यह श्रृंखला मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर कई कड़ियों में प्रकाशित हो चुका है। इसकी शुरुवात मैंने इस प्रश्न के उत्तर में शुरू की कि,
बेथलेहम का तारा क्या था?
इसमें तीन विषय – बाईबिल, खगोलशास्त्र, और विज्ञान कहानियों – पर चर्चा है।
इसकी अलग अलग कड़ियों को आप नीचे दिये गये लिंक पर चटका लगा कर पढ़ सकते हैं।
इसकी कुछ कड़ियों को, आप सुन भी सकते हैं। सुनने के लिये नीचे लिंक के बगल में ब्रैकेट ( ) के अन्दर लिखे ► चिन्ह पर चटका लगायें। यह ऑडियो फाइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप सारे ऑपरेटिंग सिस्टम में, फायरफॉक्स ३.५ या उसके आगे के संस्करण में सुन सकते हैं। इन्हें आप,
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- Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
- Linux पर सभी प्रोग्रामो में,
प्रभू ईसा का जन्म बेथलेहम में क्यों हुआ?
कहा जाता है कि प्रभू ईसा के जन्म पर एक तारा निकला था। वह बेथलहम के तारे के नाम से जाना जाता है। इसे बेथलहम का तारा इसलिये कहा जाता है क्योंकि प्रभू ईसा का जन्म बेथलेहम में हुआ था। यह कुछ अजूबा है क्योंकि मां मरियम और जोसेफ नाज़रेथ में रहते थे न कि बेथलेहम में। ऐसा कैसे हुआ?
हमारे बचपन में, घर में विज्ञान की चर्चा होती थी पर पूजा-पाठ या रिलिज़न (religion) सम्बन्धित चर्चा नहीं। यह आज भी सच है। मैं कभी भी किसी मिशनरी या फिर अंग्रेजी स्कूल में नहीं पढ़ा। मुझे बाईबिल के बारे में कुछ नहीं मालुम था। कम से कम यह तो बिलकुल नहीं कि, प्रभू ईसा का जन्म बेथलेहम में हुआ था।
मैंने कुछ समय पहले सांख्यिकी के ऊपर चर्चा की थी और ‘आंकड़े गलत बताते हैं‘ चिट्टी पर उस विषय की बेहतरीन पुस्तकों की भी चर्चा की थी। इसमें एक पुस्तक है Facts from Figures by M.J. Moroney. इसका पहला अध्याय है Statistics undesirable.
यह अध्याय, सांख्यिकी के पुराने समय होने वाले प्रयोगों की चर्चा करती है। उसका दूसरा पैराग्राफ, कुछ इस प्रकार है,

सीजर ऑगस्टस {२३.९.६३ ईसा-पूर्व (BC) – १९.८.१४ ईसा-बाद (AD)} जिसने जनगणना की आज्ञा निकाली थी - चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से।
‘We are reminded of the ancient statisticians every Christmas when we read that Caesar Augustus decreed that the whole world should be enrolled, each man returning to his own city for registration, Had it not been for the statisticians Christ would have been born in the modest comfort of a cottage in Nazareth instead of in a stable at Bethlehem. The story is a symbol of the blindness of the planners of all ages to the comforts of the individual. They just didn’t think of the overcrowding there would be in a little place like Bethlehem.’
हर साल बड़ा दिन, हमें उस प्राचीन काल के सांख्यकीविद् की याद दिलाता है। सीजर ऑगस्टस {२३.९.६३ ईसा-पूर्व (BC) – १९.८.१४ ईसा-बाद (AD)} ने आज्ञा निकाली थी कि सारे दुनिया के लोगों की जनगणना होगी और अपना पंजीकरण कराने सब लोगों को वापस अपने शहर आना होगा। यदि वह सांख्यकीविद् न होता, तो प्रभू ईसा, नाजरेथ में अपने आरामदेह घर में पैदा होते न कि बेथलहम के अस्तबल में। यह कहानी योजना बनाने वालों की कमियों को दर्शाती है जो अक्सर किसी खास व्यक्ति के लिये हजारों लोगों को तकलीफ में डाल देते हैं। योजना बनाने वालों ने इतना भी नहीं सोचा कि बेथलहम जैसी छोटी जगह में इतनी भीड़ हो जायेगी।
मां मरियम और जोसेफ नाजरेथ में रहते थे। जोसेफ वेथलेहम के रहने वाले थे। आगस्टस की आज्ञा के कारण उन्हें वेथलहम आना पड़ा। वहां भीड़ के कारण उन्हें किसी भी सराय में जगह नहीं मिली। इसलिये उन्हे अस्तबल में ही रूकना पड़ा। वहीं प्रभू ईसा का जन्म हुआ।
यह पुस्तक प्रभू ईसा के जन्मस्थल को अस्तबल बताती है। जहां तक मुझे मालुम है कि उस जगह भेड़, बकरी रहते थे। क्या भेड़शाला या फिर गौशाला कहना ठीक होगा?
मां मरियम का मायका, बेथलेहम में नहीं था। वहां तो उनका ससुराल था। कैसा संयोग, यदि भगवान कृष्ण ने जेल में जन्म लेना ठीक समझा, तो प्रभू ईसा ने अस्तबल में।
यह जनगणना ६ ईसा-बाद (AD) में हुयी थी। यानी जो साल प्रभू ईसा का जन्म माना जाता है उसके छ: साल बाद। प्रभू ईसा के जन्म के समय निकले तारे के कारण, कुछ लोग कहते हैं कि प्रभू ईसा का जन्म ३ या फिर ७ ईसा-पूर्व (BC) में हुआ था यानि उनके जन्म के कई साल पहले।
प्रभू ईसा का जन्म किस साल हुआ किस दिन हुआ – इसके बारे में कोई निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यह उतना ही प्रमाणिक है जितना कि भगवान राम का जन्म दिन। जहां तक मैं समझता हूं भगवान राम, कृष्ण, ईसा नाम के महापुरूष हुए हैं अन्यथा उनके किस्से इतना प्रचलित न होते पर उनके जन्म के बारे में ठीक समय तय कर पाना मुश्किल है।
क्रिस्मस को बड़ा दिन क्यों कहा जाता है

