इस चिट्ठी में, काश्मीर यात्रा का वर्णन है।
जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है
कहते हैं कि जहांगीर जब सबसे पहली बार कश्मीर पहुंचे तो कहा कि जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।
मैं १९७५ की जून में कश्मीर गया था। मुन्ने की मां कभी नहीं गयी। हम लोगों ने कई बार कश्मीर जाने का प्रोग्राम बनाया पर बस जा न सका। हमारे सारे दायित्व समाप्त हैं। इसलिये मन पक्का कर, इस गर्मी में हम लोग कश्मीर के लिये चल दिये।
दिल्ली से श्रीनगर के लिये हवाई जहाज पकड़ा। रास्ते में भोजन मिला। प्लेट में एक प्याला भी था। चाय नहीं मिली पर जब प्लेट वापस जाने लगी। तो मैने परिचायिका से पूछा कि यदि चाय या कॉफी नहीं देनी थी तो प्लेट में कप क्यों रखा था। वह मुस्कराई और बोली,
‘आज फ्लाईट में बहुत भीड़ है। फ्लाईट केवल एक घन्टे की है इतनी देर में सबको चाय या कॉफी दे कर सर्विस समाप्त करना मुश्किल था। इसलिये नहीं दी, पर लौटते समय जरूर मिलेगी।’
परिचायिका का मुख्य काम तो अच्छी तरह से बात करना होता है। लौटते समय कौन किससे मिलता है।
बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम – दोनो का कोई ठिकाना नहीं है
श्रीनगर पहुंचते ही, हम टैक्सी पकड़कर पहलगांव के लिए चल दिये। पहलगांव समुद्र तट से लगभग ७५०० लगभग फीट की ऊँचाई पर है। यहां लिडर और शेषनाग नदियों का संगम है। श्रीनगर से पहलगांव का रास्ता लिडर नदी के साथ चलता है और सुन्दर है।
हमारे टैक्सी चालक का नाम ओमर था। उसने कहा कि बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम दोनो एक जैसे हैं, पता नहीं कब बदल जाय। बहुत ज्लद ही इसका अनुभव हो गया। रास्ते में कहीं पांच मिनट बारिश, तो फिर तेज धूप।
रास्ते में हमने रूक कर कशमीरी कहवा पिया। यह सुगंधित चाय सा था। इसमें दूध तो नहीं पर दालचीनी और बादाम पड़े थे।
पहलगांव में हम हीवान (Heevan) होटल में ठहरे। यह होटल लिडर नदी के बगल में है। खिड़की के बाहर सफेद हिम अच्छादित पहाड़ या फिर पेड़ों से भरी हरी पहाड़ियां थीं। देखने में मन भावन दृश्य था।
पहलगांव, पहुंचते शाम हो चली थी। लिडर नदी पर रैफ्टिंग भी होती है। मैंने सोचा क्यों न रैफ्टिंग कर ली जाय। होटेल वालों ने कार से दो किलोमीटर ऊपर नदी के किनारे छुड़वाया फिर नदी पर रैफ्ट के ऊपर, तेज धार के साथ, तीन किलोमीटर का सफर – सर पर हैमलेट और बदन पर जैकट। रैफ्टिंग करने में पूरी तरह भीग गये। बीच में पानी भी बरसने लगा, रही सही कमी भी पूरी हो गयी। रैफ्ट ने होटल के आगे छोड़ा । वहां से दौड़ लगाकर वापस होटल आए तो कुछ गर्मी आई। कमरे में आकर कपड़े बदले फिर गर्म चाय पी तो जान में जान आयी।
हम लोग पहले मां के साथ ऐसी जगहों पर जाते थे। मां हमेशा एक छोटी बोतल में ब्रांण्डी साथ रखती थी। ठंड लगने पर गर्म दूध में एक चम्मच ब्रांडी डालकर पीने के लिए देती थी। हम लोग ब्रांडी नहीं ले गए थे। मुझे फिर मां की याद आयी। अगली बार अवश्य साथ ले जाऊंगा।
यदि आप यह सोचते हैं कि कश्मीर में विस्की से गर्मी पा सकती हैं। तो भूल जाइये। इस्लाम में शराब पीना हराम है। वहां अधिकतर लोग मुसलमान हैं इसलिये कश्मीर में शराब हराम है। हां, चोरी छिपे जरूर पी जाती है।
यहां पर आकर लगा कि हमे छाता भी लाना चाहिए था मालुम नहीं कब, पांच मिनट के लिए बरसात।
