इस चिट्ठी पर मेरी गोवा यात्रा का वर्णन है।
प्यार किया तो डरना क्या
अपने पैसे से तो पांच सितारा होटेल में ठहरना तो बहुत मंहगा है, कम से कम मेरे मेरे जेब के बाहर। सम्मेलन हमेशा पांच सितारा होटलों में होते हैं। उनमें जाने का यही फायदा है कि कम से कम उसी के बहाने वहां का भी नजारा देख लिया। हांलाकि जैसा फाइनमेन की पुत्री मिशेल Do you have time to think में बताती हैं कि फाइनमेन सम्मेलनो में होटलों से बोर होकर कर जंगलों में कैम्पिंग करना पसंद करते थे पर यह अपने देश में तो सम्भव नहीं लगता है।
मुझे, दो साल पहले कलकत्ता जाना पड़ा था। हयात ग्रुप का नया होटल बना है, वहीं पर हमारी कॉन्फरेंस थी। कमरे बढ़िया इंटरनेट का कनेक्शन, पर वह मेरे लिनेक्स लैपटॉप पर चल कर नहीं दिया। मैंने होटल वालों से कहा। उन्होने एक व्यक्ति को भेजा। वह कोई विशेष्ज्ञय तो नहीं लगता था पर थोड़ा बहुत कंप्यूटर के बारे में जानता था। उसने मेरे लैपटौप को देखा और कहा कि,
‘बहुत सुन्दर स्क्रीन है। लगता है विंडोस़ की कोई नयी थीम डाली है।’
मैंने कहा कि यह विंडोस़ नहीं, लिनेक्स है। उसने आश्चर्य से पूछा,
‘लिन्क्स? यह क्या होता है।’
मैंने, कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में उसकी क्लास ही ले ली। बताया कि यह कितनी तरह के होते हैं, इनमें क्या अन्तर होता है, जैसा कि कुछ मैंने अपनी ओपेन सोर्स सॉफ्टवेर की चिट्ठी पर बताया है। उसने मुझसे पूछा कि मैं अगली बार कब आ रहा हूं। मैंने कहा, कि तुम यह क्यों पूछ रहे हो। उसका जवाब था,
‘मैं लिनेक्स के बारे मैं सब सीख कर रखूंगा ताकि आपको मुश्किल न हो।’
पिछले साल कोची में हयात ग्रुप में हुऐ एक सम्मेलन में रहने का मौका मिला। यहां पर भी अनुभव कलकत्ता की तरह ही रहा।
इस साल मुझे गोवा जाना पड़ा। यहां Cidade de Goa के नाम के होटल में टहरने का मौका मिला। यह एक पांच सितारा होटेल है और बहुत अच्छा है। मुझे लगा कि लिनेक्स काफी लोकप्रिय हो चुका है इसलिये यहां बेहतर अनुभव रहेगा। पर यहां भी, मेरे लैपटॉप के साथ वही हुआ को कि मेरे साथ हयात कलकत्ता में हुआ था।
चलिये, प्यार किया तो डरना क्या। कम से कम तीन लोगों को तो मैंने लिनेक्स के बारे में बताया। वे अगली बार इसके लिये तैयार रहेंगे।
ऐसे आखिरकर, मैंने यहां पर लिनेक्स लैपटॉप की मुश्किल का हल निकाल ही लिया। बस जालक्रम विन्यास में जा कर यदि कोई लैन का कनेक्शन बना है तो इसका आईपी पता स्वचलित कर दे या नया इसी तरह का लैन कनेक्शन बना लें – बस काम फिट।
गोवा और यह होटेल दोनो बहुत अच्छे लगे। इसके बारे में आपको बताउंगा, कुछ चित्र भी लिये थे, वह भी पोस्ट करूंगा। यहां होटेल में दो खास बातें देखने को मिलीः
- महिलाओं की तो नेकरे छोटी होती जा रहीं हैं और पुरषों की बड़ी,
- गोरे चिट्टे (विदेशी) महिला बदन पर जितने कम कपड़े (बस चले तो सब उतार दें पर यह कानूनी तौर पर मना है), और गेहुवें तथा श्याम (शुभा जैसी देसी) महिला बदन पर उतने ही ज्यादा।
परशुराम की शान्ती
परशुराम की शान्ती? उनकी तो शादी नहीं हुई थी फिर यह शान्ती कहां से आ गयी – अरे बाबा, मेरा मतलब शान्ति, वह शान्ति जिसकी हम सब को तलाश है।
कहते है परशुराम क्षत्रियों से क्रोधित हो गये। यह कामधेनु गौमाता के पीछे हुआ था। भगवान ने परशुराम जी को शान्ति पाने के लिये तपस्या का मार्ग सुझाया और कहा,
‘जहां तीर गिरे वहीं तपस्या करो।’
तीर तो अरब की खाड़ी में गिरा। समुद्र देव ने वहां से पानी हटा कर जमीन उन्हें सौंप दी। परशुराम, गौमाता के साथ वहां तपस्या करने पहुंचे इसलिये उसका जगह का नाम गोवा पड़ा।
समुद्र देव ने स्वयं जमीन परशुराम को जमीन दी थी इसलिये वहां उनकी हमेशा कृपा रहती है। आज तक कभी समुद्र के कारण कोई विपदा नहीं आयी। सुनामी का भी कोई असर नहीं पड़ा था 🙂
परशुराम जी ने शिव की तपस्या की और शान्ति प्राप्त की। इसलिये कहा जाता है कि जो भी गोवा जाता है उसे वहां शान्ति मिलती है। हांलाकि इसमें पुर्तगालियों का भी बहुत बड़ा हाथ है।
पणजी (Panji) में एक प्रसिद्ध मंगेश मन्दिर है। परशुराम ने भगवान शिव की तपस्या की थी
