यह लेख रिचार्ड फाइनमेन के लिखे पत्रों संग्रहीत कर लिखी गयी पुस्तक ‘क्या आपके पास सोचने का समय नहीं है’ (Don’t you have time to think) की पुस्तक समीक्षा है और इन पत्रों के माध्यम से उनके दर्शन, उनके जीवन के मूल्यों पर भी एक नज़र डालती है।
यदि २०वीं शताब्दी के पहले भाग में सबसे चर्चित वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाईन (Albert Einstein) थे तो दूसरे भाग में यह श्रेय रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन (Richard Philips Feynman) को है। १९६६ में उन्हें, भौतिक शास्त्र में नोबल पुरुस्कार मिला। मिशेल (Michelle Feynman) उनकी गोद ली पुत्री हैं। उन्होने फाइनमेन को लिखे गये कुछ पत्र तथा उनके द्वारा लिखे गये पत्रों का संकलन कर के ‘Don’t you have time to think’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किया है।
इस पुस्तक की प्रस्तावना में मिशेल अपने बचपन वा अपने पिता के बारे में बताती हैं। वे अपने पिता और अपने बड़े भाई कार्ल को एक दूसरे से विज्ञान के बारे में बात करते हुऐ सोचती हैं कि उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में क्यों नहीं कार्य किया। उन्हें लगता है कि इस कारण कार्ल अपने पिता के साथ ज्यादा पास थे।
उन्हें अपना घर और घरों से अलग लगता था। रविवार के दिन फाइनमेन सुबह अखबार नहीं पढ़ते थे पर वह सब लोगों के साथ, संगीत सुनाते थे; ड्रम बजाते थे; और कहानी किस्से सुनाते थे। जब कभी प्रारम्भिक शिक्षा के स्कूल में बच्चों को ले जाने की फाइनमेन की बारी होती थी तो वह अक्सर गाड़ी चलाते हुये या तो केलटेक की तरफ चले जाते थे या नाटक करते थे कि वे रास्ता भूल गये। इस पर सब बच्चे चिल्लाने लगते थे कि यह गलत रास्ता है। फिर फाइनमेन का जवाब होता था कि,
‘अच्छा, यह रास्ता नहीं है’
फाईनमेन लॉस एलमॉस की प्रयोगशाला जाते समय।
यह कहकर वह पुन: दूसरा गलत रास्ता पकड़ लेते थे। बच्चे फिर चीखते थे,
‘नहीं..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ।’
बच्चों को लगता था कि वे स्कूल समय से नहीं पहुंच पायेंगे और उन्हें सजा मिलेगी पर फाइनमेन हमेशा बच्चों को स्कूल समय से पहुंचा देते थे।
मिशेल कहती हैं कि,
‘मेरे पिता कई हुनर में माहिर थे पर उनका वह हुनर सबसे खास था जिसमें वह अपने को एक बेवकूफ सा दिखने का नाटक करते थे और मुझे सोचने देते थे कि वे मेरी बातों से बेवकूफ बन गये हैं। इस बात ने मेरे बचपन को सबसे ज्यादा निखारा है।’
मिशेल यह भी बताती हैं कि, वे बहुत सालों तक नहीं जानती थी कि सब लोग उनके पिता फाइनमेन का सम्मान एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति की तरह से करते थे। उनके मुताबिक,
‘मेरे पिता फाइनमेन हमेशा लोगों को अपने बारे में अश्रद्धा रखने को प्रेरित करते थे। वे अक्सर ऐसी कहानियां सुनाया करते थे जिसमें उनकी बेवकूफी झलकती थी। रात के खाने पर वे बताया करते थे कि, किस तरह वह अपना स्वेटर भूल गये; या कुछ महत्वपूर्ण सूचना भूल गये; या लोगों से बात होने के बाद उन्हें उनका नाम याद नहीं रहा। उनकी कान्फ्रेन्स नये-नये होटलों में होती थी। वे अक्सर उससे बोर होकर अपना सामान लेकर जंगल चले जाया करते थे और वहीं कैम्पिंग कर रात बिताते थे। लौट कर, चटकारे लेकर इसका अनुभव हमें सुनने को मिलता था। मेरी मां इस पर हमेशा टिप्पणी करती थीं “ओह रिचर्ड” वह हमेशा अपने ऊपर हंसते थे और हम उनके ऊपर।‘
