इस चिट्ठी में वेब के इतिहास, उसके आविष्कार, उसके भविष्य, उसके कारण उठ रही मुश्किलों, सवालों, कानूनी अड़चनों और उनके समाधान के बारे में चर्चा की गयी है। यह लेख मेरे उन्मुक्त और छुट-पुट चिट्ठे पर कई कड़ियों में प्रकाशित हो चुका है। इसकी अलग अलग कड़ियों को आप नीचे दिये गये लिंक पर चटका लगा कर पढ़ सकते हैं।
इसकी अधिकतर कड़ियों को, आप सुन भी सकते हैं। सुनने के लिये नीचे लिंक के बगल में ब्रैकेट ( ) के अन्दर लिखे लिंक पर चटका लगायें। अधिकतर ऑडियो फाइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप –
- Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
- Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
- Linux पर सभी प्रोग्रामो में,
टिम बरनर्स् ली (►)।। इंटरनेट क्या होता है (►)।। वेब क्या होता है (►)।। वेब २.० (►)।। सॅमेंटिक वेब क्या है? ( ►)।। इंटरनेट का प्रयोग – मौलिक अधिकार है।। लिकिंग, क्या यह गलत है (►)।। चित्र जोड़ना ठीक नहीं (►)।। बैंडविड्थ की चोरी – क्या यह गैर कानूनी है (►) ।। बैंडविड्थ की चोरी – कब गैरकानूनी है (►)।। फ्रेमिंग भी ठीक नहीं ( ►)।। डोमेन नाम विवाद क्या होता है (►)।। समान डोमेन नाम विवाद नीति, साइबर और टाइपो स्कवैटिंग (►)।। की वर्ड और मॅटा टैग विवाद (►)।। गोलमाल है भाई गोलमाल (►)।। गाना, विडियो अपलोड करने वालों – सावधान।। अन्तरजाल पर कानून में टकराव (►)।। समकक्ष कंप्यूटर के बीच फाइल शेयरिंग (►)।। शॉ फैनिंग, नैपस्टर सॉफ्टवेयर, और उस पर चला मुकदमा (►)।। कज़ा केस (►)। ग्रॉकस्टर केस (►)।। ग्रॉकस्टर केस में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (►)।।
अन्तरजाल, नव युग का सबसे रोचक आविष्कार है। इसने मानव सभ्यता को जितना अधिक प्रभावित किया उससे अधिक किसी और आविष्कार ने नहीं। आइये सबसे पहले इसके आविष्कारक ‘टिम बरनर्स् ली’, के बारे में जाने।
(Cartoon by Peter Steiner. The New Yorker, July 5, 1993 issue [Vol.69 no. 20] page 61 – taken from here.)
टिम बरनर्स् ली
ऑर्डर ऑफ मेरिट, इंगलैंड का सबसे महत्वपूर्ण सम्मान है। यह वहां की महारानी द्वारा कला, विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिये दिया जाता है। टिम बरनर्स् ली को, १३ जून २००७ को, इससे सम्मानित किया गया। इसके पहले २००१ में, उन्हें रॉयल सोसायटी का सदस्य बनाय गया। २००४ में नाईटहुड की उपाधि दी गयी थी। क्या किया है उन्होने? क्यों दिया गया है, उन्हें यह सम्मान?
लगता है टिम को नाई के पास जा ना चाहिये 🙂
उन्हें यह सम्मान, उस कार्य के लिये दिया गया है जिसका हम सब से संबन्ध है – यानि कि अंतरजाल से है। उन्होने वेब तकनीक का आविष्कार किया है। २१वीं शताब्दी के संपर्क साधन के आविष्कार के लिये, टाइम पत्रिका ने उन्हें, २०वीं शताब्दी के १०० महान वैज्ञानिकों और विचारकों में चुना है।
टिम का जन्म ८ जून १९५५, इंगलैंड में हुआ था। माता पिता दोनो गणितज्ञ थे। कहा जाता है कि उन्होने टिम को गणित हर जगह, यहां तक कि खाने की मेज़ पर भी बतायी गयी। टिम ने अपनी उच्च शिक्षा क्वीनस् कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से पूरी की। विश्वविद्यालय में उन्हें अपने मित्र के साथ हैकिंग करते हुऐ पकड़ लिया गया था। इसलिये उन्हें विश्वविद्यालय कंप्यूटर का प्रयोग करने से मना कर दिया गया। १९७६ में, उन्होने विश्विद्यालय से भौतिक शास्त्र में डिग्री प्राप्त की।
CERN, (सर्न) यूरोपियन देशों की नाभकीय प्रयोगशाला है। टिम, १९८४ से वहीं फेलो के रूप में काम करने लगे। यहीं उन्होंने वेब का आविष्कार किया। टिम, बाद में अमेरिका चले गये। १९९४ में उन्होने, मैसाचुसेटस् इंस्टिट्युट ऑफ टेकनॉलोजी में World Widde Web Cosortium (W3C) की स्थापना की। यह वेब के मानकीकरण में कार्यरत है।
अन्तरजाल का सफर
इंटरनेट क्या होता है
१९७० के दशक में, विंट सर्फ (Vint Cerf) और बाब काहन् (Bob Kahn) ने एक ऐसे तरीके का आविष्कार किया, जिसके द्वारा कंप्यूटर पर किसी सूचना को छोटे-छोटे पैकेट में तोड़ा जा सकता था और दूसरे कम्प्यूटर में इस प्रकार से भेजा जा सकता था कि वे पैकेट दूसरे कम्प्यूटर पर पहुंच कर पुनः उस सूचना कि प्रतिलिपी बना सकें – अथार्त कंप्यूटरों के बीच संवाद करने का तरीका निकाला। इस तरीके को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल {Transmission Control Protocol (TCP)} कहा गया।
सूचना का इस तरह से आदान प्रदान करना तब भी दोहराया जा सकता है जब किसी भी नेटवर्क में दो से अधिक कंप्यूटर हों। क्योंकि किसी भी नेटवर्क में हर कम्प्यूटर का खास पता होता है। इस पते को इंटरनेट प्रोटोकॉल पता {Internet Protocol (IP) address} कहा जाता है। इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) पता वास्तव में कुछ नम्बर होते हैं जो एक दूसरे से एक बिंदु के द्वारा अलग-अलग किए गए हैं।
सूचना को जब छोटे-छोटे पैकेटों में तोड़ कर दूसरे कम्प्यूटर में भेजा जाता है तो यह पैकेट एक तरह से एक चिट्ठी होती है जिसमें भेजने वाले कम्प्यूटर का पता और पाने वाले कम्प्यूटर का पता लिखा होता है। जब वह पैकेट किसी भी नेटवर्क कम्प्यूटर के पास पहुँचता है तो कम्प्यूटर देखता है कि वह पैकेट उसके लिए भेजा गया है या नहीं। यदि वह पैकेट उसके लिए नहीं भेजा गया है तो वह उसे आगे उस दिशा में बढ़ा देता है जिस दिशा में वह कंप्यूटर है जिसके लिये वह पैकेट भेजा गया है। इस तरह से पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह भेजने को इंटरनेट प्रोटोकॉल {Internet Protocol (IP)} कहा जाता है।
अक्सर कार्यालयों के सारे कम्प्यूटर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और वे एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। इसको Local Area Network (LAN) लैन कहते हैं। लैन में जुड़ा कोई कंप्यूटर या कोई अकेला कंप्यूटर, दूसरे कंप्यूटरों के साथ टेलीफ़ोन लाइन या सेटेलाइट से जुड़ा रहता है। अर्थात, दुनिया भर के कम्प्यूटर एक दूसरे से जुड़े हैं। इंटरनेट, दुनिया भर के कम्प्यूटर का ऐसा नेटवर्क है जो एक दूसरे से संवाद कर सकता है।
वेब क्या होता है
टिम बरनस् ली ने १९८० के दशक में, सर्न (CERN) जो कि यूरोपियन देशों की नाभकीय लेबॉरेटरी है, में काम करना शुरू किया। वहां हर तरह के कंप्यूटर थे जिन पर अलग अलग मानक पर सूचना रखी जाती थी। टिम का मुख्य काम था कि सूचनाएं एक कंप्यूटर से दूसरे पर आसानी से ले जायीं जा सकें। यह करते हुऐ उन्हे लगा कि क्या सारी सूचनाओं को इस तरह से पिरोया जा सकता है कि वे एक जगह ही लगें। बस इसी का हल सोचते, सोचते उन्होने वेब को आविष्कार किया और दुनिया का पहला वेब पेज ६ अगस्त १९९१ को सर्न में बना।
इस तकनीक में उन्होंने हाईपर टेकस्ट मार्कअप भाषा (एच.टी.एम.एल.) {Hyper Text Markup Language (HTML)} और हाईपर टेकस्ट ट्रान्सफर प्रोटोकोल (एच.टी..टी.पी.) {Hyper Text Transfer Protocol HTTP} का प्रयोग किया।
एच.टी.एम.एल. कम्प्यूटर की एक भाषा है जिसके द्वारा सूचना प्रदर्शित की जाती है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि किसी अन्य सूचना को उससे लिंक किया जा सकता है। सारी सूचनायें किसी न किसी वेब-साइट या कम्प्यूटर पर होती हैं जिसका अपना पता होता है जिसे यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (यू.आर.एल.) {Uniform Resource Locator (URL)} कहते हैं। एच.टी.एम.एल. में लिखे किसी पेज को दूसरे पेज में संदर्भित करने के लिये उसके यू.आर.एल. उस पेज में डालना (embed करना) होता है। यह लिंक किसी भी वेब पेज में एक खास तरह से, अक्सर नीले रंग से या फिर नीचे लाईन खिंची तरह से दिखायी पड़ती है। माऊस को किसी भी लिंक पर ले जाने पर करसर का स्वरूप बदल जाता है।