शायद इसलिये यह भगवान शिव का मन्दिर है। गोवा के पास परुशराम का भी मंदिर है।
शिव मन्दिर पहले पुराने गोवा में था। सोलवीं शताब्दी में जब पुर्तगालियों ने हिन्दुवों पर अत्याचार करना शुरू किया तो वे है पणजी की तरफ भागे और अपने देवी देवता भी ले आये। इस मन्दिर को तब ही पणजी में स्थापित किया गया। यह भव्य है।
शिव जी के मन्दिर जाते समय रास्ते में मेरी मुलाकात रवी से हुई। वे लोगों के बदन पर जगह जगह ठप्पा लगाते हैं। उसके अनुसार यह लगभग एक माह तक रहता है। सबसे छोटे का २० रुपया और सबसे बड़े का ५० रुपया। मैंने पूछा कि दिन में कितने पैसे मिल जाते हैं। उसने बताया कि लगभग ३००-४०० रुपये मिल जाते हैं।
विदेशी महिलायें तो अजीब अजीब जगह ठप्पा लगवा रहीं थी। मैने तो हांथ में सबसे छोटा ठप्पा लगवाया। मेरे तो ७० रुपये खर्च हो गये।
‘उन्मुक्त जी, क्या कहा ७० रुपये। लगता है कि गणित में तो हमेशा फेल होते होंगे।’
बायें हांथ पर ठप्पा देख लीजिये – विश्वास हुआ न
नहीं भाई मैने उसे तो २० ही रुपये दिये पर मेरे सहयोगी लोग कहने लगे यह ठप्पा तो शर्ट की बांह के अन्दर है, लोग कैसे देखेंगे। इसके लिये तो बिना बांह की शर्ट होनी चाहिये।
मेरे पास तो बिना बांह की कोई शर्ट नहीं है। वहां छोटी छोटी बहुत सी दुकाने थीं, जिन पर हर तरह की शर्ट मिल रहीं थी। मैंने दुकान वाली महिला से शर्ट दिखाने को कहा तो इसने ३५ रुपये की बांह वाली शर्ट दिखायी। मैंने कहा मुझे तो बिना बांह की चाहिये, क्योंकि सबको ठप्पा दिखाना है। वह समझ गयी कि आज तो एक मुर्गा फंसा है। उसने झट से दिखायी और ५० रुपये दाम बताया। मैंने कहा कि यह तो बिना बांह की है, सस्ती होनी चाहिये। पर वह ठस से मस नहीं हुई। हार कर ५० रुपये की ली। हो गया ना ७० रुपये का चूना।
रात नशीले है
‘उन्मुक्त जी यह क्या हिन्दी है – रात नशीले है – में।‘
जी हां मैंने नशीले शब्द का प्रयोग जान बूझ कर किया है। मेरी हिन्दी कमजोर नहीं है।
होटल में जगह जगह बढ़िया बार थे और सब तरह के पीने का समान। गोवा में मुन्ने की मां मेरे साथ थी। वहां वह मुझसे जो चिपकी तो बस साये की तरह लगी रही। सब मजा चला गया। न बार जा पाया न ही उन दृश्यों का आनन्द ले पाया जिसका जिक्र मैंने पहले किया था। अगली बार तो मैं अकेले ही आऊंगा। आपको मालुम होगा कि मैं यह कर सकता हूं। क्योंकि मैं घर का बॉस हूं और मुन्ने की मां ने, मुझे यह सबसे बताने की अनुमति दे रखी है:-)
अधिकतर भारतीय लोग अपने परिवार के साथ थे। बस हम ही दो लोग गोवा में थे। हमारे बच्चों के पंख निकल आये हैं। वे अपना घर बसा कर, हमारे बसेरे से दूर, अपना बसेरा ढ़ूढ़ने, सात समुन्दर दूर निकल गये हैं। रेस्तरां में, दोपहर के खाने पर बैंड बज रहा था। मैंने हिन्दी गाना सुनाने की प्रार्थना की, तो उसने मना कर दिया। वहां पर बहुत से विदेशी थे। इसलिये वे लोग या तो अंग्रेजी के गाने गाते थे या फिर कोंकणी के।
मेरे अनुरोध पर बैंड ने कोंकनी में एक गीत सुनाया। यह कुछ ‘पुकारता, चला हूं मैं’ की धुन में था। उसने बताया कि यह एक प्रेम गीत है। मेरे विद्यार्थी जीवन में बीटल बहुत लोकप्रिय हुआ करता था मैंने उनसे बीटल का कोई गाना सुनाने को कहा। उन्होने ‘ I want to hold your hand’ सुनाया। उनका यह गाना शायद सबसे चर्चित गाना है। शादी के ३० साल बाद मैं और मुन्ने की मां अपने दूसरे हनीमून पर थे – केवल हमीं नहीं, वहां पर सब।
रात को सम्मेलन के लोगों का खाना अलग जगह समुद्र के किनारे था। खाने की जगह पर जाने लगा तो एक जगह शतरंज की बाजी बिछी थी। मैं इसे देखने लगा तो एक विदेशी महिला की आवाज सुनायी पड़ी,
‘If I knew chess then I would have played chess with you.’
मैंने मुड़ कर देखा तो बार में एक विदेशी दम्पत्ती, बार का मजा ले रहे थे। महिला ने मु
झे अपना नाम ब्रेन्डा बताया। मैंने कुछ देर उन लोगों से बात की, फिर चल दिया खाने पर।
Brenda, it was a pleasure to meet you. You have promised that you will learn chess and we will play, when we meet again.