फाईनमेन अपने स्कूल की सहपाठी अरलीन से प्यार करते थे। नौकरी मिलने के बाद उसी के साथ शादी रचाने की बात थी। लेकिन अरलीन को तपेदिक की बीमारी हो गयी। फाइनमेन उसे चूम भी नहीं सकते थे फिर भी उन्होंने उससे शादी की।
मैं हमेशा सोचता था कि इस तरह की बात तो केवल कहानियों या फिर फिल्मों में होता है, वास्तविक जीवन मैं नहीं, पर मैं गलत था।
फाइनमेन के परिवार वाले इस शादी के खिलाफ थे। इस बारे में फाइनमेन ने अपनी मां को एक लम्बा पत्र लिखा, जिसमें लिखा कि,
‘I want to marry Arline because I love her – which means I want to take care of her. That is all there is to it. I want to take care of her.’
मैं अरलीन से शादी करना चाहता हूं क्योंकि मैं उससे प्यार करता हूं – इसका अर्थ यह है कि मैं उसकी देख भाल करना चाहता हूं
प्यार का यह भी एक अर्थ – एकदम सत्य। हां इसका एक और अर्थ यहां भी।
इस किताब में एक पत्र श्री वी.के. सिंह, अध्यापक भौतिक शास्त्र, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, का भी है। ये फाइनमेन की पुस्तक Lectures on Physics की तुलना रामायण से करते है और कहते हैं कि इसका अध्ययन भी, उतनी ही बारीकी से करना चाहिए जैसे कि रामायण का किया जाता है।
इसमें इलाहाबाद के श्री मदन मोहन पंत के पत्र का जिक्र है जिसमें पंत ने फाइनमेन को अपना पेन टीचर के कहा है।
पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा
‘कयामत से कयामत तक’ की पिक्चर का एक गाना है,
पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा,
बेटा हमारा ऐसा काम करेगा।
मगर यह तो कोई न जाने,
कि मेरी मंजिल है कहां।
इस गाने को देखें और सुने
मैंने इस पिक्चर को नहीं देखा है पर यह गाना मुझे बहुत पसन्द है। लेकिन किसी के पापा का केवल यह कहना या सोचना कि – बेटा ऐसा काम करेगा – पर्याप्त नहीं है। बेटा कोई अच्छा काम करे, इसके लिये पापा को बहुत कुछ करना पड़ेगा। अब यदि फाइनमेन के जीवन को देखें तो पायेंगे कि उसमें, उनके पिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। उनको विज्ञान में रुचि पैदा करने में, उनके पिता का बहुत बड़ा हाथ था।
NBC टेलीविजन ने १९६१ में ‘About time’ नामक फिल्म विज्ञान सीरीस के अर्न्तगत बनायी थी। फाइनमेन इसमें वैज्ञानिक सलाहकार थे। इस फिल्म के प्रदर्शन के पहले जब इसके बारे में जब लिखा जाने लगा तो फाइनमेन से पूछा गया कि उन्हें विज्ञान मे किस प्रकार से रुचि आयी तो उन्होंने बताया कि,
‘My father, a businessman, had a great interest in science. He told me fascinating things about the stars, numbers, electricity, etc. Wherever we went there were always new wonders to hear about; the mountains, the forest, the sea. Before I could talk he was already interesting me in mathematical designs made with blocks. So I have always be a scientist. I have always enjoyed it, and thank him for this great gift to me.’
