कुछ समय पहले मुझे काम से साउथ अफ्रीका जाना पड़ा। इस चिट्ठी में, वहीं की यात्रा का वर्णन है।

क्रुगर पार्क साउथ अफ्रीका में सूर्यास्त
झाड़ क्या होता है?
भारत से, हवाई जहाज से साउथ अफ्रीका जाने के तीन तरीके है।
- दिल्ली से अरब एमिरेट की उड़ान पकड़ कर दुबई और दुबई से जॉहन्सबर्ग।
- दिल्ली से एयर इण्डिया की उड़ान पकड़ के केनिया और वहां से केनयन एयर लाइन्स से जॉहन्सबर्ग।
- बम्बई से साउथ अफ्रीका एयर लाइन्स की सीधी उड़ान पकड़ कर जॉहन्सबर्ग।
इस समय दिल्ली – अबू धाबी – जॉहन्सबर्ग की नयी विमान सेवा भी शुरू हो गयी है। हमें लगा कि बम्बई से सीधी जॉहन्सबर्ग के लिए उड़ान पकड़ना सबसे अच्छा और आसान होगा। इसलिए हम लोग बम्बई पहुंचे। बम्बई मे हमें कुछ घण्टें व्यतीत करने थे और हम बान्द्रा क्षेत्र में रूके।
शाम के समय हम लोगों को लगा कि ईमेल चेक कर ली जाय इसलिए साइबर कैफे को ढ़ूंढने के लिए बाहर निकले। एक व्यक्ति से पूछा तो उसने कहा,
‘सीधे आगे जाये। आपको एक गोल पार्क मिलेगा उसके बाद एक झाड़ मिलेगा बस उसी के बाजू से एक सीढी जाती है, वहां पर साइबर कैफे है।’
मैंने पूछा कि झाड़ क्या होता है? उसने हमारी तरफ देखा जैसे मालूम नही कहां के बेवकूफ आ गये है फिर धीरे से मुस्कुरा कर कहा कि झाड़ माने पेड़। मैंने उसको शुक्रिया अदा किया।
साइबर कैफे में बहुत सारे कम उम्र के लोग थे। वे शायद निम्न स्तर के थे जो आपस में बीच-बीच मे बड़ी जोर से चिल्ला रहे थे, नीचे करो, वह मारा। मैंने साइबर कैफे के मालिक से पूछा ये लोग क्या खेल खेल रहे हैं। उसने बताया,
‘आजकल यहां पर वर्ल्ड ऑफ वारक्रैफ्ट (warcraft) नामक खेल लोकप्रिय है और यह लड़के दो टीम बनाकर उसे खेल रहे हैं। इसमें टीमें आपस में एक दूसरे से लड़ाई करती है।’
एक छोटा सा कमरा जिसमें ठीक से हवा भी नहीं आ रही थी उसी में कम उम्र के बच्चे यह खेल रहे थे। इण्टरनेट और टीवी की सबसे खराब बात यही है कि लोग बाहर में खेलने की जगह, कमरे के अन्दर बंद हो गये हैं। यह उनके स्वास्थ को कितना नुकसान पहुंचा रहा है इसके बारे में वे नहीं सोच रहे हैं।
लौटते समय देखा कि रास्ते में भुट्ठे बिक रहे थे। ठेले वाले की अंगेठी में, छोटी सी धौकिनी लगी थी जो हवा फेंकती थी और अंगेठी तेजी से जलती थी। मैंने पूछा कि एक भुटटा कितने का है उसने कहा,
‘दस रूपये का। साहब खाकर देखिये, यह भुटटा खास तरीके का है और मीठा है।’
मैंने कहा क्या बाहर से आता है उसका जवाब था,
‘नहीं, यहीं पैदा होता है पर बीज बाहर से आता है।’
मैने पूछा कितना रूपया कमा लेते हो। उसने कहा,
‘मैं लगभग सौ भुटटे बेच लेता हूं हर भुटटे में करीब -दो रूपये का फायदा होता है। बाकी पैसे भुटटे और कोयले के खर्च में और कुछ अंगेठी और ट्राली को ठीक कराने में चला जाता है।’
मैंने पूछा क्या कुछ पैसा म्यूनिसपिल्टी को भी देना पड़ता है। उसका जवाब था हर महीने हजार रूपये। मैंने पूछा कि क्या रसीद देते हैं। उसका जवाब था,
‘नहीं, ये म्यूनिसपिल्टी के आदमी हजार रूपया अपने जेब में रख लेते हैं। बस ये समझिए कि यह एक तरह का गैर-कानूनी टैक्स देता हूं।’
भुट्टा वास्तव में बहुत अच्छा था और मीठा था खाने में मजा ही आ गया।
आगे चलते समय एक जगह कुछ फल बिक रहे थे। मैने उससे पूछा कि शरीफा कितने का है । उसने बताया कि ७०/-रूपया किलो । मैने कहा कि मुझे एक शरीफा चाहिए कितने का पड़ेगा । उसने कहा कि दस रूपया के। मैने कहा कि दस रूपया का! उसने मेरी तरफ ऎसा देखा की शायद मै कहां से आ गया हूं। मैंने कहा कि मैं एक छोटे से कस्बे का हूं। उसने मुस्कुरा कर कहा, अच्छा आठ रूपया दे दीजियेगा। मैंने उसे दस रूपये का नोट दिया तो उसने दो रूपये वापस किये। मैंने कहा तुम ही रख लो। उसने कहा,
‘नहीं साहब मैने आपसे आठ रूपय कहे थे उतने ही लूंगा। ये दो रूपये वापस ले लीजिए।’
मुझे उसकी इमानदारी पर ताजुब हुआ , लगा कि शायद अभी भी लोगों में इमानदारी बची है। मैने उससे कहा कि दो रूपये की जगह हमें कोई और फल दे दो। उसने हमें एक केला दे दिया।
वापस आकर हम लोगों ने रात का खाना खाया और साउथ अफ्रीका जाने के लिए हवाई अड्डे चले गये।
साउथ अफ्रीकन एयर लाइन्स और उसकी परिचायिकायें

सउथ अफ्रीकन विमान सेवा का चिन्ह
बम्बई से, जॉहन्सबर्ग जाने के लिए साउथ अफ्रीकन एयरवेज़ (South African Airways) का हवाई जहाज रात के ढ़ाई बजे चलता है। रात भर का जागरण तो हो ही गया । इसे अफ्रीकानस् (Afrikaans) भाषा में Suid-Afrikaanse Lugdiens (SAL) भी कहा जाता है। इसमें परिचायिकायें नीले रंग की ड्रेस और गले में, अपने देश के झण्ड़े की तरह का स्कॉर्फ पहनें थी। उन सबका रंग श्याम था।
परिचायिकायें आपस में जिस भाषा में बात कर रहे थे वह मुझको बिल्कुल समझ में नही आ रही थी। हालांकि वे हमसे अंग्रेजी में बात करती थीं। मैने पूछा कि आप लोग किस भाषा में बात कर रहे है तो उनका कहना था,
‘साउथ अफ्रीका में ११ भाषायें चलती है जिसमें इंगलिश भी एक है। वहां पर लोग अलग-अलग भाषा में बात करते हैं। हम अपनी मातृ भाषा में बात कर रहे हैं।’
एक हम है जो कि आपस में हिन्दी में न बात कर अंग्रेजी में बात करना पसन्द करते हैं।
कुछ दिन पहले अर्न्तजाल में पढ़ा था कि दिल्ली हाई कोर्ट ने ऎयर इण्डिया की परिचायिकाओं की याचिका जो उन्होंने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ दाखिल की थी खारिज कर दी है। उनकी बर्खास्तगी इस बात पर की गयी थी कि वे ओवर वेट हैं। इन परिचायिकाओं को देखकर यही लगा कि शायद यह इन सब पर लागू होती है।
हवाई जहाज के उड़ने के बाद, उन लोगों ने हम लोगों को खाना दिया। हवाई जहाज में कुछ कम लोग थे तो ज्यादातर लोग बीच वाली सीट में जाकर बैठ गये और खाना खाने के बाद उसी में लेटकर सो गये । मेरे साथ मेरी पत्नी भी थी तो हम लोग बगल वाली सीट मे बैठे हुए थे। मेरी पत्नी पीछे वाली दो सीट में चली गयी और सो गयी हलांकि मुझको कुछ सोने में तकलीफ हुई। अगले दिन सुबह लगभग ८ बजे हम लोग जॉहन्सबर्ग पहुंचे। यहाँ से हमें प्रिटोरिया जाना था। मुझे वहीं काम था इसलिये वहीं ठहरने की बात थी।
क्रुगर नेशनल पार्क साउथ अफ्रीका का सबसे प्रसिद्व जानवरों का पार्क है। अधिकतर लोग जॉहन्सबर्ग से ही वहाँ चले जाते हैं। मुझे प्रिटोरिया में काम था। इसलिए सफारी प्रिटोरिया से ली। अगली बार जाना पड़े तो हम जॉहन्सबर्ग से ही सफारी पर जाना पसन्द करेंगे।
मान लीजिये, बाहर निलते समय, मैं आपका कैश कार्ड छीन लूं
जॉहन्सबर्ग हवाई अड्डे {नया नाम टैम्बो अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (Tambo International Airport)} पर हमें किसी व्यक्ति को लेने आना था और हमें प्रिटोरिया के होटल तक पहुँचना था। लेकिन, हवाई अड्डे पर हमें कोई व्यक्ति लेने के लिए नही आया। हम लोग परेशान हो गये।
जॉहन्सबर्ग हवाई अड्डे के अन्दर का दृश्य चित्र विकिपीडिया से
शुभा के पास बीएसएनएल की मोबाइल सेवा है और सैमसंग का मोबाइल फोन है। हम लोग इसे इण्टरनेश्नल करा कर ले गये थे। मैं इसे पिछली बार जर्मनी भी ले गया था। विदेश में इसमें फिर से सेट करना पड़ता और इण्टरनेश्नल, का विकल्प लेना पड़ता है। पिछली बार, मैं यह विकल्प इन्टरनेशनल नहीं कर पा रहा था क्योंकि मैं ‘सेटिंग’ की सूची में जाकर करता था। वास्तव में यह ‘अप्लीकेशन’ की सूची में जाकर करना चाहिए। जर्मनी यात्रा के दौरान, इसे इन्टरनेशनल करने में बहुत मुश्किल पड़ी थी पर इस बार मुझे पूरा विश्वास था कि मैं यह कर लूंगा। जॉहन्सबर्ग पर पहुंचते ही मैने इसे इण्टरनेशनल कर लिया पर फिर भी इसने काम नहीं किया। इससे हमारी परेशानी और बढ़ गयी।
