेहूं के इतने दाने बादशाह के राज्य में तो क्या संपूर्ण पृथ्वी पर भी नहीं थे। बादशाह को अपनी हार स्वीकार कर लेनी पड़ी।’
राजा तो समझ रहा था कि फकीर ने बहुत छोटा इनाम मांगा है उसकी समझ मे नहीं आया कि उसे कितना गेहूं देना था – यही है शतरंज का जादू।
गौर फरमाइयेगा कि हर खाने मे कितने गेहूं के दाने रखे जा रहे हैं क्योंकि यही हमारे इस विषय के लिये महत्वपूर्ण है।
सृष्टि का अन्त
गुणाकर मुले अपनी किताब मे सृष्टि का अन्त की कथा का वर्णन कुछ इस तरह से करते हैं। यह उन्ही के शब्दों मे,
‘कथा बहुत प्राचीन है। उस समय काशी में एक विशाल मन्दिर था। कहा जाता है कि ब्रम्हा ने जब इस संसार की रचना की, उसने इस मंदिर में हीरे की बनी हुई तीन छड़ें रखी और फिर इनमें से एक में छेद वाली सोने की ६४ तश्तरियां रखीं सबसे बडी नीचे और सबसे बडी उपर। फिर ब्रम्हा ने वहां पर एक पुजारी को नियुक्त किया। उसका काम था कि वह एक छड की तश्तरियां दूसरी छड़ में बदलता जाए। इस काम के लिए वह तीसरी छड़ का सहारा ले सकता था। परन्तु एक नियम का पालन जरूरी था। पुजारी एक समय केवल एक ही तश्तरी उठा सकता था और छोटी तश्तरी के उपर बडी तश्तरी वह रख नहीं सकता था। इस विधि से जब सभी ६४ तश्तरियां एक छड से दूसरी छड़ में पहुंच जाएंगी, सृष्टि का अन्त हो जाएगा।
आप कहेंगे, “तब तो कथा की सृष्टि का अन्त हो जाना चाहिए था। ६४ तश्तरियों को एक छड़ से दूसरी छड़ में स्थानान्तरित करने में समय ही कितना लगता है।”
नहीं, यह ‘ब्रम्ह-कार्य’ इतनी शीघ्र समाप्त नहीं हो सकता। मान लीजिए कि एक तश्तरी के बदलने में एक सेकेंड का समय लगता है। इसके माने यह हुआ कि एक घंटे में आप ३६०० तश्तरियां बदल लेंगे। इसी प्रकार एक दिन में आप लगभग १००,००० तश्तरियों और १० दिन में लगभग १,०००,००० तश्तरियां बदल लेंगे।
आप कहेंगे, “इतने परिवर्तनो में तो ६४ तश्तरियां निश्चित रूप से एक छड़ से दूसरी छड़ में पहुंच जाएगीं।” लेकिन आपका अनुमान गलत है । उपरोक्त ‘ब्रम्ह-नियम’ के अनुसार ६४ तश्तरियों को बदलने में पुजारी महाशय को कम से कम ५००,०००,०००,००० वर्ष लगेंगे ।
इस बात पर शायद यकायक आप विश्वास न करें । परन्तु गणित के हिसाब से कुल परिवर्तनों की संख्या होती है, (२^६४)-१ अर्थात १८,४४६,७४४,०७३,७०९,५५१,६१५’
आपने गौर किया कि यह वही नम्बर है जितने गेहूं के दाने राजा को देने थे। इसका हल भी गुणाकर मुले की किताब मे इस प्रकार है,
