(यह कहानी नहीं, सच है। लेकिन यह किसी एक लड़की या महिला की कहानी नहीं है। यह उन कई महिलाओं और लड़कियों की दास्तान और अनुभवों को मिला कर लिखी गयी है जिनसे मुझे मिलने का, बात करने का, मौका मिला – और जीवन की सच्चाई भी पता चली। उर्मिला एक काल्पनिक नाम है। मैं आज तक किसी लड़की या महिला से नहीं मिला जिसका नाम उर्मिला हो। )
एक दिन औफिस से घर पहुंचा तो महौल कुछ तना, तना सा लगा। शुभ्रा (मुन्ने की मां यानि मेरी पत्नी) चाय बड़े बेमन से रख कर चली गयी मैने चुप रहने में ही खैर समझी। चाय चुपचाप पी, फिर नहाने चला गया। नहाया, कपड़े बदले और कमप्यूटर पर। थोड़ी देर बाद लगा कि पीछे से कोई घूर रहा है – आज तो शामत है। मैने चुप रहने मे ही भलायी समझी।
इतने में मुन्ने की मां की तन्नाई हुई अवाज़ सुनायी पड़ी,
‘यह क्या है?’
मैंने तिरछी नज़र से देखा: कुछ पिकनिक की फोटो थीं। मैने कहा,
‘मुन्ना या मुन्नी से पूछो कहीं पिकनिक पर गये होंगे वंही की फोटो होंगी।’
‘यह ब्लैक एन्ड वाईट हैं और आजकल रंगीन फोटो होती हैं और न तो मुन्ना, मुन्नी दिखायी पड़ रहें हैं न ही उनके कोई दोस्त। फिर यह फोटो तुम्हारे बक्से में क्या कर रहीं थीं।’
लगा कि जैसे कोई गुर्रा रहा हो। अब तो ठीक से देखना लाज़मी हो गया।
देखा तो कई पुरानी यादें ताज़ी हो गयी। विश्यविद्यालय के समय में हम लोग पिकनिक में गये थे, तभी की फोटो थीं मैं कुछ भावुक हो कर उसे पिकनिक के बारें में बताने लगा। इकबाल, जो अब वकील हो गया है; अनूप जो बड़ा सरकारी अफसर हो गया; दिनेश जो कि जाना माना वैज्ञानिक है।
‘मुझे इन सब में कोई दिलचस्पी नहीं है पर यह लड़की कौन जिसकी तुमने इतनी फोटूवें खींच रखी हैं और क्यों इतना सहेज कर रखे हो, आज तक बताया क्यों नही’
मुझे एक पतली सी चीखती हुई आवाज़ सुनायी पड़ी। सारा गुस्सा समझ में आ गया।
यह लड़की उर्मिला थी। वह हम लोगों के साथ पढ़ती थी, अच्छा स्वभाव था, बुद्धिमान भी थी। वह सब लड़कों से बात करती थी और अक्सर क्लास में, बेन्च खाली रहने के बावजूद भी, लड़कों के साथ बेन्च में बैठ जाती थी। वह इस बात का ख्याल रखती थी कि वह सबसे बात करे तथा सब के साथ बैठे। हम सब उसे पसन्द करते थे। पर वह हम से किसी को खास पसन्द करती हो ऐसा उसने किसी को पता नही लगने दिया।
‘कहां रहती है’
फिर वही तन्नाती हुई आवाज़।
‘विश्वविद्यालय में साथ पढ़ती थी। मुझे मालुम नहीं कि वह आजकल कहां है, शायद नहीं रही।’
‘तुम्हे कैसे मालुम कि वह नही रही’
‘विश्वविद्यालय के बाद वह मुझसे कभी नही मिली पर इकबाल से मुकदमे के सिलसिले में मिली थी। उसी ने बताया था’
इकबाल मेरा विश्वविद्यालय का दोस्त है और इस समय वकील है, उसके बारे में फिर कभी – पर अभी केवल इतना कि मुन्ने की मां उसकी बात का विश्वास करती है।
‘इकबाल भाई, उर्मिला के बारे मे क्या बता रहे थे’
आवाज से लगा कि उसका गुस्सा कुछ कम हो चला था।
उर्मिला पढ़ने में तेज, स्वभाव में अच्छी वा जीवन्त लड़की थी। पढ़ाई के बाद उसकी शादी एक आर्मी औफिसर से हो गयी। मेरा उससे संपर्क छूट गया था। बाकी सारी कथा यह है जो कि इकबाल ने मुझे बतायी है।