मॉस्को के चर्च में, बड़े दिन पर आतिशबाजी यह चित्र बीबीसी की वेबसाइट से है और उन्हीं के सौजन्य से है।
प्रभू ईसा के जन्म दिन, २५ दिसंबर को मनाया जाता है। इसे क्रिस्मस कहा जाता है। भारत में यह, बड़ा दिन के नाम से जाना जाता है। ऐसा क्यों है?
यदि आप प्रभू ईसा के जन्म से जुड़ी कथाओं पर नजर डालेंगे तो वे अलग अलग साल, अलग अलग दिन की तरफ इंगित करती हैं। शायद, उनका जन्म सितंबर के महीने में हुआ था। फिर भी, इसे २५ दिसंबर का दिन मान लिया गया है। लोग, इसके अलग अलग कारण देते हैं:
- इस दिन पहले से रोमन उत्सव मनाया जाता था जिसमें उपहार दिये जाते थे।
- जब ईसाई सभ्यता पनपने लगी, तब यह दिन मकर संक्रान्ति के रूप में मनाया जाता था।
शायद, यह दोनो कारण सही नहीं हैं और कोई तीसरा कारण है।
इसे बड़ा दिन क्यों कहा जाता है? यहां यह भी गौर करने की बात है कि २५ दिसंबर को केवल भारत में ही बड़े दिन के नाम से जाना जाता है। बाकी जगह इसे क्रिस्मस के नाम से ही पुकारा जाता है।
सूर्य साल एक में बार उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी गोलार्ध और वापस उत्तरी गोलार्ध आता है। सूर्य जब दक्षिणी गोलार्ध से, उत्तरी गोलार्ध के लिये वापस चलता है तो उसे सूर्य का उत्तरायर्ण होना कहा जाता है। हमारा जन्म सूर्य के कारण हुआ। सूर्य न होता तो जीवन ही नहीं होता। इसलिये सूर्य का महत्व हर सभ्यता में है। उत्तरी गोलार्ध में रहने वालों के लिये सूर्य का उत्तरायर्ण होना महत्वपूर्ण है। सूर्य के उत्तरायर्ण होते ही, उत्तरी गोलार्ध में दिन बड़े होने शुरू हो जाते हैं। हिन्दुवों में इस दिन का खास महत्व है। पितामह भीष्म ने मरने का वह दिन चुना जब सूर्य को उत्तरायर्ण होना था। यह दिन भी बदल रहा है।
पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग २५,७०० साल में चक्कर लगाती है। इस कारण विषुव भी खिसक रहा है। इसे विषुव अयन कहा जाता है। इसके बारे में, मैंने विस्तार से अपनी ‘ज्योतिष, अंक विद्या, और टोने टुटके‘ की इस चिट्ठी में किया है। इसी कारण सूर्य के उत्तरायर्ण का दिन भी खिसक रहा है। आजकल सूर्य के उत्तरायर्ण २२ दिसंबर को होता है। सूर्य का उत्तरायर्ण होना तीन दिन पहले, यानि कि २५ दिसंबर को, लगभग २१० साल पहले होता था।
किसी देश को जीतने के लिये सबसे अच्छा तरीका है कि वहां की संस्कृति, सभ्यता, धर्म पर अपनी संस्कृति, सभ्यता, और धर्म कायम करो। २१० साल पहले, अंग्रेजों ने भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। यह वह समय था जब ईसाई धर्म फैलाने की जरूरत थी। अंग्रेज, यह करना भी चाहते थे। उस समय २५ दिसंबर वह दिन था, जबसे दिन बड़े होने लगते थे। हिन्दुवों में इसके महत्व को भी नहीं नकारा जा सकता था। शायद इसी लिये इसे बड़ा दिन कहा जाने लगा ताकि हिन्दू इसे आसानी से स्वीकार कर लें। यह केवल मेरा अनुमान है, यह गलत भी हो सकता है।
मेरे विचार से, इसे बड़ा दिन कहने का जो भी कारण सही हो, वह कारण महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रभू ईसा महापुरुष थे। यह खुशी का दिन है। हम सब को इसे मनाना चाहिये।
क्या ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आये थे

नथुला पास जाने पर ५० रुपये में आप को सर्टिफिकेट मिल सकता है कि आप नथुला पास गये थे। यह कोई भी बनवा सकता है। आपको केवल पैसे देने पड़ते हैं आप जो नाम चाहें वह दे सकते हैं। देखिये अब तो आपको विश्वास हो गया न कि मैं भी वहां गया था। यह सर्टिफिकेट एक सुन्दर से फोल्डर के अन्दर रख कर मिलता है।
निकोलस नोतोविच (Nicolas Notovitch) एक रूसी अन्वेषक था। उसने कुछ साल भारत में बिताये। बाद में, उन्होने फ्रेंच भाषा में ‘द अननोन लाइफ ऑफ जीज़स क्राइस्ट’ (The unknown life of Jesus Christ) नामक पुस्तक लिखी है।
निकोलस के मुताबिक यह पुस्तक हेमिस बौद्घ आश्रम (Hemis Monastery) में रखी पुस्तक (The life of saint Issa) पर आधारित है। उस समय हेमिस बौद्घ आश्रम लद्दाक के उस भाग में था जो कि भारत का हिस्सा था। हांलाकि इस समय यह जगह तिब्बत का हिस्सा है। यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था।
यह रहस्य की बात है कि ईसा मसीह ने १३ साल से ३० साल तक क्या किया। इस पुस्तक के आधार पर निकोला का कहना है कि,
-
इन सालों में ईसा मसीह सिल्क रूट के द्वारा भारत आये थे
- उन्होंने यहां में बौद्घ धर्म पढ़ने में बिताया,
- उसके बाद बौद्घ धर्म से प्रेरित होकर धर्म की शिक्षा दी।
मुझे धर्म के बारे में कम ज्ञान है में नहीं जानता कि बौद्घ धर्म और इसाई धर्म में संबंध है अथवा नहीं। मैं इतिहास का भी अच्छा जानकार नहीं हूं। मैं नहीं कह सकता कि,
- यह कहानी सच है अथवा नहीं?
- ईसा मसीह वास्तव भारत आए थे अथवा नहीं?
- ईसा मसीह ने बौद्घ धर्म की शिक्षा ली थी अथवा नहीं?
- ईसाई धर्म बौद्घ धर्म से प्रेरित है अथवा नहीं?
पर मैं इतना अवश्य जानता हूं कि इस पुस्तक के बारे में विवाद है और इस तरह के विवाद का संतोषजनक जवाब दे पाना मुश्किल है।
बेथलेहम का तारा क्या था
यह कहा जाता है कि प्रभु ईसा के जन्म के समय आकाश में एक तारा निकला जिसने लोगों को ईसा मसीह के जन्म की सूचना दी और वहां पहुंचने की राह दिखायी। इसे देख के पूरब से तीन बुद्घिमान राजा (Magi) भी उनको भेंट देने, उनका आदर करने पहुंचे। इसे बेथलेहम का तारा (Star of Bethlehem), या जीज़स तारा (Jesus Star), या क्रिस्मस तारा (Christmas Star) भी कहा जाता है। यह एक दैविक घटना की तरह बतायी जाती है। इस तरह की दैविक घटनायें सारे धर्मो में है।
इसी तारे के सम्बंध में अलग अलग धाणानायें प्रचलित हैं। इन्हें संयोग कहिये या चमत्कार यह आपके विश्वास पर है।
मेरे विचार में, यह कोई दैविक घटना न होकर वैज्ञानिक तथ्य है। जो उस समय पता न होने के कारण दैविक घटना के रूप में बतायी जाती है। यह भी हो सकता है कि वह तथ्य उस समय न होकर उसके आगे पीछे हुआ हो और उस व्यक्ति के महत्व दर्शाने के लिये उसे वहां जोड़ दिया गया हो।
हम महाभारत में अर्जुन के द्वारा जयद्रथ वध की कहानी को देखें। मेरे विचार से तो उस समय पूर्ण सूर्य ग्रहण लगा होगा। किसी के द्वारा सूर्य को ढ़क लेना समभ्व नहीं है। यह दैविक घटना न होकर कोई विज्ञान से जुड़ी कोई बात रही होगी, यानि कि सूर्य ग्रहण।
मेरे विचार में, प्रभू ईसा के समय निकला तारा भी कोई दैविक घटना न होकर कोई विज्ञान से जुड़ी कोई बात रही होगी।
वह तारा क्या था? क्या वह कोई उल्का meteoroid था, या छुद्र ग्रह (asteroid, minor planet, plantoid), या फिर पुच्छल तारा या धूमकेतु (comet), या कुछ ग्रहों का योग (combination of planets), या फिर कोई नोवा (nova), या कोई सुपरनोवा (supernova)?
आइये सबसे पहले उस सम्भावना को देखें कि क्या वह तारा कोई उल्का था? इस पर चर्चा करने से पहले कुछ बातें उल्का और छुद्र ग्रहों की। यह कैसे बनते हैं, कहां से आते हैं।
बेथलेहम का तारा उल्कापिंड या ग्रहिका नहीं हो सकता
- बिग बैंग (Big Bang theory) – इस सिद्घान्त के अनुसार सारा पदार्थ एक जगह था और खरबों (लगभग १३.७ खरब) वर्ष पहले गर्मी के साथ फैलना शुरू हुआ। इसी के साथ बने परमाणु, तारे, निहारिकायें और सौर मंडल। इसके अनुसार हमारा ब्रम्हाण्ड फैल रहा है।
- स्टैडी स्टेट (Steady state Theory)- यह सिद्घान्त कहता है कि समय के साथ ब्रम्हांड का घनत्व (density) हमेशा एक रहता है। वैज्ञानिक प्रेक्षण (observation) के अनुसार हमारा ब्रम्हांड फैल रहा है। यह अनन्त है इसलिये इस सिद्घान्त के अनुसार हर समय पदार्थ बनते रहना चाहिये इसलिये इसको Infinite Universe theory या continuous creation theory भी कहते हैं।
हमारे सौर मंडल के बनते समय, ग्रहों के साथ पदार्थ के छोटे छोटे कण, बालू, कुछ छोटे पिंड (boulder – size) उल्कापिंड (meteoroid), और कुछ उनसे बड़े पर ग्रहों और चन्द्रमाओं से छोटे पिंड {अर्थात छुद्र ग्रह या ग्रहिका (Asteroid)} भी बने । इन सबको अन्तरग्रहिक धूल (interplanetary dust) कहा गया। बालू के कण और छोटे पिंड (meteoroid), अपने सौर मंडल के बाहरी हिस्से में मिलते हैं। इसे क्यूपर पट्टी (kuiper belt) कहा जाता है। यह हिस्सा वरूण (Neptune) ग्रह के बाद है। प्लूटो (Pluto) क्यूपर बेल्ट का हिस्सा है।