कश्मीर में एक अनुभव और हुआ। यहां होटल अच्छे हैं। खाना अच्छा है पर तौलिये साफ नहीं होते हैं। उसका कारण यह बताया कि सूखने में मुश्किल होती है। मुझे लगा कि अपने साथ छोटे छोटे तौलिये भी रहने चाहिये ताकि बदन पोंछा जा सके।
बहुत अच्छा हुआ कि मैंने पहुंचते ही रैफ्टिंग कर ली। मुन्ने की मां ने नहीं की थी। उसे डर लगता था। अगले दिन रैफ्टिंग नहीं हो रहीं थी। होटल वाले ने बताया कि किसी ने रैफ्टिंग वाले को पीट दिया था इसलिए उनकी हड़ताल है। एक बार का वे २०० रूपये लेते हैं। एक दिन में कम से कम १००० लोग रैफ्टिंग करते हैं। यानि हड़ताल में २ लाख का घाटा। सच है हड़ताल से, हड़ताल करने वालों का ही घाटा होता है।
अगले दिन हम लोग आड़ू गये। आड़ू ले जाने के लिये स्थानीय टैक्सी करनी होती है। हमने भी एक टैक्सी की। उसके चालक का नाम शहनवाज था। आड़ू में प्राकृतिक सौंदर्य है। वहां लोग पहुंच कर घोड़े पर घूमते हैं। हम लोग घोड़े पर नहीं गये। पैदल ही घूमने निकल गये। यह सुन्दर जगह है।
जब हम लोग पैदल जाने लगे तो हमारा टैक्सी चालक, शहनवाज, भी हमारे साथ था। उसका कहना था,
‘कश्मीरी पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहते। वे या तो हिन्दुस्तान के साथ या फिर स्वतंत्र रहना चाहते हैं। उसके मुताबिक पाकिस्तान उग्रवाद फैला रहा है पर पैरा-मिलिट्री फोर्स भी उग्रवादी की तरह काम कर रही है। यदि किसी के घर उग्रवादी जबरदस्ती घुस जाय। तो उसके घर की महिलाओं की इज्जत लूटते हैं। आग लगा देते हैं।’
आड़ू बहुत छोटा सा गांव है जिसमें एक सरकारी मिडिल स्कूल है। दो साल पहले तक यह पांचवी तक था अब ८वीं तक है। इसे जवाहरलाल नेहरू ने शुरू करवाया था। मैं हमेशा स्कूल, विश्वविद्यालय में बच्चों के साथ समय व्यतीत करना चाहता हूं। उनके साथ रह कर जीवन में नया-पन आता है। इसलिये इस स्कूल में बच्चों से मिलने पहुंच गया।
इस स्कूल में लगभग १५० बच्चे हैं। हम जब वहां पहुंचे तो वे प्रार्थना कर रहे थे। उसके बाद हर बच्चा आकर कोई गीत सुनाता था या सामान्य ज्ञान का प्रश्न पूछता था। वे अध्यापक को उस्ताद शब्द से संबोधित कर रहे थे। उस्ताद के अनुसार यह उन्हे नेतृत्व करने की शिक्षा देता है। स्कूल में अंग्रेजी, उर्दू तथा कश्मीरी पढ़ाई जाती थी। कुछ बच्चों ने अंग्रेजी में सवाल पूछे और कविता भी सुनायी, कुछ ने उर्दू में भी सुनायी।
मैनें कुछ समय बच्चों के साथ गुजारा। मैंने उनसे पूछा कि उनका सबसे पसंदीदा हीरो कौन है उनका जवाब था मिथुन चक्रवर्ती। मुझे आश्चर्य हुआ। उन्होंने इसका कारण यह बताया कि वह बहुत अच्छी फाइट करता है इसलिए वह पसन्द है। उनके उस्ताद जी ने बताया कि वहां ‘ज़ी क्लासिक’ चैनल आता है उसमें पुरानी पिक्चरें आती है इसलिए वे मिथुन चक्रवर्ती का नाम ले रहे हैं।
मैने भी विद्यार्थियों से एक सवाल पूछा। मिथुन चक्रवर्ती के यहां एक चौकीदार था। एक दिन सुबह हवाई जहाज से मिथुन को कलकत्ता जाना था। चौकीदार ने जाने के लिए मना किया। उसने कहा,
‘मैंने अभी सपना देखा है कि हवाई जहाज की दुर्घटना हो गयी है और सब यात्री मर गये हैं।’
मिथुन चक्रवर्ती उस फ्लाइट से नहीं गये। उस फ्लाइट की दुर्घटना हो गयी और सब यात्री मर गये। मिथुन चक्रवर्ती ने चौकीदार को इनाम दिया पर नौकरी से निकाल दिया । मैंने पूछा,
‘इनाम तो इसलिए दिया कि जान बच गयी पर चौकीदार को नौकरी से क्यों निकाला।’
कुछ संकेत देने के बाद एक बच्चे ने सही जवाब बता दिया।
