कुछ समय पहले, मैंने श्रंखला ‘तू डाल डाल, मैं पात पात’ नाम से एक श्रंखला अपने ‘उन्मुक्त‘ चिट्ठे पर कड़ियों में प्रकाशित की थी। इसकी कुछ चिट्ठियों में कोर्ट गर्डल के अपूर्णता सिद्धान्त, इससे सम्बन्धित पुस्तकों और इसका साइबर अपराध से सम्बन्ध की चर्चा थी तथा कुछ में साइबर अपराधों के बारे में चर्चा थी। इस श्रंखला को दो भाग में करके यहां प्रकाशित किया जा रह है।
यहां इसके पहले भाग कोर्ट गर्डल के अपूर्णता सिद्धान्त और उस पर कुछ पुस्तकों एवं इसके साइबर अपराध के संबन्ध की की चर्चा है। अगले भाग में चर्चा केरेंगे साइबर अपराधों की। यदि इसे आप कड़ियों में पढ़ना चाहें तो नीचे चटका लगा कर पढ़ सकते हैं।
भूमिका।। नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है।। ईश्वर का आस्तित्व नहीं।। नाई, महिला है।। मिस्टर व्हाई – यह कौन हैं।। गणित, चित्रकारी, संगीत – क्या कोई संबन्ध है।। क्या कंप्यूटर व्यक्तियों की जगह ले सकते हैं।। भाषायें लुप्त हो जाती हैं – गणित के सिद्घान्त नहीं।। अन्तरजाल, एकांतता का अन्त है।। अनन्तता समझो, ईश्वर के पास पहंचो ।। ऐसा कोई कंप्यूटर नहीं, जिसे हैक न किया जा सकता हो ।।

चित्र – फिल्म ‘इंडिपेंडेन्स डे’ से

चित्र इंस्टिट्यूट ऑफ एडवान्सड स्टडीज़ की वेबसाइट से
क्या आपको मालुम है कि २८ अप्रैल को किसका जन्म दिन है? मेरा तो नहीं है पर है किसी खास व्यक्ति का।
‘उन्मुक्त जी, कौन है वह व्यक्ति? जल्दी बताइये, उसे बधाई तो दे दें।’
वह, एक महान व्यक्ति, एक महान तर्क शास्त्री है। मेरे विचार से आज तक हुऐ सारे तर्क शास्त्रियों में महानतम―उसका नाम है, कोर्ट गर्डल (Kurt Gödel)।
कोर्ट गर्डल का जन्म २८ अप्रैल १९०६ में , बर्नो चेक रिपब्लिक (Czech Republic) में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ायी वियान ऑस्ट्रिया में पूरी की पर बाद में इंस्टिट्यूट ऑफ एडवान्सड स्टडीज़, प्रिंक्सटन चले गये। वहीं उनकी मृत्यु १४ जनवरी १९७८ में हो गयी।
”उन्मुक्त जी, लेकिन अपूर्णता और “इंडिपेंडेन्स डे” फिल्म का साइबर अपराध से क्या सम्बन्ध? आपके पैर तो कब्र में जा रहे हैं लेकिन मज़ाक करने की आदत नहीं गयी। कोर्ट गर्डल या इस इस चित्र का, इस विषय से क्या समबंध। हमें बेवकूफ न बनाइये।’
मेरे भाई, मेरी बहना, इतनी जल्दी नहीं। न केवल कोर्ट गर्डल, पर फिल्म ‘इंडिपेंडेन्स डे’ (जिस फिल्म से ऊपर का चित्र चित्र लिया गया है) का सम्बन्ध, साईबर अपराध विषय है।
ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास
गणित में नोबल पुरस्कार नहीं मिलता है। इसका कारण स्पष्ट नहीं है। नोबल ने शादी नहीं की थी। लेकिन कई कहते हैं कि वे साइने लिंडफोर्स (Signe Lindfors) से प्रेम करते थे। उसने उनका प्रेम न स्वीकार कर, गणितज्ञ गोस्टा मिटंग लेफर {Magnus Gustaf (Gösta) Mittag-Leffler} से शादी कर ली। इससे क्रोधित होकर, उन्होंने गणित में नोबल पुरुस्कार नहीं रखा। शायद यह सच नहीं है। नोबल ने शायद गणित का महत्व ही नहीं समझा।

फील्डस् मेडल – चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से
गणित के बारे में सबसे महत्वपूर्ण सम्मेलन, इंटरनेशनल काँग्रेस ऑफ मैथमैटीशियनस् (आईसीएम) (International Congress of Mathematicians) है और सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार फील्डस् मेडल (Field’s Medal) है।
आईसीएम का आयोजन इंटरनेशनल मैथमैटकल यूनियन (आईएमयू) (International Mathematical Union) करती है। यह सम्मेलन चार साल में एक बार होता है। इसमें पिछले चार साल में गणित का लेखा जोखा देखा जाता है और भविष्य में गणित की राह।
फील्डस् मेडल इसी आईसीएम में दिया जाता है। चूकिं यह सम्मेलन चार साल में एक बार होता है इसलिये यह अधिक से अधिक चार लोगों को दिया जाता है। इसमें अधिकतम आयु सीमा ४० वर्ष की है।
आईसीएम में, आईएमयू स्कॉलर एवार्ड (IMU Scholar Award) भी दिया जाता है। यह पुरुस्कार नवोदित (३५ सालसे कम उम्र) गणितज्ञों को दिया जाता है। बहुत साल पहले शुभा को इसमें जाने का मौका मिला था। उसे आईएमयू स्कॉलर पुरस्कार मिल चुका है। मैं उसके पीछे पड़ा हूं कि वह इस सम्मेलन के बारे में लिखे। देखिये वह कब लिखती है। पत्नियां कब पतियों की बात मनाती हैं 😦 वह जब लिखेगी तब देखा जायगा, हम लोग उसके लिये क्यों रुकें, चलिये आगे चलते हैं।

डेविड हिल्बर्ट – चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से
वर्ष १९०० की आईसीएम पेरिस में हुई थी। इसमें डेविड हिल्बर्ट ने २३ प्रश्नों को रखा था उसका कहना था कि इन मुश्किलों का हल ही गणित को नयी ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। इसमें कुछ का हल तो निकाला जा सका है पर कईयों का नहीं।
इन प्रश्नों के, दूसरे प्रश्नों में सिद्घ करना कि,
‘Mathematical reasoning is reliable, it should not lead to contradictory results’
गणित का तर्क विश्वसनीय है। यह विरोधाभास को जन्म नहीं दे सकता।
वर्ष १९२८ की आईसीएम बोलोन्या इटली (Bologna, Italy) में हुई। यहां पर हिल्बर्ट ने पुन: विचार किया,
‘If it was possible to prove every true mathematical statement or can there be truly formal logical system for mathematics, where every statement could either be proved or disproved.