मुझे लगा कि हम लोग टैक्सी कर प्रिटोरिया चले जाएँ पर साउथ अफ्रीका में केवल उन्हीं के देश का पैसा, जो कि रैंड कहलाता है, चलता है। एक रैंड लगभग छ: रूपये के बराबर है। यह हम लोगों के पास नहीं था। मेरे पास आईसीआईसीआई बैंक का कैश कार्ड था। इसके द्वारा मेरे सेविंग अकाउंट से कुछ रूपया निकाला जा सकता था। हम अपने साथ आईसीआईसीआई बैंक का यूरो कैशकार्ड भी ले गये थे, साथ में कुछ डॉलर भी थे। इसमें से वहाँ कुछ भी नहीं चलता है जॉहन्सबर्ग से प्रिटोरिटया तक लगभग ३५० रैंड लगते हैं। हमारे पास एक भी रैंड नहीं था। हमें, भारत में रैंड मिल ही नही पाया । हम लोग वह जगह ढूढ़ने लगे, जहाँ से हम पैसों को रैंड में बदल सके।
लोगों ने बताया था कि पैसा एटीएम से बदला जा सकता है। हवाई अड्डे पर एटीएम हम लोग जिस तल पर थे उसके ऊपर के तल पर था। हम लोगों ने अपना समान निकाल लिया था। इसलिए समझ में नहीं आ रहा था कि समान साथ लेकर चले या नहीं। मैंने अपनी पत्नी से एक पुलिस चौकी के बगल मे खड़ा होने को कहा और ऊपर के तल पर पैसा निकालने के लिए चला गया।
ऊपर के तल पर अलग -अलग बैंक के एटीएम लगे थे और काफी लम्बी लाइने थीं। आईसीआईसीआई बैंक का कार्ड वीसा पर चलता है। मैं उसी लाइन में खड़ा हो गया। मेरे आगे के व्यक्ति को पैसा निकालने में देर लग रही थी। बार-बार अपने हाथ को इस तरह दिखा रहा था जैसे कुछ गड़बड़ हो गया है। मेरे पीछे एक महिला खड़ी थी। मैंने कहा कि लगता है यह व्यक्ति मेरी तरह का है जिसने आज तक कभी भी एटीएम से पैसा नहीं निकाला है। मुझे भी बहुत देर लगेगी। वह मुस्कुराने लगी। उसने कहा,
‘यदि आप चाहें तो मैं आपकी सहायता कर सकती हूं। आप जब अपना पिन नम्बर टाइप करेंगे तो मै अपना मुंह दूसरे तरफ कर लूंगी।’
मैंने कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मै आपको अपना कार्ड नहीं दूंगा। महिला ने मुस्करा कर कहा,
‘मान लीजिए, बाहर निकलते समय मैं आपका कार्ड छीन लूं।’
मैंने कहा, आपका स्वागत है।
मेरे नम्बर आने पर उसने पैसा निकलने में सहायता की। एटीएम को चलाते समय वह कार्ड का विकल्प पूछता है। हमारी समझ में नहीं आया कि कैश कार्ड किस विकल्प आयेगा। उसमें एक विकल्प क्रेडिट कार्ड का था। महिला ने क्रेडिट कार्ड वाला बटन दबाने का सुझाव दिया । मैने डरते डरते क्रेडिट कार्ड वाला बटन दबाया क्योंकि इसमें कैश क्रेडिट कार्ड मशीन के अन्दर चला गया। मुझे घबराहट लग रही थी कि कार्ड बाहर निकलेगा कि नही। लेकिन यह विकल्प सही था। मुझे रैंड मिल गये और मेरा कैश कार्ड भी बाहर आ गया। मैंने महिला को शुक्रिया अदा किया और वापस आया।
मेरे वापस पहुंचते ही मेरी पत्नी ने बताया कि मोबाइल फोन काम करने लगा है। उसने मोबाइल फोन से बात कर ली है और फारूक नामक व्यक्ति हम लोगों को लेने के लिए आ रहा है।
हवाई अड्डे पर मुझे लगा कि मैं फ्रेश हो लूं। मै पुरूषों के टायलेट में गया। यह काफी साफ सुथरा था। यहां पर सब कुछ नये समय के अनुसार था। नल खोलने के लिए हाथ नहीं लगाना पड़ता था। हाथ ले जाने पर नल से पानी अपने आप गिरता था यह फोटो इलेक्टिक एफॅक्ट के कारण होता है। मुझे जो वहाँ सबसे खास बात यह लगी कि वहां पर एक सीट भारतीय पद्वति के अनुसार थी। साउथ अफ्रीका की सरकार को आभास है कि भारतीय लोग अपनी पद्वति के तरह की सीट पर ही फ्रेश होना पसंद करते है।
हमारी मोबाइल से बात हो जाने के कुछ देर बाद, फारूक हमें जॉहन्सबर्ग हवाई अड्डे पर आये। वह बेहद मजेदार व्यक्ति निकले।
साउथ अफ्रीका में अपराध – जनसंख्या अधिक और नौकरियां कम
हमें किसी को जॉहन्सबर्ग हवाई अड्डे {नया नाम टैम्बो अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (Tambo International Airport)} पर लेने आना था पर वहां हमें कोई नहीं मिला। मोबाइल से बात करने के बाद पता चले कि उन्हें सूचना मिलने में कुछ गड़बड़ हो गयी थी इसी लिये कोई नहीं आ सका था।
मोबाइल से बात हो जाने के कुछ देर बाद, फारूक हमें पर लेने आये। वह बेहद मज़ेदार व्यक्ति निकले। उनको साउथ अफ्रीका के बारे में अच्छा ज्ञान था। वे हिन्दी में बात कर रहे थे। उन्होंने बताया,
‘मेरे बाबा सूरत में रहते थे। वे पहले डरबन में आये। उनका मकसद यहां पर व्यापार करने का था। शुरू-शुरू में खाली बोतले खरीद कर बेचते थे। उसके बाद कुछ पैसा इक्टठा करके उन्होंने मिठाई की दुकान शुरू कर दी। यह दुकान ‘मुल्ला स्वीट मीट हाउस’ नाम से आज भी डरबन में चलती है। इसमें मुख्यत: गुजराती मिठाई बिकती है। इस दुकान को उनके चाचा चलाते हैं। इसमें इस समय एक रेस्ट्रां भी है।’
मैंने पूछा कि आप जॉहन्सबर्ग क्यों आ गये। उनका कहना था,
‘मैं बचपन से डरबन में रहा और वहां पर रहते-रहते ऊब गया। इसलिए व्यापार करने जॉहन्सबर्ग आ गया। मै टैक्सी/ ट्रैवल सर्विस चलाता हूँ।
मेरे पिता ऊर्दू बोल व लिख लेते थे। मेरी माँ गुजराती बोल और लिख पाती थीं और मैं स्वयं अग्रेंजी, हिन्दी, ऊर्दू और गुजराती बोल लेता हूँ।’

कार में रास्ते भर रेडियों बज रहा था। इस प्रोग्राम को एक लड़की प्रस्तुत कर रही थी। वह बोलती तो अंग्रेजी में थी पर गाने हिन्दी के सुनवा रही थी। फारूक ने बताया,
‘यह साउथ अफ्रीका में भारतीयों द्वारा चलाया जाने वाला एक रेडियो स्टेशन है। इसका नाम लोटस (Lotus) कमल है। सबसे पहले भारतीय जिस पानी के जहाज द्वारा साउथ अफ्रीका गये थे उसका नाम लोटस था इसलिए इस रेडियो स्टेशन का नाम भी लोटस रखा गया है।’

जॉहन्सबर्ग में यह भी देखने को मिला
फारुक के साथ जॉहन्सबर्ग से प्रिटोरिया का सफर बहुत अच्छा बीता। हम लोग जिस रोड़ पर जा रहे थे, वह बेहद अच्छी व साफ सुथरी थी। उसको देख कर लगता था कि साउथ अफ्रीका में बहुत प्रगति हुई है। वे हमसे कहीं आगे है पर यहां पर अधिकतर सफेद लोग ही दिखाई पड़े।
‘यहां पर नौकरियां कम हैं और लोग ज्यादा है। यही कारण है कि यहां पर अपराध की संख्या बहुत अधिक है।’
प्रिटोरिया में हमें, ग्राडन कोर्ट हैटफील्ड (Garden court Hatfield) में ठहरना था। वहाँ पहुँच कर लगा कि क्यों न मैं ईमेल चेक कर लूँ। बर्लिन (जर्मनी) यात्रा के दौरान, मैं जिस होटल में ठहरा था उस होटल के नीचे लॉज़ में एक कम्पूयटर रखा था जहाँ अन्तरजाल पर जाया जा सकता था इसके इस्तेमाल करने के लिए कुछ पैसा नहीं देना पड़ता था। इसी तरह यहाँ भी एक कम्पूयटर था। मुझे लगा कि यह भी जर्मनी की तरह मुफ्त होगा लेकिन पास जाकर उसकी नोटिस पढ़ी तो उसमें लिखा था कि इसको प्रयोग करने के लिए आपको १५ मिनट के लिए १५ रैंड (यानी की लगभग ९०/-रूपये) और आधे घण्टें के लिए २५ रैंड देनें होगें। अपना देश समान्यता में आधे घण्टें का दाम १५/-रूपया लगता है। मुझे लगा कि यह तो बहुत मंहगा है।
हम लोग शाम को रात का खाना जल्दी खाकर सो गये क्योंकि अगले दिन सुबह ही हम लोगों को क्रुगर राष्ट्रीय पार्क जाना था। अफ्रीका में बहुत सारे पार्क है पर शायद क्रुगर पार्क अफ्रीका का सबसे अच्छा और सबसे व्यवस्थित जानवरों का पार्क है।
यह मेरी तरफ से आपको भेंट है
हम लोग सुबह, कुगर राष्ट्रीय पार्क के लिए निकले। होटल में नाश्ता मुफ्त रहता है लेकिन हम लोगों को साढ़े ६ बजे निकलना था और नाश्ते का समय सात बजे शुरू होता था। होटल वालों ने हमें नाश्ता पैक कर दे दिया ताकि उसे हम रास्तें में खा सकें।
हमको लेने के लिए मिस्टर जेम्स ट्योटा वैन लेकर आये थे। यह उस कम्पनी के साथ काम करते है जिनके साथ हम लोगों क्रुगर पार्क घूमनें का पैकेज लिया था। इसमें लगभग १२ लोग बैठ सकते हैं लेकिन जेम्स के मुताबिक ज्यादा भीड़ नहीं है और केवल हम ही लोग हैं।
हमें दो रातें हेज़ी व्यूह (Hazyview) शहर के उंभाबा होटल (Umbhaba Lodge) में, और तीसरी रात पिलिग्रमस् रेस्ट ( Pilgrim’s rest) शहर के रॉयल होटल में रूकना था।

खेतों में पानी की यांत्रिक सिंचाई