‘उपरोक्त गणना को एक संवाद द्वारा स्पष्ट कर देना उचित होगा । अपने बचपन की एक घटना मुझे याद आती है। एक दिन मेरे बडे भाई साहब ने सिक्कों का एक खेल समझाया। उन्होंने मेज पर तीन प्लेटें रखीं और इनमें से एक में 5 अलग अलग सिक्के रखें, क्रमश: एक के उपर एक – रूपया, अठन्नी, चवन्नी, एकन्नी और एक पैसा। इन पांचों सिक्कों को, इसी क्रम में, दूसरी प्लेट में रखना था। परन्तु तीन नियमों का पालन जरूरी था,
(१) एक समय में केवल एक ही सिक्का उठाया जा सकता था।
(२) छोटे सिक्के पर बडे सिक्के को रखने की मनाही थी।
(३) इस परिवर्तन – क्रिया में तीसरी प्लेट का उपयोग किया जा सकता था। परन्तु अन्त में सभी सिक्के दूसरी प्लेट में पहुंच जाने चाहिए थे, और वह भी अपने आरंभिक क्रम में ( रूपया, अठन्नी, चवन्नी, एकन्नी और पैसा) – एक के उपर दूसरा।
“नियम तुम्हें समझ में आ गए होंगे, अब अपना काम शुरू करो ! ” भैया ने मुझसे कहा।
मैंने पैसा उठाया और तीसरी तश्तरी में रखा। फिर इकन्नी उठाकर दूसरी तश्तरी में रखी। फिर चवन्नी उठाई, परन्तु इसे कहां रखूं? (सिक्कों के आकार पर विचार न करें, इनके मूल्यों के अनुसार ही इन्हें हम छोटा-बडा मानेंगे)। यह तो दोनों से बड़ी है।
भाई साहब ने मदद की,” पैसे को इकन्नी पर रखो। तब तुम्हें तीसरी तश्तरी खाली मिलेगी।”
मैंने वैसा ही किया । परन्तु इससे मेरी कठिनाइयों का अन्त नहीं हुआ। अब अठन्नी कहां रखूं? थोडा सोचने पर रास्ता निकल आया। पैसे को मैंने दूसरी तश्तरी से पहली तश्तरी में रख दिया और इकन्नी को तीसरी तश्तरी में चवन्नी के उपर। फिर पहली तश्तरी का पैसा तीसरी तश्तरी में इकन्नी पर रख दिया। अब अठन्नी रखने के लिए दूसरी तश्तरी खाली थी । इसी प्रकार, कई परिवर्तनों के बाद, सभी सिक्के दूसरी तश्तरी में बदलने में मुझे सफलता मिली।
भाई साहब ने प्रशंसा करते हुए पूछा, “अच्छा, अब यह तो बताओ कि तुमने कुल कितने परिवर्तन किये ?”
“नहीं जानता, मैंने गिनती ही नहीं की ।” मैंने जवाब दिया।
“खैर आओं हम गिनती करें। मान लो कि पांच की बजाय हमारे पास केवल दो ही सिक्के हैं इकन्नी और पैसा । तब कितने परिवर्तन होंगे ?”
“तीन।” उत्तर आसान था।
“और यदि तीन सिक्के हों तो?”
मैंने थोडा और हिसाब लगाकर उत्तर दिया — “३+१+३= ७ परिवर्तन।”
“और चार सिक्के हों तो?”
“७+१+७= १५ परिवर्तन, मैंने उत्साह से कहा।
“बहुत अच्छे ! और यदि पांच सिक्के हों तो?”