आप लिंक पर चटका लगा कर संदर्भित पेज पर पहुंच सकते हैं। सूचना का इस तरह से प्राप्त करना या भेजना जिस तकनीक या प्रोटोकॉल के अंतर्गत होता है उसे हाईपर टेक्सट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (एच.टी..टी.पी.) {Hyper Text Transfer Protocol HTTP} हाइपरटेक्ट ट्रान्सफर प्रोटोकाल (H.T.T.P.) कहा जाता है।
सारे वेब पेज, एक तरह से जुड़े हैं। दुनिया भर में वेबपेजों का जाल बिछा है। इसलिये इस तकनीक का नाम विश्व व्यापी वेब {World Wide Web (www)} या केवल वेब (web) कहा जाता है। वेब पेज के पहले अक्सर http या फिर www लिखा होता है जो यह दर्शाता है। हांलाकि यह अब इतना सामान्य हो गया है कि इसके लिखने की जरूरत नहीं है।
टिम ने एच.टी.एम.एल. भाषा या फिर एच.टी..टी.पी. का आविष्कार नहीं किया। उसने इन सब तकनीकों को जोड़कर सूचना भेजने और प्राप्त करने का तरीका निकाला। यह तब हुआ जब टिम सर्न में काम कर रहे थे। यह सर्न की बौद्घिक संपदा थी। सर्न ने टिम के कहने पर, ३० अप्रैल १९९३ को इस तकनीक को मुक्त कर दिया। अब यह न केवल मुफ्त में बल्कि मुक्त रूप से उपलब्ध है। इसके लिए किसी को भी फ़ीस न तो सर्न को न ही किसी और को देनी पड़ती है।
इंटरनेट और वेब में क्या अंतर है
इंटरनेट और वेब में कुछ अंतर है। इंटरनेट दुनिया भर के कंप्यूटरों का जाल है जो एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। वेब, संवाद करने का एक खास तरीका है।
सर्न के द्वारा वेब तकनीक को मुफ्त और मुक्त तरीके से उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा फायदा हुआ कि यह सूचना भेजने तथा सूचना प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका हो गया। यह इतना महत्वपूर्ण है कि अक्सर लोग इंटरनेट और वेब को एक दूसरे का पर्यायवाची समझते हैं। यह बात किसी स्टैंडर्ड या मानक को मुक्त रूप से उपलब्ध कराने के महत्व को भी दर्शाती है।
वेब २.०
ओ राइली (O’Reilly) ने सन २००४ में मीडिया सम्मेलन किया था। वेब २.० (web 2.0) नाम तभी से लोकप्रिय हुआ। इस नाम के कारण लोग अक्सर समझते हैं कि यह वेब की अगली पीढ़ी है पर यह सच नहीं है। इसमें तकनीक की कोई नयी बात नहीं है। ओ राइली के अनुसार,
‘Web 2.0 is the business revolution in the computer industry caused by the move to the Internet as platform, and an attempt to understand the rules for success on that new platform.’
कंप्यूटर की दुनिया के लोग अंतरजाल को कार्यक्षेत्र बना रहें हैं। वेब २.० व्यापार और काम करने के तरीके का आन्दोलन है यह समझने की कोशिश भी है कि इसमें कैसे सफलता पायी जाय।
कुछ अन्य इसे इस तरह से परिभाषित करते हैं,
‘Web 2.0 is a knowledge-oriented environment where human interactions generate content that is published, managed and used through network applications in a service-oriented architecture.’
वेब २.० सूचना प्राप्त करने का नया तरीका है जहां लोग अंतरजाल का साझे में प्रयोग कर सेवायें प्रदान कर रहें हैं।
विकिपीडिया, फ्लिकर आदि यह सब वेब २.० के उदाहरण हैं
सॅमेंटिक वेब
वेब, पन्नों को जोड़ना पर डाटा को नहीं। यदि यह डाटा को भी जोड़ सके तो इससे बेहतर सूचना प्राप्त की जा सकती है। सॅमेंटिक वेब (semantic web) में यह हो सकेगा। वेब पन्नों के लिये जो वेब के द्वारा संभव हुआ वही सब डाटा के लिये सॅमेंटिक वेब में हो सकेगा। यह न केवल सूचना को ज्यादा अच्छी तरीके से परिभाषित करेगा पर इसके कारण, आप अन्तरजाल से, बेहतर सूचना भी प्राप्त कर सकेंगे। आप इसके बारे में यहां विस्तार से पढ़ सकता हैं। इस पर एक और बेहतरीन लेख साइंटिफिक अमेरिकन के दिसंबर २००७ अंक में भी छपा है।
इस तकनीक का एक अच्छा उदाहरण ज़ेमन्टा डाट कॉम है।
इंटरनेत का प्रयोग – मौलिक अधिकार है
अन्तरजाल पर कॉपीराइट का उल्लंघन रोकना मुश्किल है। इसको रोकने के लिये नये नये तरीके ढूंढे जा रहे नये नये कानून भी बन रहे हैं। नये कानूनों की वैधता को भी न्यायालयों में चुनौती दी जा रही है। तकनीक के विकास के साथ, कानून का भी विकास हो रहा है।
फ्रांस ने कुछ दिन पहले, अन्तरजाल पर कॉपीराइट का उल्लंघन रोकने के लिये थ्री स्ट्राईक कानून (three strike law) बनाया। मोटे तौर से, थ्री स्ट्राईक कानून उन कानूनों को कहा जाता है जो तीन बार या उससे अधिक बार कानून तोड़ने वालों के लिये कड़ी सजा का प्रावधान करते हैं। इन तरह के कानून को अभ्यस्त अपराधी कानून (Habitual Offender Laws) भी कहा जाता है।
फ्रांस के कानून के अन्दर निम्न सजा देने का प्रावधान था:
- पहली बार कॉपीराइट का उल्लंघन करने पर चेतावनी;
- दूसरी बार उल्लंघन करने पर अन्तरजाल की सुविधा से निलंबन; और
- तीसरी बार उल्लंघन करने पर अन्तरजाल की सुविधा से एक साल का प्रतिबंध,
इस कानून के अन्दर,
- इस काम को अन्ज़ाम देने की ज़िम्मेदारी, हादोपी (La Haute Autorité pour la diffusion des œuvres et la protection des droits sur Internet, or HADOPI) नामक सरकारी संस्था को सौंपी गयी थी; और
- आरोपी को सिद्ध करना था कि उसने उल्लंघन नहीं किया है।
यह चित्र कॉन्स्टित्यूसन काउंसिल की वेबसाइट से है
कॉन्स्टिट्यूशनल काउंसिल (Constitutional council) फ्रांस की सबसे ऊंची संस्था है जो सरकारी काम की वैधता देखती है। इसके सामने, थ्री स्ट्राईक कानून की वैधता को चुनौती दी गयी। इसके मुताबिक,
- मानव एवं नागरिक अधिकार घोषणा १७८९ (Declaration on the Rights of Man and of the Citizen 1789) (घोषणा) का अनुच्छेद ११ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of communication and expression) देता है। अन्तरजाल का व्यापक विकास हुआ है और लोकतांत्रिक जीवन में भाग लेने के लिए एवं विचारों और राय की व्यक्त करने के लिये, इसका अपना महत्व है। इसलिये अन्तरजाल का प्रयोग, घोषणा के अन्दर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है।
- घोषणा का अनुच्छेद ९, आपराधिक मामलों व्यक्ति के बेगुनाही का सिद्धान्त (principle of presumption of innocence) स्थापित करता है। यह किसी को कसूरवार नहीं मानता। लेकिन थ्री स्ट्राईक कानून, आरोपित व्यक्ति कसूरवार मानता है और उसे ही अपने को बेगुनाह साबित करने की बात करता है।
- इन दो महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकारों को देखते हुऐ, इस तरह की शक्ति सरकारी संस्था हादोपी को नहीं दी जा सकती। इस तरह की शक्ति केवल न्यायालय को ही दी जा सकती है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इस फैसले को देते समय, कॉन्स्टिट्यूशनल काउंसिल ने कहा कि अन्तरजाल का प्रयोग, घोषणा के अन्दर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। अथार्त यह मौलिक अधिकार है।
क्या अपने देश के न्यायालय भी इसी तरह का फैसला देगें? क्या अपने देश में भी,अन्तरजाल का प्रयोग, अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों के अन्दर है? देखिये, यदि यह सवाल अपने देश में उठता है तो न्यायलय का परला किस तरफ भारी होता है।
लिकिंग क्या है?