यहाँ पर खेतों की सिचाईं एकदम आधुनिक तकनीक के द्वारा, यंत्रो से होती है। रास्ते में न केवल हमें खेती के, पर जानवरों के फार्म भी मिले। जानवरों के फार्म पर तरह -तरह के जानवर हिरण, शुतुरमुर्ग आदि थे । यह सब मांस खाने के लिए पाले जाते है। शुतुरमुर्ग के अण्डें मे छेद कर, उसके अन्दर का पदार्थ निकाल, उसे अच्छी तरह से सजाया जाता है। उसके बाद वे यादगार निशानी की तरह बेचे जाते हैं।

चित्र विकिपीडिया से
रास्ते में, हमें एलो वीरा के भी बाग दिखे। जेम्स ने बताया कि यह काफी मात्रा में पैदा किया जाता है। शुभा ने बताया,
‘यह पेड़ से तरह तरह की दवाईयां बनती हैं और त्वचा के लिये क्रीम भी बनायी जाती है। अपने घर में भी इसका पेड़ लगा है। पिछले साल हमारी बिटिया रानी इसी तरह की Crema Hidernante Aloe Vera नाम की स्पेन में बनी Moistturizing cream लायी थी। जो कि काफी अच्छी है।’
रोड बहुत अच्छी और सीधी थी। मुझे कुछ साल पहले अमेरिका जाने का मौका मिला था। साउथ अफ्रीका में रोड़ देखकर वहां के रास्ते की याद आयी। हांलाकि साउथ अफ्रीका में लोग अपने देश की तरह बांयी तरफ चलते है। आगे कुछ दूर चलने पर एक जगह बोर्ड दिखायी पड़ा जिसमे लिखा हुआ था,
‘क्राइम जोन डोंट हाल्ट’।
मैंने जेम्स से पूछा ऎसा क्यों लिखा है तब जेम्स का कहना था,
‘यह जगह मौज़म्बीक देश के पास है और वहाँ के बहुत से लोग यहां आ जाते है और कारें रोक कर लूटते हैं। इसीलिए लिखा हुआ है कि यहाँ मत रूकिए।’
शायद यह बात सच नहीं है। साउथ अफ्रीका में अपराध काफी हैं। मुझे लगता है कि जेम्स अपने देश की बुराई नहीं करना चाहते थे। इसीलिये उन्होंने यह बात कही।
रास्ते में, हम लोगों को एक ट्रक मिली जिसमे फर्नीचर का समान लदा हुआ जा रहा था । जेम्स ने बताया कि ये लोग मौज़म्बीक से आये है और यहां से पुराना माल ले जाकर, वहां महंगे दामो में बेचते हैं।
रास्ते में, एक स्टील प्लान्ट, स्क्रैप प्लान्ट और पेपर मिल मिली। बहुत सारे थर्मल पावर स्टेशन मिले। जेम्स के मुताबिक साउथ अफ्रीका में दो हाइडिल पावर स्टेशन हैं जिसमें एक सनसिटी के पास है। जेम्स ने हमें सनसिटी देखने जाने की सलाह दी। उसके मुताबिक यह बहुत सुन्दर जगह है और यहां पर ऎश्वर्या राय, मिस वर्ल्ड चुनी गयी थी।
रास्ते में टोल एरिया गेट बना हुआ था जिसमें रास्ते के मेनटेंस के लिए पैसा देना पड़ता है। यही कारण है कि यहां की रोड़ बेहतर हैं। रास्ते में जगह जगह पर, पेट्रोल भरने की जगह है जहाँ बाथरूम जाया जा सकता हैं। यह बहुत साफ थे। मुझे लगा कि काश अपने भारत मे कुछ इस तरह की चीज़ें होती जिसका हम लोग प्रयोग कर सकते, तो कितना अच्छा होता।
हम लोग आधा रास्ता तय करने के बाद एक पेट्रोल पम्प पर रूके । यहाँ खाने पीने का समान भी मिलता था। यह बहुत अच्छी साफ सुथरी जगह थी। हम लोग बहुत सबेरे उठ गये थे इसलिए नींद भी आ रही थी। मैंने जेम्स से पूछा कि क्या वे कॉफी लेना पसंद करेगें। उन्होंने कहा, जरूर। हम कॉफी पीने के लिए वहाँ पहुँचें।
मेरी पत्नी ने कॉफी लेने से मना कर दिया । हम लोगों ने दो कॉफी के लिए आर्डर दिया। जो लड़की काफी बना रही थी उसने कॉफी देने के पहले क्रीम से उस पर सुन्दर सा फूल बनाया। यानि कि कॉफी के ऊपर क्रीम से नक्काशी। यह बहुत सुन्दर लग रहा था। मैंने उससे कहा,
‘मैं हिन्दुस्तान से आया हूं और मैंने कभी भी इस तरह से नक्काकाशी की हुई कॉफी नहीं पी है। क्या मैं कॉफी बनाते समय, उसका चित्र ले सकता हूं।’
वह मुस्कुरायी और उसने कहा जरूर। उसने एक कप कॉफी और बनायी जिसे मेरी पत्नी नें ले लिया पर तीसरी कॉफी का पैसा नहीं लिया। वह मुस्कुरा कर बोली,
‘यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।’
उस लड़की ने अपना नाम यंतोरा बताया। वह मुस्कुरा रही थी और उसकी बातचीत करने का ढंग बहुत प्यारा था।
रास्ते में जो भी कस्बे मिलते थे उनके नाम के अन्त में बाद डॉर्प (Dorp) लिखा हुआ था। जेम्स ने बताया कि यह डच भाषा का शब्द है जिसका अर्थ कस्बा होता है इसलिए यह कस्बे के नाम के बाद लिखा है।
हमें रास्ते में, यूक्लीपिटिस, चीड़, केले, काजू , संतरे, और आम के बगीचे मिलें। जेम्स ने बताया कि यूक्लीपिटिस का प्रयोग मकान में फर्नीचर और पेपर बनाने में होता है। केलों को प्लास्टिक से ढ़क कर रखा था। यह इसलिए किया जाता है कि उन्हें बंदर न खा सके और उनमें कीड़े न लगें।
रास्ता व उसके अगल बगल की जगह बेहद साफ सुथरी थी। जेम्स ने बताया कि म्यूनिसपल्टी इसको साफ करने के लिए टेंण्डर बुलाती है और वे लोग साफ रखतें हैं। रास्ते में हमनें गाड़ी में

उंभाबा होटल जहां हम हेज़ी व्यूह में ठहरे थे
पेट्रोल भरवाया। पेट्रोल पम्प पर लिखा था, यहाँ मोबाइल फोन पर बात करना मना है। मैंने पेट्रोल मालिक से पूछा हमारे भारत में ऎसा नहीं होता है। यहाँ पर ऎसा क्यों लिखा है? उसका जवाब था,
‘मोबाइल फोन चार्ज करते समय या बात करते समय वे अक्सर फट जाते हैं । यदि पेट्रोल पम्प पर बात करते समय फट जाये तो अर्नथ हो सकता है। इसलिए यहाँ पर मोबाइल पर बात करना मना है।’
हम लोग रास्ते का आनन्द लेते हुए १२ बजे तक हेज़ीव्यूह ( Hazyview) पहुंच गये। यहीं उम्भाबा लॉज़ (Umbhaba Lodge) में हमें दो रातें गुजारनी थी। हम लोगों ने, यहां पर अपना समान रखा और क्रुगर पार्क के लिए चल दिए क्योंकि दोपहर को एक सफारी में जाना था।
क्रुगर पार्क की सफाई देख कर, अपने देश की व्यवस्था पर शर्म आती है
क्रुगर राष्ट्रीय पार्क (Kruger national park) पार्क साउथ अफ्रीका में जानवरों को सुरक्षित रखने की जगह है। यह लगभग १८,९८९ वर्ग किलोमीटर (७३३२ वर्ग मील) में फैला है और उत्तर दक्षिण ३५० किलोमीटर (२१७) मील और पूरब पश्चिम ६० किलोमीटर (३७मील) है। इस पार्क के चारो तरफ तार लगे है जिसमें हल्की सी बिजली दौड़ती रहती है। यह इसलिए की जानवर बाहर न जा सके।

पॉल क्रुगर का वैनिटी फेयर से कार्टून - विकिपीडिया से
पॉल क्रुगर (Paul Kruger) ट्रांसवाल गणराज्य (Transvaal Republic) के राष्ट्रपति थे। उन्होंने, १८९८ में, इस पार्क की स्थापना घटते हुऐ जानवरों की संख्या और शिकार को रोकने के लिय की।
क्रुगर नेशनल पार्क की सबसे अच्छी बात, वहां की सफाई है।
क्रुगर पार्क में, हम लोगों ने दो दिन में, लगभग १४ घण्टें, वहां पर व्यतीत किये। एक बार दिन में २ बजे से लेकर ८ बजे रात्रि तक और अगले दिन सुबह ६ बजे से २ बजे तक। वहां पर एक भी कागज, शीशे की बोतल, प्लास्टिक, या रैपर नहीं दिखायी पड़ा। हमें हिन्दुस्तान के लगभग सारे राष्ट्रीय पार्क जाने का अवसर मिला है। वहां पर रैपर और प्लास्टिक की भरमार ही दिखायी देती है।
पार्क में दूसरी अच्छी बात यह थी कि उस पार्क में दो ऎसी जगह हैं जहां पर आप नाश्ता या खाना खा सकतें हैं और बाथरूम जा सकते हैं। पूरी जगह की सफाई देखने लायक थी। इसे देख कर मुझे अपने देश की व्यवस्था के बारे में शर्म आयी।
इस पार्क में मुझे एक बात और बहुत अच्छी लगी। इसमें जगह जगह सोलर पैनल (Solar panel) और हवा की चक्की (Wind mill) लगी थी । मैंने वहां इसका कारण पूछा तो हमें बताया गया,
‘एक बार यहां पानी की कमी के कारण जानवर मरने लगे तब सरकार ने इन्हें लगाया। इससे बिजली पैदा कर पम्प चलाये जाते हैं जो जमीन से पानी निकाल कर पोखरों में जानवरों के लिये डालते हैं। जंगल के अन्दर बिजली के तार इसलिये नहीं लगे हैं कि उससे आग लगने का खतरा होता है। इनमें यह खतरा नहीं है।’