खाना दूर समुद्र के किनारे था। वहां एक ग्रुप गाना गा रहा था। धुन मस्तानी थी पर गाना समझ में नहीं आ रहा था, शब्द कुछ अजीब से इस प्रकार लगते थे।
रात नशीले है
मस्त जैंहां है
रूप तेरा मास्ताने।
फिर समझ में आया, यहां केवल भारतीय थे। इसीलिये बैंड हिन्दी पिक्चर आराधना का गाना गा रहे थे।
सुहाना सफर और यह मौसम हसी
गोवा में दो नदियां हैं: मंडोवी और जुआरी। मंडोवी नदी पर शाम को बोट की सैर होती है। यह बोट हैं कि पूरे जहाज। लगभग २५० से ३०० व्यक्ति बैठ सकते हैं। इस पर रेस्तराँ बैन्ड सब कुछ रहता है। जो मन आये वह पीजिये, गाना सुनिये, नाच का मजा लीजये, खुद भी नाचिये, और सैर का आन्नद लीजये।
बोट पर हम लोगो ने, कुछ लोकगीत सुने और कुछ लोक नृत्य भी देखे। साथ के लोग भी नृत्य करने में उत्सुक थे। बैण्ड वाले भी बहुत चालाक थे अधिकतर नाच उसने सैर करने वालों से ही करवाये। इन नाचने वालों में राना दम्पत्ति भी थे। हमारी इनसे मुलाकात बोट पर हुई थी। पति इंडियन एयलाइंस में और पत्नी रिलाएंस रिटेल में काम करती हैं। यह बहुत अच्छा नाचते थे। बोट में कई डेक थे हम लोग बोट के सबसे ऊपर के डेक पर चले गये। यहां कुछ ज्यादा पैसा देना पड़ता है। यहां पर कुछ कम लोग थे। थोडी देर राना दम्पत्ती भी वही आ गये। मैंने इनसे पूछा कि उन्होने नच बलिये प्रतियोगिता में भाग लिया है कि नहीं। उनके मना करने पर मेरी उनको सलाह थी कि वे भाग लें, उन्हें अवश्य पुरुस्कार मिलेगा। राना दम्पत्ति ने मेरे कहने पर कुछ खास पोस – टाईटैनिक स्टाईल में, और कुछ नाच में चित्र खींचने दिये।
‘Hi, both of you dance well. Do participate in the next dance competition and I am sure that you will win a prize. Do let us know in advance, not only we but all Hindi bloggers will be there to cheer you.’
बोट से दृश्य बहुत सुन्दर था। दृश्य का आनन्द लेते हुऐ, जब नजर इधर उधर दौड़ायी तो देखा कि एक कोने एक दूसरा बहुत सुन्दर सा भारतीय जोड़ा खड़ा था। युवती के कपड़े एकदम नये युग के थे। वह पैरों से चिपकी हुई कप्री (capri) पैंट और स्पैगेटी टॉप (spagetti top) पहने हुऐ थी। हम तो यही समझते हैं कि पैंट नाभी पर रहती थी, वहीं से पहनी जाती है। पर आजकल के लड़के लड़की इसे कमर के सबसे निचले भाग पर रखते हैं। इस युवती ने कप्री इसी तरह से पहन रखी थी। उसका स्पैगेटी टॉप, शायद उसे नूडल स्ट्रैप टॉप (noodle strap top) कहना ठीक होगा, काफी खुला हुआ था। वह नाक में नथनी, कान पर झुमके, माथे पर बिन्दिया, बहुत सारी चूड़ियां और पायल पहने हुऐ थी। चलने में छम-छम आवाज आती थी इसी लिये मैंने उसका नाम रखा छम्मक-छल्लो। मेरी और मुन्ने की मां से शर्त लगी। मेरा कहना था की यह छम-छम चूडियों से आ रही है इसका कहना था कि चूड़ियां और पायल दोनो से।
इस लड़की के चलने में भी एक स्टाईल था। वह कुछ अलग अलग पोस दे कर अपने साथी को रिझा रही थी। मैने उस युवती से पूछा कि क्या वह बॉलीवुड में हैं या मॉडल हैं। वह मुस्करायी और बोली,
‘यह आप क्यों कह रहें हैं।’
मैंने कहा कि आप सुन्दर हैं, आप जिस तरह से चल रहीं हैं, जिस तरह से खड़ी हैं बस इसी के कारण लगा। उसने हंस कर जवाब दिया,
‘मैं तो मॉडल नहीं हूं पर मेरे माता पिता मॉडल थे।’
मैंने अपनी और मुन्ने की मां की शर्त के बारे में बताया। उसने कहा कि मुन्ने की मां जीत गयी है।
युवती भारतीय मूल की इंगलैण्ड की नागरिक थी. उसका लालन पालन वहीं हुआ था। लड़का पंजाबी था और इंगलैंड पढ़ने गया था। जहां दोनो कि मुलाकात हुई और शादी कर ली। वह शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल भारत आयी थी। इस समय लड़का डब्लिन, आयरलैन्ड में डौमिनोस पीट्ज़ा कम्पनी में काम करता है। इसने बताया कि दुनिया में इसके पीट्ज़ा कम्पनी की सबसे ज्यादा ब्रांच हैं और वे पीट्ज़ा हट से अलग सिद्धान्त पर काम करते हैं। वे घर पर पीट्ज़ा आधे घन्टे में पहुचाने में विश्वास करते हैं यदि नहीं कर पाये तो कोई पैसे नहीं लेते हैं।
Hi, smart ones. The next time, when I am at a place where I can order Domino’s Pizza, I am going to have one.’