क्या यह संभव है कि प्रत्येक गणित के कथन को सिद्घ किया जा सके। दूसरे शब्दों में क्या गणितीय तर्क का ऐसा संसार हो सकता है जहां सही अथवा गलत कथन सिद्घ किये जा सके।
यह प्रश्न गणित के तर्क शास्त्र के क्षेत्र का है। इसमें सबसे मुश्किल स्वयं को संदर्भित करते हुए विरोधाभास (self referencing paradoxes) की है। स्वयं को संदर्भित करते विरोधाभास में सबसे प्रसिद्घ विरोधाभास ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास (Epimenides’ or liar’s paradox) है।
ऍपीमेनेडीज़ एक ग्रीक दार्शनिक थे और ईसा के ६०० साल पहले क्रीट में रहते थे। उन्होंने एक महत्वपूर्ण कथन किया,
‘The Cretans are always liars.’
सारे क्रीटवासी हमेशा झूठ बोलते हैं।
यदि आप इनको सच माने तो यह झूठ बन जाती है और इसे झूठ माने तो यह सच हो जाती है। यही इसका विरोधाभास है। ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास का एक रूप यह भी सिद्ध करता है कि ईश्वर का आस्तित्व नहीं है। आईये कुछ चर्चा उसके बारे में।
ईश्वर का आस्तित्व नहीं है

यह कार्टून मेरा बनाया नहीं है। मैंने इसे यहां से लिया है। Cartoon by Nicholson from “The Australian” newspaper: http://www.nicholsoncartoons.com.au
ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास का एक रूप यह भी है जो सिद्ध करता है कि ईश्वर का आस्तित्व नहीं है। यह मुझे अपने विश्वविद्यालय के दिनों की याद दिलाता है। इसकी चर्चा करने से पहले कुछ सेट और ईश्वर के बारे में।
सेट क्या होता है
सेट चीज़ों, वस्तुओं, पदार्थों का संकलन है (A set is a well defined collection of distinct objects)। जैसे,
- परिवार का सेट – इसमें आपके माता पिता भाई बहन बेटे बेटियां हो सकते हैं;
- घर का सेट – इसमें आपके घर की ईमारत कमरे, पलंग, कुर्सी हो सकते है;
- घर एवं परिवार का सेट – इसमें ऊपर के दोनो तरह के वस्तुओं और लोगों का संकलन हो सकता है।
इस सेट में जितने सदस्य होते हैं वह उस सेट की गणनीयता (cardinality) कहलाता है। यह सीमित अथवा असीमित या अनन्त {जैसे कि पूर्ण संख्याओं (integers) का सेट} भी हो सकता है। अब कुछ बातें ईश्वर के बारे में।
ईश्वर की परिभाषा
ईश्वर को परिभाषित नहीं किया जा सकता लेकिन उसमें तो सारी सृष्टि व्याप्त है। यानि ईश्वर एक ऐसा सेट है जिसमें सब कुछ समाहित है, संकलित है। अथार्त ईश्वर सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट (Universal set or set of all sets) है। लेकिन क्या गणित में ऐसा सेट हो सकता है? अब चलते हैं विश्वविद्यालय की घटना पर।
विश्वविद्यालय की घटना
१९६० का दशक था। भौतिक शास्त्र विभाग ने अंग्रेजी में वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित की थी। इसमें विषय था,
This house does not believe in existence of God
यह सभा ईश्वर के आस्तित्व पर विश्वास नहीं करती।
विश्वविद्यालय के सारे विभागों के विद्यार्थी भाग ले रहे ते। मैं और मेरी मित्र-मंडली विज्ञान संकाय के थे और श्रोता के रूप में उपस्थित थे। वाद-विवाद प्रतियोगिता समाप्त होने के बाद, निर्णायक आपस में मंत्रणा करने लगे और विषय को सभा के विचार के लिये छोड़ दिया गया।
यह वाद-विवाद प्रतियोगिता भौतिक शास्त्र के मुख्य हॉल में थी। इसमे दो ब्लैकबोर्ड थे। एक नीचे रहता था जिसपर गुरुजन लिखते थे उस समय दूसरा ऊपर रहता था। जब वह भर जाता था तब उसे ऊपर करने से दूसरा नीचे आ जाता था। जिस पर गुरुजन लिखते थे। हमारे समय में अधिकतर विश्वविद्यालयों में इसी तरह के ब्लैक बोर्ड रहते थे। ऊपर वाले पर विषय लिखा था ताकि सब पढ़ सकें, नीचे वाला सादा था।