क्यूपर पट्टी हरे रंग से है
छुद्रग्रह, सौरमंडल में मंगल (Mars) और ब्रहस्पति (Jupiter) के बीच में मिलते हैं। इस हिस्से को ग्रहिका पट्टी (Asteroid belt) कहते हैं।

ग्रहिका पट्टी सफेद रंग से है

बांयी तरफ का चित्र इडा (Ida) और उसके चन्द्रमा का है। यह, इस तरह की पता चलने वाली, पहली ग्रहिका है
ऎसी मान्यता है कि टूटते हुए तारे को देखते समय मांगी गयी इच्छा पूर्ण होती है। इसमें कोई भी सत्यता नहीं। यह तो केवल कहने की बात है।
प्रभू ईसा से मिलने और उन्हें भेंट देन, तीन राजा बहुत दूर से आये थे। वे तारे के कारण ही, बेथलहम पहुंच सके। सफर लम्बा था। इससे लगता है कि तारा बहुत समय तक रहा होगा। इसलिये यह उल्का नहीं हो सकता। उल्का तो बहुत कम समय तक आकाश में दिखायी पड़ती है।
पिंडों के पृथ्वी से टक्कर के कारण बने प्रसिद्ध गड्ढ़े
अधिकतर पिंड पृथ्वी तक आते-आते जलकर राख हो जाते हैं पर कुछ अवश्य बच जाते हैं। कुछ पिंडों ने पृथ्वी में टक्कर भी मारी है। इसके कारण गड्ढ़े बन जाते हैं और उनमें अक्सर पानी भर जाता है। महाराष्ट्र की लोनार झील, इसका उदाहरण है। जो कि लगभग ५२,००० साल पहले हुआ था।
लोनार झील, महाराष्ट्र
क्या यह हो सकता है कि आने वाले समय पर कोई छुद्र ग्रह हमारी पृथ्वी से टकरा जाये। यदि ऎसा होता है तो पृथ्वी का बहुत बड़ा भाग नष्ट हो जायेगा। यह कहा जाता है कि डाइनसॉर (Dinosaur) के समाप्त होने का कारण यही था।
क्या भविष्य में कोई बड़ी उल्का या छुद्र ग्रह हमारी पृथ्वी से टकरा सकता है? चिन्ता न करें – इसके कोई आसार नजर नहीं आते हैं। लेकिन इसकी कल्पना तो की जा सकती है। इस पर कई विज्ञान कहानियां लिखी गयीं हैं और कई फिल्में बनी हैं। चलिये कुछ चर्चा विज्ञान कहानियों के बारे में – यह क्या होती हैं, किस प्रकार से लोकप्रिय हुईं, इनके बारे में क्या पुरुस्कार दिये जाते हैं।
बैरिंजर क्रेटर अरिज़ोना
नाम | जगह | (i) व्यास (किलोमीटर में)
(ii) कितने समय पहले |
अमेलिया क्रीक
Amelia Creek |
नॉदर्न टेरीटरी, आस्ट्रलिया
Northern Territory, Australia |
२०
१६६ से ६० करोड़ |
अरागुआइहा
Araguainha |
मध्य ब्राजील
Central Brazil |
8०
२४.४ करोड़ |
ऎक्रमन
Acraman |
दक्षिण आस्ट्रेलिया, आस्ट्रेलिया
South Australia |
९०
५९ करोड़ |
ओडेसा
Odessa |
टेक्सास, अमेरिका
Texas, USA |
०. १६८
५०,००० से कम |
कारा-कुल
Kara-Kul |
पामीर पर्वत, ताजिकिस्तान
Pamir Mountains, Tajikistan |
५२
५० लाख
|
कारा
Kara |
नेनेत्सिया, रूस
Nenetsia, Russia |
६५
७ करोड़ |
कार्सवेल
Carswell |
ससकैटचेवन, कनाडा
Saskatchewan, Canada |
३९
११.५ करोड़ |
क्यूरेसलका
Keurusselkä |
पश्चिमी फिनलैण्ड,
फिनलैण्ड Western Finland |
३०
१०.८ खरब से कम |
क्लियर वाटर ईस्ट
Clearwater East |
क्यूबेक, कनाडा
Quebec, Canada |
२६
२९ करोड़ |
क्लियर वाटर वेस्ट
Clearwater West |
क्यूबेक, कनाडा
Quebec, Canada |
३६
२९ करोड़ |
गार्डनोस
Gardnos |
नेसबेयन, नोर्वे
Nesbyen, Norway |
५
६५ करोड़ |
ग्लिक्सन
Glikson |
पश्चिमी आस्ट्रेलिया, आस्ट्रेलिया
Western Australia |
१९
५०.८ करोड़ से कम |
चारलेवायक्स
Charlevoix |
क्यूबेक, कनाडा
Quebec, Canada |
५४
३४.२ करोड़ |
चिक्सलब
Chicxulub |
यूकातान, मैक्सिको
Yucatán, Mexico |
१७०
६.५ करोड़ |
चेसपीक बे
Chesapeake Bay |
वर्जीनिया, अमेरिका
Virginia, USA |
९०
३.५५ करोड़ |
टूकूनूका
Tookoonooka |
क्वींसलैण्ड, आस्ट्रेलिया
Queensland, Australia |
५५
१२.८ करोड़ |
नोर्डलिंगर राइस
Nördlinger Ries |
बेवेरिया, जर्मनी
Bavaria, Germany |
२५
१.४८ करोड़
|
पुचेझ-कटून्की
Puchezh-Katunki |
निझनी नोवगोरोड, ऑबलास्ट, रूस
Nizhny Novgorod Oblast, Russia |
८०
१६.७ करोड़ |
पोपीगई
Popigai |
साइबेरिया, रूस
Siberia, Russia |
१००
३.५७ करोड़ |
बिगाच
Bigach |
कजाकिस्तान
Kazakhstan |
८
२० से ८० लाख |
बीवरहेड
Beaverhead |
इडाहो, अमेरिका
Idaho, USA |
१००
९० करोड़ |
बॉरिन्गर
Barringer |
एरिज़ोना, अमेरिका
Arizona, USA |
१.२
४९,००० |
मजोलनिर
Mjølnir |
बारेन्ट्स सी, नार्वे
Barents Sea, Norway |
8०
१४.२ करोड़ |
मनीकुआगेन
Manicouagan |
क्यूबेक, कनाडा
Quebec, Canada |
१००
२१.४ करोड़ |
मिडिल्सबोरो
Middlesboro |
मिडिल्सबोरो, केन्टकी, अमेरिका
Middlesboro, Kentucky, United States |
६
३० करोड़ से कम |
मिस्टास्टिन
Mistastin |
लैबराडोर, कनाडा
Labrador, Canada |
२८
३.६ करोड़ |
मैनसन
Manson |
आयोवा, अमेरिका
Iowa, United States |
३५
७.३८ करोड़ |
मोन्टागनीज
Montagnais |
नोआ स्कॉशिया, कनाडा
Nova Scotia, Canada |
45
५ करोड़
|
मोरोक्वेन्ग
Morokweng |
कालाहारी रेगिस्तान, दक्षिण अफ्रीका
Kalahari Desert, South Africa |
७०
१४.५करोड़ |
याराबुब्बा
Yarrabubba |
पश्चिमी आस्ट्रलिया, आस्ट्रलिया
Western Australia |
३०
२० खरब |
लोनर
Lonar |
बुल्धाना जिला, महाराष्ट्र, भारतवर्ष
Buldhana district, Maharashtra, India |
१.८३
५२,०००
|
वुडलेह
Woodleigh |
पश्चिमी आस्ट्रेलिया, आस्ट्रेलिया
Western Australia |
६० से १२०
३६.४ करोड़ |
व्रेडेफोर्ट
Vredefort |
फ्री स्टेट, दक्षिणी अफ्रीका
Free State, South Africa
|
३००
२०.२ खरब |
शूमेकर
Shoemaker |
पश्चिमी आस्ट्रलिया, आस्ट्रलिया
Western Australia |
३०
१०.६३ खरब |
सडबरी
Sudbury |
औन्टॉरियो, कनाडा
Ontario, Canada |
२५०
१०.५ खरब
|
सियेरा मडेरा
Sierra Madera |
टेक्सास, संयुक्त राष्ट्र
Texas, USA |
१३
१० करोड़ से कम
|
सिलजान
Siljan |
डलारना, स्वेडन
Dalarna, Sweden |
५२
३७.७ करोड़ |
सेन्ट मारटिन
Saint Martin |
मानिटोबा, कनाडा
Manitoba, Canada |
8०
२२ करोड़ |
स्टेट आइलैण्ड्स
Slate Islands |
ओन्टारियो, कनाडा
Ontario, Canada |
३०
४५ करोड़ |
स्टेनहिम
Steinheim |
बाडेन-वरटमबर्ग, जर्मनी
Baden-Württemberg, Germany |
३.८
१.५ करोड़ |
विज्ञान कहानियां क्या होती हैं और उनका मूलभूत सिद्धान्त
विज्ञान कहानियां को परिभाषित करना सरल नहीं है। यह तो कल्पनाओं की उड़ान है जिसमें विज्ञान या तकनीक का पुट होता है। यह अक्सर,
- अन्तरग्रहिक, दूसरे सौर मंडल, या निहारिकायें की यात्राओं के बारे में होती हैं; या
- समय यात्राओं के साथ भविष्य का वर्णन करती हैं; या
- वैज्ञानिक दृष्टि से भूत काल में क्या हुआ होगा इसके बारे में होती हैं; या
- किसी कल्पनिक घटना को वैज्ञानिक परिपेक्ष में रखती हैं; या
- किसी वास्तविक घटना को काल्पनिक परिवेष के साथ वैज्ञानिक परिपेक्ष में ढ़ालती हैं।
फॉउंडेशन श्रंखला की दूसरी पुस्तक
मेरे विचार से आइज़ेक एसिमोव के द्वारा लिखी गयी फॉउंडेशन श्रृंखला, आज तक लिखी गयी विज्ञान कहानियों में, सबसे बेहतरीन है। यदि आप ने इसे नहीं पढ़ा है तो अवश्य पढ़ें।
विज्ञान कहानियों का मूलभूत सिद्धान्त, आर्थर सी कलार्क ने अपने एक लेख ‘Hazards of Prophecy: The Failure of Imagination’ में बताया है। यह लेख उनकी पुस्तक ‘Profiles of the Future: An Inquiry into the Limits of the Possible’ में प्रकाशित है। इस लेख में उन्होंने विज्ञान के भविष्य के बारे में चार निम्न नियम प्रतिपादित किये हैं। यह नियम हैं,