मुझे अगले दिन पता चला कि यह युगल दम्पत्ती हमारे ही होटेल में ही ठहरे थे। वे नाशता करके बाहर जा रहे थे तो हम नाशता करने जा रहे थे। युवती ने हमें देख कर हाथ हिलाया। उसकी चूड़ियां कनखने लगी मुझे लगा कि वह बताना चाहती है छम-छम चूड़ियों से है और शर्त मैंने जीती है न कि मुन्ने की मां ने। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। गोवा में एक बहुत अच्छा ईम्पोरियम है। इसमें भारतवर्ष के सब कोने से समान रहता है। मुन्ने की मां ने जीत कि खुशी में वहां से पहले ही अपने लिये पशमीने का एक शॉल खरीद लिया था। मेरी जेब खाली हो चुकी थी।
डैनियल और मैक कंप्यूटर
हमारा होटेल समुद्र तट के बगल में था लेकिन उसके सामने का समुद्र तट होटेल वालों का नहीं है। फिर भी, होटेल वाले समुद्र तट को हमेशा साफ रखते हैं क्योंकि उनके यहां ८०% से अधिक लोग विदेशी हैं और वे इसी समुद्र तट के लिये इस होटेल में आते हैं। समुद्र तट की सफाई भी देखने काबिल थी। समुद्र पर अटखेलियां करती हुई लहरें , तट पर सुन्दर लोग, बेहतरीन नज़ारा और सबसे अच्छी बात, कोई टोकने वाला नहीं।
गोवा में मुझे एक प्रस्तुतीकरण भी देना था, यह समय आभाव के कारण पूरा नहीं हो पाया था। इसे पूरा करने के लिये, मैं सुबह ही लैपटॉप लेकर बाहर चला गया। मुझे वहां जर्मन इंजीनियर डैनियल मिला। वह यांत्रिक इंजीनियर है और गाड़ियों के ब्रेक बनाने वाली कम्पनी में काम करता है। उसके पास मैक कंप्यूटर था। वह विंडोस़ पर काम करता था और कुछ महीने पहले ही मैक पर काम करना शुरू किया है। उसके मुताबिक मैक सॉफ्टवेर बहुत अच्छा और सरल है। मैंने पूछा क्या विंडोस से भी। उसका जवाब था हां। उसके अनुसार जर्मनी में भी लोग चोरी की विंडोस़ प्रयोग करते हैं और यह लगभग ५०% है।
डैनियल अपनी कंपनी की तरफ से अपने सहयोगी के साथ हिन्दुस्तान आये थे। वे लोग मीटिंग में पूना गये थे फिर गोवा में सम्मेलन में आये थे।
डैनियल को बहुत आशचर्य हुआ कि मेरा लैपटॉप लिनेक्स पर है। मैने उसे इसके बारे में और कुछ अन्य ओपेनसोर्स के सॉफ्टवेर के बारे में जानकारी दी। कुछ देर बाद जब हम फिर मिले तो उसने बताया कि वह ओपेन ऑफिस डाट ऑर्ग की वेबसाईट पर गया था और इसे डाउनलोड कर दिया है। वह इसका प्रयोग करेगा। होटेल में कमरे में तो लाईन से ब्रॉडबैंड था पर सार्वजनिक जगहों पर वाई फाई था। चलिये एक और व्यक्ति ओपेन सोर्स प्रयोग करने के लिये राजी हुआ।
‘Guten Tag Daniel,
It was pleasure to meet you. I hope you have tried OpenOffice.Org suit. Do try Firefox. Thunderbird and Sunbird. They all are open source and great software. Some of Hindi bloggers will like to know more about Mac software. Please let us know more about the same and its support for languages other than English. Till we meet again. Tschüss! (I hope my German is correct)’
चर्च में राधा कृष्ण
गोवा के चर्च प्रसिद्ध हैं उनमे सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं: बेसिलका ऑफ बॉम जीज़स और सर कैथ्रिडल। यह दोनो आमने सामने हैं बीच में सड़क है।
बेसिलका ऑफ बॉम जीज़स को बने हुऐ ५०० साल से ज्यादा हो गये हैं। इसमें फ्रांसिस ज़ेवियरस् का शव रखा हुआ है। इस चर्च में मोमबत्ती जलाने का रिवाज है। कहते हैं कि मन मुराद पुरी हो जाती। हम ने भी दस रुपये में पांच मोमबत्ती खरीदीं। चर्च के अन्दर का दृश्य बहुत भव्य था। चर्च के एक अलग बड़ा सा आंगन था मोमबत्ती वहीं एक जगह जलानी थी। मुन्ने की मां ने पूछा कि तुमने क्या मन्नत मांगी। मैंने कहा वही जो कि मैंने फतेहपुर सीकरी में मांगी थी। वह मेरे साथ फतेहपुर सीकरी नहीं गयी थी। उसने दूसरे सवाल पूछने से पहले ही, मेरे जवाब का अनुमान करते हुऐ कहा,
‘यदि अब मैं तुमसे यह पूछूं कि तुमने फतेहपुर सीकरी में क्या मन्नत मांगी थी तो यह मत कहना कि जो तुमने यहां मांगी है।’
मुस्कराहट तो आ ही गयी।
कहा जाता है कि शाहंशाह अकबर को पुत्र नहीं था सूफी संत सलीम चिस्ती के आशिर्वाद से अकबर को तीन पुत्र रत्न प्राप्त हुऐ। उनके एक पुत्र का नाम, उन्हीं के नाम पर सलीम रखा गया। सलीम आगे चल कर जहांगीर के नाम से शाहंशाह बना। फतेहपुर सीकरी अकबर ने सूफी संत सलीम चिस्ती के सम्मान में बनवायी थी। यहां संत सलीम की कब्र भी है। इसी पर चादर चढ़ा कर, मन्नत मांगने की बात रहती है। अकबर ने अपने पुत्र पैदा होने के उपलक्ष में इसे बनवाया था। यहां तो अपने बच्चों के भले के अलावा कोई और क्या मांग सकता है। मैंने वही मांगा जो हम सब चाहते हैं।
‘हे ईश्वर, हमारे बच्चों को संतोष, सुख, और शान्ति देना – हम दोनो से ज्यादा, चाहे वह थोड़ा ही ज्यादा क्यों न हो।’
