इस चिट्ठी में, २०११ विश्व क्रकेट कप के सेमी फाईनल मैच में सचिन तेंदूलकर का एलबीडब्लू आउट न दिये जाने का कारण है। यह लेख मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर तीन कड़ियों में प्रकाशित हुआ है। आप चाहें तो नीचे लिखी कड़ियों पर चटका लगा कर उन्हें पढ़ सकते हैं।

मैंने यह चित्र यहां से लिया है। Cartoon by Nicholson from “The Australian” newspaper: http://www.nicholsoncartoons.com.au
क्या विश्व कप सेमी-फाइनल में भारत ने बेईमानी की?
२०११ का भारत-पाकिस्तान का सेमी फाइनल मुकाबला खेल जगत के इतिहास में सबसे अधिक लोगों के द्वारा देखा मैच था। हमने पाकिस्तान के साथ तीन लड़ाई लड़ी है। लेकिन इस मैच में तनाव, उन तीनो युद्ध के तनाव से कम नहीं था।

२०११ विश्वकप जीतने के बाद सचिन अपनी पुत्री सारा और पुत्र अर्जुन के साथ। यह चित्र मेरा खींचा हुआ नहीं है। यह अन्तरजाल की अधिकतर वेबसाइट पर बिना किसी आभारोक्ति के है। इसलिये मैंने इसे लगा दिया। पता चलने में आभार प्रगट करना चाहूंगा।२०११ विश्वकप जीतने के बाद सचिन अपनी पुत्री सारा और पुत्र अर्जुन के साथ। यह चित्र मेरा खींचा हुआ नहीं है। यह अन्तरजाल की अधिकतर वेबसाइट पर बिना किसी आभारोक्ति के है। इसलिये मैंने इसे लगा दिया। पता चलने में आभार प्रगट करना चाहूंगा।
यह मैच हमने २७ रनों से जीत लिया। लोगों का कहना है कि इसमें पाकिस्तान के खिलाड़ियों का योगदान रहा क्योंकि, उन्होंने सचिन के तीन कैच छोड़ दिये थे। इस कारण उन्होंने ८५ रनों की पाली खेली।
भारत ने पहले बैटिंग करना शुरू किया। जब भारत के ७५ रन थे और सचिन का व्यक्तिगत स्कोर २३, तब मैदानी अम्पायर ने उन्हें, सईद अजमल की गेंद पर, एलबीडब्लू घोषित कर दिया।
सचिन ने गौतम गम्भीर से बात की और इस निर्णय को तीसरे अम्पायर के पास भेजने के लिए कहा। तीसरे अम्पायर ने, बॉल ट्रैकर तकनीक के साथ, उस समय का टीवी प्रसारण देख कर, मैदानी अम्पायर के निर्णय को बदल दिया। उसके मुताबिक, यदि गेंद सचिन के पैड पर न लगती, तो वह विकेट पर न लग कर बगल से निकल जाती।
यदि विश्व कप में यूडीआरएस लागू न होती या इसमें बॉल ट्रैकर तकनीक समाहित न होती तब सचिन २३ रन पर आउट थे। हम २६० बनाने की जगह, १९८ पर ही ढ़ेर और मैच पाकिस्तान की झोली में।
इस विडियो का शीर्षक, इस निर्णय से अन्तरजाल पर उठे विवाद और तनाव का द्योतक है
ऊपर के विडियो में एकदम लगता है कि गेंद विकेट पर जा रही थी और मैदानी अम्पायर का निर्णय सही था। लेकिन फिर यूडीआरएस में यह क्यों आ गया कि गेंद विकेट पर नहीं लगती।
- क्या यूडीआरएस में कुछ गलती थी, या;
- यह निर्णय गलत था, या;
- तीसरा अम्पायर भारत से मिला था, या;
- फिर मैच फिक्सड था?