क्या लिंकिंग गलत है?
वेब तकनीक की ख़ासियत है कि इसमें एक वेबसाइट दूसरे से जुड़ी रहती है। इसके द्वारा कोई भी प्रयोगकर्ता एक वेब-पन्ने से दूसरे वेब-पन्ने पर आसानी से जा सकता है। किसी भी वेब-साइट का पहला पन्ना, मुख्य पृष्ठ (Home page) कहलाता है। जब लिकिंग मुख्य पृष्ठ से की जाती है तो उसे केवल लिकिंग (Linking) कहा जाता है। अक्सर किसी भी वेब-साइट पर सूचनाऐँ, मुख्य पृष्ठ के अन्दर, अलग वेब-पन्ने पर होती हैं। जब मुख्य पृष्ठ के अतिरिक्त, उसके किसी दूसरे पृष्ठ से लिंक दी जाती है तो उसे Deep Linking कहा जाता है।
वेब तकनीक का अर्थ है एक दूसरे से जुड़े रहना। इसलिये इसे, वेब (Web) या जाल कहा जाता है। यदि आप कोई सूचना, वेब पर प्रकाशित करते हैं तो इसका अर्थ है कि आपने हर किसी को इस बात का लाइसेंस दे दिया है कि वह आपकी सूचना से जुड़ सकता है। सच बात तो यह है कि यह फ़ायदेमंद भी होता है। वेब-साइटों की आमदनी का मुख्य जरिया विज्ञापन है और विज्ञापन देने वाले इस बात का ध्यान रखते हैं कि उस वेब-साइट पर कितनी बार लोग आते है। जितनी ज्यादा लिंक होंगी, न केवल उस वेब-साइट पर उतने ही ज्यादा लोग आयेंगे पर सर्च इंजन के लिये वह वेब-साइट उतनी ही ज्यादा महत्वपूर्ण होगी। ज्यादा लिंक वाली वेबसाइट, सर्च करते समय ऊपर आयेगी।
एक बार किसी ने टिम बरनस् ली (वेब के आविष्कारक) से उनके वेब-पन्ने को लिंक करने की अनुमति चाही। टिम का जवाब था,
‘मैं इसके बारे में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मुझे यह मना करने का अधिकार नहीं है।’
लिंक करना, उसी तरह का संदर्भ है जैसे कि आप किसी पुस्तक या लेख को संदर्भित करते हैं। जिस तरह से इस तरह के संदर्भ को मना नहीं किया जा सकता, उसी तरह से किसी को वेब साइट से लिंक करने से भी मना नहीं किया जा सकता है। यदि आप लिंक नहीं देना चाहते हैं तो वेब पर लिखते ही क्यों हैं। लिंक देने से, कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं होता है पर यह बात शायद न केवल इमेज लिकिंग और फ्रेमिंग के लिये सच नहीं है।
चित्र जोड़ना – यह ठीक नहीं
चित्र एक प्रकार की अभिव्यक्ति है और यह उस व्यक्ति का कॉपीराइट है जिसने वह चित्र बनाया है, अथवा खींचा है, या उस पर मालिकाना हक है।
अक्सर ऎसा भी होता है कि आप केवल चित्र को लिंक करते हैं जो किसी और वेब पन्ने पर होता है। इस कारण वह चित्र आपकी वेब साइट पर दिखाई पड़ने लगता है। इसे इमेज लिकिंग (Image Linking) कहते हैं। यह उसके मालिक की बिना अनुमति के करना गलत है। क्योंकि चित्र पर किसी और का कॉपीराइट है और आप उसकी अनुमति के बिना उसे अपने वेब पेज पर नहीं दिखा सकते। यह न केवल कॉपीराइट का उल्लंघन है पर ट्रेड मार्क का भी उल्लंघन हो सकता है।
अक्सर लोग, अपने चित्रों को, कुछ शर्तों के साथ दूसरों को भी प्रकाशित करने की अनुमति देते हैं। ऎसी स्थिति में आप दूसरे वेब पन्ने के चित्र अपने वेब पन्ने पर प्रकाशित कर सकते हैं पर आपको वह चित्र उसी शर्तों के अंतर्गत प्रकाशित किया जाना चाहिये। उदाहरणार्थ,
विकिपीडिया, विकिमीडिया का उपक्रम है। इसके अलग अलग चित्र अलग शर्तों के साथ प्रकाशित हैं। यदि आप उन्हें अपने वेब-पन्ने पर लिंक दे कर या वहां से डाउनलोड कर प्रकाशित करते हैं तो आपको उन शर्तों को मानना पड़ेगा अन्यथा यह कॉपीराइट का उल्लंघन होगा।
अक्सर लोग किसी चित्र को (इंटरनेट पर कंही से भी) अपने कंप्यूटर पर कॉपी कर फिर उसे अपनी पोस्ट पर चिपका लगा देते हैं। यह गलत है। यह तभी किया जा सकता है जब वह चित्र कॉपीराइट के अन्दर न हो या फिर कॉपीराइटेड सामग्री का प्रयोग कानूनी तौर पर बिना अनुमति से किया जा सकता हो।
क्या दूसरे के चित्र को अपने वेबसाइट पर दिखाना बैंडविड्थ की चोरी है
किसी दूसरी वेबसाइट के चित्र को अपने वेबसाइट पर जोड़ने; या फिर कहीं और पर होस्ट की गयी ऑडियो या वीडियो फाइल को अपने वेबसाइट पर जोड़ने को – डायरेक्ट लिंक (direct link), या रिमोट लिंक (remote link), या हॉटलिंक (hot link) या इनलाइन लिंक (inline link) भी कहा जाता है। जब आप डायरेक्ट लिंक करते हैं, या दूसरी वेबसाइट को फ्रेम करते हैं – तब दूसरे वेबसाइट की कुछ बैंडविड्थ, आपकी वेबसाइट पर डायरेक्ट लिंक या फ्रेम्ड वेबसाइट को दिखाने में खर्च होने लगती है। अथार्त दूसरी वेबसाइट की बैंडविड्थ का प्रयोग, आपके वेबसाइट के लिये होने लगता है। यह एक तरह से दूसरे की बैंडविड्थ की चोरी हुई क्योंकि दूसरी वेबसाइट ने बैंडविड्थ अपने लिये लिये है न कि आपके प्रयोग के लिये।
क्या डायरेक्ट लिंकिंग गैरकानूनी है?