हम लोग सड़क पार कर सर कैथ्रडल में भी गये। यह भी बहुत भव्य है। इसके बाहर दृष्य हमारे गाईड के साथ यह रहा। गाईड ने बताया कि इस चर्च में कब्रिस्तान भी है। इसमें महत्वपूर्ण पुर्तगालियों की शव भी गड़े हैं। वहां एक चमत्कारी क्रौस भी है। किंवदन्तियों के अनुसार इसका आकार तब तक बढ़ता रहा जब तक ईसा मसीह स्वयं इसके ऊपर नहीं आ गये। इस क्रौस के ऊपर एक सफेद दुप्पटा पड़ा है जिसे ईसा मसीह का प्रतीक कहा जाता है।
क्रौस मुझे हमेशा त्याग का प्रतीक लगता है। मां तो त्याग का ही रूप होती है। क्रौस पर सफेद रंग का कपड़ा – जैसे किसी महिला ने सफेद साड़ी साड़ी का पल्लू ओढ़ रखा हो। मेरी मां सधवा थीं पर मैंने हमेशा उन्हें सफेद सूती धोती में ही देखा। हम सब भाई बहन की शादी में भी। मेरे पिता यही चाहते थे। मुझे इसे देख कर बस अम्मां की याद आयी।
चर्च की इमारत से बाहर निकलते ही, उसी के आहाते में, दो छोटे सजे हुऐ बच्चे मिले। मैंने पूछा कि तुम क्या बने हो उन्होने कहा कि,
‘हम राधा कृष्ण बने हैं।’
वहीं पर उन्होने मुझे एक भजन सुनाया और पोस देकर फोटो भी खिंचवायी। पर मुझे उनकी फीस देनी पड़ी – दोनो को आइसक्रीम खिलानी पड़ी।
चर्च के अन्दर मां मिली और बाहर राधा कृष्ण – यात्रा ही सफल हो गयी।
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
गोवा में आमदनी का मुख्य स्रोत पर्यटन है पर इसके अलावा वहां मैगनीस और लोहे की खाने भी हैं।
खानों से मैगनीस और लोहे की कच्ची धातु (ore) निकाल कर बड़ी बड़ी नावों में पोर्ट पर लाया जाता है। वहां से जहाजों भर कर बाहर। मैगनीस की कच्ची धातु कुछ काली और लोहे की लाल रहती है। बोट में सैर करते समय कच्ची धातु ले जाने वाली बोट भी दिखायी पड़ती हैं। मैगनीस की कच्ची धातु कोरिया और जापान भेजी जाती है और लोहे की जापान और चीन को।
नये बजट में इसमें कच्ची धातु पर ३०० रुपये प्रति टन की ड्यूटी लग गयी है जिसका वहां बहुत विरोध है। लोहे की कच्ची धातु जो चीन भेजी जाती है उसका दाम २०० रुपये प्रति टन का होता है, उस पर ३०० रुपये प्रति टन की ड्यूटी – ठीक तो नहीं लगती। बात में कुछ दम लगता है। मैं नहीं जानता कि इस बजट में इसमें कुछ कटौती की गयी अथवा नहीं।
वहां पर कुछ लोगों ने कुछ और ही किस्सा बताया। लोहे की कच्ची धातु केवल जापान भेजी जाती थी इसके बाद जो बच जाता है उसमें लोहे की मात्रा बहुत कम होती थी तथा वह बेकार होता था। यह बेकार गोवा में पर्यावरण की मुश्कलें पैदा कर रहा था। खान वालों को हटाने के लिये कहा गया पर उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। चीन किसी और देश से लोहे की कच्ची धातु खरीदता है जिसमें लोहे की मात्रा ज्यादा होती है। वहां की मशीने इस कार्य के लिये उपयुक्त नहीं थी। इसलिये कम मात्रा के बेकार को इसमें मिला कर मशीन के लिये उपयोगी बनाया गया। इसमें कड़ोड़ों रुपया कमा लिया गया। यदि बेकार को बेच कर पैसा कमा लिया तो क्या गलती हुई, बस शायद सरकार को उसके किसी प्रतिशत पर ड्यूटी लगानी चाहिये।
आजकल गोवा में विकास को लेकर बहस छिड़ी हूई है। वहां पर गोवा प्लान २००१ लागू है। यह १९८६ में अधिसूचित किया गया था। सब का यह मानना है कि यह अब अनावश्यक हो गया है। १९९७ में एक नया प्लान शुरू किया गया। यह १० अगस्त २००६ में अधिसूचित किया गया। लोगों का कहना है कि इसमें बहुत बदलाव किये गये हैं और बहुत ज्यादा जमीन नगरीय प्रयोग के लिये रख दी गयी है। इसके कारण वहां का पर्यावरण और सुन्दरता नष्ट हो रही है। इस बारे में बम्बई उच्च न्यायालय की गोवा बेन्च के समक्ष एक जनहित याचिका भी चल रही है। सरकार ने, जन मानस की भावनाओं का ध्यान रखते हुऐ इस प्लान को २६ जनवरी २००७ को समाप्त कर दिया है। सरकार अब दुसरा प्लान २०१७ बना रही है शायद चुनाव के बाद यह आये।
न मांगू, सोना, चांदी
हम लोग गोवा में जिस होटेल में रुके थे उसमें प्रति दिन रात में अलग अलग रेस्तरां पर किसी न किसी थीम पर खाना होता है। एक रात, समुद्र के किनारे, बारबेक्यू चल रहा था। खाना अफ्रीकन थीम पर था। कुछ अफ्रीकन लोग, तरह तरह के करतब दिखा रहे थे और नाच रहे थे। वे होटेल के मेहमानो को भी स्टेज पर नाचने के लिये बुलाने लगे, कई गये। मैं भी नाचने के लिये जाने लगा तो मुन्ने की मां ने हांथ पकड़ लिया,
‘क्या करते हो, इस बुढ़ापे में क्या हो रहा है।’
मैंने कहा कि अमिताभ बच्चन भी तो करता है। वह बोली,
‘वह तो पैसे के लिये, पिक्चर में – सपनो की दुनिया में करता है। यह तो असली जिन्दगी है लोग क्या कहेंगे।’
झक्क मार कर बैठ गया।