मेरे पिता व्यपारी थे पर उन्हें विज्ञान में उन्हें रुचि थी। वे मुझे विज्ञान की रोचक बातें बताते थे … इसलिये मैंने वैज्ञानिक बनने की सोची। मुझे इसमें हमेशा मजा आया और इसके लिये मैं अपने पिता को धन्यवाद देता हूं।
१९८१ में रौडिनी ल्यूस को पत्र लिखते हुऐ फइनमेन बताते हैं कि नीरस पाठ्य पुस्तक से मत घबराओ। उनको केवल तथ्यों के लिये पढ़ो, फिर उन बातों को प्रकृति के आश्चर्य की तरह सोचो और अपनी तरह से समझने की कोशिश करो। वे आगे बताते हैं कि किस प्रकार उनके पिता ने उन्हें इस तरह से सोचने के लिये प्रेरित किया। वे कहते हैं कि,
‘My father taught me how to do that when I was a little boy on his knee and he read the Encyclopaedia Britannica to me! He would stop every once in a while and say—now what does that really mean. For example, “the head of tyrannosaurus rex was four feet wide, etc.” —it means if he stood on the long outside his head would look in at your bedroom on the second floor, and if the poked it in the window it would break casement on both sides. Then when I was a little older when would read that again he would remind me of how strong the next muscles had to be—of ratios of weight and muscle area—and why land animals can’t become size of whales—and why grasshoppers can jump just about as high as a horse can jump. All this, by thinking about the size of a dinosaur’s head!’
सच, हमारे बच्चे ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी हैं। उनको अच्छे संस्कार मिलना, उनका ठीक दिशा में रहना ही हमारी सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वे अच्छे व्यक्ति बने, इसका दायित्व हम पर है। पुरानी कहावत है,
‘पूत सपूत तो क्या धन संचय, पूत कपूत तो क्या धन संचय।’
हम अक्सर अपने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि अपने बच्चों के साथ समय बिताना, उन्हे अच्छी बातें बताना – जो कि सबसे महत्वपूर्ण है – भूल जाते हैं।
मिशेल का यह चित्र फइनमेन ने बनाया है
गायब
मैंने कुछ समय पहले दो चिट्ठियां ‘अदृश्य हो जाने का वरदान‘, और ‘अदृश्य हो जाने का अभिशाप‘ शीर्षक से छुटपुट चिट्ठे पर लिखीं। इसमें यह बताया कि अदृश्य हो जाना अभिशाप है क्योंकि ऐसा व्यक्ति अन्धा हो जायेगा। लोग, अन्धे हो जाने वाली बात न समझते हुऐ, अदृश्य हो जाने कि इच्छा रखते हैं और इसके लिये तरीका ढूढते रहते हैं। नेवा नामक व्यक्ति ने एक बार फाइनमेन से यह सवाल पूछा कि क्या कोई तरीका है जिसके द्वारा अदृश्य हुआ जा सकता है। इसका उत्तर देते समय फाइनमेन अगस्त १९७५ लिखते हैं कि,
‘I would suggest that the best way to get a good answer to your question is to ask a first-rate professional magician. I do not mean this answer to be facetious or humorous, I am serious. A magician is very good at his making things appear in an unusual way without violating any physical laws, by arranging matter in a suitable way. I know of no physical phenomenon such as X-rays, etc., which will create invisibility as you want, therefore, if it is possible at all it will be in accordance with familiar physical phenomenon. That is what a first-rate magician is good for, to create apparently impossible effect from “ordinary” causes.’