कलार्क का चित्र विकिपीडिया से
- When a distinguished but elderly scientist states that something is possible, he is almost certainly right. When he states that something is impossible, he is very probably wrong. जब कोई प्रतिष्ठित वैज्ञानिक कहे कि कुछ संभव है तो वह निश्चित तौर पर सही होते हैं पर जब वे कहते हैं कि यह असंभव है तो सम्भावना यह है कि वे गलत हैं।
- The only way of discovering the limits of the possible is to venture a little way past them into the impossible. क्या संभव है जानने के लिये, केवल रास्ता है कि संभव से हटकर असंभव की तरफ देखें।
- Any sufficiently advanced technology is indistinguishable from magic. किसी भी पर्याप्त विकसित तकनीक और जादू में फर्क कर पाना नामुमकिन है।
- For every expert, there is an equal and opposite expert. प्रत्येक विशेषज्ञ के लिये, एक विपरीत विशेषज्ञ है।
उन्होंने पहला नियम इस लेख में प्रतिपादित किया। यह इस पुस्तक के पहले संस्करण (१९६२) में था। उन्होने दूसरा वा तीसरा, नियम इस पुस्तक के संशोधित संस्करण (१९७२) में लिखा। उस समय उनका कहना था कि,
‘As three laws were good enough for Newton, I have modestly decided to stop there.’ न्यूटन के लिये तीन नियम काफी थे, इसलिये मैं भी यहां पर रूक जाता हूं।
लेकिन इस पुस्तक १९९९ के संस्करण में, उन्होंने चौथा नियम जोड़ा।

द सिटी एण्ड द स्टारस्
कलार्क के द्वारा लिखी गयी विज्ञान कहानियों में मेरा सबसे प्रिय उपन्यास है – द सिटी एण्ड द स्टारस्। इसमें उन्होंने अपने तीसरे नियम का बेहतरीन प्रयोग किया है।
कलार्क के तीसरे नियम को, आधुनिक युग के विज्ञान कहानियों के लेखकों ने अलग अलग तरह से लिखा है।
विज्ञान कहानियों पर पुरुस्कार