लैपटॉप की याद सताये
मैं जहां जाता हूं वहां लैपटॉप भी ले जाता हूं शायद यह मेरे ठाकुर जी हैं पर कश्मीर ट्रिप में साथ नहीं ले गया था।
अक्सर बोलना होता है – लैपटॉप साथ हो तो यह आसान होता है। मेरी कश्मीर की यात्रा मौज मस्ती की थी। कोई भाषण नहीं देना था इसलिए लैपटॉप साथ नहीं लाया। मेरे पास रिलायंस फोन है। इसके कारण हमेशा अंतरजाल पर जाया जा सकता है। कशमीर में रिलायंस फोन जम्मू तक ही है और कहीं नहीं। इसलिये यह इस ट्रिप में बेकार था।
कश्मीर में जल्द ही अन्तरजाल की याद आने लगी। पहलगांव में एक ही साईबर कैफे है। वहां पहुंचा तो पता चला कि वह खराब है 😦
पहलगांव में कोई हिन्दू या सिख नहीं है पर पुलिस स्टेशन के सामने एक मंदिर और गुरूद्वारा है। मेरे पूछने पर बताया गया,
‘जब अमरनाथ की यात्रा होती है तो यात्री इसमें जातें हैं। सिख यात्रियों के लिए गुरूद्वारा में लंगर होता है।’
पहलगांव में ९ होल का गोल्फ कोर्स है। उस पर काम चल रहा है और अन्तरराष्ट्रीय स्तर का १८ होल का गोल्फ कोर्स बन रहा है। इस समय इसके तीन होल पर ही खेल हो सकता है।
पहलगांव से पास में चन्दरबाड़ी भी है। यहां टैक्सी से जाया जा सकता है। यहां पर बर्फ रहती है और स्लेजिंग की जा सकती है। हमारे लिये समय कम था। यह करना संभव नहीं था। इसलिये वहां नहीं गये।
आप स्विटज़रलैण्ड में हैं
पहलगांव में बाईसरन भी देखने की जगह है। वहां पैदल या फिर घोड़े पर बैठ कर जाया जा सकता है। वहां जाने के लिये रोड तो है पर बहुत खराब है। घोड़े वालों की विरोध के कारण, टैक्सी नहीं जा सकती पर आप अपनी कार से जा सकते हैं।
बाईसरन, एक घासस्थली (Meadow) है। वहां हम लोग घोड़ों पर गये। पहुंचते ही, घोड़े वाले ने कहा,
‘आप लोग स्विटज़रलैण्ड में हैं।’
मैं कभी स्विटज़रलैण्ड नहीं गया इसलिये कह नहीं सकता कि उसकी बात सच है या नहीं पर यह जगह बहुत खूबसूरत बड़ा सा मैदान है।
हम जब मुन्ने के साथ ऎसी जगह जाते थे तो हमेशा चटाई रखते थे और फिर शतरंज होता था। मुन्ने की मां को शतरंज पसन्द नहीं है इसलिए उसके साथ तो नहीं खेला जा सकता। हांलाकि यदि वह खेलती होती तो भी मैं उससे जीत नहीं पाता। कहीं पत्नियों से चालों में कोई जीत सका है।
ऐसी जगह हम लोग कभी-कभी donkey-donkey भी खेलते थे। इसमें गेंद या फ्रिस्बी को एक फेकता है और दूसरा पकड़ता है। पहली बार न पकड़े जाने पर D दूसरी बार O और इसी तरह से जो पहले Donkey बन जाय वह बाहर।
शिव-पार्वती का निवास – गौरीमर्ग पर अब गुलमर्ग
हम लोग पहलगांव से गुलमर्ग पहुंचे। गुलमर्ग लगभग ९,००० फीट पर है। कहा जाता है कि यहां शिव-पार्वती का निवास है इसलिये यह गौरीमर्ग कहलाता था। सोलहवीं शताब्दी में कश्मीर के सुलतान यूसुफ शाह ने इसका नाम गुलमर्ग अर्थात फूलों की घाटी (Valley) कर दिया।
हम तुम बॉबी हट में बन्द हों
गुलमर्ग में एक मन्दिर है जिसमें ‘आप की कसम’ फिल्म के गाने ‘जय जय शिवशंकर’ के कुछ भाग की शूटिंग हुई है। इसकी कुछ शूटिंग श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर में हुई है। गुलमर्ग में ‘बॉबी हट’ है। इस फिल्म के एक गाने ‘हम तुम एक कमरे में बन्द हों’ की शूटिंग इसी हट में हुई है।
गुलमर्ग में १८ होल का गोल्फ कोर्स है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा पर स्थित गोल्फ कोर्स है। यह बहुत सुन्दर है पर यह बहुत अच्छी स्थिति में नहीं था। इस पर कोई भी खेल नहीं रहा था।