डायरेक्ट लिंकिंग बहुत जगह हो रही है। बहुत से लोग यह करने के लिये लोगों को प्रोत्साहित कर रहें है। इसमें दूसरी वेबसाइट का फायदा भी है – कुछ निम्न उदाहरण देखिये:
- आप जहां भी चिट्टा बनाये चाहे वह वर्ड प्रेस पर हो या ब्लॉगर वह चित्र, विडियो, ऑडियो फाइल जोड़ने की सुविधा देता है। वे कॉपीराटेड सामग्री डालने को स्पष्ट रूप से मना करते हैं; अशलील सामग्री को भी मना करते हैं – फिर यदि डायरेक्ट लिंक करना गैर-कानूनी है तब इसे करने की सुविधा क्यों प्रदान कर रहे हैं। यदि यह गैर-कानूनी है तो वे भी इसमें शामिल हैं;
- जिन वेबसाइट में चित्र, ऑडियो और विडियो फाइलों को अपलोड करने की सुविधा है वे स्वयं आपको एच.टी.एम.एल. कोड बना कर देते हैं कि आप उसे अपने चिट्ठे पर लगा सकें। वे खुद ही आपको अपनी वेबसाइट चोरी करने को कह रहे हैं। क्या वे बाद में कह सकते हैं कि आपने गैर-कानूनी कार्य किया है;
- लगभग सारी वेबसाइट, अपने लोगो की विज़िट बना कर आपको चिट्ठे पर डालने की सुविधा देते हैं। क्या वे बाद में कह सकते हैं कि यह उनके बैंडविड्थ की चोरी है और गैरकानूनी है;
आप किसी तरह की लिंक दें। उससे उस वेबसाइट या चित्र का महत्व बढ़ता है – सर्च इंजिन में वह उपर आता है। यदी आप चित्र जोड़ते है तो उसका भी महत्व बढ़ता है। फिर भी बाद में क्या वह वेबसाइट – बिना नोटिस के – कह सकता है कि यह गैर-कानूनी है; - वेब तकनीक का अर्थ है जुड़ना। यदि कॉपीराइट या फिर ट्रेडमार्क का लफड़ा न हो तो क्या यह मूलभूत बात नकारी जा सकती है। यदि आपको जुड़ना पसन्द नहीं है तो वेब पर क्यों कार्य कर रहे हैं – कोई और माध्यम ढ़ूढ़िये;
- मैंने पेजफ्लेक उन्मुक्त – हिन्दी चिट्ठों और पॉडकास्ट में नयी प्रविष्टियां नामक पेज बनाया है। इस समय पेज-फ्लेक पर सारे हिन्दी चिट्ठियों, मेरे चिट्ठों, और मुन्ने की मां के चिट्ठे की प्रविष्टियां आती हैं। इसमें इस तरह का प्राविधान है कि चिट्ठियों को पोस्ट करते समय उसकी चिट्ठियों के पहले चित्र को भी पोस्ट करे। मैंने अपनी और मुन्ने की मां की चिट्ठियों के लिये यही प्राविधान लिया है क्योंकि इसमें कॉपीराइट और ट्रेडमार्क का लफड़ा नहीं है। यह सार्वजनिक हैं और आप देख सकते हैं। यह मेरे बलॉगर और वर्डप्रेस के चिट्ठों के चित्रों को डायरेक्ट लिंक कर रहा है। चित्र डालने का कार्य मैं नहीं करता हूं पर यह कार्य, यह सुविधा वेबसाइट स्वयं कर रही है या कहूं कि दे रही हैं। यदि यह गैर-कानूनी है तो यह वेबसाइट क्यों गैर-कानूनी सुविधाऐं प्रदान कर रही है;
- यदि आपने गूगल में शेएर्ड् फोल्डर को सार्वजनिक कर रखा है तो जिन चिट्ठों के आप ग्राहक बने हैं उनको दिखाता है और चित्रों को जोड़ता है। बगल का चित्र बैंगलोर से चिट्टाकार बन्धु के शेएर्ड फोल्डर का है जो मेरे वर्डप्रेस के चिट्ठे को दिखा रहा है और उसके चित्र को डायरेक्ट लिंक कर रहा है। यानि कि गूगल वर्ड प्रेस की बैडविड्थ का प्रयोग कर रहा है। क्या गूगल गलत काम कर रहा है?
मेरे विचार से कुछ परिस्थितियों को छोड़, यह गैर-कानूनी नहीं है
बैंडविड्थ की चोरी, किन परिस्थितियों में गैर-कानूनी है
कॉपीराइट किसी मूल अभिव्यक्ति पर, किसी वर्णन पर होता है। यदि उसे प्रकाशित किया गया है तो वह उस व्यक्ति का कॉपीराइट है। इसके लिये उस पर © चिन्ह बना होना या कॉपीराइट की नोटिस लिखी होना, जरूरी नहीं है। कॉपीराइट को आप चाहें तो रजिस्टर करवायें अथवा नहीं पर यह जरूरी नहीं है। यदि आपने रजिस्टर नहीं करवाया है तो भी वह आपका कॉपीराइट रहेगा। यह कॉपीराइट अधिनियम कहता है।
यदि कोई देश वर्ल्ड ट्रेड ऑरगनाइज़ेशन का सदस्य है तो उसे ट्रिप्स के अन्दर कॉपीराइट अधिनियम बनाना पड़ेगा। इसके बारे में आप मेरी पेटेंट चिट्ठी पर पढ़ सकते हैं। यदि आप किसी और की कॉपीराइटेड सामग्री – चित्र, लेख, वीडियो, गीत – अपनी वेबसाइट पर बिना अनुमति के डालते हैं तो वह कॉपीराइट अधिनियम के अन्दर गैर-कानूनी है। इसके लिये आप न केवल हर्जाना देना पड़ सकता है पर आपको जेल भी हो सकती है।
आप अपनी कॉपीराइटेड सामग्री को, अलग अलग तरह से लोगों को प्रयोग करने दे सकते हैं।
- आप बिलकुल मना भी कर सकते हैं,
- आप कुछ शर्तों के साथ उसे प्रयोग करने के लिये दे सकते हैं।
कॉपीराइटेड सामग्री किस प्रकार से प्रयोग की जाएगी – यह इस पर निर्भर करता है कि वह सामग्री किन शर्तों के अन्दर प्रकाशित की गयी है। यदि आप क्रिएटिव कॉमनस् का लाइसेंस देखें तो यह कई प्रकार के हैं और इनकी शर्तें अलग अलग हैं।
यदि लिंक करने की शर्त चित्र प्रकाशित करने का भाग है तो यह कॉपीराइट की शर्त होगी और इसका उल्लंघन गैर कानूनी होगा।
बहुत सारे जालस्थानों आपको मुफ्त में चित्र उपलब्ध कराते हैं। यदि आप इन पर चित्रों को प्रकाशित करने की शर्तो को देखें तो पायेंगे कि यह अलग अलग हैं। कइयों में शर्त है कि आपको चित्र, अपने सर्वर में डाउनलोड करना है। आप चित्रों को डायरेक्ट लिंक नहीं कर सकते हैं। उदाहरण के तौर इनमें से एक वेबसाइट की शर्तें देखिये जिसमें यह बात स्पष्ट रूप से लिखी है।
चित्र में लिखी शर्तों को पढ़ने के लिये उस पर चटका लगायें
यह शर्त, इनके चित्रों को प्रकाशित करने की है और इनके कॉपीराइट का अंग है। यदि आप इसका उल्लंघन करते हैं तो यह ने केवल संविदा का, पर कॉपीराइट का भी उल्लंघन होगा। यह गैर-कानूनी है। यदि किसी वेबसाइट में इस तरह की शर्त है तो यह काम कदापि न करें।
फ्रेमिंग भी ठीक नहीं
तकनीक में किसी एक वेब-पन्ने को न केवल दूसरे से लिंक किया जा सकता है पर किसी भी वेब-पन्ने को दूसरे वेब-पन्ने के अन्दर दिखाया भी जा सकता है। इसे फ्रेमिंग (Framing) कहते हैं। यह चित्र जोड़ने लिकिंग की तरह है। चित्र जोड़ने पर केवल वह चित्र दिखायी देता है और फ्रेमिंग में पूरा वेब-पन्ना दिखायी पड़ता है।
वेब-पन्ना जिसका है, उसी की बौद्घिक संपदा है। जब आप किसी और के वेब-पन्ने को अपने वेब-पन्ने के अन्दर दिखाते हैं। तो यह ठीक नहीं हैं क्योंकि यह न केवल कॉपीराइट का उल्लंघन हो सकता है पर ट्रेड मार्क का भी।
यदि किसी वेब-पन्ने की सामग्री कॉपीलेफ्टेड (copylefted) या मुक्त (open) हो, और आपको उसे पुन: प्रकाशित करने की अनुमति भी हो तब भी फ्रेमिंग करना ठीक नहीं है क्योंकि यह हो सकता है कि उस वेब पन्ने का मालिक, अपने वेब पन्ने को, आपके वेब पन्ने के अन्दर न दिखाना चाहे।
डोमेन नाम विवाद
किसी भी सर्वर को उसके आई.पी. पते (IP address) के द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह आई.पी. पता (IP address) नम्बरों में होता है इसलिये इसे याद करने में मुश्किल पड़ती है। इसे याद करने के लिये नम्बर की जगह इसे जाने-पहचाने नाम दिये जाते हैं। ताकि यह आसानी से याद किये जा सकते हैं। यह डोमेन नाम सिस्टम (डी.एन.एस.) (DNS) {Domain Name System} कहलाता है।
यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर (यू.आर.एल.)