मुन्ने को जानवर पसन्द थे। इसलिये साल में एक बार हम लोग जंगलों में जाया करते थे पर यह जंगल, भारत के जंगलों से एकदम अलग है। भारत में जंगल बहुत घने होते हैं जब कि यह जंगल घना नहीं है। और इसमें झाड़िया हैं और जहाँ तक आपकी नजर जाती है वहां तक सब देख सकतें है। इसी कारण यहां पर ज्यादा जानवर दिखाई पड़ते हैं। हम लोगों ने इस पार्क में जितने भी जानवर देखे उतने जानवर भारत के सारे जंगलो में मिलकर नहीं देखे थे। क्रुगर पार्क में प्रति व्यक्ति को प्रति दिन में १३२ रैंड फीस देनी पड़ती है। उसको देने के बाद, हम लोग पार्क के अन्दर गये। जहां, हमारे जंगल में गाइड, रॉड्रिक्स, हमारा इन्तजार कर रहे थे।
हम दोनो व्यापार कर बहुत पैसा कमा सकते हैं
रॉड्रिक्स, एक प्राइवेट गाइड है और जिस कम्पनी के साथ हमने पैकेज़ लिया था वे उसी के साथ काम करते हैं।
दो दिन हम रॉड्रिक्स के साथ रहे। इस बीच मेरी इससे काफी मित्रता हो गयी। उसने हमें काफी कुछ अपने बारे में बताया। उसने बताया कि वह एकल पिता है और उसके दो बच्चे हैं जिनमें एक १५ साल का और दूसरा ११ साल का है। वे उन्हीं के साथ रहते हैं। पत्नी, उनसे अलग, जॉहान्सबर्ग मे रहती है। शायद, उन दोनो के बीच में तालाक हो गया है। मैंने इस बारे में और विस्तार से कुछ बात करना उचित नहीं समझा। रॉड्रिक्स के मुताबिक साउथ अफ्रीका में ५०% शादियां टूट रहीं हैं।
रॉड्रिक्स, अपने बच्चो के बारे में चिन्तित थे कि कहीं उनमें खराब आदत न पड़ जाए। इसी लिये वे उनके सामने शराब नहीं पीते हैं। उनके घर में केवल कोल्ड ड्रिंक्स रहती हैं जिसे वे लेते हैं।
रॉड्रिक्स कुछ आगे बढ़ने वाले व्यक्ति लगे क्योंकि उन्होनें कुछ देर बात चीत के बाद कहा,
‘आप मुझे बहुत अच्छे लगे यदि आप मेरे साथ आ जाएं तो हम व्यापार कर बहुत पैसा कमा सकते हैं।’
वे चाहते थे कि मैं उनके व्यापार में हाथ बंटाऊंं या उन्हें ऎसे लोगों से मिला सकूं, जो उनके व्यापार में हाथ बंटा सके। मेरे लिए, यह मुश्किल काम है। मैंने कहा,
‘मुझे व्यापार करना नहीं आता है और मैं व्यापार नहीं कर पाऊंगा। यदि आप व्यापार करने को सोचते है तो आपको पर्यटन के लिए काम करना चाहिए। इसके लिए इण्टरनेट का प्रयोग करना अच्छा है। व्यापार के लिए आवश्यक है कि वह सुव्यस्थित हो और इसके लिए अलग से व्यवस्था करनी होगी।’
रॉड्रिक्स के पास ट्योटा वैन थी जिसमें कुछ बदलाव कर दिये गये थे। इसमें बैठने के लिये सीटें तीन पक्तियों में थी। यह एक खुली गाड़ी थी जो कि ऊपर से ढ़की थी। हमने इसी पर दोपहर की सफारी ली।
फैंटम, टार्ज़न जैसे चरित्य का जन्म – किंग सॉलमन माइनस् पुस्तक से
क्रुगर पार्क में दोपहर की सफारी के समय, हमारे साथ न्यूजीलैड से आए हुए एक दम्पत्ति, उनकी पुत्री व ब्रिट्रानी दम्पत्ति थे ।
भारत के जंगल के पार्क में सबसे ज्यादा चीतल दिखाई पड़ते है और यहां पर सबसे ज्यादा इम्पाला है। यह हिरण जाति का एक जानवर है। हम लोग हिरण जाति के लगभग सभी जानवरों को देखा।
हिरणों के अतिरिक्त, हमने ज़ेबरा (Zebra), हिप्पोपोटामस (Hippopotamus), जंगली सुअर (Wild Boar), ज़िराफ (Giraffe), बबून बंदर (Baboon), नीला वाइल्डबीस्ट (Blue Wildebeest), हाथी (Elephant), गेंडें (Rhinoceros), जंगली भैसों (African Buffalo), (Spotted Hyena) के झुण्डों को देखा।
यहां पर हमनें तरह-तरह की चिड़ियों (लगभग ४०-५० तरह की) को भी देखा। चिड़ियाएं तेजी से उड़ती थी कि हम लोगों ने उनका चित्र नहीं खींच पाए।
रॉडिक्स के पास जानवरों की एक बहुत अच्छी गाइड पुस्तक थी। जब हम किसी जानवर के बारें मे पूछते थे तो रॉडिक्स हमें उसी से दिखाते थे ताकि हम उसे ठीक प्रकार से जान सकें।
जंगल में घूमते समय मैने रॉड्रिक्स से पूछा कि क्या यहाँ पर टार्जन और फैन्टम के चरित्र लोकप्रिय हैं? उसने कहा,
‘मैंने न तो, यह नाम, कभी सुने हैं न ही वे लोकप्रिय हैं।’
मुझे आश्चर्य हुआ। जो चरित्र अफ्रीका के जंगलो पर आधारित है वे अफ्रीका में ही नहीं जाने जाते हैं। मुझे इस पर भी आश्चर्य हुआ कि इनके बारे में न्यूजीलैंड और इग्लैंड से आये दम्पत्ति को भी कुछ नहीं मालूम था हांलाकि उन्होंने किंग सॉलमन माइनस् का नाम सुना था पर पढ़ी नहीं थी।
किंग सॉलमन माइनस् अंग्रेजी साहित्य की उच्च कोटि की पुस्तक मानी जाती है और इसी ने लोगों के मन में अफ्रीका के जंगलो के बारे में उत्सुक्ता जताई और टार्जन एवं फैन्टम जैसे चरित्र का जन्म हुआ।
रॉड्रिक्स ने शाम को हमें पार्क में छोड़ दिया। पार्क के आफिस से हमें शाम की सफारी लेनी थी और यह सफारी केवल पार्क के लोग ही करा सकते थे। न्यूजीलैंड से आये दम्पत्ति यह सफारी नहीं ले सकें क्योंकि यह उन्हें पिछली रात लेनी थी पर वे इसे नहीं ले पाये थे।
इस सफारी में हमारें साथ कुछ और लोग (तीन लड़के व एक लड़की) भी थे। मेरे विचार से अमेरिकन लग रहे थे। वे बात-चीत से घमण्ड़ी लगते थे। यह अमेरिकनों की खास पहचान है वे दुनिया के सबसे बड़े दादा है। वे जो करते हैं वह ही ठीक- अपने आगे दूसरों को कम समझते है। अब समय बदल रहा है शायद वह कुछ सीखें और बर्ताव में परिवर्तन करें। नम्रता, दूसरों को समझना, सबसे बड़ा गुण है यही कारण है कि हमारी सभ्यता इतनी पुरानी होते हुए आज भी जीवित है पर अन्य पुरानी सभ्यतायें समाप्त हो गयी।
लौटते समय हम लोगों की गाड़ी के साथ दो अलग-अलग समय खरगोश आगे आ गये और आगे आगे चलते रहे। जब गाडी तेज हो तो वे तेजी से दौड़ कर सड़क पार करते थे मानों वे हमें रोकना चाहते हैं। हमारे गाईड ने बताया कि इन्हे रोशनी पसंद है और ये रोशनी से खेलना चाहते है। हम लोगों ने जब अपनी गाड़ी की लाइट बंद कर दी तो वे वापस जंगल में चले गये।
हमारी शाम की सफारी, रात के लगभग ८ बजे खत्म हुई और हम लोग वापस अपनी लॉज में आ गये।
हिन्दुस्तानी, बिल्लियों से क्यों डरते हैं
उम्भाबा लॉज़ में हमारे कमरे का दृश्य
इस ट्रिप में सुबह का नाश्ता और रात का खाना मुफ्त था। दोपहर के खाने के समय हम घूमते रहते थे। इसलिये घूमने की जगह ही खाने की बात थी। नाश्ते में हमेशा फलों का रस रहता था पर रात के खाने में न तो रस रहता था न ही पानी। वे लोग चाहते हैं कि रात के खाने के समय लोग शराब या वाइन लें। साउथ अफ्रीका के प्रत्येक रेस्ट्रां में बार रहता था। उम्भाबा लॉज में भी था। उसे एक महिला देख रही थी। वह उसकी साक़ियः थी। रात के भोजन के समय, वह महिला हमारी टेबल पर आयी और पूछा,
हमने बताया कि हम शराब नहीं पीते हैं पर क्या वह हमारे लिये मॉकटेल (Mocktail) बना सकती है। भारत में यह शब्द प्रचलित है पर लगता है कि वहां नहीं है। उस महिला ने यह शब्द कभी नहीं सुना था। उसने पूछा यह क्या होता है मैंने उसे बताया,
‘कॉकटेल में शराब डालते हैं। मॉकटेल में शराब की जगह जूस डालते हैं और इसे सोडा के साथ बनाया जाता हैं। चूंकि इसमें शराब नहीं होती है इसलिये इसे मॉकटेल कहते है। भारत में पार्टियों में यह अक्सर ली जाती है। अगली बार जब कोई भारतीय उनके लॉज़ में रुके और शराब न पीना चाहे तो वह उनसे यह पीने के लिये पूछ सकती है।’
वह महिला मेरे लिये एक मॉकटेल बना कर लायी। यह उसने पहली बार किया था। इसलिये यह उतनी अच्छी नहीं बनी थी जैसा कि भारत में दावतों या रेस्ट्रां में पीने को मिल जाती है।
उम्भाबा लॉज़ में एक काली और सफेद रंग की बिल्ली थी। मैं उसको कुछ खिला रहा था तो उस महिला ने मुझसे पूछा,
‘क्या आपको डर नही लगता है। क्योंकि भारतीय लोग बिल्ली से डरते है। जब भी वे हमारे लॉज़ में ठहरते है तो हमें बिल्ली को बंद करके रखना होता है।’
मैंने कहा,
‘मैने हमेशा जानवर पाले हैं। हमारे यहां तरह तरह के जानवर रहे हैं इसलिए मैं बिल्ली से नहीं डरता। हालांकि बिल्ली से थोड़ा घबराता हूं क्योंकि मैंने कभी भी बिल्ली नहीं पाली है। यदि साउथ अफ्रीका में बिल्ली ने काट लिया तो मै क्या करूंगा। भारत में बिल्ली नहीं पाली जाती है पर कुत्ते पाले जाते हैं इसलिए भारतीय लोग बिल्ली से घबराते हैं पर कुत्तों से नहीं।’