मेरा एक मित्र ईकबाल एक है। वह विश्वविद्यालय में मेरा सहपाटी बनाा। वह मेरे प्रिय मित्रों में था। वह उठा और उसने नीचे वाले ब्लैकबोर्ड जो खाली था उस पर अंग्रेजी में लिखना शुरू किया
‘ईश्वर का आस्तित्व नहीं है।
परिभाषा के अनुसार ईश्वर सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट (Universal set or set of all sets) है। लेकिन क्या ऐसा सेट हो सकता है।
हम मान कर चलते हैं कि ऐसा सेट हो सकता है। उसके बाद देखते हैं कि इसका क्या फल निकलता है।
यह सेट, दो तरह के सेटों का जोड़ (union) है।
- पहला सेट ‘क’ – यह उन सेटों का सेट जो अपने सेट के सदस्य नहीं हैं
- दूसरा सेट ‘ख’ – यह उन सेटों का सेट जो अपने सेट के सदस्य हैं
सवाल यह है कि सेट ‘क’ कहां है। क्या वह सेट ‘क’ में है या सेट ‘ख’ मेंयदि वह सेट ‘क’, ‘क’ के ही अन्दर है तब उसे परिभाषा के अनुसार ‘क’ के सदस्य नहीं होना चाहिये। क्योंकि उसमें वही सेट हैं जो अपने सदस्य नहीं है लेकिन इस दशा में वह अपना सदस्य हो जाता है।
यदि वह सेट ‘ख’ में है। तब सेट ‘ख’ की परिभाषा के अनुसार जिसमें वे सेट हैं जो अपने सदस्य हैं अथार्त उसे सेट ‘क’ में होना चाहिये।यह एक खण्डनात्मक निष्कर्ष दे रहा है। इसलिये हमारा पूर्व में मानना कि सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट (Universal set or set of all sets) है, गलत है।इसका अर्थ यह हुआ कि सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट (Universal set or set of all sets) नहीं हो सकता है, यादूसरे शब्दों में ईश्वर आस्तित्व नहीं है।
QED’
यह लिख कर ईकबाल ने इस बोर्ड को ऊपर किया ताकि सब पढ़ सकें। इसी बीच निर्णायकों ने पुरुस्कार घोषित किये जिसमें विज्ञान के किसी भी विभाग के विद्यार्थी को कोई पुरुस्कार नहीं मिला पर सबसे ज्यादा तालियां तो इकबाल को यह प्रमेय लिखने के लिये मिलीं।
मैंने ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर का जिक्र करते समय ओपेन कोर्स वेयर का जिक्र किया था। एमआईटी दुनिया के बेहतरीन इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों में एक है। इसमें डगलस आर हॉफेस्टैडर की लिखी पुस्तक ‘गर्डल, ऍशर, बाख: एन ईटर्नल गोल्डेन ब्रेड’ पर भी एक कोर्स है। यह ओपेन कोर्स वेयर में यूट्यूब पर है। इसमें कुछ भाग विरोधाभास पर है। इसका उस भाग को, जिसमें समझाया गया है कि सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट नहीं हो सकता है, नीचे देख सकते हैं। जिस सेट को मैंने ऊपर ‘क’ से दर्शाया है उसे इस वीडियो में ओमेगा Ωसे दर्शाया गया है।
यह केवल तर्क की बात है। मैंने इसे केवल यह बताने का प्रयत्न किया है कि यह भी ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास का रूप है। इससे न तो ईश्वर का आस्तित्व नकारा जा सकता है, न ही मैं ईश्वर पर आस्था रखने वालों का भावनाओं को दुख देना चाहता हूं।
नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है
बट्रेंड रसेल (Bertrand Russell) न केवल एक प्रसिद्व दार्शनिक थे बल्कि वह एक गणितज्ञ भी थे। उन्होंने सौ साल पहले इस ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास को नयी तरह से रखा। जिसको रसेल विरोधाभास या नाई का विरोधाभास (Russell’s or Barber’s paradox) भी कहा जाता है। यह कुछ इस प्रकार है,
‘एक गांव में केवल एक ही नाई था। उसने कहा कि वह उन लोगों की दाढ़ी बनाता है जो स्वयं अपनी दाढ़ी न बनाते हो।’
इस कथन में कोई भी मुश्किल नहीं है जब तक आप यह सवाल न पूछें कि,
‘नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है?’