“१५+१+१५= ३१ परिवर्तन,” मैंने उत्तर दिया।
“अब तुम इस समस्या को ठीक तरह से समझ गए हो। परन्तु मैं तुम्हें और सरल तरीका बताता हूं।” भाई ने कहा।
इन संख्याओं – ३, ७, १५, ३१, … – को तुम निम्न तरीके से रख सकते हो,
३ = (२x२) -1
७ = (२x२x२) – 1
१५ = (२x२x२x२) – 1
३१ = (२x२x२x२x२) – 1
इस (उपरोक्तत) तालिका पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जितने सिक्के हों, उतनी बार २ को अपने आप से गुणा करके और फिर उसमें से १ को घटा देने से इच्छित परिवर्तनों की संख्या प्राप्त होती है । जैसे, यदि ५ की बजाय ६ सिक्के हों तो हमें (२x२x२x२x२x२) – १ या १२७ परिवर्तन होंगे।’
पहेली के अन्य रूप
नारद जी की छड़ी पहेली के कई स्तर हैं और कई अन्य रूप। यह पहेली जिस रूप मे पूछी गयी है वह इसका सबसे आसान रूप है इस पहेली के कुछ कठिन स्तर हैं उनके बारे मे बात करने से पहले इसका एक दूसरा रूप देखें।
नारद जी को अपने भक्तों को लड्डू बांटने हैं नारद जी थोड़े से नये युग के हो गये हैं वे लड्डू डिब्बे मे रख कर देना चाहते हैं। समय न बर्बाद हो इसलिये पहले से पैक करके रखना है वे अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते जिसने जितने मांगे उतने दे दिये उनके पास ७ लड्डू हैं डिब्बों की कमी है इसलिये कम से कम डिब्बों का प्रयोग करना है। हर एक डिब्बे मे कितने लड्डू पैक किये जांये कि यदि उनसे कोई १ से ७ तक जितने भी लड्डू मांगे, वे दे सकें।
इसका जवाब है कि उन्हे ३ डिब्बे चाहिये और पहले मे १, दूसरे २, और तीसरे मे ४ लड्डू रखने होंगे।
चलिये अब इसके दूसरे स्तर पर चले – लड्डूवों कि संख्या बढ़ा देते हैं। मान लिया जाय कि १०२३ लड्डू हों तो हर डिब्बे मे कितने लड्डू रखे जायेंगे। इसका जवाब है १० डिब्बे और उनमे लड्डू निम्न क्रम मे रखें जायेंगे
१, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, १२८, २५६, ५१२
यदि १००० लड्डू होते तो पहले ९ डिब्बे मे तो उतने ही पर आखरी डिब्बे मे ५१२-२३=४८९ लड्डू रखने होंगे। यदि नारद जी के पास ५१२ से १०२३ तक लड्डू हों तो उन्हे हमेशा १० डिब्बों की जरूरत होगी। पहले ९ डिब्बों मे उतने ही जिनका योग है ५११ और दसवें मे बाकी सारे।
चलिये थोड़ा और ऊपर चले। यदि उनके पास अनगिनत लड्डू हों तो वह डिब्बों मे किस तरह से रखें। जवाब सरल है उनको निम्न क्रम मे रखें
१, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, १२८, २५६, ५१२, १०२४, २०४८, …..
यानि कि उन्हे २ की पावर मे रखें।
इस पहेली का एक इससे भी कठिन स्तर है पर उसकी यहां जरूरत नहीं है इस लिये छोड़ देता हूं, वह फिर कभी।
शतरंज के जादू और सृष्टि का अन्त का इस पहेली के हल से सम्बन्ध
क्या आपने नारद जी की छड़ी की पहेली के जवाब पर गौर किया। नारद जी की छड़ जितने दिन रुकना चाहेंगे उतनी लम्बी छड़ होगी पर टुकड़े हमेशा १, २, ४, ८, १६ ….. के होंगे। यदि इसे लड्डू के रूप मे देखें तो डिब्बों मे लड्डू हमेशा १, २, ४, ८, १६, …. के नम्बर से रखने होंगे। यह सब नम्बर दो को दो से एक बार या दो से कई बार गुणा करके मिले हैं या यह कह लीजये कि ये दो की पावर (power) हैं। शतरंज के खानो मे गेहूँ के दाने और सृष्टि का अन्त मे छड़ों के बदलाव की संख्या का भी सम्बन्ध २ की पावर से है।