महिला ने कहा कि यह बिल्ली पालतू है और तंग नहीं करती है। उसने मुझसे यह भी बताया कि,
‘बिल्ली पालन बहुत आसान है इनकी सफाई नहीं करनी पड़ती है और बिल्ली को खाना देने की जररूत नहीं है वह अपना खाना खुद ढूंढ लेती है।’
मैं अपने मित्रों के लिये वाइन लेना चाहता था। मैंने उससे वहां की अच्छी वाइन के बारे में पूछा। उसने कहा,
‘आप लॉज़ से वाइन मत लीजिये यह महंगी पड़ेगी। आप बाज़ार से १९९६ में बनी कोई भी वाइन ले लीजिये क्योंकि उस साल अंगूर की फसल सबसे अच्छी हुई थी और उस साल की बनी वाइन सबसे बेहतरीन है।’
मैंने, वाइन, हवाई अड्डे से ली पर १९९६ की बनी वाइन नहीं मिल पायी।
हम लोग न केवल थके थे पर जोर की भूख भी लग रही थी। खाना खा कर जल्दी सोने चले गये। हमें अगले दिन क्रुगर पार्क में, सुबह की सफारी लेनी थी।
आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये
क्रुगर पार्क में, हमने सुबह की भी सफारी ली। सुबह की सफारी में हमारे साथ वही न्यूजीलैंड के दम्पत्ति उनकी पुत्री और ब्रिटानी दम्पत्ति थे। न्यूजीलैंडर पिछले दिन भी और इस समय भी गाडी के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठे। पीछे की सीट ऊंची होती है शायद वहां से सबसे अच्छा दिखाई पड़ता हो इसीलिए वे सबसे पीछे की सीट पर बैठना पसन्द करते थे। ब्रिटिश दम्पत्ति कुछ देर से आये इसलिए बीच वाली सीट पर हम लोग बैठ गये। हम लोग पिछले दिन भी साथ थे, वे हमारे ही लॉज़ में ठहरे थे – हमारी उन सब से अच्छी मित्रता हो गयी।
सुबह सफारी में ठंडक होती है। हमें हिदायत दी गयी थी कि हम ठीक प्रकार से कपड़ें पहनें। हमने कपड़े भी पहने पर इसके बावजूद भी हमें ठंडक लगने लगी। न्यूजीलैंड और ब्रिटेन से आये दम्पत्ति में, पत्नी या तो पति की गोद में बैठ जाती या फिर वे एक दूसरे को आलिंगन में ले लेते ताकि वे एक दूसरे को गर्मी पहुंचा सकें पर शुभा – वह तो एक भारतीय की तरह छटक कर सीट के दूसरे कोने पर जा बैठी। उनकी तरह से बैठने पर, उसे और मुझे दोनो को शर्म आ रही थी – मैं उन्मुक्त होकर भी मुक्त नहीं, अपने बन्धनो में जकड़ा हूं। इस तरह का बर्ताव, विदेशियों से एकदम अलग है। हम लोग, सार्वजनिक जगहों में प्रेम या स्पर्श करने में हिचकते हैं।
हम से, न्यूजीलैंड से आये दम्पत्ति ने कहा,
‘आप लोग भी पास पास क्यों नहीं बैठते। भारत में तो खजुराहो (Khajuraho), कोर्णाक (kornak sun temple) जैसे मन्दिर हैं और कामसूत्र (kam sutra) जैसी पुस्तक लिखी गयी है फिर इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहें हैं। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये। मुझे यह कुछ अजीब सा लगता है।’
मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था। मैंने उनसे कहा कि मुझे नहीं मालुम। लेकिन मुझे भी यह अजीब लगता है।
रॉड्रिक्स के पास कम्बल थे। हमने उसे ओढ़ लिया। तब ही ठंड से पीछा छूटा।
सुबह चलते समय कुछ बूंदा बांदी हो रही थी। हम लोगों को लगा कि शायद आज का दिन तो बेकार जायेगा और कोई जानवर नही दिखेगें। लेकिन यह सच नही हुआ। वहां पहुंचने के बाद मौसम साफ हो गया, हांलाकि कुछ ठंड थी। हम लोग तरह तरह के जानवर देख पाये। वे धूप लेने के लिए निकले थे। हमें गैंडे भी दिखायी पड़े।
रॉड्रिक्स ने बताया,
‘गैंडे दो प्रकार के होते है एक तो सफेद (white rhinoceros) और दूसरा काला (black rhinoceros)।’
मुझें तो दोनों का रंग एक ही सा लगा। मैंने जब यह बात कही तो रॉड्रिक्स ने कहा,
‘दोनों का रंग एक है पर उन्हें सफेद या काला इसलिए कहा जाता है कि एक गैंडा बड़ा होता है। इसे सफेद कहा जाता है। दूसरी तरह का गैंडा कुछ छोटा होता है जिसे काला कहा जाता है। सफेद गैंडा केवल जमीन की घास खाता है क्योंकि उसकी गर्दन की बनावट इस प्रकार होती है कि वह अपनी गर्दन ऊपर नहीं कर सकता है और काला गैंडा छोटा होता है और वह जमीन की घास और ऊपर की पत्ती भी खा लेता है।’
मेरे यह पूछनें पर कि क्या वे एक ही योनि के है रॉड्रिक्स इसका ठीक से जवाब नही दे पाये। मैंने पूछा कि क्या इन दोनो के सम्भोग से कोई बच्चा पैदा हो सकता है। उसने कहा कि नहीं। मैंने कहा कि तब वे अलग अलग योनि के हैं अन्यथा बच्चा पैदा हो सकते है।
सच यह है कि गैंडे (rhinoceros) की पांच तरह की प्रजातियां पायी जाती हैं। इसमें से तीन एशिया में और दो अफ्रीका में पायीं जाती हैं। इन्हीं दो के बारे में रॉड्रिक्स हमें बता रहे थे।
पेड़ों पर बहुत बड़े घोंसले बने हुए थे। मेरे पूछने पर कि ये किसके घोंसलें है तो उसने कहा कि इनमे चील, बाज और गिद्व रहते है । मैने इन पंक्षियों को भी वहाँ देखा। यह सफारी ८ बजे समाप्त हो गयी। हम लोग वहीं पर नाश्ता करने के लिये रुक गये पर न्यूजीलैंड और अंग्रेज दम्पत्ति ने वहाँ हमसे विदा ली।
लगता है, आप मुझे जेल भिजवाना चाहती हैं
हम लोग नाश्ता कर पुन: सफारी पर निकल गये, यह सफारी सबसे अच्छी रही क्योंकि सबसे ज्यादा जानवर देख सके। इस सफारी में हम लोग एक पहाडी पर गये थे। ऊपर पहाड़ी पर समतल जगह थी। यह जगह बहुत सुन्दर थी। मेरा मन था कि यहां पर ज्यादा समय गुजारा जाए। लेकिन कुछ देर बाद रॉड्रिक्स ने हमें वहाँ से तुरन्त चलने के लिए कहा। मेरे पूछने पर उसने बताया,
‘खबर मिली है कि शेर दिखें हैं और हमें वहीं चलना है।’

‘वहां कई शेर, और शेरनियां हैं। लेकिन वे कुछ नीचे की जगह पर है इसलिए हम उनको नहीं देख पा रहे हैं।’
शेरनी हम लोगों को थोड़ी देर तक तो देखती देती रही फिर उसके बाद वह आराम से सो गयी जैसे की उसे मालूम हो कि हम लोग उनका कुछ नही बिगाड़ेगें। धीरे धीरे यह खबर हर तरफ फैल गयी और हर तरफ से लोग गाडी लेकर उनको देखने आने लगे। हम लोगों ने आधा घण्टा उन्हीं को देखने में बिताया।
मेरे पास सोनी का कैमरा है। यह चित्रों को १२ गुना बड़ा कर खींच सकती है पर इसमें शेर और शेरनी के चित्र बड़े नहीं आ रहे थे। बगल की गाड़ी में कुछ जर्मन लोग थे। उनमें से एक लड़के के पास बहुत अच्छा कैमरा था। उस लड़के का नाम ग्रेनर रासमस (Greiner Rasmus) था और उसके पास कैनन (cannon ex 400 D) का कैमरा था। मैंने उससे कहा कि क्या वह कुछ चित्र मुझे भेज सकता हैं। उसने कहा जरूर। उसने मेरे पास कई चित्र भेजें हैं। जिसमें से कुछ, पिछली चिट्ठियों पर और कुछ इस चिट्ठी में हैं।
रासमस (Rasmus) २५ वर्षीय नौजवान है। उसने मीडिया, इतिहास और साहित्य में मार्गबुर्ग (Marburg) में उच्च शिक्षा प्राप्त की और दर्शन में डाक्टेरेट ली है।
Gutentag Rasums,
It was pleasure to meet you at Kruger’s Park. Thank you for photographs. They are beautiful and pettier that the ones that I took. Next year I do plan to visit to rain forests in Brazil. I hope you will also be able make it. We can plan to be there together.
Greetings to you from India.
Unmukt
हम लोग दोपहर तक वापस आये, दिन का खाना खाया। वहां पर एक दुकान भी थी जिसमें यादगार के लिए वस्तुएं मिल रहीं थी। मैंने वहां से कुछ वस्तुऐं अपने तथा मित्रों के लिये खरीदीं। काउंटर पर एक प्यारी सी युवती बैठी थी। उसने मुस्कुराते हुऐ कहा कि,
‘आप जानवरों की खाल और शुतुरमुर्ग के रंगे हुऐ अन्डे क्यों नहीं खरीदते। यहां से लोग यह दोनो वस्तुऐं जरूर ले जाते हैं।’
मैं अपने घर में, हमेशा जानवरों की खाल रखना चाहता था पर यहां जानवरो की खाल रखना गैरकानूनी है। इसलिये कभी रखने की हिम्मत नहीं की। मैंने उस युवती से कहा,
‘भारत में जानवरों की खाल रखना गैरकानूनी है। लगता है, आप मुझे जेल भिजवाना चाहती हैं।’