गूगल, याहू एक डोमेन नाम है जो कि उसके आई.पी. पते (IP address) को आसानी से याद करने के लिये दिया गया है। इस पते को यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर Uniform Resource Locator (URL)(यू.आर.एल.) कहते हैं। किसी भी सर्वर या वेब पन्ने को उसके यू.आर.एल. के द्वारा पहुंचा जा सकता है।
यू. आर.एल., में अक्सर सबसे पहले शब्द http लिखा रहता है। यह केवल यह बताता है कि सूचना का स्थानान्तरण किस प्रोटोकाल के अंतर्गत हो रहा है। पते में आखिरी तीन शब्द जैसे कि .com या .gov या .org इत्यादि रहते हैं। इनको टॉप-लेवल डोमेन (टीएलडी) (Top-Level Domain) (TLD) कहा जाता है। .com का अर्थ है कि यह व्यावसायिक (Commercial) है। ‘.gov’ का अर्थ है कि यह सरकारी है। कभी-कभी आखिर में दो अक्षर होते हैं। यह देशों के लिये होते हैं जो किसी भी देश को दिये गये होते हैं। इन्हे Country Code Top Level Domains (ccTLD) कहा जाता हैं। अपने देश के लिये .in शब्द का प्रयोग किया जाता है।
ट्रेड मार्क
बौद्धिक सम्पदा कई तरह की होती हैं। ट्रेड मार्क (Trade Mark) उनमें से एक है। यह एक तरह का नाम या चिन्ह है जो किसी भी सेवा या उत्पाद के साथ जुड़ा होता है। किसी सेवा या उत्पाद को उसके ट्रेड मार्क से जाना जाता है। उदाहरणार्थ, टाटा नाम टाटा के उत्पादों के साथ जुड़ा है, यह उनका ट्रेड मार्क है।
अक्सर सवाल उठता है कि क्या कोई, किसी और का ट्रेड मार्क, अपने डोमेन नाम की तरह प्रयोग कर सकता है? क्या कोई ओबेराय होटल, टाटा नाम से डोमेन नाम ले सकता है? इस तरह के विवादों को, डोमेन नाम विवाद (Domain Name Dispute) कहा जाता है। इस सवाल का जवाब, उच्चतम न्यायालय ने, M/s SatyamInfoway Ltd. vs. M/s Siffynet Solutions Pvt. Ltd: JT 2004 (5) SC 541 के फैसले में दिया है। न्यायालय के अनुसार,
‘डोमेन नाम एक तरह का ट्रेड मार्क है और इसमें भी उसी तरह से ट्रेड मार्क का उल्लंघन हो सकता है जैसा कि ट्रेड मार्क के साथ होता है। आप किसी और के ट्रेड मार्क नाम से डोमेन नाम नहीं ले सकते हैं।’
यह नियम किसी विशेष टीएलडी के लिये नहीं है। इसे सारे टीएलडी पर लागू होना चाहिये।
समान डोमेन नाम विवाद नीति
इस समय Internet Corporation for Assigned Names and Numbers (I C A N N) (आईकैन) देखता है कि डोमेन नाम व्यवस्था, सुव्यवस्थित रहे और सुचारू रूप से चले। आईकैन ने, डोमेन नाम के साथ उठ रहे विवाद को तय करने के लिये एक नीति निकाली है। इसे समान डोमेन नाम विवाद नीति Uniform Domain Name Dispute Resolution Policy (U D R P) (यूनिफार्म डोमेन नेम डिसप्यूट पॉलिसी) (यूडीआरपी) कहा जाता है। यह टॉप लेवल डोमेन (TLD) नामों पर लागू होती है। यह उन देशों के टॉप लेवल डोमेन नामों (cc T L D) पर भी लागू है जिन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है। इसके अन्दर यदि कोई विवाद उठता है तो पहले वह सर्विस प्रोवाइडर के पास निर्णय करने के लिये भेजा जाता है। यह एक तरह के मध्यस्थ हैं। इनके द्वारा निर्णय दिये जाने के बाद, पीड़ित पक्ष न्यायालय में जा सकता है।
National Internet Exchange of India (NIXI) (निक्सी) एक सरकारी कम्पनी है। इसे .IN cc TLD देखने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है इसने .IN डोमेन नाम विवाद तय करने के लिए .IN Dispute Resolution Poliy (INDRP) बनायी है। यह यूडीआरपी की तरह है।
समान डोमेन नाम विवाद नीति के अन्दर सारी कार्यवाही अंतरजाल पर होती है बहुत जल्द, लगभग तीन महीने में, समाप्त हो जाती है।
साइबर स्कवैटिंग और टाइपो स्कवैटिंग
लोग किसी भी प्रसिद्घ वस्तु या किसी प्रसिद्घ नाम से डोमेन नाम ले लेते हैं। यह अक्सर इसलिये किया जाता है कि बाद में उसे लाभ में बेचा जा सके या वे उस उस प्रसिद्ध वस्तु, नाम से जुड़े रहें। इसे साइबर स्कवैटिंग (cyber Squatting) कहते हैं।
कभी-कभी लोग नाम की वर्तनी में थोड़ा बदलाव कर डोमेन नाम पंजीकृत करवा लेते हैं। यह अक्सर इसलिये किया जाता है ताकि कोई प्रयोगकर्ता गलती से नाम टाइप कर दे तो वहां पहुंच जाय। इस तरह के विवाद को टाइपो स्कवैटिंग (Typo Squatting) कहते हैं। यह दोनों विवाद भी, यू.डी.आर.पी. के अंतर्गत उठाये जा सकते हैं।
की-वर्ड (Key word) विवाद
कोई भी सूचना प्राप्त करने के लिये सर्च इंजिन पर शब्द लिख कर उसे ढूंढा जाता है। किसी शब्द पर ढूढ़ने पर, लाखों से ज्यादा वेब-पन्नों की सूचना मिलती है। सारे पन्नों को देख पाना नामुमकिन है। लोग अक्सर पहले के ही कुछ पन्नों की ही लिंक देखते हैं। इसलिये महत्वपूर्ण यह है कि पहले पन्ने पर किस-किस वेब-पन्नों की सूचना है। सर्च इंजिन अक्सर कुछ खास शब्दों को अलग-अलग कम्पनियों को बेच देते है ताकि उन शब्दों पर ढूढ़ने पर उस कम्पनी की वेबसाइट सबसे ऊपर आ जाये। यदि वह शब्द किसी और का ट्रेड मार्क हो तो क्या सर्च इंजिन किसी दूसरे को वह शब्द बेच सकते हैं। इस बारे में कानून स्पष्ट नहीं है। आने वाले समय पर यह शायद स्पष्ट हो सके।
मॅटा टैग (Meta tag) विवाद
टैग किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में सूचना देते हैं। उदाहरणार्थ, सम्मेलनों में या कुछ सेवाओं (डाक्टर या सेना) में लोग, नाम का टैग लगाते हैं। दुकानों में वस्तुओं पर उनके मूल्य का टैग लगा होता है। अलग-अलग वेब साइट पर अलग तरह की सूचना होती है। मॅटा टैग, वेब साइट में सूचना के बारे में, सूचना देते हैं। सवाल यह भी उठता है कि क्या आप किसी और के ट्रेड नाम का प्रयोग अपने वेब साइट में मॅटा टैग की तरह कर सकते हैं। इसके बारे में भी कानून स्पष्ट नहीं है। आने वाला समय इसे स्पष्ट करेगा।
गोलमाल है भाई गोलमाल
बाज़ार में हर तरह की सीडी मिलती – कानूनी, गैर कानूनी। यदि आप कानूनी विडियो या संगीत की सीडी खरीदते हैं तो उसे आप सुन तो सकते हैं पर उसे या उसके भाग को किसी वेबसाइट {(जैसे यूट्यूब (youtube) या ईस्निप्स् (esnips)} पर अपलोड कर, उसे सार्वजनिक कर देना, गलत है। यह कॉपीराइट का उल्लंघन है। यदि आप इन सीडी को देखें तो इनमें कुछ इस तरह की नोटिस होती है
‘All rights in the recorded work are reserved. Unauthorised public performance, Broadcasting, and copying is prohibited.’