शतरंज का जादू और सृष्टि का अन्त इस पहेली के एक ही रूप हैं तथा नारद जी की छड़ी या नारद जी के लड्डू इसका दूसरा रूप हैं नारद जी की छड़ी या लड्डू – जोड़ से शुरू होकर उसके टुकड़ों तक जाती है तो शतरंज का जादू – टुकड़ों से शुरू होकर उसके जोड़ तक जाता है। यानि कि नारद जी की छड़ी कि पहेली का अन्त शतरंज के जादू की शुरुवात है और शतरंज का जादू का अन्त नारद जी की छड़ी की शुरुवात है: यह पहेलियां एक दूसरे विलोम रूप हैं।
इस पहेली के हल का कमप्यूटर विज्ञान से सम्बन्ध
अब कुछ शब्द इसके हमारे साथ के सम्बन्ध से, हालांकि इसकी वृस्तित चर्चा कभी और – शायद ‘गणित, चिप और कमप्यूटर विज्ञान सिरीस’ मे – यहां केवल भूमिका।
इस विषय पर चर्चा शुरू करने से पहले मैने कहा था कि इस पहेली का सम्बन्ध उससे भी है जिससे हम सब जुड़े हैं। जी हां, इन नम्बरों का बहुत गहरा सम्बन्ध कमप्युटरों से है आप देखें तो पायेंगे कि इन नम्बरों मे दो खास बाते हैं।
पहली, यह वह नम्बर हैं,
- जिसकी दूरी पर नारद जी की छड़ को काटने पर सबसे कम बार काटा जायेगा; या
- यह वह नम्बर है जिसमे लड्डुवों को डिब्बों मे रखने पर सबसे कम डिब्बों की जरूरत होगी; और
- जिनकी सहायता से हम हर दिन को अलग अलग छड़ से मिला कर निश्चित रूप से चिन्हित कर सकते हैं; या
- जिनकी सहायता से जो भक्त जितने लड्डू चाहे उसे अलग अलग डिब्बों मे रख कर दे सकते हैं।
दूसरी, यह वह नम्बर हैं,
- जिसकी दूरी पर नारद जी की छड़ को काटने पर सबसे कम बार काटा जायेगा; या
- यह वह नम्बर है जिसमे लड्डुवों को डिब्बों मे रखने पर सबसे कम डिब्बों की जरूरत होगी; और
- इनकी सहायता से हम हर दिन को अलग अलग छड़ से मिला कर निश्चित रूप से चिन्हित कर सकते हैं; या
- जो भक्त जितने लड्डू चाहे उसे अलग अलग डिब्बों की सहायता से दे सकते हैं।
कमप्यूटर विज्ञान मे दो बाते अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं
- किसी कार्य को कितने कम से कम steps में किया जा सकता है; और
- हम analog से digital पर कैसे पहुंचे।
हम digital तभी हो सकतें है जब हम किसी भी चीज को नम्बरों के द्वारा निश्चित रूप चिन्हित कर सकें। यह यदि आप नारद जी की छड़ी के हल पर गौर करें तो उससे यह दोनो कार्य होते हैं।
हमारा जीवन, हमारी गणित, डेसीमल सिस्टम पर आधारित है, यानि कि १० नम्बरों से (०, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, और ९) बाकी सारे नम्बर लिखे जा सकते हैं। बाइनरी सिस्टम दो नम्बर पर आधारित होता है इसमे दो नम्बर ० और १ हैं इसी से बाकी नम्बर लिखे जाते हैं कम्प्यूटर विज्ञान बाइनरी सिस्टम पर आधारित है तथा १, २, ४, ८, १६ …. नम्बर इन दोनो सिस्टम को आपस मे जोड़ते हैं। यह नम्बर (१, २, ४, ८, १६ ….) हमारी दुनिया को डिजिटल-दुनिया से, कम्प्यूटर की दुनिया से, जोड़ते हैं।
विज्ञान के हर क्षेत्र के विषेशज्ञों का योगदान, कमप्यूटर विज्ञान में है पर सबसे बड़ा योगदान गणितज्ञों का है। कम्प्यूटर विज्ञान अपने पठार पर पहुंच रहा है और इसका ज्यादा विस्तार applications में हो रहा है। पर
- क्या कम्प्यूटर विज्ञान का विस्तार यहीं समाप्त हो जायगा और केवल applications मे सीमित हो जायेगा? या
- क्या इसमे कोई क्रान्ति (quantm jump) आयेगी?