यदि नाई अपनी दाढ़ी स्वयं बनाता है तो उसके कथनानुसार उसे अपनी दाढ़ी नहीं बनानी चाहिए। यदि वह अपनी दाढ़ी नहीं बनाता है तो उसके कथनानुसार अपनी दाढ़ी बनानी चाहिए।
लाऍरस् विरोधाभास का एक रूप और भी देखिये। शायद यह बेहतर समझ में आये 🙂
नाई, महिला है
रसेल और व्हाइटहैड (Whitehad) ने इस तरह के विरोधाभास को समाप्त करने के लिए वर्ष १९१३ में अंकगणित की एक प्रसिद्घ पुस्तक प्रिंसिपिया मैथमैटिका (Principia Mathematica) नाम से प्रकाशित की। उनके विचार से उन्होंने इसका हल निकाल लिया था। वास्तव में, उनका हल, कुछ इस तरह से समझा जा सकता है कि नाई महिला है। इस दशा में तो उसे दाढ़ी बनाने की आवश्यकता नहीं है।
इस हल में वे पुरूषों के स्तर से ऊपर निकल कर व्यक्तियों के स्तर में चले जाते हैं जिसमें पुरूष और महिलायें दोनों रह सकती है। लेकिन वे भूल गये कि व्यक्तियों के स्तर में अलग तरह का विरोधाभास है। जिस पर उन्होंने विचार नहीं किया।
२०वीं शताब्दी के समाप्त होते समय, टाइम पत्रिका ने एक विशेष अंक निकाला था। इसमें उन्होंने बीसवीं शताब्दी के सौ महानतम लोगों के बारे में लिखा था। इन सौ लोगों में एक ऑस्ट्रियन गणितज्ञ कोर्ट गर्डल भी थे। उन्हें आज तक का सबसे महानतम तर्क शास्त्री माना जाता है।
गर्डल ने १९३१ में एक पेपर जर्मन भाषा में लिखा। इसके शीर्षिक का अंग्रेजी में अनुवाद है,
‘On formally Undecidable Proposition of Principia Mathematica and Related Systems.’
इसमें उन्होंने सिद्व किया,
‘Proof of arithmetic consistency is not possible―every mathematical system is incomplete’.
आप किसी भी मूलभूत सिद्वान्तों को लेकर चलें, उनमें कुछ इस तरह के कथन अवश्य निकल आयेगें जो न कि सही साबित किये जा सकते है न गलत। सुसंगत गणित सम्भव नहीं है … प्रत्येक व्यवस्था अपूर्ण है।
गर्डल ने हिलर्ब्ट के द्वारा १९०० और १९२८ की आईसीएम में रखे गये प्रश्न का जवाब ढूंढ लिया। लेकिन यह वह जवाब नहीं था जो डेविड हिल्बर्ट चाहते थे। वे तो चाहते थे कि गणितीय तर्क का ऐसा संसार हो, जहां सारे कथन सही अथवा गलत सिद्घ किये जा सकें। गर्डल ने इसका उल्टा ही सिद्ध कर दिया। इससे हिल्बर्ट को परेशान हुई। लेकिन वे कुछ कर न सके – गर्डल के शोद्ध पत्र में आजतक कोई गलती नहीं निकाली जा सकी है। वे मन मनोस कर रह गये।
कुछ समय पहले बीबीसी ने डेंजरस् नॉलेज (Dangerous Knowledge) नामक श्रृंखला प्रसारित की थी। यह श्रृंखला चार विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति, जिसमें तीन गणितज्ञ – जॉर्ज कैंटर (Georg Cantor), कोर्ट गर्डल (Kurt Gödel) और ऐलन ट्यूरिंग (Alan Turing) – और एक भौतिक शास्त्री लुडविंग बॉल्टज़मैन (Ludwig Boltzmann) पर थी। यह बेहतरीन श्रृंखला है और यदि इसे आपने नहीं देखा है तो यूट्यूब में देख सकते हैं। हांलाकि इस श्रंखला में, इनकी जीवनी के बारे में कुछ सूचनायें सही नहीं हैं। इसमें गर्डल के जीवन के शुरू का भाग यहां देखिये।
मिस्टर व्हाई – यह कौन हैं
कोर्ट गर्डल और उसके अपूर्णता सिद्धान्त पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गयी हैं। इनमें से मैंने कई पढ़ी हैं। आइये, पहले उनमें से निम्न दो की चर्चा करें,

कोर्ट गर्डल का चित्र विकिपीडिया से
- Gödel: A life of Logic by John L Casti (गर्डल: ए लाइफ ऑफ लॉज़िक लेखक जॉन एल कास्टी)
- A world Without Time: The forgotten legacy of Gödel and Einstein by Polle Yourgrau (ए वर्ल्ड विथआउट टाइम: द फॉरगॉटन लेगसी ऑफ गर्डल एंड आइंस्टाइन लेखक पॉले योरग्रॉ)
गर्डल जिज्ञासू थे और वह मिस्टर व्हाई (Mr. Why) के नाम से जाने जाते थे। वे असामान्य प्रतिभा के धनी थे। वे एक शर्मीले युवक से एक ऎसे व्यक्ति बन गये जिनके साथ अधिकतर लोग रहना पसंद करते थे। लेकिन जीवन के अन्त में वे फिर अकेलेपन में डूब गये।
गर्डल ने ऍडेले (Adele) नामक एक तलाकशुदा महिला से शादी की। वह उनसे ६ साल की बड़ी थी और कैबरे (Cabaret) नृत्य करती थी। यह शादी उनके माता पिता को पसंद नहीं थी इसलिए गर्डल को शादी के लिए १० साल इन्तजार करना पड़ा। उनके कोई सन्तान नहीं हुई।
कोर्ट गर्डल और अर्लबट आइंस्टाइन पिछले शताब्दी के दो महानतम वैज्ञानिक थे। जीवन के अंतिम दिनो में, वे दोनो ही इंस्टीट्यूट आफ एडवांसड स्टडीज़ (Institute of Advance Studies Princeton) चले गये थे। दोनो का स्वभाव एक दूसरे के विपरीत था। गर्डल थोड़ा निराशवादी और परेशान दार्शनिक और आइंस्टाइन मुक्त भावुक व्यक्ति थे। लेकिन उन दोनों को एक दूसरे से शान्ति मिलती थी। आइंस्टाइन का कहना था कि,
‘इंस्टीट्यूट आफ एडवांसड स्टडीज़ में सबसे अच्छी बात यह है कि, इंस्टिच्यूट से वापस घर जाते समय, गर्डल और मेरा साथ रहता है।’
फ्रीमैन डाइसन जाने माने भौतिक शास्त्री हैं। वे इंस्टीट्यूट आफ एडवांसड स्टडीज़ के स्दस्य हैं। उनका कहना है कि,
‘Gödel was … the only one of our colleagues who walked and talked on equal terms with Einstein.’