इसमें सारे अधिकार सुरक्षित हैं। बिना अनुमति के, इसे सार्वजनिक तौर से बजाना, प्रकाशित करना, या कॉपी करना मना है।
इस नोटिस के कारण यदि आप इसे वेबसाइट पर अपलोड कर, सार्वजनिक करते हैं तो इसके उल्लंघन के साथ कॉपीराइट का उल्लंघन (copyright violation) करते हैं। यदि आप अपलोड की सुविधा देने वाली वेबसाईटों की शर्तों को पढ़ें, तो आप पायेंगे कि वे सब स्पष्ट रूप से कहती हैं कि कॉपीराइटेड सामग्री अपलोड करना मना है। इस कारण, वे आपका अकांउट भी बन्द कर सकती हैं और इस तरह की सामग्री को मिटा सकती हैं।
केवल कानूनी सीडी खरीद लेने के कारण, आप उसके गाने या फिल्म के विडियो को सार्वजनिक रूप से अपलोड करने के अधिकारी नहीं हो जाते हैं।
इसलिये आप किसी और के गाने या फिल्म के विडियो को अपने नाम से केवल इसलिये न अपलोड करें कि आपके पास उसकी कानूनी सीडी है। यह तभी हो सकता है जब आपने इसकी खास अनुमति ले रखी हो। आप चाहें तो दूसरे के द्वारा अपलोड की गयी विडियो या संगीत की फाईल को अपने चिट्टे पर लगा सकते हैं जैसा कि यूट्यूब या ईस्निप्स् आपको विज़िट बना कर यह करने देते हैं। क्योंकि हो सकता है कि जिसने उसे अपलोड किया है उसके पास इसकी अनुमति हो। यदि नहीं है तो, नोटिस मिलने पर, उसे वेबसाइटों (यूट्यूब या ईस्निप्स्) को हटाना पड़ेगा और जैसे वह हटेगी वह आपकी चिट्ठी से भी हट जायेगी।
‘उन्मुक्त जी, यह काम तो सब लोग, यहां तक दूरदर्शन और रेडियो वाले कर रहें हैं। क्या वे सब गलत हैं?’
यदि उन्होनें इसकी अनुमति नहीं ली है तो यह ज़रूर गलत है। इसलिये मैं अपने पॉडकास्ट पर कोई फिल्म का गाना अपलोड नहीं करता क्योंकि मेरे पास इसकी कोई अनुमति नहीं है। मैं हमेशा दूसरों के द्वारा यूट्यूब पर अपलोड किये गये विडियो लगाता हूं या फिर उसको करता हूं जो वह उसका उचित प्रयोग है जैसा मैंने यहां बताया है। लेकिन यहां पर भी जहां से उद्धरण लिया गया है और लेखक का नाम देता हूं। यह आवश्यक है।
यह सच है कि दूरदर्शन और रेडियो में गाना सार्वजनिक रूप से बजाया जाता है पर वे इस बात का रिकॉर्ड रखते हैं कि कोई गाना कितनी बार बजा है। यह लोग साल के अन्त में, जो गाना जितनी बार बजता है, उतना ही पैसा उसके कॉपीराइट मालिक को अलग से देते हैं।
गाना, विडियो अपलोड करने वालों – सावधान
अमेरिका में, युनिवर्सल म्यूज़िक ग्रुप ने, जैमी थॉमस रैसेट (Jammie Thomas Rasset) नामक महिला पर मुकदमा चलाया कि उसने २४ गानों को अपलोड कर दूसरों को कॉपी करने की सुविधा दी। इस मुकदमे में जैमी का कहना था कि उसने कोई गाना अपलोड नहीं किया था।
जैमी थॉमस रैसेट अपने दो पुत्रों के साथ
जैमी के ऊपर पहले चला मुकदमा, जूरी को ठीक से न निर्देश देने के कारण रद्द कर दिया गया। उसके ऊपर फिर से मुकदमा चलाया गया। इस बार भी जूरी ने, जैमी की कोई बात नहीं मानी और उस पर ८०,००० डॉलर प्रति गाना, कुल १९ लाख २० हज़ार डॉलर का जुर्माना लगाया गया। यह इस तरह का पहला मुकदमा है।
माना जैमी गलत है। लेकिन फिर भी क्या एक गाने के लिये ८०,००० डॉलर हर्जाना सही है?
अन्तरजाल पर कानून में टकराव
कानून किसी भी जगह और समय के प्रतिबिम्ब होते हैं। यह उस जगह और समय की नैतिकता के प्रतीक हैं। हांलाकि कानून कितना कारगर है यह बात वहां के कानून के पालन पर निर्भर करती है। देशों में, मोटे तौर पर कानून एक जैसे होते हैं पर कुछ मूलभूत अन्तर के कारण, कानून में भी अन्तर होता है। वेब ने देशों की सीमाओं को समाप्त कर दिया है। इसलिये जहां कानून में अन्तर है वहां टकराव की स्थिति पैदा हो गयी है। अभी तक इस समस्या का हल न तो संतोषजनक रूप से न तो निकला है और न ही कोई रास्ता समझ में आ रहा है। आइये इसके कुछ उदाहरण देखें।
अश्लीलता देशों की नैतिकता पर निर्भर है। देशों में अश्लीलता के अलग अलग मापदंड हैं। बहुत से देशों में जिसे अश्लील नहीं कहा जाता उसे दूसरे देशों में अश्लील कहा जाता है। किस भी देश में स्थित वेबसाइट की सामग्री को दुनिया के किसी और देश में देखा जा सकता है। यदि उस सर्वर की वेबसाइट कुछ ऐसा साहित्य है जो कि उस देश के कानून के मुताबिक अश्लील न हो पर दूसरे देश के कानून के मुताबिक अश्लील हो तो क्या दूसरे देश में उस साहित्य को सर्वर पर डालने वाले को जेल भिजवाया जा सकता है।
यही बात मानहानि (defamation) के कानून में लागू होती है। जो समाग्री एक देश में कानूनी है पर दूसरे देश में गैर कानूनी है। सवाल यह उठता है कि उस सामग्री को किसी दूसरे देश में, जिसके कानून के अन्दर वह गैर कानूनी है, कैसे रोका जाय।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, जर्मनी और फ्रांस में नाज़ी साहित्य या उनके चिन्ह या उनकी बड़ाई करने वाले साहित्य के बेचने पर मनाही है।
नाज़ी पार्टी के शासन के समय जर्मनी का राष्ट्रीय चिन्ह
याहू एक प्रसिद्ध वेबसाइट है। हर देश में इसकी सहायक (subsidiary) कंपनी भी पंजीकृत है। याहू वेबसाइट बहुत सारी सेवायें भी देती है जिसमें नीलामी भी है। यह नाज़ी चिन्हों की नीलामी भी करती है। यह बात अमेरिका में तो गैर कानूनी नहीं, पर फ्रांस और जर्मनी में है। याहू फ्रांस, फ्रांस देश में पंजीकृत कम्पनी है। यह वहां के कानून से बाध्य है। यह इस तरह के समान नहीं बेच सकती है। लेकिन याहू वेबसाइट अमेरिका के सर्वर पर स्थित है और अमेरिका में पंजीकृत है अमेरिकी कानून में यह सेवा गैर कानूनी नहीं है क्या याहू की इस वेबसाइट को, फ्रांस के न्यायालय या सरकार ऐसा करने से मना कर सकती है क्योंकि यह वेबसाइट फ्रांस में भी देखी जा सकती है, जहां यह गैर कानूनी है।
नाज़ी पार्टी का बैज़
फ्रांस के नागरिक स्वतंत्रता (civil liberty) की दो संस्थाओं ने याहू पर फ्रांस में मुकदमा ठोका। फ्रांसीसी न्यायलय ने निषेधाज्ञा जारी कर याहू को इस तरह की पुस्तकें तथा चिन्ह बेचने से मना किया और आज्ञा न मानने पर हर्ज़ाना लगाया। याहू ने इस फैसले के खिलाफ अपील तो नहीं प्रस्तुत की पर अमेरिकन न्यायलय में इस बात का मुकदमा डाला कि यह कार्य वे अमेरिका में कर रहे हैं। जहां के कानून के अन्दर यह गैर कानूनी नहीं है इसलिये इस फैसले शून्य घोषित किया जाय।
परीक्षण न्यायालय ने इस फैसले को शून्य घोषित कर दिया। फ्रांस की संस्थाओं ने इसके विरुद्ध अपील प्रस्तुत की जो २-१ से स्वीकार कर ली गयी पर बाद में यह फैसला पुननिरीक्षण के लिये पूरी अपीली न्यायालय के समक्ष पेश हुआ। ११ न्यायधीशों ने मुकदमे सुना और तय किया कि,
‘An eight-judge majority … holds … that the district court properly exercised specific personal jurisdiction over defendants … A three-judge plurality of the panel concludes, as explained in Part III of this opinion, that the suit is unripe for decision … When the votes of the three judges who conclude that the suit is unripe are combined with the votes of the three dissenting judges who conclude that there is no personal jurisdiction … there are six votes to dismiss Yahoo!’s suit.