गोवा में हमारी आखरी रात पर, गोवन थीम पर भोजन था। हम भी गये। पहुंचते ही एक स्वागत ड्रिंक मिली। मैंने पी ली पर मुन्ने की मां ने नहीं ली। लगता तो संतरे का जूस था पर स्वाद कुछ अजीब था। मैंने वेटर से पूछा कि यह क्या है। उसने बताया,
‘यह संतरे का जूस है पर इसमें थोड़ी सी काजू फेनी मिली हुई है।’
फेनी गोवा की देसी शराब है। यह दो तरह की होती हैः काजू फेनी और नारियल फेनी। यह उसी तरह की तरह है जैसे उत्तरी भारत में महुऐ से बनी देसी शराब। महुऐ से बनी शराब नीबू और पानी के साथ ली जाती है और फेनी किसी न किसी जूस के साथ ली जाती है। मैं शराब नहीं लेता। वेटर के बताने पर तो धर्म संकट में फंस गया – न तो निकाली जा सके, न पचायी जा सके।
सामने स्टेज पर, एक बैण्ड संगीत सुना रहा था जिसका संचालन समार्ट सी युवती कर रही थी। इसने कोकण के लोकगीत सुनाये, कुछ लोकनृत्य दिखाये। एक लोक गीत के साथ, लोकनृत्य ‘टेंपल डांस’ (Temple Dance) के नामे से भी दिखाया। इसकी धुन बहुत प्यारी ओर सुनी हुई लगी। मैंने उस युवती से इस गीत लोक नृत्य का महत्व पूछा। इसने बताया,
‘कुछ युवतियां शादी में शामिल होना चाहती हैं पर उसके लिये नदी पार करनी है जो कि उफान में है और नाविक उन्हें नहीं ले जा रहा है। वे नाविक को गीत गा कर, नृत्य दिखा कर रिझा रहीं हैं कि उन्हें नदी पार करवा दे।’
मैंने पूछा, यदि इसका यह अर्थ है तो इसे आप टेंपल डांस क्यों कह रहीं हैं। उसने कहा,
‘यह नृत्य दिये के साथ किया जाता है इसलिये इसे ‘टेंपल डांस’ कहा जाता है।’
मैंने उससे कहा कि लोकगीत की धुन बहुत प्यारी है क्या वह इसे बिना कोंकणी गीत के, एक बार फिर से सुनवा सकती है। उसने कहा अवश्य और धुन बजाने के पहले स्टेज से हमें इंगित कर कहा,
‘This item is dedicated to the young couple sitting at the left corner’
हमारा मन तो उसका हमें नवजवान जोड़े कहने से ही प्रसन्न हो गया। धुन भी अच्छी तरह से समझ में आयी और यह भी समझ आया कि यह क्यों अच्छी लगी। इसी धुन पर तो बौबी फिल्म का यह गाना है,
न मांगू सोना चांदी,
न चांहू हीरा मोती
देती है दिल दे, बदले में दिल दे
प्यार में सौदा नहीं
है, है….
रात बहुत हो चली थी अगले दिन वापस चलना था। हम लोग वापस समुद्र के किनारे, किनारे अपने कमरे के लिये चल दिये।
यह तो भूल ही गया
मैं दो बातें बताना भूल ही गया। चलिये उसका भी खुलासा कर देता हूं।
सबसे रोमांचक लहमां
एक दिन समुद्र तट पर पैरा सेलिंग हो रही थी। मैंने भी पैरा सेलिंग करने की जिद्द पकड़ ली। मुन्ने कि मां भी मेरे साथ थी, कहने लगी बुढ़ापे में यह सब नहीं किया जाता। पर जब ठान ही लिया और बच्चों जैसी जिद्द करने लगा तो उसे हांमी भरनी पड़ी। वह किनारे दुसरी तरफ मुंह करके खड़ी हो गयी। उसे लगा कि मैं उड़ कर, ऊपर ही चला जांउगा।
उतरने के बाद मुन्ने की मां जैसा चित्र खींच सकी 🙂
पैरा सेलिंग में मजा आ गया – बहुत रोमांच लगा। समुद्र पर, पृथ्वी से ३०० फिट ऊंचे, नीले गगन में। नीचे आते समय दहिने तरफ की रस्सी को खीचना था जिससे हवा में मुड़ सकूं, फिर छोड़ देना था। नीचे से इशारा हुआ कि दोनो हांथ छोड़ दो में ने छोड़ दिया पर हवा चलने लगी और मैं समुद्र के बीचों बीच जाने लगा। जान सरक गयी, फिर दहिने तरफ की रस्सी खींची तो सही सलामत नीचे आया। जान में जान आयी। मैंने मुन्ने की मां की मां को देखा, कैमरा उसके गले में टंगा था, उसने कस के आखें भींच रखी थी।
भाषण और मेरा प्रस्तुतिकरण
आप ही सोचिये कि – ऐसी दिल फेंक जगह पर, लहरों की अटखेलियों के बीच, जब आपकी नजरें लैपटॉप पर न हो कर कहीं और हों, मन कहीं और हो – तब प्रस्तुतिकरण कैसा बना होगा। भाषण सुनने वालों का भी ध्यान भी वहीं था जहां बनाने वाले का मन। शुरु हुऐ कुछ मिनट ही हुऐ नहीं की तालियों की बौछार, सीना चौड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद देखा तो लोग जम्हाई ले रहे थे। खाना बहुत अच्छा था,सोचा कि लोगों ने ज्यादा खा लिया होगा। थोड़ी देर बाद एक टोकरी में लाल, लाल रंग का कुछ दिखायी पड़ा। सब समझ में आ गया। भाषण बन्द कर स्टेज से भागने में ही भलाई समझी।
मुझे सड़े टमाटर बिलकुल पसन्द नहीं हैं और जब से मालुम चला है कि नये टमाटर में चमक, आकार, और ज्यादा समय चलने के लिये चूहे की जीनस् मिलायी गयी है तब से टमाटर भी कम पसन्द आने लगे हैं – जी हां, टमाटर में चूहे की जीनस्, चमक आकार और ज्यादा चलने के लिये। आजकल Genetically Modified Food (जीएमएफ) में जो न हो, वही कम है। इसलिये दुनिया में बहुत सारे लोग इस तरह के खाने को नहीं खाते हैं।
राज कपूर ने तीसरी कसम फिल्म में तीन कसमें खायी। मैंने भी गोवा से लौट कर तीन कसमें खायीं:
- मैं गोवा फिर से जाउंगा (हो सके तो बिना … );
- मैं गोवा के नशे में डूबना चाहूंगा; पर