इसका अर्थ तो यह हुआ कि असंभ्व है।
मानद उपाधि
आजकल मानद उपाधि का जमाना है। जिस विश्व विद्यालय को देखो वही दे रहा है और सब इसे स्वीकार कर रहें हैं। फाइनमेन को दुनिया के हर देश के विश्वविद्यालय मानद उपाधि से विभूषित करना चाहते थे। १९६७ में, सबसे पहले शिकागो विश्व विद्यालय ने उन्हें मानद उपाधि से विभूषित करने की बात की। उन्होने इसे अपने लिये सम्मान की बात बतायी, पर स्वीकारा नहीं। उनका कहना था कि,
‘I remember the work I did to get a real degree at Princeton and the guys on the same platform receiving honorary degrees without work — and felt an “honorary degree” was a debasement of the idea of a “degree which confirms certain work has been accomplished.” It is like giving an “honorary electrician license”. I swore then that if by chance I was ever offered one I would not accept it.’
जब कभी कोई उन्हे मानद उपाधी देने की बात करता, तो हमेशा उनका यही जवाब रहता था।
खेलो, कूदो और सीखो
जीवन में हमें वह करना चाहिये जो हमें पसन्द हो – चाहे उसका कोई महत्व हो अथवा नहीं। महत्व अपने आप निकल आता है। मैंने फाइनमेन के बारे में लिखते समय वह किस्सा बताया था जब वे कॉरनल विश्विद्यालय के अल्पाहार गृह में बैठे थे। वहां एक विद्यार्थी ने एक प्लेट को फेंका। प्लेट सफेद रंग की थी और उसमें बीच में कौरनल का लाल रंग का चिन्ह था। प्लेट डगमगा भी रही थी और घूम भी रही थी। यह अजीब नज़ारा था। फाइनमेन इसके डगमगाने और घूमने और के बीच में सम्बन्ध ढ़ूढ़ने लगे। इसमे काफी मुश्किल गणित के समीकरण लगते थे। इसमे उनका बहुत समय लगा। उन्होंने पाया कि दोनो मे २:१ का सम्बन्ध है। उनके साथियों ने उनसे कहा कि वह इसमे समय क्यों बेकार कर रहे हैं। उनका जवाब था,
‘इसका कोई महत्व नहीं है मैं यह सब मौज मस्ती के लिये कर रहा हूं।’
लेकिन जब वे एलेक्ट्रॉन के घूमने के बारे में शोध करने लगे तो उन्हें कॉरनल की डगमगाती और घूमती प्लेट में लगी
गणित फिर से याद आने लगी। उस काम का महत्व हो गया। उसी ने उस सिद्धान्त को जन्म दिया जिसके कारण उन्हें नोबेल पुरूस्कार मिला।
उन्होने इस बात को न केवल अपने जीवन में उतारा पर यही सलाह औरों को भी दी।
एक बार सोलह साल के लड़के ने उन्हें पत्र लिख कर यह सलाह मांगी कि वह क्या करे। उनका जवाब था कि,
‘It is wonderful if you can find something you love to do in your youth which is big enough to sustain your interest through all your adult life. Because, whatever it is, if you do it well enough (and you will, if you truly love it) people will pay you to do what you want to do anyway.’
उनके मुताबिक,
- बहुत ज्यादा पढ़ना; या
- किताबी कीड़ा बना रहना; या
- अपने उम्र से ज्यादा पढ़ाई करना,
ठीक नहीं।
वे देखने और सीखने में विश्वास करते थे। एक बार , एक भारतीय बच्चे ने उन्हें एक पत्र परमाणु विज्ञान के बारे में लिखा। उनकी सलाह थी,
‘Your discussion of atomic forces shows that you have read entirely too much beyond your understanding. What we are talking about is real and at hand: Nature. Learn by trying to understand simple things in terms of other ideas—always honestly and directly. What keeps the clouds up, why can’t I see stars in the day time, why do colours appear on oily water, what makes the lines on the surface of water being poured from a pitcher, why does a hanging lamp swing back and forth – and all the innumerable little things you see all around you. Then when you have learn to explain simpler things, so you have learn what an explanation really is, you can then go on to more subtle questions.
Do not read so much, look about you and think what you see there.’