‘यदि आप यह खाल हमसे खरीदेगें तो हम आपको एक सार्टीफिकेट देगें कि आपने इसे यहाँ से खरीदा है। इस पर भारत में, आपको कुछ नही होना चाहिये क्योंकि हमारे देश में, खाल बेचना गैरकानूनी नहीं है।’
मेरा मित्र इकबाल वकील है। मैंने उससे फोन कर यह बात पूछी। उसने स्पष्ट किया,
‘यदि वह लोग सर्टिफिकेट देते हैं तो कोई बात नहीं। तुम इसे खरीद सकते हो। यहां आकर इसे वन विभाग में रजिस्टर करवाना होगा।’
मैं शेर, चीता या तेंदुवे की खाल खरीदना चाहता था पर यह वहाँ नही मिल रही थी हालांकि कई अन्य जानवरों की खाल मिल रहीं थी। मैंने एक छोटी खाल जो स्प्रिंग बॉक (Springbok) नामक हिरण जाति का होता है उसकी खाल खरीदी।
आपको विश्वास नहीं – आप इसका सार्टीफिकेट देख लीजिये अब तो विश्वास हुआ कि नहीं।
भारत वापस आ कर, मैंने वन विभाग को पत्र लिखकर इस खाल को रजिस्टर करने की प्रार्थना की। लेकिन उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि यह प्रतिबंधित खालों में नहीं है। शायद स्प्रिंग बॉक जाति का हिरण अपने देश में नहीं पाया जाता है।
हम लोग वापस होटल के लिए चले। रास्ते में लकडबग्गे (spotted hyena) के बच्चे मिले और वे बहुत देर तक रोड़ पर बैठे रहे। हम लोगों नें अपनी गाडी को कच्चें में उतारकर जाना पडा क्योंकि वह रोड से हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। जगंल में, जानवरों को अधिकार है। यदि वे रोड़ पर हैं तो आप गाडी उनके आगे नहीं ले जा सकते हैं।
हमें अगले दिन पिलीग्रीम्स रेस्ट (Pilgrim’s Rest) जाना था। हम लोगों ने, क्रुगर पार्क में चार सफारी लीं और पार्क में लगभग १४ घन्टे गाड़ी में घूमते हुऐ बिताये। यह अपने आप में थकाने वाला अनुभव था। बाकी समय, हम लोगों ने आराम करने में बिताये।
ऐसा करोगे तो, मैं बात करना छोड़ दूंगी
पिलीग्रीम्स रेस्ट ( Pilgrim’s Rest) जाने के लिये, हमें सुबह केविल लेने आये। हम लोग लगभग ९ बजे, सुबह पिलीग्रीम्स रेस्ट के लिए चल दिए। रास्ते में हम लोगों को तीन जगहें देखनी थी। सबसे पहले हम लोग ग्रास कॉप गॉर्ज (Graskop gorge) देखने गये। यह गहरी सी घाटी है। जिसमें एक तरफ झरना गिरता रहता है। सुबह के समय हर तरफ धुंध ही धुंध थी इसलिए कुछ अच्छी तरह दिखाई नही दे रहा था।
यहां पर, आप चाहें तो घाटी में, एक तरफ से दूसरी तरफ १३५ मीटर तार पर झूल कर जा सकतें हैं या फिर बीचो बीच में आप रस्सी में बांधकर नीचे तक (६८ मीटर), ३ सेकेन्ड में जा सकते हैं। मैंने कहा कि मैं इनमे से कुछ करना पसन्द करूंगा। इस पर मुन्ने की मां, मुझसे, गुस्सा हो गयी। उसने कहा,
‘यदि तुम दोनों में से भी कुछ करोगे तो मैं तुमसे बात करना छोड़ दूंगी।’
हम लोग दूसरी तरफ गये जहाँ से यह हो सकता था। वह रास्ते भर जिद करती रही कि मुझे कुछ नहीं करना है । दूसरी तरफ एक जर्मन दम्पत्ति और उनके बच्चे थे जो कि दोनो कारनामे कर रहे थे। उस वक्त कुछ धुन्ध सी थी। इसलिए मुझे लगा कि बीचो बीच से नीचे जाना ठीक न होगा पर रस्सी में लटक कर, दूसरी तरफ तो जाया जा सकता हूँ। मैंने कैमरा मुन्ने की मां को दे दिया और उससे चित्र खींचने को कहा। उसने कहा,
‘तुम जो करने जा रहे हो। उसे तो मैं देख भी नहीं सकती हूं चित्र लेने का तो सवाल ही नहीं है।’
यह कह कर उसने अपना मुंह दूसरे तरफ कर लिया। मुझे गोवा यात्रा की याद आयी जब मैंने पैरासेलिंग करने की बात की थी। मैंने जर्मन दम्पत्ति से चित्र लेने की प्रार्थना की।
शुरू में तार लटक कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाने में डर लगा पर जब मैं बीचो बीच पहुंचा तो सारा डर समाप्त हो गया और मज़ा आने लगा। नीचे पानी था जिसमें झरना गिरता दिखायी दे रहा था। बीच में पहुंचने के बाद मेरे भार से तार कुछ नीचे हो गया था। नीचे कोई धुंध नहीं थी और मैं एक बेहतरीन नज़ारा देख सका। कुछ देर बाद उन्होनें पुन: मुझे वापस खींच लिया।
‘उन्मुक्त जी, मुझे तो आपकी बात पर बिलकुल विश्वास नहीं है। आप तो डरपोक हैं। अज्ञात हो कर चिट्टकारी करते हैं, न किसी को फोन नम्बर देते हैं न ही किसी चिट्टाकार मिलन में पहुंचते हैं और न ही किसी से मिलते हैं। आप बहुत सी चिट्ठियों पर टिप्पणियां करना चाहते है पर टिप्पणी नहीं करते। तार में लटक कर घाटी में जाना तो हिम्मत का काम है। यह कार्य आपसे नहीं हो सकता इसलिये कोई चित्र नहीं है इस चिट्ठी में – हांकना बन्द कीजिये, हमें न बनाईये।’
मेरे भाई, मेरी बहना, यह सच है कि मैं अज्ञात हो कर चिट्ठाकारी करता हूं, किसी से नहीं मिलता हूं। बहुत सारी चिट्ठियों पर चाह कर भी टिप्पणियां नहीं कर पाता हूं। लेकिन मेरी भी मजबूरी है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि मैं डरपोक हूं। मुन्ने की मां के अनुसार शायद – मैं ज्यादा ही हिम्मती हूं; अपने वास्तविक जीवन में वह करने पहुंच जाता हूं जिसके बारे में लोग सोचते ही नहीं – इस लिये कई बार अपनी जान न केवल खतरे में डाल चुका हूं। खैर यह उसका सोचना है। लेकिन आप यह चित्र देखें अब तो आपको विश्वास हो गया न कि मैं तार पर लटक कर बीचों बीच गया था।
भगवान की दुनिया – तभी दिखायी देगी जब खिड़की साफ हो
हमें, ग्रास कॉप गॉर्ज (Graskop gorge) देखने के बाद, लिस्बन झरना (Lisbon Falls) देखने जाना था। मुझे लगा कि वहाँ पर भी धुंध रहेगी और कुछ देख नहीं सकेगें लेकिन यह झरना कम ऊंचाई पर है इसलिए वहां पर धुंध बिल्कुल नहीं थी।
लिस्बन झरना पर सुन्दर नज़ारा था। वहां पहुंचकर मुझे जबलपुर के धुंवाधार झरने की याद आयी। हालांकि यह झरना जबलपुर के झरने की जितना सुन्दर नहीं हैं पर सफाई के मामले में उससे कहीं बेहतर है।
साउथ अफ्रीका में सफाई तारीफे काबिल थी। वे सफाई के मामले में बहुत आगे हैं। क्या हम कभी साफ रह सकेंगे? हम इतने अधिक हैं कि शायद जब तक हम सब न लगें तब तक यह संभव नहीं। शायद इसके बाद भी नहीं – भारत मां की भी अपनी कमियां हैं वह इतनी बड़ी नही जिसमें हम सब समा सकें।
सफाई न रहने के कारण, बहुत से लोग अपने देश घूमने नहीं आते हैं। मुझे कश्मीर में मिली फिंनलैण्ड की हेलगा कैटरीना की याद आयी। उन्होंने मुझसे कहा था,
‘मुझे भारत पसन्द है। मैं यहां अक्सर आती हूं पर गन्दगी के कारण मेरे बच्चे भारत आना पसन्द नहीं करते हैं।’
हमें बताया गया कि इस घाटी का नज़ारा बहुत ही सुन्दर है पर धुंध के कारण, हम इसे या फिर नदी को देखने से वंचित रह गये। बाद में हम लोगों ने वहां के चित्र देखे और पिक्चर पोस्ट कार्ड खरीदे। जिसे देख कर लगा कि शायद हम लोग वास्तव में भगवान की दुनिया देखने से वंचित रह गये।
यह चित्र मेरे द्वारा नहीं खींचा गया है। एक पिक्चर पोस्ट कार्ड पर था।
सर, पिछली रात, आपने जूस का पैसा नहीं दिया
हम लोग दोपहर तक पिलीग्रीम्स रेस्ट (Pilgrim’s Rest) पहुँचे। यह जगह वर्ष १८७३ मे प्रसिद्व हो गयी थी क्योंकि यहां पर खोदने पर सोना मिला। यहाँ पर जगह जगह से लोग सोना खोदने आने लगे। यह साउथ अफ्रीका में सोने की खादानो में, सबसे ज्यादा सोना पैदा करने वाली खदान बना। यह १९७२ तक चलता रहा। शुरू में, लोग अकेले आकर सोना खोदने का काम करतें थे लेकिन बाद में १८९६ में, ट्रांसवाल गोल्ड माईनिंग स्टेट ( Transvaal Gold Mining Estate) नामक कम्पनी बनी। उनके पास खदानो की जगह और यह कस्बा भी फ्रीहोल्ड में था। वर्ष १९७१ में इस कम्पनी ने इस कस्बे को सरकार को वापस स्थानान्तरित कर दिया। यह पूरा कस्बा ऎतिहासिक धरोहर घोषित कर दिया गया है। पूरे कस्बे को ही राष्ट्रीय सग्रंहालय बना दिया गया है और इसे देखने के लिए लोग आते हैं। यहाँ पर कई संग्रहालय हैं।
यहाँ पर हम लोग रॉयल होटल में ठहरे। जब हम वहां चेक-इन कर रहे थे उस समय बहुत सारे पर्यटक इसकी फोटो खींच रहे थे। मैंने उनसे पूछा,
‘आप इतने चित्र क्यों खींच रहे हैं? क्या आप यहां ठहरे हुए हैं?