We therefore REVERSE and REMAND to the district court with instructions to dismiss without prejudice.’
इस फैसले में मुख्यतः अमेरीकी अपीली न्यायालय ने बहुमत द्वारा इस बात पर फैसला देने से इंकार कर दिया कि क्या अमेरीकी न्यायालय, फ्रांसीसी न्यायालय का फैसला रद्ध किया जा सकता है। तीन न्यायधीशों के मुताबिक यह सवाल अभी उठा नहीं है और यह मुकदमा परिपक्व नहीं हुआ है। क्योंकि फ्रांसीसी न्यायालय का फैसला अभी तक अमेरिका में लागू करने के लिये नहीं आया है। तीन न्यायधीशों के मुताबिक न्यायालय को विपक्ष पर निर्णय देने के लिये व्यक्तिगत अधिकार नहीं प्राप्त है। इस लिये न्यायालय ने इस मुकदमे को परीक्षण न्यायालय के पास इसे यह कहते हुऐ खारिज करने के लिये भेज दिया कि यह याहू के अधिकारों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं रखेगा।
कानून में यह स्पष्ट नहीं है कि इस परिस्थिति में क्या किया जाय – शायद इसका हल भविष्य में ही छिपा है। शायद सारे देशों को एक कानून पर सहमति बनानी होगी, या फिर फ्रांसीसी न्यायालय को याहू को निषेधाज्ञा न देकर इंटरनेट की सेवाएं देनी वाली कंपनियों को जो कि फ्रांस में स्थित हैं को यह आज्ञा देनी चाहिये थी।
समकक्ष कंप्यूटर के बीच फाइल शेयरिंग: पीर टू पीर फाइल शेयरिंग
वेब तकनीक के विकसित हो जाने के बाद, अन्तरजाल पर एक फाइल दूसरी जगह बहुत आसानी से कॉपी की जा सकती है। कॉपी करने के बाद मूल और प्रतिलिपि में कोई अन्तर पता नहीं चल पाता है। इसे समकक्ष कंप्यूटर के बीच फाइल शेयरिंग (पीर टू पीर फाइल शेयरिंग Peer to peer file sharing) कहा जाता है।
किसी भी फाइल को कॉपी करने के पहले यह जानना जरूरी है कि वह फाइल अन्तरजाल पर कहां है। अर्थात फाइलों की कोई सूची होनी चाहिये। इस समय सूची बनाने के तीन मुख्य तरीके हैं।
- केन्द्रीयकृत सूची तरीका (Centralised indexing system): इसमें एक मुख्य सर्वर होता है जिसमें सारे फाइलों की सूची उपलब्ध होती है।
- सुपर नोड तरीका (Super node system) इसमें कुछ चयनित कम्प्यूटर, में सारे कम्प्यूटर के फाइलों की सूची होती है।
- अकेन्द्रीयकृत सूची तरीका (Decentralised indexing system): इसमें हर कम्प्यूटर अपनी हार्ड डिस्क पर अपनी फाइलों की सूची बना कर रखता है।
आर्ची कॉमिक्स किसने नहीं पढ़ी। खुद पढ़िये कि आर्ची को फाइल शेयरिंग से क्या हो गया। बड़ा करने के लिये चित्र पर चटका लगायें। आर्ची ने मेरा दिल क्यों तोड़ दिया यह आप यहां पढ़ सकते हैं
इन तीनो तरीकों ने अलग अलग सॉफ्टवेयर – नैपस्टर (Napster), फास्टट्रैक (Fast Track), और न्यूटला (Gnutella) – को जन्म दिया। इनमें सबसे पहला था – नैपस्टर सॉफ्टवेयर। इस सॉफ्टवेयर को शॉ फैनिंग नामक टीन-ऐजर ने बनाया था। यह सबसे पहले वाले तरीके को इस्तेमाल करता है। इस सॉफ्टवेयर ने संगीत की दुनिया में भूचाल ला दिया।
शॉ फैनिंग और नैपस्टर सॉफ्टवेयर
नैपस्टर (Napster) सॉफ्टवेयर सबसे पहले तरीके यानि कि केन्द्रीयकृत सूची तरीका (Centralised indexing system) का प्रयोग करता है। इस तरीके में एक मुख्य सर्वर होता है जिसमें सारे फाइलों की सूची उपलब्ध होती हैं।
नैपस्टर साफ्टवेयर, शॉं फैनिंग (Shawn Fanning) ( जन्म: २२ नवम्बर १९८०) नामक युवक ने बनाया था। शॉ हमेशा अपने कंप्यूटर में रखे संगीत को सबके साथ बांटना चाहता था पर किसी को यह विचार पसंद नहीं आता था क्योंकि वे समझते थे कि यह बेवकूफी है। शॉ ने युवावस्था में ही कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और इस तरह का सॉफ्टवेयर बनाने में जुट गया।
ऑडियो सूचना या संगीत रखने के लिये सबसे लोकप्रिय मानक mp3 है। नैपस्टर सॉफ्टवेयर केवल mp3 फॉरमैट की फाइलों के साथ काम करता है। इसके लिये, आपको नैपस्टर के साथ रजिस्टर कर, इसके सॉफ्टवेयर को अपने कंप्यूटर में डालना होता है। यह एकदम मुफ्त है। नैपस्टर सारे कंप्यूटरों के mp3 फाइलों की सूची अपने सर्वर पर रखता है। इसके बाद जब आप किसी mp3 फाइल को ढूढ़ते हैं तो नैपस्टर सर्वर पहले देखता है कि क्या वह फाइल इसकी सूची में है अथवा नहीं। यदि वह है तो नैपस्टर सर्वर यह पता करता है कि क्या वह कंप्यूटर अन्तरजाल पर है। यदि वह अन्तरजाल पर है तो, नैपस्टर सर्वर, दोनों कंप्यूटरों का आपस में सम्पर्क करा देता है ताकि वह फाइल डाउनलोड की जा सके।
लोग संगीत खरीदते हैं और उसे अपने कंप्यूटर में mp3 मानक की फाइलों में रखते हैं। इसमें कोई भी कानूनी अड़चन नहीं है। पर यदि उन्होंने नैपस्टर के साथ पंजीकृत करा रखा है तो कोई अन्य उसे, उनके कंप्यूटर से, बिना पैसा दिये, अपने कंप्यूटर में कॉपी कर सकता है। यह गैरकानूनी है। क्योंकि संगीत कॉपीराइटेड है और बिना उसकी रायल्टी दिये उसे आप अपने कंप्यूटर में नहीं डाल सकते हैं। इसलिये संगीत कम्पनियों ने मुकदमा नैपस्टर पर मुकदमा ठोंक दिया।
नैपस्टर केस (Napster Case)
नैपस्टर पर चले मुकदमें में, संगीत कंपनियों का कहना था:
- नैपस्टर में कॉपीराइट उल्लंघन में सहयोग दे रहा है;
- यह सहयोग गैरकानूनी है;
- इसे केवल नैपस्टर ही रोक सकता है;
- इसलिये उसे यह करने से मना किया जाय और उन्हें हर्जाना दिलवाया जाय।
नैपस्टर का कहना था कि,
- कॉपीराइट सामग्री उसके सर्वर से नहीं गुजरती है;
- कॉपीराइट का उल्लंघन तो वह लोग कर रहे हैं जो कि कॉपीराइटेड सामग्री डाउनलोड कर रहे हैं;
- उसके द्वारा कोई भी डाउनलोड नहीं किया जा रहा है।
परीक्षण न्यायालय (Trial Court) ने नैपस्टर की बात नहीं मानी और उसे ऐसा करने से मना कर दिया। नैपस्टर ने अपील दाखिल कर स्थगन आदेश ले लिया। अपील के दौरान अधिकतर संगीत कंपनियों से सुलह कर ली। अपीली न्यायालय ने यह मुकदमा वापस परीक्षण न्यायालय के पास भेद दिया। परीक्षण और अपीली न्यायालय ने कहा कि नैपस्टर इस उल्लंघन के लिये तब जिम्मेदार है जब,
- नैपस्टर को पता चले कि उसकी फाइलों की सूची में कौन कौन सी फाइल कॉपीराइटेड है; और
- उसके बाद भी नैपस्टर उस फाइल के डाउनलोड रोकने के लिये कोई कदम न उठाये।
इसके बाद नैपस्टर को व्यापारिक सफलता नहीं मिल पायी। इस केस के अतिरिक्त दो अन्य केस भी हुऐ हैं: कज़ा केस (KaZa Case) और ग्रॉकस्टर केस (Grokster Case)।