तुम्हारी बातों से लगता है कि तुमने अपनी समझ से ज्यादा पढ़ लिया है … इतना मत पढ़ो, अपने चारों तरफ देखो और इसके बारे में सोचो।
बचपन में बड़े, बूढ़ों से सुना करता था,
‘खेलो कूदोगे तो होगे बर्बाद,
पढ़ोगे लिखोगे तो होगे नवाब।’
शायद इसे इस तरह से कहना चाहिये,
‘खेल, कूद कर सीखोगे,
केवल तब ही बनोगे, नवाब।’
फाइनमेन को बॉंगो बजाना प्रिय था
अधिकारी, विशेषज्ञ
फाइनमेन का हमेशा कहना था कि किसी बात को तब स्वीकार करो जब वह तर्क पर खरी उतरे, उसे केवल किसी के कहने पर न स्वीकार करो। १९७६ में मार्क को पत्र लिखते समय सलाह दी कि,
‘Don’t pay attention to “authorities,” think yourself.’
अपनी पुस्तक Lectures on Physics में एक जगह उन्होने लिखा था कि
‘No static distribution of charges inside a closed conductor can produce any electric field outside.’
एलिज़बेथ ने भौतिक शास्त्र में एक कोर्स लिया था। परीक्षा में एक सवाल का यही जवाब दिया। इस पर उसके शिक्षक ने उसे कोई नम्बर नहीं दिया क्योंकि यह बात गलत थी। शिक्षक ने एलिज़बेथ को यह भी बताया कि यह किस प्रकार से गलत है। एलिज़बेथ ने जब इसके बारे में फाइनमेन को पत्र लिखा। तो फाइनमेन का जवाब था,
‘Your instructor was right not to give you any points for your answer was wrong, as he [the teacher] demonstrated using Gauss’ Law. You should, in science, believe logic and arguments, carefully drawn, and not authorities.
…
You also read the book correctly and understood it. I made a mistake, so the book is wrong … I am not sure how I did it, but I goofed. And you goofed too, for believing me.
तुम्हारे अध्यापक ने ठीक तुम्हें नंबर नहीं दिये क्योंकि तुम्हारा जवाब सही नहीं था विज्ञान में तुम्हे तर्क पर विश्वास करना चाहिये न कि किसी अधिकारी,या विशेषज्ञ पर। …
तुमने मेरी किताब को सही समझा, मैंने ही गलती कर दी थी … मैं नहीं जानता कि यह कैसे हो गया पर मैं गलत था और तुम भी – मुझ पर विश्वास करने के लिये।
बड़े व्यक्तियों का पहला गुण – यदि वे गलत हैं, तो स्वीकार करने में कभी नहीं हिचकते।
बॉंगो बजाते हुऐ फइनमेन
काम से ज्यादा महत्व, उसे करने में है
हम सब के जीवन में कोई न कोई आदर्श रहा है। मेरे जीवन में – एक नहीं, कई रहे। उन्होने अलग अलग तरह से मेरे जीवन, मेरी विचारधारा पर असर डाला। इनमे से कईयों से कभी नहीं मिला। फाइनमेन उनमें से एक थे। उनके मुताबिक काम से ज्यादा महत्व उसे करने में है: जो अच्छा लगे, जिसमें मन लगे – वह करो पर करो उसे बढ़िया।
एक बार कोची नामक एक विद्यार्थी ने फाइनमेन को पत्र लिखा कि वह भौतिक शास्त्र के साधारण विषय पर काम कर कर रहा है और नामरहित है। इस पत्र ने फइनमेन को दुखी किया। उन्हें लगा कि कोची के अध्यापक ने उसे ठीक से नहीं बताया कि क्या महत्वपूर्ण है और क्या नहीं है। फाइनमेन ने कोची को पत्र लिखा कि,
‘The worthwhile problems are the once you can really solve or help solve, the ones you can really contribute something to. A problem is grand in science if it lies before us unsolved and we see some way for us to make a little headway into it.’
