‘बसेरे से दूर’, बच्चन जी की आत्म कथा का तीसरा भाग है। इसमें उस समय की बात है जब वे इलाहाबाद से दूर रहे।
इस भाग में लिखी घटनाओं के बारे में विवाद है। मेरे कई मित्र इलाहाबाद के पुराने बाशिन्दे रहे हैं। उनके पिताओं से कभी कभी मुलाकात होती है। एक बार जब मैंने इस भाग कि कुछ घटनाओं (जैसे, तेजी जी के साथ घटित घटना, या फिर कैम्ब्रिज़ से लौटते समय मिस्र में भारतीय राजदूत की चर्चा) की बात की तो उनका कहना था कि यह घटनायें सही तरह से वर्णित नहीं हैं और वास्तविकता इसके विपरीत है। मैं नहीं जानता कि क्या सच है पर लगा कि इस बारे में विवाद अवश्य है।
इस भाग में बच्चन जी के इलाहाबाद से जुड़े खट्टे मीठे अनुभव हैं – ज्यादातर तो खट्टे ही हैं। यदि आप इलाहाबाद प्रेमी हैं, तो शायद यह भाग आपको न अच्छा लगे, पर एक जगह बच्चन जी इलाहाबाद के बारे में यह भी कहते हैं।
‘इलाहाबाद भी क्या अजीबोगरीब शहर है। यह इसी शहर में सम्भव था कि एक तरु तो यहां ऐसी नई कविता लिखी जाय जिस पर योरोप और अमरीका को रश्क हो और दूसरी तरु यहां से एक ऐसी पत्रिका प्रकाशित हो जिसका आधुनिकता से कोई संबंध न हो – संपादकीय को छोडकर। पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी “सरस्वती” को द्विवेदी युग से भी पीछे ले जाकर जिलाए जा रहे थे, आश्चर्य इस पर था।‘
तो दूसरी जगह यह भी कहते हैं,
‘इलाहाबाद की मिटटी में एक खसूसियत है – बाहर से आकर उस पर जमने वालों के लिये वह बहुत अनुकूल पडती है। इलाहाबाद में जितने जाने-माने, नामी-गिरामी लोग हैं, उनमें से ९९% आपको ऐसे मिलेंगे जो बाहर से आकर इलाहाबाद में बस गए, खासकर उसकी सिविल लाइन में – स्यूडो इलाहाबादी। और हां, एक बात और गौर करने के काबिल है कि इलाहाबाद का पौधा तभी पलुहाता है, जब वह इलाहाबाद छोड दे।‘
इसमें कुछ तो सच है। नेहरू, सप्रू, काटजू, बैनर्जी वगैरह तो इलाहाबाद में बाहर से आये और फूले फले। नेहरू की सन्तानें और आगे तब बढ़ी जब वे इलाहाबाद से बाहर गयीं। यह बात हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन पर भी लागू होती है – वे तभी फूले फले जब पहुंचे बॉलीवुड पर यह बात बच्चन जी के लिये सही नहीं है।
मेरे इलाहाबादी मित्र कहते हैं कि,
‘इलाहाबाद शहर अपने मैं अनूठा है – न ही किसी शहर ने देश को इतने प्रधान मन्त्री दिये, न ही साहित्यकार, न ही इतने सरकारी अफसर, न ही इतने वैज्ञनिक, और न ही न्यायविद। इससे सम्बन्धित लोग दुनिया में फैले हैं।’
वे लोग यह भी कहते हैं कि,
‘जहां तक साहित्यकारों की बात है जब तक वे इलाहाबाद में रहे सरस्वती उनके साथ रहीं, जब उन्होंने इलाहाबाद छोड़ा लक्ष्मी तो मिली, पर सरस्वती ने साथ छोड़ दिया। उन्हें प्रसिद्धि उस काम के लिये मिली जो उन्होंने इलाहाबाद में किया – चाहें वे हरिवंश राय बच्चन हों या धर्मवीर भारती। सुमित्रा नन्दन पन्त, या महादेवी वर्मा, या राम कुमार वर्मा इस लिये लिख पाये क्योंकि वे इलाहाबाद में ही रहे।
हरिवंश राय बच्चन माने या न माने उन्होने अपनी सबसे अच्छी कृति (मधुशाला) उनके इलाहाबाद रहने के दौरान लिखी गयी। उन्हें जो भी प्रसिद्धि मिली वह उन कृतियों के लिये मिली, जो उन्होने इलाहाबाद में लिखी।’
मैं साहित्य का ज्ञाता नहीं हूं। मैं नहीं कह सकता कि यह सच है कि नहीं और न ही कुछ टिप्पणी करने का सार्मथ्य रखता हूं।
क्या इलाहाबाद की मिट्टी कुछ अलग है? क्या इलाहाबाद वासी अपने शहर के लिये एहसान फरामोश हैं: मालुम नहीं – इलाहाबाद वासी ही जाने।
इलाहाबाद के बारे में सदियों से लिखा जा रहा है – शायद इतना जितना किसी और शहर के बारे में नहीं। अरविन्द कृष्ण मेहरोत्रा ने ‘द लास्ट बंगलो’ (The Last Bunglow: writings on Allahabad) नामक पुस्तक में इन सारे लेखों को संकलित किया है।