शादी के समय उर्मिला का पति बौर्डर पर तैनात था। शादी के बाद कुछ दिन रुक कर वापस चला गया। एक दो बार वह और कुछ दिनो के लिये आया और फिर वापस चला गया। वह उससे कहता था कि उसकी तैनाती ऐसी जगह होने वाली है जहां वह अपने परिवार को रख सकता है तब वह उसे अपने साथ ले जायगा। जब उर्मिला का पती रहता था तो वह ससुराल में रहती पर बाकी समय ससुराल और मायके के दोनो जगह रहती। उर्मिला की नन्द तथा नन्दोई भी उसी शहर में रहते थे जहां उसका मायका था इसलिये वह जब मायके में आती तो वह उनके घर भी जाती थी।
एक दिन उर्मिला बज़ार गयी तो रात तक वापस नही आयी। उसके पिता परेशान हो गये उसके ससुराल वालों से पूछा, नन्दोई से पूछा, सहेलियों से पूछा – पर कोई पता नहीं चला। पिता ने हारकर पुलिस में रिपोर्ट भी की। वह अगले दिन वह रेवले लाईन के पास लगभग बेहोशी कि हालत में पड़ी मिली। उसके साथ जरूर कुछ गलत कार्य हुआ था। उसका पति भी आया वह कुछ दिन उसके पास रहने के लिये गयी और वह उर्मिला को मायके छोड़ कर वापस ड्यूटी पर चला गया। उर्मिला फिर कभी भी अपने ससुराल वापस नहीं जा पायी।
कुछ महीनो के बाद उर्मिला पास उसके पती की तरफ से शादी के सम्बन्ध विच्छेद की नोटिस आयी। उसमे लिखा था कि,
- उर्मिल अपने पुरुष मित्र (पर कोई नाम नहीं) के साथ बच्चा गिरवाने गयी थी;
- उसके पुरुष मित्र ने उसे धोका दिया तथा उसके साथ गैंग-रेप हुआ है;
- ऐसी पत्नी के साथ, न तो बाहर किसी पार्टी में (जो कि आर्मी औफिसर के जीवन में अकसर होती हैं) जाया जा सकता है, न ही समाज में रहा जा सकता है;
इसलिये दोनो के बीच सम्बन्ध विच्छेद कर दिया जाय।
उर्मिला का कहना था कि,
- वह बाज़ार गयी थी वंहा उसके नन्दोई मिल गये;
- नन्दोई के यह कहने पर कि उर्मिला पति का फोन उससे बात करने के लिये आया था तथा फिर अयेगा और वे उससे बात करना चाहते हैं वह उनके साथ घर चली गयी क्योंकि उसके घर का फोन कुछ दिन से खराब चल रहा था ;
- नन्दोई के यहां चाय पीने के बाद उसकी तबियत खराब हो गयी। जब उठी तो उसने अपने आप को रेलवे लाईन के पास पाया;
- उसे कुछ याद नहीं कि उसके साथ क्या हुआ।
- वह अपने पति से प्रेम करती है सम्बन्ध विच्छेद न किया जाय।
सम्बन्ध विच्छेद के मुकदमे आज कल पारवारिक अदालतों मे चलते हैं। इन में फैमिली कांउन्सलर होते हैं जो कि महिलायें ही होती हैं इन फैमिली कांउन्सलर ने उर्मिला से बात की और अपनी रिपोर्ट में कहा कि,
- उर्मिला ज्यादातर समय रोती रही;
- सारी बात नही बताना चाहती थी; और
- लगता है कि झूट बोल रही है।
निचली आदालत ने फैमिली कांउन्सलर की बात मान कर सम्बन्ध विच्छेद कर दिया। तब वह ईकबाल के पास पंहुची। ईकबाल ने हाई कोर्ट में अपील करके उसे जितवा दिया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस बात पर विश्वास नही किया जा सकता कि उर्मिला किसी पुरुष मित्र के साथ बच्चा गिरवाने गयी थी, क्योंकि,
- उर्मिला के किसी भी पुरुष मित्र का नाम भी किसी ने नहीं बताया;
- किसी ने भी उर्मिला को पुरुष मित्र के साथ जाते देखने की बात नहीं कही;
- इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उर्मिला का चरित्र खराब है बलकि उसके अच्छे चरित्र की गवाही है (यह बात तो उर्मिला के ससुर ने गवाही में माना था);
- उर्मिला की शादी हो चुकी थी वह पती के साथ रह चुकी थी जो समय उसने अपने पती के साथ बिताया था उसके कारण वह गर्भवती हो सकती थी। उसको बच्चा गिरवाने का कोई कारण नही था।