उन्होंने कहा,
‘हम यहां नहीं ठहरे हैं पर इसके चित्र इसलिए ले रहे हैं क्योंकि न केवल यह बहुत सुन्दर है पर इसका ऎतिहासिक महत्व भी है।’
मुझे यह समझ में नहीं आया क्योंकि वास्तव में यह किसी अन्य होटल जैसे ही था। उसके बाद जब कमरे में आया तो वहां कुछ चौपन्ने थे जिसमें होटल का इतिहास लिखा था। उन्हें पढ़ कर ही, इस होटेल का महत्व समझ में आया। यह १८९५ में, उन लोगों की सुविधायें देने के लिए बनाया गया जो वहां पर सोना खोदने के लिए आ रहे थे।

यहाँ पर हम लोगों ने चार संग्रहालय देखे।
- पहला, पिलीग्रीम न्यूज़ संग्रहालय था। इसमें वहाँ के छपाई का इतिहास था।
- दूसरा, गैरेज संग्रहालय है। इसमे वह वाहन भी था जिससे सोना निकालने के बाद ले जाया जाता था। कई पुरानी कारें भी थी।
- तीसरा हाऊस संग्रहालय था। इसमें उस समय के प्रयोग किये जाने वाले समान थे। वहां पर मुझे हारमोनियम जैसा वाद दिखायी पड़ा। लेकिन उसके अंदर हवा हाथ से न डाल कर, नीचे पैर से पैडल चला कर डालने की सुविधा थी। इस कमरे में फोटो लगी थी जिसमें एक महिला साड़ी पहने हुई थी । मैंने उस संग्रहालय के देख रेख करने वाले युवक से पूछा कि क्या यहाँ कोई भारतीय रहते थे। वह इस बात की पुष्टि नहीं कर पाया कि इसमें भारतीय रहते थे अथवा नहीं। वह यह भी नहीं बता पाया कि वह वाद हारमोनियम है, क्या उसका कोई और नाम है। शायद वहां के रहने वाले को इस तरह की सूचनायें पता करके रखनी चाहिये।
- चौथा संग्रहालय एक स्टोर था। जिसमें इस बात का इतिहास था कि वहाँ किस किस तरह की चीज़ें बेची जाती हैं और किस तरह के पोस्टर होते थे। यहां कई पोस्टर लगे हुए थे जिसमें एक पोस्टर लैक्टो कैलामाइन लोशन (Lacto Calamine Lotion) का भी था। यह आज भी मिलता है और त्वचा के बचाव के लिये महिलायें प्रयोग करती हैं, पुरुष भी चोरी छिपे इसका प्रयोग करने में नहीं हिचकते हैं 🙂
इस पोस्टर की मॉडेल आड्री हेपबर्न (Audry Hepbern) थी। यह बचपन में मेरी प्रिय कलाकार हुआ करती थी। रोमन हॉलीडे (Roman Holiday), न केवल इनकी पर, रूमानी फिल्मों में सबसे प्रसिद्ध फिल्म है। मैंने इस पोस्टर का चित्र भी लिया जिसे आप देख रहें हैं।
हमारे घूमने के पैकेज में सुबह का नाश्ता और रात के भोजन का पैसा पहले ही ले लिया गया था। इसलिये इनके लिए हमें पुन: कोई पैसा नहीं देना था। रॉयल होटल में रात के भोजन पर एक वेटर ने पूछा,
‘क्या आप कुछ ड्रिंक लेना पसन्द करेगें।’
मैंने कहा कि मैं शराब या वाइन नही लेता हूं और जूस लेना पसन्द करूंगा। मुझे लगता था कि इसका पैसा हमें नहीं देना था पर रात के भोजन में पीने की चीज का पैसा देना था। हम बिना दिए ही चले आए। अगले दिन जब सुबह नाश्ते पर उस वेटर ने हमसे मुस्कुराकर कहा,
‘सर, पिछली रात आपने जूस लिया था और उसका पैसा नहीं दिया है।’
मैंने कहा कितना देना है। उसने कहा साढ़े दस रैंड। मैंने कहा,
‘बिल लेते आओ, मैं दस्तखत कर देता हूं और स्वागत कक्ष पर अदा कर दूंगा।’
उसने जवाब था,
‘इस वक्त मेरे लिए वह पर्ची ला पाना मुश्किल है यदि आपको लगता है कि आपको पैसा नहीं देना है तो मैं पैसा अदा कर दूंगा।’
मुझे उसकी बात में सत्यता लगी। मैंने उसे वह पैसा दे दिया । बाद में स्वागत कक्ष पर लोगों ने इस बात की पुष्टि की, कि वह पैसा हमें देना था।
इस कस्बे के पोस्ट आफिस में अन्तरजाल की सुविधा थी। इस पोस्ट ऑफिस को रोज़ नामक महिला, देख रही थी। उसनें बताया कि आधे घण्टे के लिए १५ रैंड यानी की लगभग ९०/-रूपये देने होगें। मैंने यह पैसे दिए। यह कम्पयूटर विन्डोज़ पर था पर अच्छी बात यह थी कि इसमें फायरफॉक्स था। हलांकि फायर फॉक्स पर हिन्दी ठीक से नहीं दिखायी पड़ रही थी। मैंने अपनी ई-मेल देखीं और उसके बाद, हम वापस प्रिटोरिया चल दिये।
मैंने, आज तक, यहां हवा में कूदती हुई मछलियां नहीं देखी हैं
हम लोग पिलग्रिमस् रेस्ट से नाश्ते के बाद प्रिटोरिआ के लिये चले। रास्ते में हमें चीड़ के बाग दिखाई पड़े इनकी खास बात यह थी कि नीचे तने में कोई डाल नहीं थी। वे काट दी गयी थीं। तना बहुत ऊपर तक सीधे गया था। हमारे ड्राइवर केविल ने बताया,
‘तने पर बगल में जाने वाली डाल इसलिए काट दी जाती है कि तना सीधे ऊपर जा सके। यह मकान तथा फर्नीचर बनाने में सुविधाजनक रहता है।’
पिलीग्रिमस् रेस्ट से प्रिटोरिया पहुंचने में लगभग छः घण्टे लगते हैं। हम लोग रास्ते में डलस्ट्रूम (Dullstroom) नामक जगह में रूके। यहां पर हम लोगों ने रोज़ काटेज नामक जगह पर कॉफी पी। इसके नाम को सच करने के लिये इसके चारो तरफ क्यारियों में गुलाब ही गुलाब लगे थे।
हमारे पैकेज के प्रोग्राम में लिखा था कि डलस्ट्रूम फलाई फिशिंग (Fly Fishing) के लिए प्रसिद्व है। हम इसे ठीक से नहीं समझ पाये थे। यह पढ़कर हमें लगा था कि यह कोई ऎसी जगह है जहाँ पर बहुत सी मछलियां हवा मे कूदती हैं पर हमारे ड्राइवर ने कहा,
‘ मैं यहां से कई बार गुजरा हूं पर मैंने आज तक हवा में कूदती हुई मछलियां नहीं देखी हैं। मुझे इसके बारे में कुछ नहीं मालूम है। लेकिन आप चाहें तो टूर ऑपरेटर से पूछ सकते हैं। यदि वह कोई जगह बताती है तो मैं आपको वहां ले चल सकता हूं।’
हम लोगों ने टूर आपरेटर से पूछा तो वह भी ठीक से नहीं बता पायी। हम लोग कुछ उलझन में रहे कि यह क्या है।
रोज़ काटेज में काफी पीने के बाद जब हम लोग वहाँ से आगे निकले तो रास्ते में एक दुकान थी जिसमें लिखा हुआ था फलाई फिशिंग शॉप, हमारे ड्राइवर ने गाडी रोक ली और कहा कि हम वहाँ जाकर पूछ सकतें है।
इस दुकान के बाहर एक नोटिस लगी थी कि अच्छे स्वभाव के कुत्ते अन्दर आ सकतें हैं। उस दुकान में दो कुत्ते थे जिनका नाम कैटी और एली था। दोनों ही बहुत प्यारे कुत्ते थे। मुझे कोई व्यक्ति पसन्द कर या न करे पर कुत्ते तो मेरे प्रिय हैं वे तो हमेशा मुझे पसन्द करते हैं। मैंने प्यार इनके सर पर हाथ फेरा हाथ मिलाया फिर दुकान के अन्दर गया।
हमनें दुकानवालों से फलाई फिशिंग के बारे में पूछा। उस दुकान में जॉन नाम का लड़का था। उसने बताया कि फलाई वास्तव में एक कांटा है जिसमें मछलियां फंसती है, मछली फंसाने के लिए बेट नहीं लगाया जाता है। उसने तरह तरह के कांटे दिखाये जिसमें अलग अलग रंग के रेशे लगे थे। जॉन के मुताबिक,

Hi John,
It was great pleasure to meet you in Dullstroom. Thanks for telling us information about fly fishing and demonstrating how to cast the rod. I hope you dogs Katti and Elli are fine.
We had wonderful trip of South Africa and will like to visit it again.
With greetings from India
Unmukt
आश्चर्य – सर्कस को चलाने वाले, इतने कम लोग
प्रिटोरिया में हमारे होटल के बगल में एक बहुत बड़ा सा मैदान था। लौटते समय हमनें देखा कि वहां पर एक सर्कस लगा हुआ था। इसका नाम ब्राइन बॉस्वल सर्कस (Brian Boswell’s Circus) था। हम इसे देखने पहुँचे।
इस सर्कस की सबसे सस्ती सीट ५० रैंड और सबसे मंहगी सीट १०० रैंड की थी। हम लोगों ने ५० रैंड का टिकट लेना उचित समझा। इसके रोज दो शो होते थे: एक साढ़े तीन बजे और एक साढ़े सात बजे। केवल शनिवार को तीन शो थे। यह अपने देश की तरह का सर्कस लगता था। यह एक टेंट में था जो कि अपने देश की तरह ही था। हालांकि इस टेंट का घेरा बहुत छोटा, अपने देश के टेंट का, एक तिहाई था।
अपने देश में रात के समय सर्च-लाइट की बीम आकाश में फेंक कर सर्कस की सूचना दी जाती है। यहां इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं थी पर विज्ञापन के लिये इनके पास गाड़ियां थीं जि
स पर शहर में सूचना देने की व्यवस्था थी। इनकी वेबसाइट पर भी इनके प्रदर्शन की विस्तार से सूचना है।
शो में बहुत ज्यादा लोग नही थें ६०-७० लोग रहें होगें। सर्कस शेर और टाइगर के करतब से प्रोग्राम शुरू हुआ। यह उसी तरह का एक शो था जैसे अपने देश के सर्कसों में होता है। उसके बाद कई और करतब थे जिसमें कई जानवरों के थे।

इस सर्कस की खास बात यह लगी कि इसमे बहुत कम लोग थे। वही लोग टिकट चेक कर रहे थे, वही लोग जोकर बने हुए थे, और वही लोग सामान, जिस पर करतब दिखाते थे, उसको हटाते थे। मुझे आश्चर्य लगा कि इतने कम लोग इस सर्कस को चला रहे थे।
एक व्यक्ति कुछ संगीत बजा रहा था और शायद ३-४ लोग उसका सहयोग कर रहे थे जो करतब नहीं कर रहे थे। बाकी सब लोग जो लोग करतब करते थे वही लोग सर्कस में अन्य काम भी करते थे। इसमें कुछ चाइनीज़ युवतियां भी थीं। वे जब करतब नहीं करती थी तो कपड़े बदलकर हम लोगों को पंखे या खाने की चीजें बेचने के लिए इधर उधर घूम रही थीं।

हमारे देश में यदि शुरूवात ट्रेपीज़ के करतब से होती है तो अन्त शेर के करतब से। यहां प्रोग्राम, शेरों के करतब से शुरू हुआ लेकिन ट्रेपीज के करतब द्वारा इसका अंत नहीं हुआ। बल्कि अंत में दो जोकर आ गयें यह वही लोग थे जो बीच में करतब दिखा रहे थे। उन्होंने देखने वालों से तीन महिलायें और एक पुरूष को लिया और चार कोने मे खड़ा कर दिया और एक बॉक्सिंग रिंग बनायी और बॉक्सिंग की ऎक्टिंग करते रहे। इसी के साथ यह पूरा प्रोग्राम समाप्त हो गया।
सारा प्रोग्राम लगभग एक घंटा ४० मिनट चला। सर्कस देखकर मजा आ गया और लगा कि ५० रैंड वसूल हो गये।
अश्वेत लोग और गोरी मेम – वोट नहीं दे सकतीं