हमारे साथ के लोगों में, केवल गर्डल ही था जो आइंस्टाइन के साथ चल सकता था और उनसे बराबरी पर बात कर सकता था।
गर्डल कुछ अजीब किस्म के व्यक्ति थे। उन्होंने अन्त में आत्महत्या कर ली। उनका आत्महत्या का तरीका भी एकदम अलग अपने अपूर्णनता सिद्धान्त की तरह। उनकी मृत्यु malnutrition के कारण हो गयी। वे जीवन के अन्त में अस्पताल में unitary tract की समस्या के लिये भरती थे। उन्होंने महीने भर खाना नहीं खाया। उनका कहना था कि डाक्टर उन्हें जहर दे कर मारना चाहते हैं।
इन दोनो पुस्तकों में गर्डल के बारे पर्याप्त सूचना है। दूसरी पुस्तक में आइंस्टाइन के संबन्ध में भी कुछ सूचना है।
पहली पुस्तक में कुछ अध्याय, कृत्रिम बुद्धि (Artificial intelligence), सोचने वाली मशीन (Thinking machines), और जटिलता (complexity) के बारे में है। इसे उन लोगों के लिए समझना मुश्किल है जो विषय पर रूचि नही रखते है या जिनको इस क्षेत्र में कोई ज्ञान नहीं है। इसलिए यदि आप चाहें तो इन अध्याय को छोड़ सकते है पर यदि आपको तर्कशास्त्र या कम्पयूटर विज्ञान में रूचि है तब इन अध्यायों को अवश्य पढ़ें। बाकी अध्याय आसान हैं व आसानी से समझे जा सकते है।
दूसरी पुस्तक में, कुछ अध्याय गर्डल द्वारा समय के ऊपर किये गये काम के बारे में है। यह वास्तव में मुश्किल है और पढ़ते समय यदि आप चाहें तो इन अध्याओं को छोड़ सकते है।
गर्डल ने एक बार कहा
‘We live in the World in which ninety-nine per cent of all beautiful things are destroyed in the bud.’
हम ऐसे संसार में रहते हैं जहां ९९ प्रतिश्त सुन्दर वस्तुएं शुरुवात में ही समाप्त हो जाती हैं।
शायद यह सच है। हम अक्सर किसी बात का सार्थक पहलू देखने के बजाय, उसके कमियां देखने तथा व्यर्थ की बात पर विवाद करने लग जाते हैं।
गणित, चित्रकारी, संगीत – क्या कोई संबन्ध है
‘गर्डल, ऍशर, बाख: एन ईटनल गोल्डेन ब्रेड’ पुस्तक १९७९ में छपी थी। मैंने तभी इसे पढ़ा था।
गर्डल तर्कशास्त्री, एम सी ऍशर (MC Eshcher) (१७ जून १८९८ – २७ मार्च १९७२) चित्रकार, और योहन सेबेस्टियन बाख (Johann Sebastian Bach) (३१ मार्च – २८ जुलाई १७५०) एक जाने माने संगीतज्ञ थे।

ड्रॉइंग हैण्डस् १९६१ चित्र विकिपीडिया से
- गर्डल का मुख्य काम स्वयं को संर्दभित करने वाले विरोधाभास के बारे में था।
- ऍशर की चित्रकारी एकदम अलग तरह से है। इनके बहुत से चित्र वापस वहीं पहुंचते हैं जहां से वे शुरू होते हैं। इनमें से कई एक तरह से स्वयं को संदर्भित करते हैं। उनके दो प्रसिद्ध चित्र देखिये पहले में एक हाथ दूसरे हाथ को बना रहे है और दूसरा हाथ पहले को। दूसरे में (नीचे देखें), पानी का झरना ऊपर से नीचे गिर कर वहीं पहुंच रहा है।
- बाख ने बहुत कुछ ऐसे संगीत को जन्म दिया जिसमें पुनरावृत्ति होती है।
यह पुस्तक इन तीनों के सम्बंधो को जोड़ती है और उनके समन्वय के बारे में चर्चा करती है। इसमें मुख्यतः गर्डल के अपूर्णता सिद्धान्त की चर्चा है। यह गणित (mathematics), सममिति (symmetry) और प्रतिभा (intelligence) के मूलभूत अवधारणा की गूढ़ व्याख्या करते हुऐ यह हुई यह बताने का प्रयत्न करती है कि किस प्रकार निर्जीव वस्तुओं से जीवन्त पदार्थ निर्मित हो सकता है।

वॉटरफॉल १९६१ चित्र विकिपीडिया से
यह पुस्तक एकदम अलग तरीके से लिखी गयी है। इस पुस्तक में एक अध्याय समान्य (general) है। इस अध्याय में, गर्डल की गणित, ऍशर की चित्रकारी एवं बाख के संगीत को ऍक्लीस (Achilles), कछुआ (Tortoise), और केकड़ा (Crab) की बातचीत के द्वारा बताया गया है। अगले अध्याय में उसी विचार को गणित के द्वारा बताया गया है। इसमें गणित से सम्बन्धित अध्याय को समझने के लिए जरूरी है कि आपको मार्डन एलजेबरा आता हो।