- यदि आयेगी तो किस तरफ से आने की सम्भावना सबसे अधिक है?
जाहिर है कि क्रान्ति गणित की तरफ से आयेगी और इसमे शायद गणित के निम्न दो क्षेत्र महत्वपूण भूमिका निभायें।
- Artificial Intelligence
- Knot theory/ Topology
इसकी चर्चा हम फिर कभी करेंगे
कम्प्यूटर विज्ञान मे क्रान्ति गणित के किसी भी क्षेत्र से आये पहेलियां उसका हमेशा से उसका हिस्सा रहेंगी। इसलिये बहुत सारी कमप्यूटर फर्म नौकरी देने से पहले पहेलियों कि भी परीक्षा लेती हैं। गूगल ने तो कुछ समय पहले अमेरिका की सड़कों पर, सार्वजनिक रूप से पहेली बूझ कर, नौकरी दी। उसके बारे मे इन्टरनेट पर देख सकते हैं। इसलिये गणित और पहेलियों को नज़रअन्दाज मत कीजये, उन्हे मुन्ने और मुन्नी के साथ सुलझाते जाईये। क्या मालुम स्वयं आप या आपका मुन्ना या मुन्नी कम्प्यूटर विज्ञान मे क्रान्ति ले आये। यह इस लेख की pdf फाईल निम्न है। आप डाउनलोड कर सकते हैं।
२ की पॉवर के अंक, पहेलियां, और कमप्यूटर विज्ञान
नोट: (१) यह लेख उन्मुक्त चिठ्ठे पर ‘नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू’ के नाम से कई कड़ियों मे प्रकाशित चिठ्ठियों को संग्रहीत कर के बनाया गया है। यदि आप इसे कड़ियों में पढ़ना चाहें तो नीचे लिखे लिंक पर चटका लगा कर पढ़ सकते हैं।
भूमिका।। बचपन की यादों में गुणाकर मुले।। शतरंज का जादू।। सृष्टि का अन्त।। २ की पावर और कंप्यूटर विज्ञान और श्रृंखला का निष्कर्ष।।
(२) मेरे हर चिठ्ठे की तरह इस लेख की सारी चिठ्ठियां भी कौपी-लेफ्टेड हैं। आपको इनका प्रयोग व संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को) दें और अच्छा हो कि इस चिट्ठे की चिट्ठी से लिंक दे दें।
धन्यवाद उन्मुक्त जी, लेख रोचक है. संयोग से शतरंज और बाइनरी सिस्टम दोनों ही भारत की देन हैं.
श्री उन्मुक्त जी;
हम समाचारों से परे, हिन्दी रचनाओं की एक वेबसाईट (www.cafehindi.com) बना रहें हैं. इस वेबसाईट का उद्देश्य कोई भी लाभ कमाना नहीं है.
यह दिखाने के लिये कि इस वेबसाईट का स्वरूप कैसा होगा, हमने प्रायोगिक रूप से आपके कुछ लेख इस वेबसाईट पर डाले हैं. यह वेबसाईट मार्च के दूसरे सप्ताह में विधिवत शुरू हो जायेगी. आपका ई-मेल पता मेरे पास न होने के कारण में कमेंट के माध्यम से ये संदेश आपको भेज रहा हूं.
क्या हम आपके ब्लोग रचनायें लेख के रूप मे. इस वेबसाईट पर उपयोग कर सकते हैं? आपने लिखा है कि आपके हर चिठ्ठे की तरह इस लेख की सारी चिठ्ठियां भी कौपी-लेफ्टेड हैं. लेकिन फ़िर भी हम आपकी विधिवत अनुमति एवं सुझावों के इन्तजार में हैं.
आपका
मैथिली गुप्त
प्रिय गुप्त जी, मेरी चिट्ठियां कौपीलेफ्टेड हैं आपका स्वागत है। आप इन्हें प्रयोग कर सकते हैं – उन्मुक्त