साउथ अफ्रीका में हम लोग एक दिन प्रिटोरिआ से जॉहन्सबर्ग घूमने गये। वहां, सबसे महत्वपूर्ण देखने की जगह, रंगभेद सग्रंहालय (एपारथेड (Apartheid) म्यूज़ियम) है। यह सग्रंहालय बताता है कि साउथ अफ्रीका में किस तरह से भेदभाव होता था।
हम लोगों ने टिकट लिया जो कि तीस रैंड का था और साथ ही आडियो सहायता ली। आप जिस जगह पहुँचते है यह आडियो हेल्प अपने आप वहाँ पर लगे चित्रों के बारे में बताती थी। मुझे अच्छी सुविधा लगी इसके लिए हमें १५ रैंड देने पड़े थे। हलांकि हमारे अलावा कोई और लोग इस सुविधा का प्रयोग नहीं कर रहे थे। यह मुझे कुछ अजीब लगा।
हमारे साथ एक टैक्सी ड्राइवर भी था। उसने कहा,
‘मैं यहां कई बार आया हूं पर मैंने इस संग्रहालय को नहीं देखा है।’
मैंने अपनी पत्नी के साथ उसका टिकट भी लिया। कुछ टिकटों में काला सफेद और कुछ में सफेद लिखा हुआ था। यह टिकट इस बात के लिए नहीं दिए गये कि हम लोग काले या सफेद थे। यह टिकट यह समझानें के लिए दिया गया था किस तरह से काले और सफेद में भेदभाव किया जाता था। हम लोग अलग अलग रास्ते से अन्दर घुसे।
सग्रंहालय में पहली अजीब बात यह लगी कि इसमे लिखा हुआ था कि पहले वहाँ पर अश्वेत लोग और गोरी महिलायें वोट देने की अधिकारिणी नहीं थी। मैंने ‘आज की दुर्गा – महिला सशक्तिकरण‘ की कहानी लिखते समय, इसकी ‘महिला दिवस‘ की कड़ी में बताया था कि इस दिवस की शुरुवात महिलाओं को वोट दिलवाने के लिये ही शुरू हुई थी। यहां प्रत्यक्ष सबूत मिल गया।
इस संग्रहालय में सबसे अजीब बात यह थी इसमें महात्मा गांधी का एक भी चित्र नहीं है। सच तो यह है कि इस भेदभाव के खिलाफ उन्होंने यहां पर सबसे पहले लड़ाई लड़ी थी। इस संग्रहालय में उन्हें वह सम्मान नहीं दिया गया जो उन्हें मिलना चाहिए। वहाँ पर शिकायत दर्ज करने की कॉपी थी। मैंने उस पर आपत्ति दर्ज की। यदि आप अब वहाँ कभी जायें और महात्मा गाँधी का चित्र देखें तो वह मेरे ही कारण होगा 🙂
इस संग्रहालय में अजीब तरह की भावनायें मन में आती हैं। मैं वहाँ न जाता तो शायद साउथ अफ्रीका की यात्रा अधूरी रहती।
जॉहन्सबर्ग में महात्मा गांधी की मूर्ति है। सग्रंहालय देखने के बाद हम वहाँ गये। हमारे टैक्सी ड्राइवर को यह जगह नहीं मालूम थी । हम लोगों ने जब उससे कहा कि हम यहां जाना चाहते है तो उसने आसपास के कुछ लोगों से पूछा उसके बाद में वह हमें वहां ले गया। उसने बताया ,
‘मै वहां से अक्सर गुजरता हूं और मुझे नहीं मालूम था कि यह जगह महात्मा गांधी स्क्वैर के नाम से जाना जाता है।’
वह हमें वहां एक जगह ले कर गया। वहां पर एक मूर्ति थी। उसने कहा कि यही जगह महात्मा गांधी स्क्वैर है। हमें वह मूर्ति महात्मा गांधी की मूर्ति नहीं लगी। मैंने कहा कि लगता है कि हम कुछ गलत जगह आयें है पर मूर्ति के नीचे पढ़ने पर पता चला कि यह महात्मा गांधी की ही मूर्ति है। यह मूर्ति उनके उस उम्र की है जब वे साउथ अफ्रीका में थे। यह उनके जवान समय की है। यही कारण है कि हम उसे नहीं पहचान पायें ।
गाड़ी से उतर कर हमनें टैक्सी ड्राइवर से कहा कि हमें १० मिनट के बाद आकर ले लेना क्योंकि वहां पर कोई रूकने की जगह नहीं थी। जिस समय हम उस मूर्ति का चित्र ले रहे थे तब पुलिस जैसा व्यक्ति हमारे पास आया। वह अपने को सिक्योरिटी का आदमी बता रहा था और उसी तरह के कपड़े पहने था। उसने कहा,
‘आप चित्र नहीं ले सकते है और आपको इसके लिए अनुमति लेनी पड़ेगी।’
मैंने उससे कहा,
‘दुनिया में ऎसा कहीं नहीं होता कि किसी सार्वजनिक मूर्ति का चित्र लेने के लिए किसी के अनुमति जरूरत हो।’
लेकिन वह नहीं माना। हम वहां उससे लड़ना नहीं चाहते थे क्योंकि यह नया देश था और वहां पर झंझट पालना ठीक नहीं था। हमनें पूछा कि अनुमति कहां से मिलेगी तो उसने मुझे एक इमारत की तरफ इशारा करके बताया कि वहां मिलेगी।
हम लोग पैदल चलकर उस इमारत के पास गये। वहां पर पहरेदार ने हमसे इमारत के दूसरी तरफ से १३वीं मंजिल पर जाकर अनुमति लेने की बात बतायी। हम लोग इमारत के दूसरी तरफ गये। वहां लिफ्ट ग्यारहवें तल तक जाती थी। इसलिए ग्यारहवें तल तक लिफ्ट से, उसके बाद सीढी चढ़ कर गये।
ऊपर एक बहुत अच्छा सा ऑफिस था। यहाँ पर स्वागत कक्ष मे बैठी महिला से वहाँ जाने के कारण बताया। उसने किसी अन्य महिला से बात करने को कहा। यह काफी सभ्रांत महिला लग रही थी जो अपने चालीस के दशक में होगी। हमने बताया, हम लोग भारत से आयें है, हम महात्मा गाँधी की मूर्ति की फोटो लेना चाहते हैं, कोई व्यक्ति ऎसा करने से मना कर रहा हैं,
‘आपसे इसकी लिए अनुमति लेने की बात की है।’
उस महिला ने कहा कि यह सच है कि आपको इसके लिए अनुमति लेनी पड़ेगी। उसने ऑफिस में बात कर यह अनुमित हमें दी। मुझे यह बहुत अजीब बात लगी। हमनें वापस आकर उस मूर्ति के कुछ चित्र लिए।
महिला के द्वारा दी गयी अनुमति। इसमें उसका मोबाइल नम्बर भी था। वह मैंने हटा दिया है।
प्रिटोरिआ में मेरे मित्रों ने उसी रात पर हमें भोजन पर बुलाया था। उसने वहाँ के लोगों को भी मुझसे मिलने के लिए भी बुलाया था। मैने रात में वहाँ जब लोगों को यह बात बतायी तो उन्हे आश्चर्य हुआ। उनका कहना था कि उन्हें आश्चर्य है कि इमारत के दूसरी तरफ जाने पर किसी ने हमें लूट नहीं लिया। उनके मुताबिक वहाँ पर कोई अपना कैमरा नहीं निकलता क्योंकि उसके छिन जाने का भय रहता है।
इस रात्रि के भोजन पर सारे लोग श्वेत लोग थे। उन्होंने रंगभेद सग्रंहालय के बारे में मेरी राय जाननी चाही। मैने उन्हें महात्मा गाँधी के चित्र का न होने की कमी बतायी। उन लोगों का कहना था इसमें कई कमियां है। मुझे लगा कि वे लोग इस संग्रहालय से प्रसन्न नहीं हैं।
मैं, प्रिटोरिआ से ज्यादा, बम्बई की सड़को पर सुरक्षित महसूस करती हूं
प्रिटोरिया में यदि आप किसी से पूछें कि यहां घूमने की क्या जगह है तो वे बतातें हैं कि यहां पर यूनियन बिल्डिंग देखने के अतिरिक्त कोई भी घूमने की जगह नहीं है।
हम लोग यूनियन बिल्डिंग देखने जाने से पहले, वहाँ पर उच्च न्यायालय को देखने गये। वहां उस कक्ष को भी देखा, जिसमें नेलसन मण्डेला को सजा दी गयी थी। वहां के लोगों के मुताबिक महात्मा गांधी इसी हाई कोर्ट के द्वारा अर्टानी बनाये गये थे और वह यहां अक्सर आकर मुकदमों की बहस करते थे।
उच्च न्यायालय को देखने के बाद हम लोग वहां के यूनियन बिल्डिंग देखने के लिए गये। यहां पर साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति रहते हैं। यह बहुत सुन्दर है।
यूनियन बिल्डिंग के सामने से एक सड़क जाती है उसके सामने एक बहुत बड़ी जगह है जिसमें बगीचा है। यह भी बहुत सुन्दर है।
अपने देश मे राष्ट्रपति भवन में जो बगीचा है उसे आप हर समय नहीं देख सकतें हैं। वह कुछ समय के लिए ही सबके लिए खुलता है । यह भी कुछ देश के राष्ट्रपति के बगीचे की तरह जगह है लेकिन यह पूरी खुली जगह है। वहां पर घूमते हुए, हमारी मुलाकात एक भारतीय दम्पत्ति से हुई। मैंने उससे पूछा की शाम को हम वहाँ क्या कर सकते हैं। उन्होंने कहा,
‘यहां पर शायद शाम में कुछ नहीं हो सकता है। आप एक फ्रीडम पार्क देख सकते हैं लेकिन उसके लिए वहाँ दिन में ही जाया जा सकता हैं।’
कुछ देर बातचीत करने के बाद हमने उनसे पूछा कि क्या आप गुजराती हैं। महिला ने बताया,
‘भारत से दो तरह के लोग आये। एक तो मजदूर के रूप में। ये लोग मुख्यत: बिहार और उत्तर भारत के थे। दूसरे लोग गुजरात से आये जो छोटा मोटा व्यापार करने के लिए वहां पहुंचे थे। मेरे बाबा उत्तर प्रदेश के थे और दादी बिहार की थीं। वे लोग मजदूर के रूप में आये थे।’
‘मैं जब बम्बई की सड़क पर घूमती हूं तो मैं अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हूं । मेरी तीसरी पीढ़ी है उसके बावजूद भी साउथ अफ्रीका की सड़क पर अपने आपको बिल्कुल सुरक्षित नहीं महसूस करती हूं।’
हम लोग वापस अपने होटल आ गये। हमें अगले दिन भारत के लिए वापस चलना था।
अगले दिन सुबह, हम प्रिटोरिया से जॉहन्सबर्ग आये। वहीं साउथ अफ्रीकन एयरलाइन्स की उड़ान पकड़ कर, रात में मुम्बई पहुँचे। रात को वहीं विश्राम किया। अगले दिन अपने कस्बे आ गये।
यह यात्रा विवरण मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर कड़ियों में प्रकाशित हो चुका है। यदि इसे आप कड़ियों में पढ़ना चाहें तो नीचे चटका लगा कर जा सकते हैं।
झाड़ क्या होता है? – अफ्रीकन सफारी पर।। साउथ अफ्रीकन एयर लाइन्स और उसकी परिचायिकायें।। मान लीजिये, बाहर निलते समह, मैं आपका कैश कार्ड छीन लूं।। साउथ अफ्रीका में अपराध – जनसंख्या अधिक और नौकरियां कम।। यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।। क्रुगर पार्क की सफाई देख कर, अपने देश की व्हवस्था पर शर्म आती है।। हम दोनो व्यापार कर बहुत पैसा कमा सकते हैं।। फैंटम टार्ज़न … यह कौन हैं?।। हिन्दुस्तानी, बिल्लियों से क्यों डरते हैं।। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये।।। लगता है, आप मुझे जेल भिजवाना चाहती हैं।। ऐसा करोगे तो, मैं बात करना छोड़ दूंगी।। भगवान की दुनिया – तभी दिखायी देगी जब उसकी खिड़की साफ हो।। सर, पिछली रात, आपने जूस का पैसा नहीं दिया।। मैंने, आज तक, यहां हवा में कूदती हुई मछलियां नहीं देखी हैं।। आश्चर्य – सर्कस को चलाने वाले, इतने कम लोग।। अश्वेत लोग और गोरी मेम – वोट नहीं दे सकतीं।। मैं, प्रिटोरिआ से ज्यादा, बम्बई की सड़को पर सुरक्षित महसूस करती हूं।।
विदेश की बढिया यात्रा