फ्रैंकेस्टाइन फिल्म का पोस्टर
विज्ञान कहानियां तो तब से लिखी जा रही है जब से साहित्य में कहानियां लिखनी शुरू हुईं।
शायद इतिहास की पहली लोकप्रिय विज्ञान कहानी ‘फ्रैंकेस्टाइन’ (Frankenstein) थी, जो कि मैरी गौडविन (Mary Godwin) ने लिखी थी। इसके बारे में मैंने अपनी चिट्ठी ‘विज्ञान कहानियों के मेरे प्रिय लेखक‘ पर चर्चा की है। हांलाकि विज्ञान कहानियों को, सम्मान की श्रेंणी दिलवाने का श्रेय जाता है उन्नीसवीं सदी के फ्रेंच लेखक जूले वर्न (Jules Verne) को। इसी लिये उन्हें वैज्ञानिक कहानियों का जनक कहा जाता है।
जूले वर्न की हिन्दी में संक्षिप्त जीवनी पढ़ने के लिये यहां और सुनने के लिये यहां चटका लगायेंं। यह ऑडियो फाईल ऑग फॉरमैट पर है। इसको सुनने के लिये दहिनी तरफ का विज़िट देखें।
विज्ञान कहानियों को बढ़ावा देने के लिये, हर साल The World Science Fiction Convention (WORLDCON) (वर्ल्डकॉन) का आयोजन होता है। यह सम्मेलन १९३९ से १९४१ तक द्वितीय विश्व युद्घ के कारण नहीं हुआ था। इस सम्मेलन में विज्ञान कहानियों से संबन्धित कई पुरूस्कार दिये जाते हैं। इन पुरूस्कारों में से मुख्य हैं।
- ह्यूगो पुरूस्कार (Hugo Award)
- जॉन कैंपबेल पुरूस्कार (John Campbell Award for best writer)
- साइड वाइस पुरूस्कार (Side wise Award)
- चेसले पुरूस्कार (Chesley Award)
- प्रॉमथियस पुरूस्कार (Prometheus Award)
इन पुरुस्कारों ने वैज्ञानिक कहानियों को न केवल बढ़ावा दिया पर उन्हें नया आयाम दिया।
ह्यूगो पुरूस्कार, ह्यूगो जेर्नबैक (Hugo Gernsbach) (१८.८.१८८४ – १९.८.१९६७) के नाम पर दिया जाता है। ह्यूगो ने अमेज़िंग स्टोरीस् Amazing stories नाम की पत्रिका शुरू की थी। इसका बाद में नाम अमेज़िंग साइंस फिक्शन Amazing Science Fiction कर दिया गया।
अमेज़िंग स्टोरीस् के कवर पर स्टार ट्रेक
अमेज़िंग स्टोरीस् का प्रकाशन १९२६ में शुरू हुआ अप्रैल २००५ के बाद इसका कोई अंक प्रकाशित नहीं हुआ मार्च २००६ पर इसके प्रकाशकों ने इसे बन्द करने की घोषणा कर दी है। पिछली शताब्दी में विज्ञान कहानियों को सबसे लोकप्रिय बनाने में इस पत्रिका का सबसे बड़ा हांथ था।ह्यूगो ने विज्ञान कहानियों के लिये पोर्टमेन्टो (portmanteau ) शब्द Scientifiction (STF) बनाया यह शब्द बाद में Science fiction (SF या Sci-Fi) हो गया।
अब कुछ चर्चा उन कहानियों, फिल्मों की, जो किसी बड़ी उल्का या छुद्र ग्रह के पृथ्वी से टकराने की कल्पना से लिखी गयी थीं।
उल्का, छुद्र ग्रह, पृथ्वी पर आधारित विज्ञान कहानियां और फिल्में
बड़ी उल्का (meteor) या छुद्र ग्रह (asteroid) के टकराने के बारे में सबसे प्रसिद्घ विज्ञान उपन्यास आर्थर सी क्लार्क ने (Arthur C. Clarke) ने द हैमर ऑफ गॉड (The hammer of God) नाम से 1993 में लिखा है।
इस उपन्यास में काली नाम का छुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला होता है। यह नाम हिन्दू सभ्यता की देवी काली पर रखा गया है। क्लार्क, श्री लंका में रहते थे और हिन्दू सभ्यता के जानकार थे। वे अक्सर अपनी कहानियों में हिन्दू देवी देवताओं के नामों का प्रयोग करते थे। इसमें गोलियथ नाम का जहाज है, जिसके कप्तान रॉबर्ट सिंह हैं। इस जहाज को, छुद्र ग्रह को, पृथवी के रास्ते से हटाने के लिए भेजा जाता हैं। यह हो पाता है कि नहीं, यही इस कहानी में है।
इस कहानी पर फिल्म बनाने के अधिकार को स्टीवन स्पीलबर्ग (Steven Spielberg) ने खरीद लिया था। उन्होंने १९९८ में एक फिल्म डीप इम्पैक्ट (Deep Impact) बनायी पर इस फिल्म की कहानी इस उपन्यास से कुछ भिन्न है और उसमें क्लार्क को भी कोई श्रेय नहीं दिया गया है।
इसी साल इसी तरह के प्रसंग पर एक और फिल्म आर्मगेडन (Armageddon) नाम से बनी है। मुझें इन दोनो फिल्मों में आर्मगेडल ज्यादा अच्छी लगी।
आर्मगेडन बेहतरीन फिल्म है नहीं देखी हो तो देखें
फिल्म आर्मगेडन, मानविक भावनाओं को बेहतरीन तरीके से दिखाती है। यह कहानी है एक पिता पुत्री के प्रेम की, उसके त्याग की पति पत्नी के रिश्ते की, पिता थे उसके जवान होते बेटे के साथ रिश्तों की। यह बेहतरीन फिल्म है यदि नहीं देखी तो अवश्य देखें। यह आपकी आखों में आंसुओं को भी लायेगी और इसके साथ खुशी भी देगी।
क्लार्क ने एक विज्ञान कहानी, राम से मिलन (रांडवू विथ राम) (Rendezvous with Rama) (1972) नाम से लिखी है। इसमें एक पिंड पृथ्वी की तरफ आ रहा होता है। पहले इसे, एक छुद्रग्रह समझ लिया जाता है पर यह वास्तव में एक किसी अन्य सौर मंडल से आया स्टारशिप है। यह पहले पृथ्वी की तरफ आ रहा था बाद में सूरज की तरफ चला जाता है। इस उपन्यास को ह्यूगो तथा नेब्यूला पुरूस्कार मिल चुका है।
यह नाम भारतीय भगवान राम पर है और यह नाम इसलिये रखा गया क्योंकि उपन्यास में इसका पता, सीता (SITA) नामक स्पेस प्रोब (Space probe) से चला था।
क्लार्क ने इसके बाद कुछ और पुस्तकें इस उपन्यास के बाद की कहानी (Sequel) के रूप में लिखीं। यह उपन्यास है।
- राम ॥ (Rama II) (1989)
- द गार्डेन ऑफ राम (The Garden of Rama) (1991)
- राम रिवील्ड (Rama Revealed) (1993)
कुछ लोग कहते हैं की बेथलेहम का तारा एक धूमकेतु था और वे इसे हैली के धूमकेतु से जोड़ते हैं। चलिये धूमकेतु या पुच्छल तारे के बारे में चर्चा करते देखें कि क्या बेथलेहम का तारा धूमकेतु हो सकता है।
धूमकेतु या पुच्छल तारा क्या होते हैं
Comet शब्द, ग्रीक शब्द komētēs से बना है जिसका अर्थ होता है hairy one बालों वाला

Comet शब्द, ग्रीक शब्द komētēs से बना है जिसका अर्थ होता है hairy one बालों वाला। यह इसी तरह दिखते हैं इसलिये यह नाम पड़ा।
सूर्य से दूर जाने पर धूल और बर्फ पुन: इसके नाभिक में जम जाती है। हर बार जब यह सूर्य के पास आता है तो कुछ न कुछ इनकी धूल और बर्फ बिखर जाती है जिसके कारण इनकी पूंछ छोटी होती जाती है और अक्सर यह पूंछ विहीन हो जाते हैं। यह धूमकेतु सूर्य के समीप आने पर भी पूँछ को प्रकट नहीं करते हैं। ऎसे धूमकेतुओं को पुच्छहीन धूमकेतु कहते हैं। इस समय यह छुद्र ग्रह, ग्रहिका (Asteroid) की तरह लगते हैं।
पृथ्वी की तरह धूमकेतु सूरज के चारो और चक्कर लगाते हैं। इस तरह के कई धूमकेतु हैं पर सबसे प्रसिद्ध है हैली का धूमकेतु (Halley’s comet)। कई लोग कहते हैं कि बेथलहम का तारा हैली का धूमकेतु था। कुछ बातें इसके बारे में।
हैली धूमकेतु

एडमंड हैली का चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से
हैली का धूमकेतु, सबसे प्रसिद्घ पुच्छल तारा है। इसका नाम प्रसिद्घ खगोलशास्त्री एडमंड हैली (Edmond Halley) के नाम पर रखा गया है। हैली न्यूटन के समकालीन थे। उनका जन्म ८.११.१६५८ को और मृत्यु १४.१.१७४२ में हुई। उन्होने धूमकेतुओं के बारे में अध्ययन किया। उनका कहना था कि जो धूमकेतु सन् १६८२,में दिखायी दिया था यह वही धूमकेतु है जो सन् १५३१ व १६०७ तथा संभवत: सन् १४६५ में भी दिखायी पड़ा था। उन्होंने गणना द्वारा भविष्यवाणी की कि यह सन् १७५८ के अन्त के समय पुन: दिखायी पड़ेगा।
ऎसा हुआ भी कि यह पुच्छल तारा १७५८ के बड़े दिन की रात्रि (Christmas night) को दिखलायी दिया। तबसे इसका नाम हैली का धूमकेतु पड़ गया।