कज़ा केस (KaZa A Case)
कज़ा, नैपस्टर की तरह समकक्ष कंप्यूटर के बीच फाइल शेयरिंग (Peer to peer file sharing) सॉफ्टवेयर बनाती है। लेकिन इसका सॉफ्टवेयर, नैपस्टर की तरह mp3 फाइलों तक सीमित नहीं है। यह सब तरह की फाइलों पर काम करता है। जहां नैपस्टर फाइलों की सूची रखने के लिये पहले तरीके का प्रयोग करता है यह दूसरे तरीके का – अर्थात सुपर नोड तरीका। इसमें कुछ खास कंप्यूटर में ही, सारी फाइलों की सूची रहती है। इसलिये यदि कभी आप इस सॉफ्टवेयर को अपने कंप्यूटर पर स्थापित करते हैं तो ख्याल रखियेगा कि यह आपके कंप्यूटर पर फाइलों की सूची न रखने लगे यदि ऐसा होता है तो हो सकता है कि आप मुश्किल में पड़ जायें।
कज़ा कंपनी का लोगो
हॉलैण्ड में इसके ऊपर मुकदमा चला। इसे २००३ में, हॉलैण्ड के सर्वोच्च न्यायालय ने इसे इसलिये खारिज कर दिया क्योंकि, कज़ा न तो इस पर कोई नियंत्रण रख सकती है, न ही इसे रोक सकती है। न्यायालय के अनुसार जो लोग कॉपीराइटेड सामग्री डाउनलोड कर गैरकानूनी काम कर रहे हैं उनके खिलाफ मुकदमा करना चाहिये।
ग्रॉकस्टर केस
इस समय दुनिया में इस विषय के कानून में विरोधाभास है। क्योंकि अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रॉकस्टर केस (Grokster case) में दूसरा ही फैसला दिया है। इस केस में ग्रॉकस्टर और स्मार्टकास्ट नाम की दो कंपनियां थीं जो अलग तरह के सॉफ्टवेयर प्रयोग कर रही थीं। ये दोनो समकक्ष कंप्यूटरों के बीच फाइल शेयरिंग (peer to peer file sharing) सुविधा वितरित करती हैं पर उनका सॉफ्टवेयर अलग अलग तरह का है।
कज़ा कंपनी का सॉफ्टवेयर फाइल शेयरिंग के दूसरे तरीके का प्रयोग करती है। अर्थात कुछ खास कंप्यूटर ही सारी फाइलों की सूची रखते हैं। कज़ा कंपनी फास्टट्रैक (FastTrack) नामक सॉफ्टवेयर भी बनाती है। ग्रॉकस्टर, कज़ा कंपनी से फास्टट्रैक तकनीक प्रयोग करने का लाइसेंस लेकर, फाइल शेयरिंग का सॉफ्टवेयर वितरित करती है। यह सब तरह के मानकों की फाइलों के साथ काम करता है।
न्यूटला (Gnutella) फाइल शेयर करने का ओपेन सोर्स साफ्टवेयर है। यह तीसरे तरीके का प्रयोग करता है। स्ट्रीमकास्ट पहले कज़ा से फास्टट्रैक का लाइसेंस लेकर सॉफ्टवेयर वितरित करते थे पर बाद में न्यूटला में ही, मॉरफियस (Morpheus) नामक सॉफ्टवेयर बना कर प्रयोग करते हैं। मॉरफियस भी, फास्टट्रैक की तरह, हर तरह के फॉरमैट की फाइलों के साथ काम करता है।
संगीत और मनोरंजन कम्पनियों ने इनके ऊपर मुकदमा दाखिल कर दिया। इस मुकदमे को परीक्षण एवं अपील न्यायालय दोनों के द्वारा खारिज कर दिया गया पर अमेरिका के उच्चतम न्यायालय अपील स्वीकार कर, अपना फैसला संगीत और मनोरंजन कंपनियों के पक्ष में दिया।
ग्रॉकस्टर केस में अमेरिकन न्यायालय का फैसला (Grokster Case)
ग्रॉकस्टर केस में दो निम्न महत्वपूर्ण विचारधाराओं का टकराव था:
- कापीराइट का उल्लंघन नहीं होना चाहिये,
- फाइल शेयरिंग साफ्टवेयर की तकनीक का विकास होना चाहिये।
ग्रॉकस्टर केस के बहस के समय, अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के सामने, लोग आपत्ति जताते हुऐ। यह चित्र न्यू यॉर्क टाइमस् की इस खबर के सौजन्य से है
इस टकराव के बारे में अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने इस प्रकार कहा,
‘The tension between the two values is the subject of this case, with its claim that digital distribution of copyrighted material threatens copyright holders as never before, because every copy is identical to the original, copying is easy, and many people (especially the young) use file-sharing software to download copyrighted works. This very breadth of the software’s use may well draw the public directly into the debate over copyright policy, and the indications are that the ease of copying songs or movies using software like Grokster’s and Napster’s is fostering disdain for copyright protection, As the case has been presented to us, these fears are said to be offset by the different concern that imposing liability, not only on infringers but on distributors of software based on its potential for unlawful use, could limit further development of beneficial technologies.’
उन्होंने अपना फैसला देते हुए कहा कि,
‘one who distributes a device with the object of promoting its use to infringe copyright, as shown by clear expression or other affirmative steps taken to foster infringement, is liable for the resulting acts of infringement by third parties.’
यदि कोई उत्पाद या सॉफ्टवेयर कॉपीराइट के उल्लंघन को बढ़ाये जाने के उद्देश्य बनाया जाता है जैसा कि इन कंपनियों ने किया है तब वे कॉपीराइट के उल्लंघन के लिये उत्तरदायी होंगें।
अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने, इस मुकदमे में कॉपीराइट उल्लंघन न हो वाली विचारधारा को ‘तकनीक’ के विकास की विचारधारा से ज्यादा प्राथमिकता दी। क्या यह फैसला सही है? क्या यह फैसला तकनीक विकास में बाधक होगा? क्या इन दोनों विचारधाराओं के समन्वय के लिये कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता था? इन सारे सवालों का जवाब तो भविष्य ही दे पायेगा।
मेरे विचार में अमेरिकी उच्चतम न्यायालय का फैसला इस प्रकाश में भी देखना चाहिये कि ग्रॉकस्टर और स्ट्रीमकास्ट, लोगों को कॉपीराइट का उल्लंघन करने के लिये प्रेरित कर रहे थे। यदि वे ऐसा न करते तो शायद यह फैसला न होता।
क्या इसका अर्थ है कि यदि कोई कंपनी फाइल शेयरिंग सॉफ्टवेयर बनाती है और लोगों को कॉपीराइट का उल्लंघन करने के लिये नहीं प्रेरित करती है तो क्या फैसला उसके पक्ष में होगा? तब क्या कानून तकनीक के विकास का पक्ष लेगा? देखें आने वाला कल क्या कहता है।
अच्छी जानकारी समेटी है आपने. लगें रहें.
यह तो पूरा रेफ्रेशेर कोर्स है. इसे सेव कर हम कहीं और रखेंगे ताकि आराम से पढ़ा जाए और पढाया जाए. आभार
अंतर्जाल साहित्य समग्र
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