हाई कोर्ट ने फैमिली कांउन्सलर की रिपोर्ट खारिज करते हुऐ कहा कि,
- जिस महिला के साथ ऐसी बुरी दुर्घटना हुई हो उसके लिये वह सब बयान कर पाना मुशकिल है;
- ऐसे मौके की याद ही किसी को दहला सकती है;
- कोई भी महिला ऐसी बात को बताते समय सुसंगत नही रह सकती; और
- ऐसी महिला के लिये उस बात के बारे में पूछे जाने पर रोना स्वाभाविक है।
हाई कोर्ट ने उर्मिला की अपील मंजूर की तथा उसके पति के सम्बन्ध विच्छेद के मुकदमे को यह कहते हुऐ खारिज किया कि ऐसे मौके पर पती को पत्नी,
- के हालात समझने चाहिये; तथा
- उसे सहारा देना चाहिये न कि तिरस्कारना।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बहाल रखा।
हाई कोर्ट ने उर्मिला की अपील मंजूर करते हुऐ उसे जीवन भत्ते के लिये पैसे भी दिलवाये पर यह नहीं मालुम कि उर्मिला ने पैसे लिये कि नहीं क्योंकि इस सब के कुछ महीनो के बाद उर्मिला तथा उसका परिवार शहर छोड़ कर मालुम नहीं कहां चला गया। न मुझे न ही ईकबाल को कुछ भी उसके बारे में पता है।
‘क्या उर्मिला को बिलकुल कुछ याद नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ’
मुन्ने की मां ने पूंछा।
‘सब याद था, मुन्ने की मां, सब, वह शहर छोड़ने के एक दिन पहले ईकबाल के पास गयी थी और ईकबाल को उस रात की सच्चाई बतायी। पर यह नहीं बताया था कि वह अगले दिन शहर छोड़ कर जा रही है।’
मैने कहा।
यह भी अजीब कहानी है उस दिन उर्मिला नन्दोई के घर मे चली गयी थी वहां उसे पता चला कि उसकी ननन्द नहीं थी। वह अपने मायके यानि कि उर्मिला के ससुराल में थी घर में नन्दोई के मित्र थे। उर्मिला वापस अपने मायके आना चाहती थी पर नन्दोई ने उससे सबके लिये चाय बनाने के लिये अनुरोध किया। इसको वह मना नहीं कर पायी क्योंकि घर में चाय बनाने के लिये और कोई नहीं था।
वह जब चाय बनाने गयी तब नन्दोई तथा उनके मित्रों ने दरवाजा बन्द कर दिया। उसके साथ उन सब ने रात भर जबरदस्ती गलत कार्य किया। वे लोग अगले दिन उसे बेहोशी की हालत में रेवले लाईन के पास छोड़ आये। मैने जब इकबाल से पूछा कि उसने यह बात क्यों नहीं अपने पति या कोर्ट मे कही। ईकबाल ने बताया कि उसने उर्मिला से यह पूछा था पर उर्मिला ने उसे कोई जवाब नहीं दिया।
यह कहानी बताने के बाद मैंने ऐसी ही टिप्पणी की,
‘उर्मिला बेवकूफ थी उसे यह बात कोर्ट में कहनी चाहिये थी’
मुन्ने की मां ने कोई प्रतिवाद नहीं किया। कुछ देर बाद मैने उसकी आखों की तरफ देखा तो उसका सारा गुस्सा काफूर हो चुका था और वह किसी गहरे सोच में डूबी लग रही थी; वह मेरी बात से सहमत नहीं लगती थी। मुझे तो उसके हाव-भाव से लगा कि वह कहना चाह रही है कि मर्द क्या समझें औरत का जीवन।
लक्षमण की उर्मिला के दर्द को तो तुलसी दास जी भी नही समझ पाये। वह तो केवल सीता जी के त्याग को समझ पाये। उर्मिला के त्याग तथा दर्द को समझने के लिये नव-युग में मैथली शरण गुप्त को जन्म लेना पड़ा।
हा स्वामी! कहना था क्या क्या
कह न सकी कर्मों का दोष!
पर जिसमें सन्तोष तुम्हे हो
मुझे है सन्तोष!
वह क्या इस पर विशवास करती थी, मालुम नहीं, कह नहीं सकता। पर इस उर्मिला के दर्द को क्या उसका लक्षमण या कोई और समझेगा?