- गोवा में कभी भाषण नहीं दूंगा।
अंकल तो बच्चे हैं
गोवा से अपने कसबे पंहुचने के लिये, हमें पहले हवाई जहाज से फिर ट्रेन की यात्रा करनी थी। एयरपोर्ट से रेलवे स्टेशन पंहुंचने समान्यतः ४५ मिनट का समय लगता था। हवाई जहाज के पहुंचने तथा ट्रेन के चलने में ३ घंटे का समय था। हमारे विचार से यह काफी था और आराम से ट्रेन पकड़ सकते थे। गोवा एयरपोर्ट पर हवाई जहाज की फ्लाइट फिर से निर्धारित कर, ढ़ाई घन्टा देर से उड़ी। हम लोग कुछ तनाव में आ गये, लगा कि कहीं गाड़ी न छूट जाये।
हवाई जहाज में उड़ते समय परिचायिका ने उद्घोषणा की,
‘उड़ते तथा उतरते समय, खिड़की शटर खुले रखें। अन्तरराष्ट्रीय नियम के अनुसार हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी बन्द कर दी जायगी।’
शटर इसलिये खुले रखे जाते हैं कि यदि कोई बाहर दुर्घटना हो तो वह दिखायी पड़ जाय पर मुझे यह नहीं मालुम था कि हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी क्यों बन्द कर दी जाती है। मैंने परिचायिका को बुलाने वाला बटन दबाया। वह कुछ देर बाद आयी तब तक मैं The Economics Times में डूब चुका था। एक मीठी अवाज, बनावटी मुस्कराहट के साथ, सुनायी पड़ी,
‘May I help you, Sir’
मैंने अखबार से नजर उठाते हुऐ कहा,
‘मुझे अंग्रेजी कम समझ में आती है क्या हम हिन्दी में बात कर सकते हैं।’
परिचायिका ने The Economics Times की तरफ कड़ी नजर डाली, फिर मुस्करायी। इस बार मुझे उसकी मुसकराहट बनावटी नहीं लगी। मुझे तो वह बिलकुल अपनी बिटिया जैसी लगी। उसकी मुस्कराहट जैसे कह रही हो कि पापा तुम्हें तो झूट बोलना भी नहीं आता पर उसने मुस्करा कहा कि,
‘अंकल मुझे भी हिन्दी अच्छी लगती है पर क्या करूं यहां पर अंग्रेजी बोलने को कहा आता है।’
वह काफी देर तक बतियाती रही। बिलकुल वैसे ही जैसे कि बिटिया रानी लड़ियाती है। उसने मुझे बताया कि परिचायिका की ट्रेनिंग में क्या क्या सिखाया जाता है और यह भी बताया कि हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी इसलिये बन्द कर दी जाती है कि दुर्घटना हो और बहर जाना पड़े तो आंखे न चौधियाऐं। मेरे यह सब पूछने पर उसे कुछ आश्चर्य हुआ। उसने इसका कारण जानना चाहा। मैंने उसे बताया,
‘मुझे न केवल उड़ान के बारे में पर शायद जीवन में उन सब बातों में रुचि है जो मुझे नहीं मालुम हैं।‘
इस पर वह मुन्ने की मां से बोली,
‘दीदी, अंकल तो बच्चे हैं।’
वह नये युग की थी। जानती थी कि, अब किसी भी महिला को आंटी नहीं कहा जाता है केवल दीदी या भाभी।
एयरपोर्ट पर मेरे सहयोगी ने अपनी कार ड्राईवर के साथ भेजी थी। कार में बैठने और ट्रेन छूटने में केवल ३० मिनट शेष था। ड्राईवर बहुत कुशल था। उसने हमें केवल २९ मिनट में रेवले स्टेशन पंहुचाया। मैं लैपटॉप लेकर प्लेटफॉर्म पर डिब्बे के सामने पहुंचा तो ट्रेन ने चलना शुरू कर रही थी। मैं तो चढ़ गया। मुन्ने की मां एक हाथ में पर्स और दूसरे हाथ में एक हैण्ड बैग पकड़े थी। चढ़ते समय उसका पैर फिसला, पर उसका पैर वापस प्लेटफॉर्म पर। मैंने उससे बैग लिया और दूसरे हाथ से उसे ट्रेन में चढ़ने में सहायात की। समान भी और लोगों ने चलती ट्रेन में चढ़ाया।
कुछ देर बाद समान ठीक से रख कर मैंने उससे कहा कि वह हैण्ड बैग क्यों पकड़े थी कहीं वह वास्तव में ऊपर चली जाती तो। उसने कहा कि वह निश्चिंत थी कि वह चढ़ जायगी इसलिये उसने ट्रेन में चढ़ने का प्रयत्न किया। वह कुछ आगे और भी कह रही थी पर तब तक मेरा लैपटॉप खुल चुका था। मेरी उंगलियां गोवा की यात्रा का संस्मरण लिखने के लिये थिरकने लगी थीं। फिर भी मैंने उसे कहते हुऐ सुना,
‘इतनी जल्दी मुझसे पल्ला झाड़ रहे थे। सुना नहीं था कि परिचारिका कह रही थी कि तुम बच्चे हो अभी तो तुम्हें २५ साल और देखना है जब तक बड़े न हो जाओ।’
मैंने उसकी बात अनुसुनी कर दी। २५ साल तो बहुत समय होता है, मेरे पास शायद केवल १० या १२ साल का समय है। बहुत कुछ करना है, बहुत कुछ लिखना है लोगों तक अपनी बात पहुचानी है। इसीलिये मैं काफी हड़बड़ी में रहता हूं और मेरी चिट्ठियां, मेरे पॉडकास्ट सब कॉपीलेफ्टेड हैं आपको सारे जहां को उन्हें कॉपी करने संशोधन करने या किसी प्रकार से प्रयोग करने की स्वतंत्रता है। हां यदि लिंक दे देंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी।
यह लेख मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर कई कड़ियों में प्रकाशित हो चुका है। इसकी अलग अलग कड़ियों को आप नीचे दिये गये लिंक पर चटका लगा कर पढ़ सकते हैं।
बहुत रोचक रहा आपका यह संस्मरण पढ़ना किन्तु एक ५ सितारा होटल का कम्प्यूटर स्पोर्ट प्रोफेशनल लिनिक्स क्या होता है, यह भी न जाने तब तो धन्य ही हो गये.