यह उत्कृष्ट पुस्तकों में से एक हैं। इन पुस्तकों को समझने के लिए कम से कम इण्टरमीडिएट या स्नातक स्तर की गणित का ज्ञान जरूरी है और तभी यह पढ़ने पर अच्छी तरह से समझ में आ सकेगी। यदि आप गणित या कंप्यूटर विज्ञान, या कृत्रिम बुद्धि (Artificial intelligence), सोचने वाली मशीन (Thinking machines), या जटिलता (complexity) जैसे विषय पर रुचि रखते हैं या इस क्षेत्र में काम करना चाहते हैं या आपके बेटे, बेटियां इण्टरमीडिएट या स्नातक स्तर पर गणित तथा विज्ञान के क्षात्र हैं और इन विषयों पर आगे काम करना चाहते हैं तब उन्हें यह पुस्तक अवश्य पढ़ने के लिए दें।
बाख के इस तरह के संगीत का आनन्द लीजिये।
क्या कंप्यूटर व्यक्तियों की जगह ले सकते हैं
रॉजर पेनरोज़ अंग्रेज गणित-भौतिक शास्त्री हैं। आपने ‘द एमपररस् न्यू माइण्ड: कंसर्निग कंप्यूटरस्, माइण्डस् एण्ड द लॉज़ ऑफ फिज़िक्स’ नामक बेहतरीन पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में मुख्य तौर पर यह बताने की कोशिश की गयी है कि कंप्यूटर कभी भी व्यक्तियों की जगह नहीं ले सकता हैं।
गणीतीय तर्क शास्त्र अलगोरिथम पर आधारित है। यह गर्डल के अपूर्णनता सिद्धान्त से बंधा है। पेनरोज़ का मानना है कि मानव चेतना ग़ैर-अलगोरिथमी (non-algorithmic) है। यही कारण है कि इसे कभी भी गणीतीय तर्क शास्त्र पर आधारित डिज़िटल कंप्यूटर से नहीं बदला जा सकता है।
पेनरोज़, इस पुस्तक में पुस्तक में, न्यूटन के भौतिक शास्त्र, आइंस्टाइन के सापेक्षता सिद्धान्त (special and general relativity), क्वांटम भौतिक शास्त्र (quantum physics), ब्रह्माण्ड विज्ञान (cosmology), समय की प्रकृति (nature of time) और गणित का दर्शन एवं उसकी सीमा (the philosophy and limitations of mathematics), की चर्चा करते हुऐ अपनी बात रखते हैं।
यह पुस्तक भौतक शास्त्र का एक विहंगम दृश्य (bird’s eye view) दिखाता है और इस विषय के बारे में रोचक तरीके से सूचना देता है।
यह बेहतरीन पुस्तक है और उत्कृष्ट पुस्तकों में से एक हैं। इस पुस्तकों को समझने के लिए कम से कम इण्टरमीडिएट या स्नातक स्तर के भौतिक शास्त्र का ज्ञान जरूरी है और तभी यह पढ़ने पर अच्छी तरह से समझ में आ सकेगी। यदि आप विज्ञान के छात्र है या विज्ञान में आगे कुछ कार्य करना चाहते है। या आपके बेटे, बेटियां इन क्षेत्रों में काम करना चाहती है तब उन्हें यह पुस्तक पढ़ने के लिए अवश्य दें।
ऐलेन मैथिसॉन ट्यूरिंग (२३.६.१९१२ से ७.६.१९५४) अंग्रेज गणितज्ञ, तर्क शास्त्री, गूढ़लेखिकी विशेषज्ञ (cryptanalyst) एवं कंप्यूटर विज्ञानिक थे। कंप्युटर विज्ञान और अलगोरिथम (algorithm) को रूप देने और आधुनिक कंप्यूटर के निर्माण में अग्रणी थे।
बीबीसी की डेंजरस् नॉलेज (Dangerous Knowledge) श्रृंखला का जिक्र मैंने ‘नाई महिला है’ शीर्षक के अन्दर किया है। यह श्रृंखला चार विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति, जिसमें तीन गणितज्ञ- जॉर्ज कैंटर, कोर्ट गर्डल, और ऐलन ट्यूरिंग – और एक भौतिक शास्त्री लुडविंग बॉल्टज़मैन पर थी। उस चिट्ठी में, श्रृंखला का वह भाग भी दिखाया था जिसमें गर्डल के शुरू के जीवन के बारे में है। उसके बाद एवं ट्यूरिंग के जीवन के बारे में यहां देखिये। इसमें ट्यूरिंग गर्डल के अपूर्णता सिद्धान्त को कंप्यूटर के क्षेत्र में लागू करते समय भी यह कहते हैं कि कुछ सवाल ऐसे भी हैं जिन्हें कंप्यूटर के द्वारा हल नहीं निकाला जा सकता है।
‘उन्मुक्त जी, हमें तो घबराहट हो रही है। लगता है कि जिन पुस्तकों की आपने चर्चा की है वे सारी कठिन हैं। क्या गणित और अपूर्णता के सिद्धान्त के बारे में कोई आसान पुस्तक है?’