ह्स्युआन त्संग (Hsiuan Tsang) सातवीं शताब्दी में भारत आये थे। उन्होंने उस समय इलाहाबाद के कुंभ मेले के बारे में लिखा। इस पुस्तक में, इलाहाबाद के बारे में लिखने वाले अन्य प्रमुख लोग हैं गालिब (Ghalib), रुडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling), मार्क ट्वैन (Mark Twain), जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru), अमर नाथ झा (Amar Nath Jha), राजेश्वर दयाल (Rajeshwar Dayal), सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi ‘Nirala’, नयनतारा सहगल (Nayantara Sehgal), सईद ज़ाफरी (Saeed Jafrey), वेद मेहता (Ved Mehta), पंकज मिश्रा (Pankaj Misra), और कई अन्य। इन सब के लेख इसी पुस्तक में संकलित हैं। इन लोगों ने कुछ न कुछ समय इलाहाबाद में बिताया है। यदि आपका इलाहाबाद से कोई संबन्ध है, या इन लोगो से – तो ‘द लास्ट बंगलो’ पुस्तक को पढें। यह इलाहाबाद को उनके नज़रिये देखती है।
बच्चन जी ने अपनी आत्मकथा निम्न चार भागों खन्डो में लिखी है
- क्या भूलूं क्या याद करूं;
- नीड़ का निर्माण;
- बसेरे से दूर;
- दशद्वार से सोपान तक।
मैंने इनकी समीक्षा कुछ कड़ियों में अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर की है। यहां पर उन्हें संकलित कर चार चिट्ठियों में रख रहा हूं। प्रत्येक चिट्ठी पर उनकी जीवनी के एक भाग की समीक्षा रहेगी। मैंने बच्चन जी की जीवनी किसी खास कारण से पढ़नी शुरू की। इस कारण के बारे में आप मेरी चिट्ठी, ‘हरिवंश राय बच्चन – विवाद‘ पर पढ़ सकते हैं। यह कॉपीराइट का उल्लघंन होगा कि नहीं – इस बारे में आप मेरी चिट्ठी, ‘मुजरिम उन्मुक्त, हाजिर हों‘ पर पढ़ सकते हैं।
सांकेतिक चिन्ह
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कमाल का शहर है इलाहाबाद। मैं खुद इलाहाबादी हूं। और, सारी बात बस यही है कि इलाहाबादी पौधा तभी लहलहाता है जब इलाहाबाद छोड़ देता है सौ प्रतिशत सही
बसेरे से दूर तो लगभग पूरी तरह बच्चन जी के केम्ब्रिज प्रवास की गाथा है. इसे विवादित और इलाहाबाद पर केंद्रित आप क्यों कह रहे हैं?
वैसे उनकी आत्म कथा का प्रत्येक खंड अपने आप में अद्भुत है. प्रथम में जिस साफगोई से अपनी जिंदगी के अन्तरंग क्षणों का वर्णन करते हैं वह अविश्वसनीय है. दूसरे में पटरी पर लौटती जिंदगी और संघर्षों का जीवंत वर्णन है.
ये तीसरा भाग उन मुश्किलों की कहानी है जिनसे रूबरू होते हुए भी जीवट के धनी इस खुद्दार इंसान ने अपनी जगह बनाई. केम्ब्रिज में उनके अनुभव पाठक को एकदम बाँध कर रखते हैं. मि. हेन और हफ जैसे मार्गदर्शकों का जिक्र हो या बावा जैसे मित्रों का, अपनी अनेक हृदयस्पर्शी कविताओं के उद्गम की कहानी हो या भावुक ह्रदय कवि का सुदूर देश में कठिनाइयों में पड़ी पत्नी और बच्चों की फ़िक्र का वर्णन, सभी मन को छूते हैं.
चारों भाग हमने पिछले अठारह माह में पढ़े हैं. प्रथम और तृतीय विशेष रूप से पसंद हैं.
आपका आभार इस बढ़िया लेख के लिए.
प्रेत विनाशक जी,
आप ठीक कह रहे हैं। दूसरी पंक्ति कुछ अलग अर्थ दे रही थी। उसे ठीक कर दिया है।
विवाद रहने का कारण इस चिट्ठी में इंगित किया है – उन्मुक्त
उन्मुक्त जी, आपके चिट्ठे पर कमेंट्स का फॉण्ट साइज बहुत छोटा है. पढने में कठिनाई हो रही है. कुछ हो सकता है क्या?
प्रेत विनाशक जी,
ब्लॉगर के चिट्ठे में फॉन्ट बड़ा करना आसान है। वर्डप्रेस के कुछ टेम्पलेट में भी फॉन्ट बड़ा करना आसान है पर जिस टेम्पलेट पर मेरा यह चिट्ठा है उसमें फॉन्ट बड़ा करने में मुश्किल होती है। इसके लिये प्रत्येक पैराग्राफ में HTML कोड लिखना पड़ता है। यह काफी समय लेता है।
पढ़ने के लिये यदि आप चाहें तो बहुत आसानी से फॉन्ट साइज़ बड़ा कर सकते हैं क्योंकि हर वेब ब्रॉउसर में देखने के लिये फॉन्ट बड़े करने की सुविधा होती है।
मैं फयरफॉक्स पर काम करता हूं। इसमें View→Zoom→Zoom In में जायें फॉन्ट साइज़ जितना चाहें उतना बड़ा कर लें -उन्मुक्त
hame kabhi harivanshrai bachhan ji ki aatma katha padhi nahi,magar is padhkar bahut achha laga.
हमने यह किताब नहीं पढ़ी…अंश अच्छे लगे. अब ढ़ूंढ़ता हूँ इसे. आभार आपका/
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