आपका यह चिट्ठा बहुत लंबा है पर बहुत रोचक भी। मुझे अपने गोवा भ्रमण कि याद दिलाता है जो मैंने इस वर्ष किया था।
और ज़्यादा तो नहीं कहूँगी बस मुझे मज़ा आ गया आपका यह लेख पढ़कर। शांती का नाम सुनते ही मुझे पता चल गया था कि किस शांती की बात हो रही थी।
अरे वो ठप्पे वाला झूठा है एक महीना नही टिकता है ठप्पा। मैं भी शिकार बन गई उसकी बातों का। उसे मालूम है की कोई एक महीने के बाद आने वाला नहीं है अपने पैसे वापस वसूल करने तो चलो लोगों को उल्लू बनाओ और पैसे कमाओ।
बहुत अच्छा लिखा है आपने।
मैं कभी गोवा नहीं गया लेकिन इसे पढ़ते पढ़ते ऐसा लगा जैसे कि मैं गोवा पहुँच गया हूँ।
निश्चित रूप से आप बधाई की पात्र हैं।
धन्यवाद मेरे अज्ञात मित्र – उन्मुक्त
उन्मुक्त जी मैंने ३ साल तक विण्डो इस्तेमाल किया है अब उब चुकी हूँ. इससे पहले से भी एक लगाव तो था ही लिनेक्स के प्रति अब आपके जज्बे को देखकर उबन्टू डाउनलोड करने का पुरा मन बना लिया है ..इस निर्णय का सारा श्रेय आपको जाता है.आप मेरी प्रेरणा हैं ओपन सोर्स के लिए.
आपकी बहना
लवली
आपकी यह टिप्पणी पा कर बहुत अच्छा लगा। मेरे डेस्कटॉप में युबुन्टू है। यह लिनेक्स का सबसे आसान और सबसे अधिक प्रयोक्ता मित्र (user friendly) है। इसे स्थापित करते समय हिन्दी को भी स्थापित करना पड़ता है। लिनेक्स में यूनिकोड हिन्दी टाइप करने के लिये स्किम (SKIM) प्रोग्राम चलता है। उसके बाद आप हमेशा ओपेन ऑफिस में या किसी अन्य प्रोग्राम में हिन्दी से टाइप कर सकते हैं। मुझे इसका फोनेटिक की-बोर्ड सबसे अच्छा लगता है। यह बहुत आसान है और विंडोज़ के किसी भी फोनेटिक की- बोर्ड से बेहतर है – उन्मुक्त।
[…] गोवा यात्रा से हवाई जहाज पर लौटते समय, विमान […]
बहुत अच्छा लिखा है आपने।
मैं कभी गोवा नहीं गया लेकिन इसे पढ़ते पढ़ते ऐसा लगा जैसे कि मैं गोवा पहुँच गया हूँ।
निश्चित रूप से आप बधाई ke पात्र हैं।
pardesi rk
very very good
LAGA KI MAY GOA GHUM AYA
THANKS
sir namaste,
mein ek computer engineer hoon aur aap ko ek sujhav deta hoon ki aap open source use karein bohat achhi baat hai mein b kerta hoon mozila,ubantu per aap uske saath windows 7 bhi daal lein ek saath 2 operating system ye aasaan hoga jahan asuvidha hui wahin windows khol ke use karein,agar dono hote to aapko hotel me asuvidha nahi hoti.ek aur baat jab jyada reserch hoti hai wahi jyada sulabh hota hai aur 75% log aaj windows use kerte hain.aur aapo her tarah ke software b aasani se mil jaate hain.to nivedan hai ki aap use b saath me daal lein bohat accha vratant tha.dhanyavaad
प्रियंक जी, मेरे लैपटॉप ड्यूल बूट था। मैंने इसमें विंडोज़ जान बूझ कर हटा दिया। क्योंकि मैं अक्सर विंडोज़ पर काम करने लगता था और उस समय चोरी का सॉफ्टवेयर प्रयोग करने का मन करता था जो कि गलत है और वह मैं नहीं करना चाहता था। अब चूंकि केवल लिनेक्स है तो मुश्किल का हल भी इसी में निकाल लेता हूं। मुझे लिनेक्स में कोई भी काम करने में मुश्किल नहीं होती। आप भी उबुंटू में काम करके देखें आप सारे काम इसमें कर पायेंगे – उन्मुक्त।