यहां एक तारगाड़ी (rope way) ‘गंडोला’ है। हम लोग घूमने के लिए निकले तो पानी बरसने लगा । पहलगांव में मौसम हमारे साथ रहा पर गुलमर्ग में नहीं । वापस होटल आ गये। बीच-बीच में पानी बरसता रहा, बाहर नहीं जा पाये। उस दिन तारगाड़ी पर नहीं चढ़ पाये। होटेल में आ कर मैंने Every thing you desire: A journey through IIM by Harshdeep Jolly पढ़नी शुरू कर दी तो उसी में डूब गया। यह अच्छी पुस्तक है। इसकी पुस्तक समीक्षा, मैं अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर कर चुका हूं।
पाँच साल में गुजरात बाकी राज्यों को बहुत पीछे छोड़ देगा
गुलमर्ग में अगले दिन हम लोग सुबह ‘गंडोला’ तारगाड़ी पर गऐ। १० बजे टिकट मिलना था, लाइन पर लगे रहे, लगभग ११ बजे टिकट मिला। गंडोला दो चरण में है पहला चरण खिलनमर्ग के पास तक १०,५०० फीट तक जाता है और दूसरा चरण उपर १३,००० फीट तक जाता है।
दूसरे चरण पर जाने के लिये हम लोग ने लाइन लगायी। यहां पर मेरी मुलाकात अहमदाबाद में काम कर रहे डाक्टरों से हुई। वे मुझसे गुजराती में बात करने लगे। मैं ने बताया कि मैं गुजरात से नहीं हूं न ही गुजराती समझ पाता हूं। इसके बाद वे हिन्दी में बात करने लगे।
इन लोगों के मुताबिक गुजरात के हालात बहुत अच्छे हैं। मैने पूछा कि क्या मुसलमान भी ऎसा सोचते हैं। उन्होंने कहा,
‘हम चार परिवार एक साथ आये हैं एक मुसलमान परिवार है। आप उन्हीं से पूछ लीजये।’
मैंने मुसलमान डाक्टर से बात की तो उसका भी वही जवाब था। इनका कहना था,
‘हमारे अस्पताल में कोई बिजली का जेनरेटर नहीं है। क्योंकि पिछले दो साल में एक मिनट के लिए भी बिजली नहीं गयी। हालांकि बिजली के लिए ८/-रू० प्रति यूनिट देना पड़ता है। पानी भी २४ घंटे आता है। अगले पाँच साल में गुजरात बाकी राज्यों को बहुत पीछे छोड़ देगा।’
मैंने कहा कि मीडिया तो कुछ अलग सी रिपोर्ट करता है। उनके मुताबिक, मीडिया सनसनीखेज बातों पर निर्भर है। वे अक्सर कुछ ज्यादा या गलत लिख देते हैं।
कुछ समय पहले गुजरात में पुलिस मुठभेड़ (Encounter) में कुछ लोग मार दिये गये थे। मिडिया के मुताबिक यह फर्जी मुठभेड़ था। मैंने इसके बारे में उनके क्या कहना है। उनका जवाब था,
‘वह शक्स पुलिस को मारने के जुर्म में हत्यारा था इसलिए मुठभेड़ में मार दिया गया। ऎसा हर जगह होता है। पुलिस ने यदि बचाव के लिये मुख्य मंत्री का नाम डाल दिया तो कोई बात नहीं। हमारे गुजरात में रात को लड़किया सुरक्षित (Safely) घूम सकती हैं।’
मुन्ने को जब अमेरिका जाना था तो मैं कुछ साल पहले, उसे स्पोकन इंगलिश की परीक्षा दिलवाने, अहमदाबाद ले गया था। मुझे कुछ इसी तरह का अनुभव हुआ था हांलाकि मुझे गुजरात का अधिक अनुभव नहीं है।
मुझे यह डाक्टर पसंद आये। वे अपने प्रदेश के बारे अच्छे विचार रखते थे। उत्तर भारत के कई प्रदेशों के लोग, अपने प्रदेश के बारे में अच्छी राय नहीं रखते हैं।
मैं उन लोगों से और बात करना चाहता था और उनके चित्र भी लेना चाहते था पर वहां ओले गिरने लगे। हमें श्रीनगर भी जाना था। हमें लगा कि हम दूसरे चरण में नहीं जा पायेंगे और वापस आ गए।
हम लोगों से गलती हो गयी थी। सुबह खिलनमर्ग तथा आसपास हमें घोड़े पर चले जाना चाहिये था दस बजे तक सारा काम कर गंडोला के पहले स्टेज पर घोड़े से पहुंचकर, दूसरे स्टेज का टिकट लेना चाहिये था। मिलता तो ठीक था नहीं तो गंडोला से वापस चले आना था। गंडोला में एक तरफ का भी टिकट मिलता है। चलिये अगली बार इसी तरह से ही करेंगे।