हैली धूमकेतु - चित्र नासा और लिक वेधशाला के सौजन्य से
हैली की मृत्यु १४ जनवरी १७४२ को हो गयी यानि उन्होंने अपनी भविष्यवाणी सच होते नहीं देखी। इसके बाद यह पुच्छल तारा नवम्बर १८३५, अप्रैल १९१०,और फरवरी १९८६ में दिखायी पड़ा। यह पुन: २०६१ में दिखायी पड़ेगा।
इस धूमकेतु के साथ एक अन्य प्रसिद्घ व्यक्ति भी जुड़ा है। वे हैं प्रसिद्घ लेखक मार्क ट्वैन (Mark Twain)। आपका जन्म ३०.११.१८३५ को हैली धूमकेतु के आने पर हुआ था और मृत्यु २१.४.१९१० को, जब यह धूमकेतु अगली बार आया।
पुच्छल तारे सारी सभ्यताओं में अशुभ माने जाते हैं। इस गणना ने यह सिद्घ कर दिया कि यह किसी अशुभ घटना या दैविक प्रकोप का कारण नहीं है पर विज्ञान से जुड़ी घटना है। यदि हम पीछे की गणना करें तो यह १२ बी. सी. में या फिर ६६ ए. डी. में पृथ्वी पर दिखायी दिया होगा। यदि बेथलेहम का तारा हैली धूमकेतु था तो प्रभू ईसा का जन्म या १२ बी.सी. में या फिर ६६ ए.डी. में हुआ होगा। मेरे विचार से इतना अन्तर नहीं हो सकता और वह तारा हैली का धूमकेतु या फिर और कोई धूमकेतु नहीं हो सकता है। इसके कई कारण और भी हैं।
- पुच्छल तारा, अन्य तारों से भिन्न होता है। सारी सभ्यताओं में पुच्छल तारा को पुच्छल तारा कह कर ही बताया गया है। यदि पुच्छल तारा होता तो वही कहा जाता।
- सारी सभ्यताओं में, पुच्छल तारे अशुभ माने जाते हैं। यदि प्रभू ईसा के जन्म के समय पुच्छल तारा निकला था तो वह कम से कम वे लोग पुच्छल तारे को अशुभ नहीं मानते।
- यदि वह हैली के अतिरिक्त कोई और धूमकेतु था तो वह फिर क्यों नहीं आया।
- धूमकेतु की पूंछ हमेशा सूर्य से दूर रहती है यानी कि पूंछ पश्चिम की ओर। इसलिये धूमकेतु कभी भी पश्चिम दिशा की ओर इंगित नहीं कर सकते हैं। यदि पश्चिम से लोग आते तो शायद कहा जा सकता कि वह धूमकेतु था पर यहां तो पूरब से लोग आये थे।
पुच्छल तारों पर लिखी विज्ञान कहानियां
पुच्छल तारा/ धूमकेतु पर सबसे पहली कहानी जुले वर्न ने १८७७ में लिखी। इस पुस्तक का नाम है – ‘धूमकेतु पर’ (Off on a Comet; ऑफ ऑन ए कॉमेट) (इस कहनी को यहां पढ़ें)। इस कहानी में धूमकेतु पृथ्वी के पास से गुजरता है जिसमें लोग फंस जाते हैं। यह धूमकेतु २ साल बाद, सूरज का चक्कर लगा कर पृथ्वी के पास से गुजरता है तभी वे लोग पृथ्वी पर वापस आ पाते हैं।
जयंत नार्लीकर (Jayant Narlikar) जाने माने भारतीय खगोलशास्त्री हैं। उन्होंने, अपनी उच्च शिक्षा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से की है। उन्होंने भी अंग्रेजी मराठी, और हिन्दी में विज्ञान कहानियां लिखी हैं। उनकी एक विज्ञान कहानियों की पुस्तक ‘धूमकेतु’ नाम से है। इस राजपाल एण्ड सन्स कश्मीरी गेट दिल्ली – ११०००४ ने छापा है। इसमे उनकी नौ विज्ञान कहानियों का संग्रह है। यह कहानियां पहले मराठी में लिखी गयी थीं और उसके बाद उनका हिन्दी में अनुवाद किया गया है। इसकी पहली कहानी का नाम धूमकेतु है।
यह कहानी कलकत्ता की इंद्राणी देवी और उनके पति दत्त बाबू की कहानी है। दत्त बाबू एक नया धूमकेतु ढूंढ़ते हैं पर उनकी गणना बताती है कि यह पृथ्वी से टकराने वाला है। इंद्राणी देवी और उनके पति दत्त बाबू किस तरह से अलग अलग तरीके से इसके बचाव का तरीका निकालते हैं। यही इसकी कहानी है।
यह तो, मैं बताने से रहा कि इंद्राणी देवी और दत्त बाबू ने धूमकेतु से बचने के लिये क्या तरीकों को अपनाया। क्योंकि कहानी ही सही, वह भी मेरे द्वारा नहीं पर जयंत नार्लीकर के द्वारा लिखी, फिर भी इसे आप स्वयं पढ़ें 🙂
धूमकेतु पुस्तक की सारी कहानियां बेहतरीन हैं और विज्ञान के किसी न किसी विषय को छूती हैं। आप ,अपने मुन्ने और मुन्नी को इसे अवश्य पढ़ने को दें। यदि आप को विज्ञान में जरा सी भी रुचि है और यह पुस्तक नहीं पढ़ी है तो अवश्य पढ़ें।
धूमकेतु में बेहतरीन विज्ञान कहानियां हैं अवश्य पढ़ें।
वीनस (Venus) सुन्दरता की देवी हैं। शुक्र ग्रह को अंग्रेजी में वीनस इसलिये कहा जाता है कि वह सबसे चमकीला और सुन्दर दिखता है – ऐसे नरक यदि कहीं है तो वह वहीं। मुझे तो ग्रहों में सबसे चमकीला ब्रहस्पति (Jupiter) ग्रह लगता है। यह ग्रहों में सबसे बड़ा है और इसमें सूर्य बनने की क्षमता है। आर्थर सी कलार्क (Arthur C Clark) इसी बात का उपयोग अपनी कहानी २००१ स्पेस ऑडेसी (2001: Space Odyssey) और इस श्रंखला के बाद की पुस्तकों में किया है। मंगल (Mars) ग्रह कुछ लाल रंग लिये और आकाश में दिखाये देता है। कभी कभी ग्रह भी पास पास आ जाते हैं जिससे ज्यादा चमकीले हो जाते हैं। क्या बेथलेहम का तारा कहीं ग्रहों के पास आ जाने के कारण तो नहीं था। चलिये, इसकी भी चर्चा कर लेते हैं।
उल्का और धूमकेतु में क्या अन्तर है देखिये इस विडियो में
बेथलेहम का तारा – क्या ग्रह पास आ गये थे
तारों और ग्रहों में अन्तर है। तारे अपनी रोशनी से चमकते हैं और ग्रह तारों की रोशनी परिवर्तित कर चमकते हैं। मंगल, बुद्घ, चन्द्रमा एवं ब्रहस्पति हमें आकाश में दिखायी देते हैं यह रोशनी उनकी नहीं है। वे सूर्य की रोशनी परिवर्तित कर रहे हैं। सारे तारे, अपने आप में सूर्य हैं। वे दिन और रात हर समय चमकते रहते हैं पर वे हमसे इतने दूर हैं कि हमारे पास रोशनी आते-आते वह बहुत धीमी हो जाती है। इसलिये दिन में सूरज की तेज रोशनी के कारण दिखायी नहीं पड़ते हैं। इसलिये वे सूर्य ग्रहण के समय, जब सूरज की रोशनी कम हो जाती है तब दिखाई पड़ने लगते हैं।
कभी-कभी ग्रह भी पास-पास आ जाते हैं जिसके कारण वे अधिक चमकीले हो जाते हैं। क्या बेथलेहम का तारा, किन्हीं दो ग्रहों के पास आने के कारण हो गया था। यदि हम कंप्यूटर की मदद से देखें तो उस समय ग्रहों की स्थिति के बारे में यह पता चलता है:
- १७ जून २ ईसा पूर्व (BC) बुद्घ और वृहस्पति पास- पास थे,
- १२ जून ३ ईसा पूर्व (BC) में बुद्घ और शनि पास-पास थे;
- १२ अगस्त ३ ईसा पूर्व (BC) में बुद्घ और वृहस्पति पास- पास थे।
यह हो सकता है कि बेथलेहम का तारा इन ग्रहों के पास पास रहने के कारण रहा हो पर ऎसा कुछ ही दिनो के लिए होता है। राजाओं को पहुंचने में महीने लगे होंगे, मेरे विचार से यह संभव नहीं है। बेथलेहम का तारा का तारा कुछ और ही रहा होगा। क्या वह किसी खास तरह का तारा था?
हम लोगों ने तारों और सूर्य ग्रहण की चर्चा की है। इसके पहले हम चर्चा करें कि क्या बेथलेहम का तारा किसी और तरह का तारा था, कुछ चर्चा उन कहानियों कि जिसमें इस वैज्ञानिक तथ्य का सहारा लिया गया है कि ग्रहण के बारे में पहले से ही भविष्यवाणी की जा सकती है। इसी के साथ सूर्य ग्रहण पर आधारित सबसे प्रसिद्ध विज्ञान कहानी की भी चर्चा करेंगे।
ग्रहण पर आधारित कहानियां