इस बात की चर्चा करने से पहले जाने कि यूडीआरएस में, बॉल ट्रैकर तकनीक क्या होती है।
बॉल ट्रैकर, गेंद का संभावित प्रक्षेप पथ बताता है
यूआरडीएस, मुख्यतः तीन तकनीक पर निर्भर है,
- स्निकोमीटर (sound technology): इससे पता चलता है कि क्या गेंद बल्ले से छुई थी;
- हॉट स्पॉट (thermal imaging): इससे पता चलता है कि क्या कैच ठीक प्रकार से लिया गया; और
- बॉल ट्रैकर (ball tracker): इससे गेंद की स्थिति, वेग, और दिशा लगाया जाता है।
एलबीडब्लू के निर्णय में, मुख्यतः तीसरी तकनीक यानि कि बॉल ट्रैकर का प्रयोग होता है। इस तकनीक को, हॉक आई इनोवेशन्स (Hawk-Eye Innovations) नामक ब्रिटिश कम्पनी ने विकसित किया है। इस कंपनी ने सबसे ज्यादा अपना नाम क्रिकेट में कमाया है। वे टेनिस में भी अपनी तकनीक के द्वारा खेल में सहायता कर रहे हैं। इस समय वे फुटबाल के अंदर अपनी तकनीक को विकसित कर रहे हैं।
इस तकनीक में, क्रिकेट के मैदान पर, छः टीवी कैमरो के द्वारा अलग अलग छोर से विडियो लिया जाता है। इसमें दो बल्लेबाज के पीछे, दो गेंदबाज के पीछे, और दो पिच के दोनो तरफ रहेते हैं। इनसे लिये विडियो को संसाधित (process) कर निम्न बातों का पता लगाया जाता है,
- गेंद, जिस समय गेंदबाज के हाथ से निकली एवं बल्लेबाज के पैड पर लगी, उस समय उसकी तीन आयाम में स्थित;
- गेंद का वेग;
- गेंदबाज के हाथ से निकलने एवं टिप्पा खाने के बाद उसकी दिशा; और
- बल्लेबाज के पैड पर लगते समय उसकी विकेट से दूरी।
उक्त सूचना से, उसका संभावित प्रेक्षेप पथ (trajectory) निकाला जाता है। गेंद के पैड पर लगते समय, उसकी दूरी मालुम होने पर, गेंद के प्रेक्षेप पथ का बहिर्वेश (extrapolate) कर, यह पता किया जाता है कि यदि गेंद पैड पर न लगती, तब क्या वह विकेट पर लगती या उसके बगल से निकल जाती। बाद में, इसी बात को चित्र के रूप में दिखाया जाता है।
इस तकनीक में महत्व, कैमरे से लिये विडियो का है कि वह कितना अच्छा है और वे कहां रखे जाते हैं। इसी से गेंद का संभावित प्रक्षेप पथ तय होता है। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा कोई हस्तक्षेप करने का अवसर नहीं होता। इसके निर्णय में गलती हो सकती है। इसका कारण कैमरे लिये विडियो का अच्छा न होना है न कि किसी व्यक्ति विशेष की बदमाशी का।
एलबीडब्लू के निर्णय में तीन बातें महत्वपूर्ण होती हैं।
- क्या गेंद विकेट के लाइन में थी?
- क्या बल्लेबाज, विकेट के सामने था?
- क्या गेंद, विकेट में लग जाती? तीसरे अम्पायर के अनुसार, कोई भी खिलाड़ी तभी आउट होता है जब उक्त तीनो प्रश्नों का जवाब हां में हो। सचिन के केस में पहले एवं दूसरे प्रश्न का उत्तर हां में था लेकिन तीसरे प्रश्न का उत्तर नहीं में था। इसीलिए तीसरे अम्पायर ने निर्णय बदल दिया।

सचिन के केस में, बॉल ट्रैकर द्वारा गेंद का संभावित प्रक्षेप पथ
भारतीय क्रकेट बोर्ड यूआरडीएस का समर्थक नहीं है। लेकिन अन्ततः, उसने दो तकनीक यानि कि स्निकोमीटर और हॉट स्पॉट पर स्वीकृति दे दी है पर बॉल ट्रैकर को नहीं।
कुछ दिन पहले आइसीसी ने, भारतीय क्रिकेट बोर्ड की इच्छाओं का सम्मान करते हुऐ बॉल ट्रैकर की तकनीक को वैकल्पिक रख, यूआरडीएस को मैचों में लागू करने की स्वीकृति दे दी है।
इसका यह अर्थ हुआ कि अब सारे मैचों यूआरडीएस लागू रहेगा और उसमें स्निकोमीटर और हॉट स्पॉट तकनीक का प्रयोग किया जायगा। इन तकनीकों से, निम्न बातें पता करने में सहायता मिलती है,
- गेंद बल्ले से छुई या नहीं; और
- कैच ठीक से पकड़ा गया या नहीं।
जहां तक बॉल ट्रैकर तकनीक की बात है इसका उपयोग तब तक नहीं होगा जब तक वह मैच या श्रृंखला खेलने वाले देश इसे रखने की स्वीकृत नहीं देगें। यदि इस तकनीक उपयोग नहीं होगा तब एलबीडब्लू के फैसले तीसरे अम्पायर को निर्णय हेतु नहीं भेजे जायेंगे।
मेरे विचार से, इस तकनीक से लिया गया निर्णय, किसी भी व्यक्ति अम्पायर के निर्णय से कहीं अधिक वस्तिनिष्ठ (objective) और न्यायपूर्ण (fair) है। इसमें व्यक्तिगत पूर्वाग्रह (personal bias) भी नहीं है। इसमें कमियां हो सकती हैं, इसे बेहतर बनाया जा सकता है – लेकिन यह एक बेहतरीन तकनीक है। इसे न स्वीकारना एक भूल है।
आइये, चर्चा करें कि,
- क्यों, सचिन के एलबीडब्लू फैसले में, मैदानी अम्पायर और यूआरडीएस की बॉल ट्रैकर तकनीक के द्वारा लिये चित्रों में, अन्तर हो गया?
- सचिन के निर्णय बारे में, कैसे कहा जा सकता है कि यूआरडीएस की बॉल ट्रैकर तकनीक के द्वारा लिये चित्र पर आधारित तीसरे अम्पायर का फैसला, मैदानी अम्पायर के फैसले से ज्यादा उपयुक्त है?