है तो। आइये कुछ चर्चा ऐसेी ही एक पुस्तक के बारे में।
भाषायें लुप्त हो जाती हैं – गणित के सिद्घान्त नहीं
गोल्डबाक १८वीं शताब्दी के गणितज्ञ थे। ७ जून १७४२ को उन्होंने जर्मन गणितज्ञ ल्योन्हार्ड ऑयला को पत्र लिखा कि उन्होंने यह पाया है कि दो से बड़ी, दो से विभाज्य होने वाली संख्या (even number), हमेशा दो अभाज्य संख्या (Prime) का जोड़ है। अब इसे उन्हीं के नाम पर, गोल्डबाक अनुमान के नाम से जाना जाता है। यह नम्बर थ्योरी की सबसे पुराने अनुत्तरित प्रश्नों में से है। यह न तो अभी तक सही और न ही गलत सिद्घ हो पाया है।
उपन्यास ‘अंकल पेट्रोस एण्ड गोल्डबाकस् कंजेक्चर’ की कहानी, गोल्डबाक अनुमान और कोर्ट गर्डल के अपूर्णनता सिद्घान्त के इर्द गिर्द घूमती है। यह मूलत: १९९२ में ग्रीक भाषा में लिखा उपन्यास है। वर्ष २००० में, इसे फेबर एण्ड फेबर द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया। इसके प्रकाशकों ने इसकी बिक्री बढाने के लिये १० लाख डालर का पुरस्कार देने कि घोषणा की जो इस पुस्तक के प्रकाशित होने के दो साल के अन्दर गोल्डबाक अनुमान को सही या गलत सिद्घ करे दे। यह बताने के जरूरत नहीं है कि कोई भी इस पुरस्कार को नहीं जीत सका।
यह कहानी है एक चाचा और भतीजे की। चाचा को उसके परिवार के लोग नाकामयाब व्यक्ति मानते हैं। चाचा अकेले रहना पसन्द करते हैं, किसी से मिलते नहीं हैं। भतीजे ने गणित में शिक्षा ली है और उसे पता चलता है कि उसके चाचा विलक्षण प्रतिभा के युवक थे। बाद में वे विश्वविद्यालय में सबसे कम उम्र में गणित के प्रोफेसर बने और लोग उनको इज्जत और सम्मान से देखते हैं। फिर ऎसा क्या हो गया कि उसके परिवार वाले उन्हें नाकामयाब मानते हैं।
चाचा, गोल्डबाक अनुमान को सिद्ध करना चाहते हैं और इसी में जीवन लगा देते हैं। लेकिन यह तो अनुत्तरित प्रश्न ही रहा। यही इसकी कहानी है जो कि गणित की लघुकथायें, किस्से, और घटनायें पर बुनी हैं। यह कहानी तो काल्पनिक है पर उसमें लिखी लघुकथायें, किस्से, और घटनायें सच हैं। यह बेहद रोचक पुस्तक है और गणित जैसे नीरस विषय पर रोमांच पैदा करती है। यह पुस्तक जी. एच. हार्डी की उत्कृष्ट रचना ‘ए मैथमैटीशियनस् अपॉलोजी’ के इस उद्घारण से शुरू होती है।
‘Archimedes will be remembered when Aeschylus is forgotten because languages die and Mathematical ideas do not. Immortality may be a silly word but properly a mathematician has the best chance of whatever it may mean’
लोग एस्काइलस् (ग्रीक नाटककार) को भूल जायेंगे पर आर्कमडीज़ को हमेशा याद रखेंगे। क्योंकि, भाषायें लुप्त हो जाती हैं लेकिन गणित के सिद्घान्त समाप्त नहीं होते हैं। शायद अमरत्व बेवकूफी है। लेकिन यह जो कुछ भी है उसे पाने के लिये गणितज्ञ की ही संभावना सबसे अधिक है।
नम्बरों की बात हो और रामानुजम की बात न हो—यह तो हो नहीं सकता। इस पुस्तक में रामानुजम की भी चर्चा है और हार्डी-रामनुजम के टैक्सी नम्बर किस्से की भी।
इस पुस्तक में गर्डल के अपूर्णनता का सिद्घान्त का भी प्रयोग है लेकिन यह कैसे है और इस कहानी का क्या अंत है यह तो मैं आपको बताने से रहा। आपका इस पुस्तक को पढ़ने का रोमांच समाप्त कर, मैं आपका मजा थोड़े ही किरकिरा करना चाहता हूं। आप इस पुस्तक को पढ़ें और आनन्द लें। यह आपको आसानी से समझ में आयेगी। अपने बेटे और बेटियों को अवश्य पढ़ने के लिये दें।
जी. एच. हार्डी (GH Hardy) की पुस्तक ‘ए मैथमैटीशियनस् अपॉलोजी’ (A Mathematician’s Apology) उत्कृष्ट रचना मानी जाती है। यदि आपने इसे नहीं पढ़ा है तो अवश्य पढ़ें। यह अन्तरजाल पर यहां पर उपलब्ध है।