कहानी के अन्त में फॉल्टा की मृत्यु
किंग सोलोमॉनस् माइनस् पुस्तक को कई प्रकाशकों ने ठुकरा दिया था लेकिन जब वह प्रकाशित हुई तो यह उस साल की सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक बनी। यह विज्ञान कहानी नहीं है पर रोमांच कथा की श्रेणी में आती है। यह उपन्यास अफ्रीका के जंगलो पर है। इस उपन्यास ने नयी तरह की कहानियों को जन्म दिया – जंगलों से जुड़ी रोमांच कहानियां।

जब रात हुई
एमरसन (Ralpho Waldo Emerson) ने कहा है,
‘If the stars should appear one night in a thousand years, how would would men believe and adore, and preserve for many generation the remembrance of the city of God’
यदि हजार साल में एक बार तारे दिखायी पड़ें, तो भगवान के इस अदभुत दृश्य को लोग कैसे विश्वास करेगें, किस तरह से याद रखेगें।
‘जब रात हुई’ (Nightfall) (नाइटफॉल) कहानी, इसी उद्घरण से प्रेरित है।
यह कहानी, सूर्य ग्रहण पर आधारित कहानी है और ग्रहण पर आधारित सबसे प्रसिद्व कहानी है । इस कहानी को आइसेक एसिमोव (Issac Asimov) ने १९४१ जब वे केवल २१ साल के थे, तब लिखा था।
१९६८ में, अमेरिका के विज्ञान कहानी लेखकों ने इस कहानी को नेब्युला पुरूस्कार (Nebula Award) आने के पहले (१९६५) लिखी गयी विज्ञान कहानियों में सर्वश्रेष्ठ कहानी माना। १९९० में एसीमोव ने रॉबर्ट सिलवरबर्ग (Robert Silverberg) के साथ इस कहानी को बढ़ा कर उपन्यास का रूप दिया।
इस कहानी को आप यहां अंग्रेजी में और इसकी हिन्दी में समीक्षा यहां सुन सकते हैं
इसकी कहानी कुछ इस प्रकार की है कि पृथ्वी से दूर ब्रम्हाण्ड में, स्थित एक तारों के समूह में छ: सूर्य है। इसलिये उसके ग्रह में कभी रात नहीं होती है। इस कारण वहां के लोग रात के तारे नहीं देख पाते हैं। वहां के लोगों का इस बात का सबूत मिलता है कि उस ग्रह की सभ्यता कई बार नष्ट हो चुकी है। वे इसका कारण जानने का प्रयत्न करते हैं।
एक खगोलशास्त्री यह पता लगाता है कि हजारों साल में एक बार ऎसा होता है कि छ: सूर्यों में एक साथ ग्रहण लगता है और रात हो जाती है। वह अगली बार सूर्य ग्रहण का समय भी बाताता है, जो कि नज़दीक है और लोगों को आगाह करता है पर उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता है। कहानी का अन्त कुछ इस प्रकार होता है कि ग्रहण लगना शुरू हो रहा है, तारे दिखायी पड़ने लग रहे हैं और लोग … अब यह जानने के लिये तो आपको इस कहानी को पढ़ना पड़ेगा।
यह कहानी सबसे पहले ‘ एस्टाउंडिगं स्टोरीस्’ (Astounding stories) में 1941 प्रकाशित हुई। इस पत्रिका का अब नाम Analog Science Fiction and Fact हो गया है। मैंने इस कहानी को Nightfall One नामक पुस्तक (Granda Publishing Limited) में पढ़ी थी। इस पुस्तक में एसीमोव की पांच कहानियां हैं।
इसके बाद, इसी प्रकाशक ने, Nightfall two नामक पुस्तक भी प्रकाशित की। इसमें एसीमोव की अन्य पंद्रह विज्ञान कहानियां हैं।
मुझे यह कहानियां कुछ डरावनी सी लगीं, कुछ निराश भी पर इसका अर्थ यह नहीं कि यह पढ़ने योग्य नहीं हैं। आपने नहीं पढ़ी हैं तो जरूर पढ़ें, अपने मुन्ने मन्नी को पढ़ने के लिये भेंट करें – शायद वे कल हमारे रमन, हमारे आइंस्टाईन बने।
तारे, उनका वर्गीकरण, और वे क्यों चमकते हैं
आकाश में रात्रि में चमकते तारे वास्तव में सूर्य हैं। सभी तारे एक रंग के नहीं होते? दूर से नंगी आँखों से देखने पर वे भले ही चमकदार प्रतीत हों, परन्तु टेलिस्कोप द्वारा देखने पर उनके रंग भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं। इसका कारण है तारों का भिन्न-भिन्न तापमान – रंग , सतह के तापमान पर निर्भर करता है। जैसे कि बिजली के बल्ब का प्रकाश पीला होता है, जबकि बिजली का हीटर गर्म होने पर लाल हो जाता है। ठीक इसी प्रकार अधिक गर्म तारे नीले रंग के दिखाई देते हैं, जबकि उनकी अपेक्षा ठंडे तारे लाल प्रतीत होते हैं। हमारा सूर्य न तो बहुत अधिक गर्म है, न ही बहुत ठंडा, इसलिए वह पीला दिखायी देता है।
कृतिका तारा समूह (pleiades), जिसे देहात में कचबचिया भी कहा जाता है। यह तारे सप्त ऋषियों की पत्नियां भी कहे जाते हैं – चित्र विकिपीडिया से।
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त मैं हार्वड वेधशाला ने तारों का वर्गीकरण (stellar classification) इनसे निकली रोशनी का विश्लेषण (जो कि मोटे तौर पर उनके तापमान पर निर्भर करता है) कर इनका वर्गीकरण किया। इस वर्गीकरण को A से शुरू होकर M तक के अक्षरों तक के एल्फाबेट (मुझे इसकी हिन्दी नहीं मिली, क्या कोई बतायेगा) दिखाया गया। बाद मे कुछ वर्ग छोड दिये गये, कुछ दूसरे जोड़ दिये गये और एक नया वर्ग O भी जोड़ा गया। इन सब के बाद वर्ग A, B, F,G, K, M, औरO बचे। अब इनको याद कैसे रखा जाय। इसलिये एक वाक्य बनाया गया। उसके हर शब्द का पहला एल्फाबेट एक वर्ग को चिन्हित करता है। यह वाक्य है,
‘Oh Be A Fine Girl Kiss Me’
इसके बाद तीन नये वर्ग जोड़े गये जिन्हे R, N, और S इन एल्फाबेट को याद करने के लिये नया वाक्य बनाया गया
‘Right Now Sweetheart’
मैंने इस वर्गीकरण के बारे में यहां विस्तार से लिखा है।
सूरज हमसे सबसे पास का का तारा है। पृथ्वी पर उर्जा के स्रोत समाप्त हो रहे हैं पर सूरज और तारे कहां से इतनी उर्जा ला रहे हैं। वे अरबों साल से रोशनी और गर्मी दे रहे हैं और अरबों साल तक देते रहेंगे। कहां से वे ला रहे हैं इतनी उर्जा।