फाइनमेन का सुझाव था कि पहले छोटी छोटी और आसान मुश्किलों का हल खोजो जो कि आसानी से मिल सकता है। उनके मुताबिक,
‘You will get the pleasure of success, and of helping your fellow man, even if it is only to answer a question in the mind of a colleague less able than you. You must not take away from yourself these pleasures because you have some erroneous idea of what is worthwhile.’
फाइनमेन ने पत्र में यह भी बताया कि उन्होने स्वयं,
‘I have worked on innumerable problem that you would call humble, but which I enjoyed and felt very good about because I sometimes could partially succeed.’
फाइनमेन का मानना था कि,
‘You do any problem that you can, regardless of field.’
न तो सरदर्द लेने की जरूरत है न ही घबराने की – कयोंकि,
‘In no field is all the research done. Research leads to new discoveries and new questions to answer by more research.’
उनके अनुसार,
‘No problem is too small or too trivial if we can really do something about it.’
यदि हम किसी मुश्किल का हल ढूढ़ने में कुछ कर सकते हैं तो वह न तो छोटी है और न ही बेकार।
पत्र में फानमेन, आगे लिखते हैं कि,
‘You say you are a nameless man. You are not to your wife and to your child. You will not long remain so to your immediate colleagues if you can answer their simple question when they come into your office. You are not nameless to me. Do not remain nameless to yourself — it is too sad a way to be. Know your place in the world and evaluate yourself fairly, not in terms of the naïve ideals of your own use, nor in terms of what you erroneously imagine your teacher’s ideals are.’
गणित
भौतिक शास्त्र मेरा प्रिय विषय था। मुन्ने की मां को गणित अच्छी लगती है। मैं हमेशा कहता हूं कि भौतिक शास्त्र तो रानी है और गणित नौकरानी – जहां चाहो लगा लो।
फाइनमेन तो जिज्ञासू थे। उनके कुछ अन्य विडियो यहां देखिये।
फ्रेड्रिक हिप्प १६ साल के नवयूवक ने १९६१ में फाइनमेन को पत्र लिख कर बताया कि भौतिक शास्त्र उसे अच्छा लगता है पर गणित पसंद नहीं आती है। वह क्या करे। फाइनमेन ने उसे लिखा कि,
‘To do any important work in physics a very good mathematical ability and aptitude are required. Some work in applications can be done without this, but it will not be very inspired.
If you must satisfy your “personal curiosity concerning the mysteries of nature” what will happen if these mysteries turn out to be laws expressed in mathematical terms (as they do turn out to be )? You cannot understand the physical work in any deep or satisfying way without using mathematical reasoning with facility.’