हेलगा कैटरीना और लीनुक्स
हम लोग गुलमर्ग से श्रीनगर आये। यहां हम हाउस बोट में रहे। यहां पर मेरी मुलाकात हेलगा कैटरीना से हुई। वे फिनलैण्ड से हैं और डाक्टर हैं। कैटरीना साड़ी बहुत अच्छी तरह से पहने हुयी थी। मेरे उन्हें यह बताने पर, मुस्कराईं और बोलीं,
‘मैं भारत तीसरी बार आई हूं। मुझे यह देश बेहद पसन्द है। मुझे पढ़ना अच्छा लगता है और पहली बार, कृष्णामूर्ती को पढ़ने के बाद, मैंने भारत आने का मन बनाया था।’
कैटरीना के एक लड़का (१६साल) और एक लड़की (१४ साल) है। वे तलाकशुदा हैं पर उनकी पती से अब भी मित्रता है। इस समय उनके पती, उनके घर में रह कर बच्चों की देखभाल कर रहे हैं।
Linus Torvalds फिनलैंड से है। वे, १९९१ में, हेलसिंकी पॉलीटेक्निक में पढ़ रहे थे। उस समय, उन्होने Linux का करनल (Kernel) प्रकाशित किया था। जाहिर है हमारी बातों में Linus Torvalds भी थे। कैटरीना ने बताया कि Linus Torvalds का सही उच्चारण लीनुस टोरवाल्डस् है और फिनलैंड में Linux को लीनुक्स बोलते हैं न कि लिनेक्स। क्या मालुम क्या सही और क्या नहीं।
कैटरीना में मुझसे पूंछा कि क्या मैं लीनुस के परिवार के बारे में जानता हूं। मैंने कहा कि मैंने उसकी आत्मजीवनी ‘Just for fun : The story of a accidental revolutionary’ पढ़ी है। इस लिये उनके जीवन के बारे में काफी कुछ मालुम है। यह पुस्तक कैटरीना ने नहीं पढ़ी थी। मैंने उसे बताया कि यह पुस्तक बहुत अच्छी है और न केवल पढ़ने योग्य है पर प्रेरणा की स्रोत है। उसने वायदा किया कि वह उसे पढ़ेगी और अगली बार हम उस पर कुछ बात भी करेंगे।
कैटरीना के बताया,
‘फिनलैण्ड की सबसे अच्छी बात वहां की सुरक्षा है। हमारे देश में यहां टैक्स ज्यादा है पर चिकित्सा, पढ़ाई सब मुफ्त है। सारे विश्वविद्यालय सरकारी हैं। मैं बढ़ई के चार बच्चों में से एक हूं। मेरे पिता डाक्टरी की पढ़ाई का पैसा नहीं दे सकते थे पर मैं डाक्टर इसलिए बन पायीं क्योंकि पढ़ाई के लिए पैसे नहीं देना पड़ा।’
कैटरीना के पीठ पर एक चिन्ह था। मैंने पूछा कि यह ठप्पा है या टैटू। उसने मुस्करा कर कहा,
‘यह टैटू है। इसे मैंने अपने आप को चालिसवें जन्मदिन पर उपहार दिया है। अगले साल मैं पच्चास की हो जाउंगी। मैं नहीं समझ पा रही कि मैं अपने आप को क्या उपहार दूं।’
कैटरीना को अपने लिये उपहार तय करने में देर नहीं लगी। हम लोग शाम को हाउस बोट पहुंचे तो वहां पर बनारसी साड़ियों का मेला लगा था। चारो तरफ साड़ियों फैली हुई थी। वह बोली,
‘मैं पच्चासिवें जन्म दिन के लिये साड़ी खरीद रहीं हूं पर तय नहीं कर पा रही हूं कि कौन सी लूं। क्या आप मेरी मदद करेंगे।’
मुझे हरे रंग वाली साड़ी अच्छी लग रही थी। उसने वही ले ली।
मुझे कैटरीना साहसी महिला लगीं। वह भारत अकेले आयीं हैं और कशमीर में पैदल ट्रेक कर रही थीं। फिर बोट पर ट्रेकिंग करने जा रहीं थीं। उसने मुझे फोटो दिखाये जिसमें वह घोड़े वालों या गाइड के घर में या फिर टेंट में रूकी। मेरे पूछने पर कि क्या वह यह सब, बिना अपने बच्चों के, अकेले आनन्द से कर पा रहीं हैं। उसने कहा,
‘मेरे बच्चे साहसी नहीं हैं, उन्हें इस तरह ट्रेक करने में मजा नहीं आता है। वे जरा सी गन्दगी से घबरा जाते हैं इसीलिए मैं उन्हें साथ नहीं लायी।’