चित्र १ जुलाई १९४६ टाईम पत्रिका के कवर से
यह मुश्किल विषय है पर आसान तरीके से यह कहा जा सकता है कि सूरज और तारों पर प्रति संकेण्ड लाखों हाइड्रोजन बम्ब फूट रहे हैं। इसी कारण वे इतनी उर्जा प्रदान कर रहे हैं। मोटे तौर पर हाइड्रोजन हील्यिम में बदल रही है। इस प्रक्रिया में कुछ पदार्थ उर्जा में बदल रहा है। जिसके कारण रोशनी और गर्मी मिल रही है। यह सब अलबर्ट आइंस्टाइन (Albert Einstein) के प्रसिद्घ सिद्घान्त E=mc2 के कारण हो रहा है। इस समीकरण में E वह ऊर्जा है जो m संहति के उत्पन्न हो रही है और c प्रकाश का वेग है।
तारों का अन्त कैसे होता है
तारों में, ऊर्जा का उत्पादन कई चरणों में हो रहा है। पहले चरण में ऊर्जा-उत्पादन होने पर जो कुछ बचता है, वह दूसरे चरण में होने वाले ऊर्जा-उत्पादन में काम आ जाता है। इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है। अन्त में, एक समय ऎसा भी आता है जब तारे का सारा ईंधन समाप्त हो जाता है और तारे अन्त में श्वेत वामन तारे (White dwarf), न्यूट्रॉन तारे (Neutron star) अथवा ब्लैक होल (Black hole) के रूप में बदल जाते हैं। पर इसके पहले एक प्रक्रिया और होती है वह है कुछ समय के लिये तारों का बढ़ना और उनका तेजी से चमकना।

न्यूट्रॉन तारा - चित्र विकिपीडिया से
कहा जाता है कि दीपक की लौ समाप्त होने के पहले एक बार जोर दिखाती है। कुछ यही बात तारों के साथ भी हो रही है। जब हाइड्रोजन समाप्त होने लगती है तब तारे ठण्डे होने लगते हैं और सिकुड़ने लगते हैं। सिकुड़ने के कारण पुनः ऊर्जा पैदा होती है और वे पुनः गर्म होते हैं। इस कारण वे ज्यादा तेज चमकते हैं, और फिर से विस्तार करते हैं।
यह विस्तार उस तारे की संहति (Mass) के अनुसार होता है। इसके कारण वे, अधिनव तारा (Super nova) (सुपरनोवा), या नोवा (Nova), या लाल दैत्याकार तारे (red giant) बनते हैं। ज्यादा संहति वाले सुपर नोवा (supernova) और कम संहति वाले तारे लाल दैत्याकार तारे बनते हैं।

लाल दैत्याकार तारा चित्र विकिपीडिया से
हमारा सूर्य बड़े तारों में नहीं है। इसका अन्त एक लाल दैत्याकार तारे के साथ होगा। उसके बाद सफेद बौना (White dwarf ) और फिर अंधकार। लाल दैत्याकार तारा बनते समय इसकी परिधि बढ़ जायेगी और मंगल ग्रह भी इसकी चपेट में आ जायेगा। हम सब तो जरूर ही मिट जायेंगे, लेकिन घबराने की कोई बात नहीं इसमें लगभग ५.५ अरब साल लगेंगे।
सबसे भारी तारे सुपर नोवा में तब्दील होंते हैं। वे सबसे ज्यादा चमकीले भी होते हैं। वे इतने चमकीले होते हैं कि दिन में भी दिखायी पड़ते हैं। इनकी परिधि इतनी होती है कि वे अपने सौर मंडल को, यदि उनके पास हो तो, समाप्त कर देंगे। इनके अन्दर का हिस्सा बाद में न्यूट्रान स्टार या ब्लैक होल में बदल जाता है।

क्रैब नेब्यूला - चित्र विकिपीडिया से
सबसे प्रसिद्घ सुपरनोवा, १०५४ ईसवी में देखा गया था। इसके बारे में चीन और अरब के खगोलशास्त्रियों ने लिखा है। यह दिन में भी, २३ दिन तक दिखायी पड़ा और ६५५ रातों में यानि लगभग दो साल तक दिखायी पड़ा। इसके बाहर का हिस्सा क्रैब नेब्यूला (Crab Nebula) के नाम से जाना जाता है। यह वृष (Taraus) राशि के अन्दर है। इसके अन्दर का हिस्सा एक न्यूट्रॉन स्टार (pulsating star) है। यह एक सेकेण्ड में ३० चक्कर लगा रहा है। यह हमारी आकाशगंगा में है और हम से ६,३०० प्रकाश वर्ष दूर है। एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो प्रकाश एक साल में तय करता है।
आइये चर्चा करें उस विज्ञान कहानी की, उस तारे की, जो सुपरनोवा के संदर्भ में लिखी गयी। यह एक प्रसिद्ध कहानी है। इस पर पुरस्कार भी मिल चुके हैं और उसका कुछ संबन्ध इस श्रंखला से भी है।
वह तारा
‘द स्टार’ एक बेहतरीन कहानी है और १९५६ में इसे विज्ञान की छोटी कहानियों के लिये ह्यूगो पुरूस्कार भी मिला है। इसे आर्थर सी कलार्क ने लिखा है।
‘There can be no reasonable doubt: the ancient mystery is solved at last. Yet―O God, there were so many stars you could have used.What was the need to give these people to the fire, that the symbol of their passing might shine above Bethlehem?’
इसमें कोई शक नहीं कि पुराना रहस्य का हल मिल गया। हे ईश्वर इतने सारे थे जिनमें से किसी एक को तुम ले सकते थे।क्या जरूरत थी इतने अच्छे लोगो को तुमने इसलिये आग में झोंक दिया कि उनकी मृत्यु बेथलेहम के उपर चमक सके।

टीवी श्रृंखला से एक चित्र विकिपीडिया से
इस कहानी पर द न्यू ट्वीलाइट ज़ोन (The New Twilight zone) टीवी श्रृंखला पर एक कड़ी बनी है। इस कहानी का अन्त दुखद है पर इस इस टीवी श्रृंखला की कड़ी में अन्त सुखद है। उस ग्रह के लोग खुशी मनाते है कि उनकी मृत्यु किसी नयी सभ्यता को रोशनी दिखायेगी।
निष्कर्ष: बेथलेहम के उपर चमकने वाला तारा क्या था
आर्थर सी कलार्क (Arthur C Clark) की लिखी विज्ञान कहानी द स्टार (The Star) के मुताबिक बेथलेहम के उपर चमकने वाला तारा अधिनव तारा (supernova) था।
‘उन्मुक्त जी, क्या यह सच है? क्या बेथलेहम के उपर चमकने वाला तारा वास्तव में अधिनव तारा था?’
मेरी जानकारी में इस तरह के अधिनव तारे के बारे में कोई सबूत नहीं मिलते हैं।
‘तो फिर वह तारा क्या था?’
मेरे विचार से यदि उस समय वास्तव में कोई तारा निकला होगा तो वह,
- अधिनव तारा ही होगा, जिसके बारे में अभी तक हमें कोई तथ्य नहीं मिले, या फिर
- उस समय तो नहीं पर उसके आगे पीछे कोई पुच्छल तारा या ग्रह एक साथ मिल गये थे जिसे लोगों ने ईसा मसीह के महत्व बताने के लिये उनके जन्म से जोड़ दिया, या फिर
- यह केवल कोरी कल्पना है। बस ईसा मसीह के जन्म को महत्वपूर्ण बनाने के लिये कही जाने लगी है।
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good work..