भौतिक शास्त्र में अच्छा काम करने के लिये अच्छी गणित का ज्ञान होना आवश्यक है … विज्ञान के बहुत सारे रहस्य, वे नियम हैं जो गणित के द्वारा ही समझे जा सकते हैं। भौतिक विज्ञान को अच्छी तरह से बिना गणित के नहीं समझा जा सकता है।
गणित के यही गुण उसे गणित को राजरानी बनाते हैं। विज्ञान में गणित के बिना ठौर नहीं। मुझे तो मालुम है कि मुन्ने की मां तो हमेशा सही रहती है, उससे जीत पाना संभव नहीं।
कैल टेक में पढ़ाते हुऐ
इस पुस्तक ने मुझे कई बातों की याद दिलायी:
- मेरे बचपन की;
- कई ऐसे व्यक्तियों की जिन्होने मेरे बचपन में, मुझ पर सबसे ज्यादा असर डाला;
- कुल्लू मनाली में एक बिस्किट के पीछे, पूरी नदी पैदल पार करने की;
- उन क्षणों की भी, जो मैंने अपने बच्चों के साथ पहेली बूझते हुऐ बिताये;
- उनके साथ बिताये, नदी के किनारे तारों, लियोनिडस्, और पुच्छल तारे को देखते हुऐ रातों की;
- उनके साथ बिताये, दुधुवा, जिम कौर्बेट, कान्हा, बान्धवगढ़, मदुमलाई, और बंदीपुर के जंगलों की;
- उन पिकनिकों की, जिसमें हमने सारा समय केकड़े और मछलियां पकड़ने में बिता दिया;
- मेले में उन रातों की, जो हमने हांथ की रेखायें पढ़ने, और नौटंकी , जादू देखने में गुजार दिये;
- पंचमढ़ी के जंगलों की, जब हम पानी के झरने के लिये छोटे रास्ते पर चलते जंगल में खो गये थे;
- पंचमढ़ी में पीछा करती मधुमक्खियों की, जिससे पानी के झरने में कूद कर जान बचायी;
- बम्बई में गोरे गांव में मिल्क डेरी की, जहां पर रेलिंग ही मुन्ने के उपर गिर गयी और बस हमें वहीं छोड़ के चली गयी, तब कई किलोमीटर की दूरी मुन्ने को गोदी में ले जाने की;
- चुनाव में उस उपद्रव की, जब चुनाव की निष्पक्षता कराने के पीछे मेरा सर पर अध्धा मार दिया गया, पांच टीके लगे, और मैं अब भी नहीं समझ पाता कि में उस दिन कैसे बच गया;
- उस सभा की जब अयोध्या में राम मन्दिर बनाने के खिलाफ बोलने पर लोग चप्पल से मारने मंच पर आ गये।
यह आपको भी कुछ ऐसी ही यादों पर वापस ले जायगी।
इस पुस्तक में फाइनमेन के लिखे हुये बहुत सारे पत्र हैं, जिससे उनके चरित्र के बारे में पता चलता है और यह पुस्तक बेशक पढ़ने योग्य है।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
यह लेख मेरे ‘उन्मुक्त‘ चिट्ठे पर कई कड़ियों में प्रकाशित हो चुकी है। यदि आप इसे कड़ियों में पढ़ना चाहते हैं तो नीचे चटका लगा कर पढ़ सकते हैं।
पुस्तक – Don’t you have time to think?।। पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा।। गायब।। मानद उपाधि।। खेलो कूदो और सीखो।। अधिकारी, विशेषज्ञ।। काम से ज्यादा महत्व, उसे करने में है।। गणित।।
सांकेतिक चिन्ह
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बहुत बढिया लिखा आपने। मैने फाइनमेन के बारे में कभी नही पढा/सुना, लेकिन आपने इतने विस्तार से चर्चा की है कि अब जब भी मौका मिलेगा, अवश्य पढूंगा।
पता नही, जब आपने मूल पोस्ट लिखीं थी तो वे कैसे ’मिस’ हो गईं।
नितिन जी, फइनमेन बहुत ही प्रेरणा देने वाले व्यक्ति थे। मैंने उनकी जीवनी भी यहां लिखी है। इसमें उनके बारे में लिखी पुस्तकों की भी चर्चा है। आपको यह भी पसन्द आयेगी – उन्मुक्त।
maine abhi abhi blog padna start kiya hai hindi mai blog dekha to aacha laga.aap sach mai aacha likhte hai .
फाइनमेन के जीवन और काम-काज से संबंधित अत्यंत प्रेरक प्रसंगों की बेहद सुबोध और रुचिकर प्रस्तुति के लिए आभार !
फइनमेन ना सिर्फ एक महान वैज्ञानिक थे बल्कि एक अद्भुत व्यक्तित्व वाले व्यक्ति भी थे.
आपके तमाम लेख पढ़ते-पढ़ते इस पोस्ट पर आया। बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर। आभार! फ़ाइनमैन की जीवनी पढ़ने का मन हो आया। 🙂