मुझे ट्रेकिंग अच्छी लगती है पर मुन्ने की मां को नहीं। जब मुन्ना साथ रहता था तब हम लोगों ने कई इस तरह के ट्रिप लिये थे पर अब नहीं। अकेले हिम्मत नहीं पड़ती है। कैटरीना से बात हो गयी है अगली बार जब वह भारत आकर ट्रेकिंग पर जायेंगी तब मैं भी साथ रहूंगा।
अच्छा तो हम चलते हैं
मैं १९७५ की गर्मी में कश्मीर आया था। यह मेरी दूसरी ट्रिप है और मेरी पत्नी की पहली। उस समय डल झील के बीचोबीच चार चिनार के पेड़ थे और प्लेटफार्म बनाकर एक रेस्ट्राँ चला करता था, इसमें कटी पतंग के एक गाने ‘अच्छा तो हम चलते हैं’ की शूटिंग हुयी थी। यह बहुत सुन्दर जगह थी। मुझे बताया गया कि अब यह बन्द हो गया है।
हमारी हाउसबोट के बगल एक पेड़ था। उसमें चील दम्पत्ति ने अपना घोसला बना रखा था। उनके दो बच्चे भी थे। वे खाना लाकर उन्हें खिलाते थे। जब मैं उनकी फोटो ले रहा था तो वह चील मुझे घूर कर देख रही थी कि कहीं मैं उसके बच्चों को कुछ चोट न पहुंचा दूं।
मुझे यहां जहीर आलम मालिश करने वाला मिला। वे बीकानेर के रहने वाले हैं और इनकी शादी भोपाल में हुयी है वहीं पर घर जमा लिया है। वहां इनकी Face to face नाम की बाल काटने की दुकान पुराने भोपल में है। साल में ४ महीने भोपल में और ८ महीने कश्मीर में रहते हैं। मैंने उनसे मालिश करवायी। मैंने इसके पहले कभी नहीं करवायी थी। समझ में नहीं आया कि अच्छी थी कि नहीं, पर २०० रूपये जरूर जेब से निकल गये।
हमने पूथ्वी मां को अपने बच्चों से गिरवी ले रखा है
यहां पर हाउसबोट का नगर बसा है लगता है श्रीनगर में आने वाला पर्यटक यहीं रूकता है नाव वाले फेरी लगाते रहते हैं। कोई ठण्डा बेच रहा है कोई जूता। कोई आपको जैकेट बेचना चाहता है तो कोई आपको गहने। उसी के बीच जीवन चल रहा है। यह सब डल झील को बर्बाद भी कर रहा है।
मैं १९७५ में जून में श्रीनगर गया था मुझे याद नहीं पड़ता कि डल झील पर इतनी हाउसबोट थीं या नहीं। डल लेक भी बहुत साफ थी। इस बार गन्दी लगी। लोगों से पूछने पर पता चला कि यह सारी हाउसबोट अवैधानिक है। बहुत कुछ गन्दगी इन्हीं के कारण है। वहां के लोगों का कहना है,
‘२५ साल पहले डल लेक की परिधि ३२ किलोमीटर थी। अब घटकर १६ हो गयी है। लोग इसे मिट्टी से पाटकर कब्जा करते जा रहे हैं। इसमें बदमाशी में राज्य सरकार भी भागीदार है। दो साल पहले जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दाखिल की गयी जिसे कारण यह रोका जा सका और डल लेक में कुछ सफाई शुरू की गयी।’
गोवा में भी हमने देखा कि न्यायपालिका के कारण वहां का समुद्रीतट बचा। दिल्ली में भी यदि प्रदूषण कम हुआ तो वह न्यायपालिका के कठोर कदमों के कारण।
यह पूथ्वी मां हमें अपने पूर्वजों से नहीं मिली है इसे तो हमने अपने बच्चों से गिरवी ली है। यह हमारे ऊपर है कि हम इसे कैसे उन्हें वापस देते हैं। यह बात शायद केवल न्यायपालिका ही समझ पा रही है बाकी लोग तो शायद …
लोग अक्सर न्यायपालिका के न्यायिक क्रिया-कलापों (Judicial activism) की आलोचना करते हैं पर यदि आप देखें तो बहुत जगह न्यायपालिका के कारण ही पर्यावरण बचा हुआ है । नेता ऎसे निर्णय नहीं लेते, जिससे उनके वोट बैंक में कमी आये।
जय-जय शिवशंकर