लेकिन इंडिडेन्डेन्स डे फिल्म, या अपूर्णता सिद्धान्त का साईबर अपराध से क्या संबन्ध है। कुछ चर्चा इसकी भी।
ऐसा कोई कंप्यूटर नहीं, जिसे हैक न किया जा सकता हो
इंडिपैंडेंटस डे एक विज्ञान कथा पर आधारित फिल्म है। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है।
दूसरे ग्रह से कुछ प्राणी आते हैं। पृथ्वीवासी उनका स्वागत करते हैं। लेकिन वे लोग पृथ्वी पर आकर, जन-जीवन को नष्ट करने लगते हैं। उनमें से एक प्राणी पकड़ा जाता है तब पता चलता है कि दूसरे ग्रह के निवासी नये, नये ग्रहों पर जाते और वहां के रहने वालें का जीवन समाप्त कर देते हैं। उसके बाद उनकी प्राकृतिक सम्पदा हर कर, दूसरे ग्रह पर चले जाते हैं। इस बात का पता चलते ही यह आवश्यक हो जाता है कि किसी तरह इनको समाप्त किया जाए।
जब दूसरे ग्रह से आयी उड़नतश्तरियों पर आक्रमण किया जाता है तब वह विफल हो जाता है। उनके चारो तरफ एक सुरक्षात्मक ढ़ाल थी जिसके अन्दर पृथ्वीवासियों के बम नहीं जा पा रहे थे।
इस ढ़ाल को भेदने के लिये, उनकी मुख्य उड़नतश्तरी के कंप्यूटर में एक वायरस भेजा जाता है। इसके कारण उनकी सुरक्षात्मक ढ़ाल में एक छेद हो जाता है। उस छेद से, एक हवाई जहाज, मुख्य उड़नतश्तरी के अंदर जाता है और उसमें एक परमाणु बम रख कर बाहर आ जाता है। परमाणु बम के फटने के बाद, न केवल मुख्य उड़नतश्तरी समाप्त हो जाता है पर बाकी उड़नतश्तरियों के चारो तरफ की सुरक्षात्मक ढ़ाल भी समाप्त हो जाती है। इसके बाद उन्हें समाप्त करने में कोई मुश्किल नहीं होती है। इस तरह से पृथ्वीवासियों की जीत होती है।
इस फिल्म में भी, कोर्ट गर्डल के अपूर्णता के सिद्वान्त का बाखूबी से प्रयोग किया गया है। दूसरे ग्रह के प्राणी पृथ्वीवासी से अधिक प्रगतिशील थे। उनके कंप्यूटर भी अच्छे थे। उसके बावजूद, वे उस पर वायरस जाने से नहीं रोक सके।
इंडिडेन्डेन्स डे फिल्म का ट्रेलर का आनन्द लीजिये।
गर्डल के अपूर्णता सिद्वान्त का विस्तार व्यापक है। इसका एक अर्थ यह भी है कि दुनिया में कोई ऎसा किला नही है जो फतेह न किया जा सके और दुनिया में ऎसा कोई कंपूयटर नहीं है जिसमें अनाधिकृत प्रवेश (hack) न किया जा सके। इसी बात का प्रयोग इंडिपैंडेंटस डे फिल्म में किया गया है।
कहने का अर्थ यह है कि आप तकनीक की दृष्टि से अपने कंप्यूटर को जितना भी सुरक्षित कर लें, उसे हमेशा भेदा जा सकता है। कंप्यूटर में हैकिंग को केवल तकनीक के द्वारा नहीं रोका जा सकता है इसके लिए जरूरी है कि गलत काम को रोकने के लिए कानून बनाया जाए। इसलिए दुनिया में साइबर कानून है।अगले लेख पर नज़र डालेंगे साइबर कानून और साइबर अपराध पर।
सांकेतिक शब्द
। Kurt Gödel, Incompleteness theorems, Artificial intelligence, Godel Escher, Bach: An Eternal Golden Braid, Douglas R Hofstadter, MC Escher, Johann Sebastian Bach, The Emperor’s New Mind: Concerning Computers, Minds and The Laws of Physics, Roger Penrose, Alan Turing, Georg Cantor, Ludwig Boltzmann, Newtonian physics, special relativity, general relativity, quantum physics, Uncle Petros and Goldbach’s Conjecture, Uncle Petros and Goldbach’s Conjecture, Apostolos Doxiadis, Apostolos Doxiadis, Christian Goldback, Leonhard Euler, Goldback’s conjecture,। science fiction, Independence day,
। International Congress of Mathematicians, International Mathematical Union, IMU Scholar Award, Field’s medal, Bertrand Russell, Epimenides’ or liar’s paradox, Russell’s or Barber’s paradox, David Hilbert, Magnus Gustaf (Gösta) Mittag-Leffler,
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