मैं एक बात अवश्य जानता हूं कि उर्मिला एक साधारण लड़की नहीं थी वह एकदम सुलझी, समझदार, बुधिमान, वा जीवन्त लड़की थी। उसने पुरानी बातों को भुला कर नया जीवन अवश्य शुरू कर दिया होगा। उसका एक भाई विदेश में था क्या उसी के पास चली गयी। कुछ पता चलेगा तो बतांऊगा। आप में से तो बहुत लोग विदेश में रहतें हैं कभी आपको उर्मिला मिले तो कहियेगा कि हम सब उसे याद करते हैं; मिलना चाहेंगे और मुन्ने की मां भी मिलना चाहेगी।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
यह लेख मेरे उन्मुक्त चिठ्ठे पर कई कड़ियों मे प्रकाशित चिठ्ठियों को संग्रहीत कर के बनाया गया है। यदि आप इसे, चिठ्ठे पर पढ़ना चाहें तो इसकी अन्तिम कड़ी यहां पर देखें। वहीं से पहले की कड़ियों पर जा सकते हैं।
This story is very similar to Film “Damini”. It’s very easy to say…Urmila should fight for her rights. Still…as she is the only one who need to initiate efforts, I would say follow the “Do or Die” attitude.
BTW, I liked some of the posts. Keep writing…
-Rains
बहुत सशक्त कहानी है…
Nice story.
क्या कहुँ मैं, कहने के लिये शब्द नहीँ है मेरे पास वाकई लाजवाब है आपकी कहानी।
Very well, its a very interesting story.
sabdh nahi ! kahani padane ke baad kuch der tak mejhe u laga ki mai us kahani me hi tha….bas kuch der tak us urmila se milane ki chahat balwatihane lagi..bahut aachi kahani..mera nivedan aap me hunar hai age bhi likhate rahe…
कहानी बहुत मार्मिक थी। बहुत अच्छी लगी।
khani achhi lagi or man ker rha ki urmila ko milun
Very nice story!…keep writing…..all d best..
This story shows the present time of family, I like it.
आज के समाज मे इस तरह की बहुत सी उर्मिला मिल जायेँगी जो अपने रिस्तेदारोँ के कारण से बरवाद हो गयी
आदरिणय मैं आपकी निम्न बातों से सहमत नहीं हूँ —
अच्छा स्वभाव था, बुद्धिमान भी थी। वह सब लड़कों से बात करती थी और अक्सर क्लास में, बेन्च खाली रहने के बावजूद भी, लड़कों के साथ बेन्च में बैठ जाती थी। वह इस बात का ख्याल रखती थी कि वह सबसे बात करे तथा सब के साथ बैठे
क्योंकि बेन्च खाली रहने के बावजूद भी, लड़कों के साथ बेन्च में बैठना लडकी के लिए अच्छी बात नहीं है। शास्त्रों मैं पुरूष व स्त्री की उपमा घी व अग्नि से की गई है। अत्त: लडकी व लडकों को यथा संभव अलग अलग बैठना चाहिए। इस दृष्टकोण से साथ साथ बैठना अवगुण है। इससे कहा जा सकता है कि वह बुद्धिमान नहीं थी। ……. कृपया कहानी मैं यह सुधार करनें की कृपा करें या स्पष्टीकणा देवें
धन्यबाद
koi bhi ladki & ladka puri tarah purna nahi hota ye hame SHIVE JI ki
ardhnareshvari rup se pata chalta hai ki sab main ek hi bhagawan ka niwas hota hai koi alag nahi
kal yug ke is samye sab kuchh viprit hone laga hai app to dekha to rahe ho na .aarkshan ke mamale main bhi sab ko barabar adhikar mil rahe hai,hame samjhana chahiye sabhi ko samana adhikar milana chahiye
bat rahi aap ki aag aur ghi ye to vastu per puri tarah lagu hogi NA ki puri manav per lagu hogi
yahi bhi apvad hai ki sabhi bachhe puri tarah surichit janm nahi hota
kisi ki to tin tin par,ek ek hath hote ya to chodveye paidha hote hai
esi lia ladka & larki ki niyat saf ho to ye bhi apvad ho ja ta hai bat kewal
sachhe pyar ki hai jo kuchh nahi magata hai ye hi ek pul hai jo sabhi ko sabhi se jodta hai
agar aap ko galat lage to hame maf karana hamne jyad hi kuchh ghasita bato ko
very interesting
बहुत बढिया
raj
this is the life. this story said that life is more complicated.
बहुत अच्छा
aap ki story thik hi hai
kahani ko thora romantik banaye
कहानी बहुत अच्छी थी
best
nice story