मैं, १९७५ की जून में एक महीने श्रीनगर रहा था। जिस घर में ठहरा था उसके बगल में पहाड़ी है उसके ऊपर शिवजी का मंदिर है। यह शंकराचार्य जी का मंदिर कहलाता है क्योंकि उन्होंने ही शिवलिंग की स्थापना की थी मैं तब कई बार पैदल उस मंदिर तक गया था। उस समय मंदिर में केवल हमी लोग होते थे। अब पक्की रोड बन गयी है और अन्त में २४० सीढ़ियां है। पहाड़ी रास्ते से जाने की इजाजत नहीं है। सब तरफ पुलिस का पहरा है। आप मंदिर तक कैमरा भी नहीं ले जा सकते हैं। इस मंदिर में ‘आपकी कसम’ फिल्म के गाने ‘जय-जय शिवशंकर’ के आधे भाग की शूटिंग हुयी है। इस बार जब हम लोग मंदिर पहुंचे तब वहां सैकड़ों लोग थे। बहुत भीड़ थी।
कश्मीर के हरियाली और फूल श्रीनगर में जगह-जगह बाग हैं मुगल राज्य के समय के दो बाग निषाद और शालीमार अब भी पुराने समय की दास्तान बिखेर रहे हैं।
निषाद बाग से हजरतबल मस्जिद दिखायी पड़ती है जिसमें कुछ साल पहले उग्रवादी घुस गये थे और मुश्किल से निकाले जा सके।
श्रीनगर में चश्मेशाही है यहां पानी निकलता है। कहा जाता है कि इसमें औषधीय तत्व हैं: पीने से पीलिया तथा पेट की बीमारी दूर हो जाती है। मेरा पेट कुछ खराब चल रहा था। मैंने पानी पिया। यह मनोवैज्ञानिक कारण था या वास्तविक पर मेरे दस्त ठीक हो गये। कहा जाता है कि जवाहरलाल नेहरू के पीने के लिये पानी यहां से जाता था।
श्रीनगर में परी महल भी है इसे शाहजहां के लड़के दाराशिकोह ने सूफी संतों के रहने और अध्ययन के लिये बनवाया था। कहा जाता है कि इसका नाम पीर महल था सरकार ने इसका नाम परी महल कर दिया है। सरकार के मुताबिक परियां पवित्र जगह जाती हैं,
यहां पवित्र आत्मायें रहती थीं – इसलिये इसका नाम परी महल रख दिया गया।
मालुम नहीं, क्या सच है – इस समय तो इसमें न सूफी सन्त रहते हैं न ही परियां – इसमें पैरा मिलिट्री वालों ने कब्जा जमा लिया है।
श्रीनगर में एक नया १८ होल का अन्तरराष्ट्रीय गोल्फ कोर्स बना है परी महल से पूरा दिखायी पड़ता है। यह बहुत सुन्दर है।
तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुझे बनाया
कश्मीर में सबसे अच्छी बात यह लगी कि बहुत कम महिलायें बुरका पहने दिखायी पड़ीं। मैं केरल और हैदराबाद भी जाता रहता हूं। वहां पर ज्यादा महिलायें बुरका पहने दिखायी पड़ती हैं बनिस्बत कश्मीर के। महिलायें व लड़कियां सर पर स्कार्फ लगाये, स्मार्ट और सुन्दर लगती हैं; देखने में भी अच्छा लगता है। काला बुरका जैसे सुन्दरता पर कालिख पोत दी गयी हो।
समार्ट और प्यारी युवतियों को देख कर, मुझे शम्मी कपूर के द्वारा फिल्म कश्मीर की कली में शर्मीला टैगोर के लिये गाया यह गाना याद आया,
‘यह चांद सा रोशन चेहरा
झुल्फ़ों का रंग सुनहरा।
यह झील सी नीली आंखें,
कोई राज है इसमें गहरा।
तारीफ करूं क्या उसकी,
जिसने तुझे बनाया।’
अलविदा कश्मीर
जितनी अस्तव्यस्तता, श्रीनगर हवाई अड्डे पर है उतनी शायद कहीं नहीं। वहां पर कोई भी स्क्रीन नहीं है जो यह बताये कि आपकी उड़ान सही समय से है या लेट है या उसकी बोर्डिंग शुरू हो गयी है। इसमें टी.वी. है उसमें अलग चैनल आवाज के साथ चल रहे थे। शोर इतना कि कोई भी प्रसारण में क्या कहा जा रहा है पता नहीं चलता। सुरक्षा जांच जगह-जगह पर है। मैं यही समझता था कि यहां सारा काम बहुत तरीके से होगा, पर यहां तो सब उलटा ही है।
मुझे कश्मीर में शान्ति लगी। यह उतनी ही है जितना भारत के किसी अन्य जगह पर। जनता, आम नेताओं और पैरा मिलिट्री फोर्स से दुखी लगी। उनके मुताबिक, जितनी अशान्ति उग्रवादी फैलाते हैं उतनी ही नेता और पैरा मिलिट्री फोर्स के लोग। मीडिया की भी इसमें भागीदारी है। वहां के लोगों के अनुसार,