अंतरजाल पर तनाव इतना बढ़ा कि स्पष्टीकरण देना पड़ा
यदि गेंद एकदम सीधी है एवं विकेट के ऊपर से नहीं जा रही है तब विकेट पर लगेगी। लेकिन यदि गेंद कुछ कोण बनाकर जा रही है या कुछ स्पिन कर रही हो तब उसका विकेट पर लगना, इस बात पर निर्भर करेगा कि गेंद बैट्समैन के पैड पर छूते समय, विकेट से कितनी दूर है। यह यह दूरी कम है तो गेंद को विकेट पर लगने की संभावना ज्यादा है। यदि यह दूरी ज्यादा तब कोण (Angle) के कारण, बाल विकेट में न लगकर, बाहर निकल सकती है।
आप बाईं तरफ का चित्र देखें। इसमें सचिन तेंदूलकर, मैदानी अम्पायर, पिच, विकेट एवं गेंद की दो स्थितियां जहां गेंद गिरी और जहां पैड पर लगी दिखाया गया है। इसमें लाल रंग से दोनो गेंदो को जोड़ते हुऐ एक त्रिभुज भी दिखाया गया है। इस त्रिभुज में, लम्बवत भुजा वह दिशा है जैसा कि मैदान के अम्पायर ने गेंद की दिशा को समझा। लेकिन वास्तव में गेंद की दिशा इस त्रिभुज का कर्ण है। यदि पैड और विकेट के बीच की दूरी कम है तो यह विकेट पर जायगी अन्यथा यह विकेट को छोड़ कर निकल जायगी।ईश्वर ने हमें दो आंखें दी हैं। इसकी सहायता से हम दो बिन्दुओं के बीच की दूरी का अन्दाज लगा सकते हैं । लेकिन जब दो बिन्दु दूर हों तब, दो आखों के बावजूद, यह अन्दाज लगा पाना मुश्किल हो जाता है।
क्रिकेट में पिच की दूरी लगभग २२ गज या २०.८ मीटर होती है। लगभग यही दूरी अम्पायर और बल्लेबाज के बीच में रहती है। यह इसलिये है, क्योंकि बल्लेबाज विकेट के कुछ आगे खड़ा रहता है और अम्पायर दूसरी तरफ के विकेट के पीछे। इतनी दूर से विकेट एवं उस जगह के बीच की दूरी, जहां पैड पर बाल लगी हो, का सही अन्दाज लगा पाना मुश्किल है।
सचिन के केस में कुछ ऎसा ही हुआ। मैदान के अम्पायर तेंदुलकर के पैड व विकेट की दूरी का ठीक प्रकार से अंदाजा नहीं लगा पाये।
बॉल ट्रैकर तकनीक के कारण यह पता चल पाया कि,सचिन के केस में, गेंद कोण बनाते जा रही थी और पैड एवं विकेट के बीच में दूरी तय करने पर, गेंद विकेट पर न लग कर, बगल से निकल जाती।
सचिन के आउट दिये जाने वाले निर्णय के बदल जाने के कारण, अन्तरजाल पर तनाव इतना बढ़ गया कि अन्तत: हॉक आई इन्वेशनस् को इस बारे में स्पष्टीकरण देना पड़ा।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड अम्पायर डिसिजन रिवियू सिस्टिम (यूआरडीएस) का समर्थक नहीं है। इसका कारण, शायद, २००८ में खेली गयी भारत-श्रीलंका टेस्ट श्रृंखला है। इस श्रृंखला में पहली बार टेस्ट मैचों में, इसका प्रयोग किया गया था। तीन टेस्ट की श्रृंखला में २९ फैसले भारत के खिलाफ गये थे।
मैदानी अम्पायर मानव हैं। उनमें मानव की ही कमियां हैं। यह सोचना – कि उनमें कोई पुर्वाग्रह नहीं होता – गलत है।
यह सच है कि कि बॉल ट्रैकर तकनीक वह प्रक्षेप पथ दिखाती है जो कि आंकड़ों के आधार पर (statistically) सबसे संभावित होता है। कोई जरूरी नहीं कि वैसा ही हुआ होता। लेकिन यह सब तकनीक के द्वारा निकाला जाता है। इसमें कमियां हो सकती हैं लेकिन बेहतर कैमरों के साथ यह बेहतर होता जायग। मेरे विचार में, बॉल ट्रैकिंग तकनीक एक उम्दा तकनीक है। इसे स्वीकार न करना, एक भूल है। यह विज्ञान की देन है। इसे आज नहीं तो कल, स्वीकारना पड़ेगा। मैं आने वाले कल में, ऐसे मैच की भी कल्पना करता हैं जब हमें मैदान में अम्पायर की जरूरत ही न पड़े।
भारत-पाकिस्तान के पूरे मैच के मुख्य अंश का मजा लीजिये
इस चिट्ठी के आखरी दो चित्र, न्यूयॉर्क टाइमस् के इस पेज से हैँं जहां आप इस बारे में, पहेली के साथ, पढ़ सकते हैं।
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