- एक नेता दूसरे नेता को नीचा दिखाने के लिये उग्रवादी गतिविधियां करा देता है;
- पैरा मिलिट्री फोर्स को वहां सर्च करने में ज्यादा पैसा मिलता है इसलिये वहां से कब्जा छोड़ना नहीं चाहती;
- मीडिया भी वहां छोटी-छोटी घटनाओं को ज्यादा विस्तार से दिखा रहा है जिसके कारण लोगों को कश्मीर के बारे में गलतफहमी हो जाती है।
मैं नहीं कह सकता कि आम लोगों का यह सोचना ठीक है या फिर पैरा मिलिट्री फोर्स के लोगों का, या फिर मीडिया का। पर मैं पुनः कश्मीर जाना चाहूंगा। तब तक के लिये – अलविदा कश्मीर।
मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी
मुझे कश्मीर उतना ही सुन्दर लगा, जितना कि सायरा बानू अपनी पहली फिल्म जंगली में। यह फिल्म तब बनी (१९६१) जब मैंने अपने यौवन में कदम रखा था। सायरा उस समय केवल सोलह साल की थीं और इंग्लैण्ड से शिक्षा प्राप्त कर लौटी थीं। हांलाकि उस समय मुझे हिन्दी फिल्म देखने की अनुमति नहीं थी। यह फिल्म मैंने सालों बाद – शायद शादी के बाद – इसे अपनी पत्नी के साथ देखा। कश्मीर में, मुझे इस फिल्म का सायरा पर फिल्माया यह गीती भी बहुत याद आया।
काश्मीर की कली हूं मैं,
मुझसे ना रूठो बाबू जी,
मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी,
कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं।
कश्मीर एक सुन्दर महकते गुलाब की तरह है। इस गुलाब पर आतंकवाद का साया है। हमने शुरू में गलती कर दी थी। यदि अब भी हमने ठीक कदम न उठाये तो पृथ्वी पर यह स्वर्ग, यह सुन्दर महकता गुलाब मुरझा जायगा। यदि यह एक बार मुरझा गया तो फिर कभी न खिलेगा और न ही महकेगा।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
यह यात्रा विवरण मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर कई कड़ियों में प्रकाशित हो चुका है। इसकी अलग अलग कड़ियों को आप नीचे दिये गये लिंक पर चटका लगा कर पढ़ सकते हैं।
जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।। बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम – दोनो का कोई ठिकाना नहीं है।। मिथुन चक्रवर्ती ने अपने चौकीदार को क्यों निकाल दिया।। आप स्विटज़रलैण्ड में हैं।। हम तुम एक कमरे में बन्द हों।। Everything you desire – Five Point Someone।। गुलमर्ग में तारगाड़ी।। हेलगा कैटरीना और लीनुक्स।। डल झील पर जीवन।। न्यायपालिका और पर्यावरण।। अलविदा कश्मीर।।
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आपका यात्रा वृतांत पहले किश्तों में तो पढ़ चुका हूं लेकिन उन किश्तों के पढ़ने में हमेशा कमी सी महसूस होती थी.
इस वृतांत को पढ़कर बहुत अच्छा लगा. काश काश्मीर के हालात सुधरें और हमें हमारे परिवरीजन वहां जाने दें
Achha yatra vritant
बेहतरीन यात्राकथा ,संस्मरण ..कश्मीर जाना हुआ तो इसे याद रखेंगे !
पढ़कर कश्मीर जाने का मन हो रहा है। बहुत अच्छा वर्णन किया है।
घुघूती बासूती
gud work!!!!!
मैंने भी पढा, अपनी यात्रा याद हो आयी।
Hindi me likhane ka man karatahai par Harjagah English
अरे, हिन्दी में तो लिखना बहुत आसान है। यदि आप अंग्रेजी में टाइप कर सकते हैं तब फोनेटिक की बोर्ड का प्रयोग करें – उन्मुक्त
Your blog is very nice, I don’t know hindi typing.
K C VATS
# 09968683800
hme aapki kahani bahut achhi lagi
aage bhi jaari rakhe